उत्तराखंड में पर्यावरण के संरक्षण के सन्दर्भ में ग्रामीण, जनजातियों एवं महिलाओं की भूमिका

  उत्तराखंड में पर्यावरण के संरक्षण के सन्दर्भ में ग्रामीण, जनजातियों एवं महिलाओं की भूमिका           उत्तराखण्ड का इतिहास संघर्षों का इतिहास रहा है। यहाँ का ग्रामीण एवं जनजातीय समाज अपने हितों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहा है। उसके अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक अधिकारों के लिए अनादिकाल से संघर्ष … Read more

हड़प्पा सभ्यता से संबंधित प्रमुख पुरातत्ववेत्ता | Major archaeologist related to Harappan civilization

हड़प्पा सभ्यता को दुनियां के नक्से पर लाने वाले पुरातत्ववेत्ता जिनके नाम ही हम सुनते हैं, जैसे जॉन मार्शल, दयाराम साहनी, राखालदास बनर्जी, मार्टिन व्हीलर, अमलानंद घोष, अर्नेस्ट मैके, अरेल स्टीन, जे. पी. जोशी आदि।  इस लेख के द्वारा हम तीन  प्रमुख पुरातत्ववेत्ताओं सर जॉन मार्शल, दयाराम साहनी और राखालदास बनर्जी के विषय में विस्तार … Read more

सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर व्यवस्था | Sindhu Ghaati Sabhyta Ki Nagar Vyavastha

संपूर्ण विश्व में सिंधु सभ्यता जैसी नगर योजना अन्य किसी समकालीन सभ्यता में नहीं पाई गई है। सिंधु सभ्यता के नगर पूर्व नियोजित योजना से बसाये गए थे। सिंधु सभ्यता की  नगर  योजना को देखकर विद्वानों को भी आश्चर्य होता है कि आज भी हम उस सभ्यता का तुलनात्मक अध्ययन करें तो हम अपने आपको आज भी पिछड़ा हुआ ही पाते हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर व्यवस्था | Sindhu Ghaati Sabhyta Ki Nagar Vyavasthaसिन्धु घाटी सभ्यता की नगर व्यवस्था

नगरीय सभ्यता के जो प्रतीक होते हैं, और नगर की विशेषताएं होती हैं जैसे– आबादी का घनत्व, आर्थिक एवं सामाजिक प्रक्रियाओं में घनिष्ठ समन्वय, तकनीकी-आर्थिक विकास, व्यापार और वाणिज्य के विस्तार एवं प्रोन्नति के लिए सुनियोजित योजनाएँ तथा दस्तकारों और शिल्पकारों के लिए काम के समुचित अवसर प्रदान करना आदि।

हड़प्पा कालीन नगर योजना को इस प्रकार से विकसित किया गया था कि वह अपने नागरिकों के इन व्यवसायिक, सामाजिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम थी। हड़प्पा सभ्यता का नगरीकरण इसकी विकसित अवस्था से जुड़ा है अनेक विद्वानों ने हड़प्पा कालीन नगरीकरण को ‘नगरीय क्रांति’ की संज्ञा दी है, जिसका किसी शक्तिशाली केंद्रीय सत्ता, विशिष्ट आर्थिक संगठन एवं सामाजिक-सांस्कृतिक एकता के बिना विकास नहीं हो सकता था।

हम वर्तमान नगरीकरण के संदर्भ में सिंधु सभ्यता की नगरीय विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके वर्तमान के लिए विकास का मार्ग तैयार कर सकते हैं। जब हम देखते हैं कि आज भी भारत के बड़े-बड़े नगरों में बरसात के दिनों में जलभराव के कारण संकट उत्पन्न हो जाता है तब हमें धौलावीरा जैसे हड़प्पायी नगरों की याद आती है जहां वर्षा के पानी को एकत्र करने के विशिष्ट इंतजाम किए गए थे और हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो जैसे नगरों में जल को शहर से बाहर निकालने के लिए सुनियोजित नालों को तैयार किया गया था। आइए देखते हैं उस समय की नगरीय व्यवस्था किस प्रकार की थी–

सिंधु सभ्यता की नगरीय व्यवस्था

सिंधु सभ्यता के बड़े नगरों एवं कस्बों की आधारभूत संरचना एक व्यवस्थित नगर योजना को दर्शाती है। सड़कें और गलियां एक योजना के तहत निर्मित की गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं तथा उनको समकोण पर काटती सड़कें और गलियां मुख्य मार्ग को विभाजित करती हैं

 सिंधु सभ्यता के नगर सुविचार इत एवं पूर्व नियोजित योजना से तैयार किए गए थे। गलियों में दिशा सूचक यंत्र भी लगे हुए थे जो मुख्य मार्गो तथा मुख्य मार्ग  से जाने वाली छोटी गलियों को दिशा सूचित करते थे।

 सड़कें और गलियां  9 से लेकर  34 फुट चौड़ी थीं और कहीं-कहीं पर आधे मील तक सीधी चली जाती थी। ये मार्ग समकोण पर एक-दूसरे को काटते थे जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खंडों में विभाजित हो जाते थे। इन वर्गाकार या आयताकार खंडों का भीतरी भाग मकानों से भरी गलियों से विभाजित था।

 मोहनजोदड़ो की हर गली में सार्वजनिक कुआं होता था और अधिकांश मकानों में निजी कुऍं और स्नानघर होते थे। सुमेर की भांति सिंधु सभ्यता के नगरों में भी भवन कहीं भी सार्वजनिक मार्गों का अतिक्रमण करते दिखाई नहीं पड़ते।

 मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, सुरकोटड़ा जैसे कुछ महत्वपूर्ण नगर दो भागों में विभाजित थे—-

1- ऊंचे टीले पर स्थित प्राचीन युक्त बस्ती जिसे नगर-दुर्ग कहा जाता है। तथा

2- इसके पश्चिम की ओर के आवासीय क्षेत्र को निचला नगर कहा जाता है। 

   हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा और सुरकोटड़ा में नगर-दुर्ग का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था और वह हमेशा इसके पश्चिम में स्थित होता है।

मोहनजोदड़ो के नगर-दुर्ग में पाए गई भव्य इमारतें जैसे– विशाल स्नानागार, प्रार्थना-भवन, अन्नागार एवं सभा-भवन पकाई गई ईंटों से बनाए गए थे।

हड़प्पा को सिंधु सभ्यता की दूसरी राजधानी माना जाता है। यहां के नगर-दुर्ग के उत्तर में कामगारों (दस्तकारों) के आवास, उनके कार्यस्थल (चबूतरे) और एक अन्नागार था। यह पूरा परिसर यह दिखाता है कि यहां के कामगार बड़े अनुशासित थे।

राजस्थान में विलुप्त सरस्वती (घग्गर) नदी के बाएं तट पर स्थित कालीबंगा की नगर योजना वैसी ही थी जैसी कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की थी अर्थात पश्चिम दिशा में नगर-दुर्ग एवं पूर्व दिशा में निचला नगर। अर्थात नगर-दुर्ग के दो समान एवं सुनिर्धारित भाग थे—

 प्रथम भाग- दक्षिणी भाग में कच्ची ईंटों के बने विशाल मंच या चबूतरे थे जिन्हें विशेष अवसरों के लिए बनाया गया था।

द्वितीय भाग- उत्तरी भाग में आवासीय मकान थे।

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प्राचीन भारतीय इतिहास के 300 अति महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

प्राचीन भारतीय इतिहास के 300 अति महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान  प्रश्नोत्तरी

प्राचीन भारतीय इतिहास के 300 अति महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान प्रश्नोत्तरी

प्राचीन भारतीय इतिहास

1- हड़प्पा की खोज किसने की 

उत्तर- दयाराम साहनी ने 

2- मोहनजोदड़ो को खोज किसने की 

उत्तर- राखालदास बनर्जी 

3-सिंधु सभ्यता किस प्रकार की सभ्यता थी 

उत्तर- नगरीय सभ्यता ( शहरी )

4-सिंधु घाटी सभ्यता का वह कौनसा स्थल है जहाँ से ईंटों से निर्मित कृत्रिम गोदी ( डॉकयार्ड )  मिला है 

उत्तर- लोथल 

5-हड़प्पा का बिना दुर्गवाला एकमात्र नगर 

उत्तर- चन्हूदड़ो 

6-मातृदेवी की पूजा किस सभ्यता से सम्बंधित है 

उत्तर- सिंधु सभ्यता से 

7-मिथिला राज्य से संबंधित तीन प्राचीन ऋषि 

उत्तर- कपिल मुनि , गार्गी और मैत्रेय 

8-वैदिक काल में लोहे का प्रयोग किस समय हुआ 

उत्तर- 1000 ईसा पूर्व के आसपास 

9- श्रमण कौन थे 

उत्तर- वैदिक काल के वे अध्यापक जो वेद और ब्राह्मण विरोधी शिक्षा देते थे वह ‘श्रमण’ कलाते थे 

10-हिन्दू धर्म के चार आश्रम कौन से हैं 

उत्तर- ब्रह्मचर्य – गृहस्थ – वानप्रस्थ – सन्यास 

11- सबसे प्राचीन वेद कौनसा है 

उत्तर- ऋग्वेद 

12- उपनिषद का क्या अर्थ है 

उत्तर- पास बैठना 

13- महाभारत का प्रथम नाम 

उत्तर- जय सहिंता 

14- पशुपति शिव की प्राचीनतम उपास्थि 

उत्तर- सिंधु सभ्यता में 

15- किस प्रकार के वर्तन ( मृदभांड) भारत में द्वित्य नगरीकरण के प्रारम्भ का प्रतीक है 

उत्तर- उत्तरी काले पॉलिश युक्त बर्तन

16-  दिलवाड़ा ( माउन्ट आबू राजस्थान ) के मंदिर किस धर्म से सम्बंधित हैं

उत्तर- जैन धर्म

17- सत्यमेव जयते किस ग्रन्थ से है लिया गया है 

उत्तर- मुंडकोपनिषद 

18- हड़प्पा के लोगो की सामाजिक व्यवस्था कैसी थी 

उत्तर- उचित समतावादी 

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सिन्धु घाटी सभ्यता-sindhu ghati sabhyata

 सिन्धु घाटी सभ्यता-sindhu ghati sabhyata      सिंधु घाटी सभ्यता ( Indus Valley Civilization ) – बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक अधिकांश विद्वान यही मानते थे कि वैदिक सभ्यता भारत की सर्वप्राचीन सभ्यता है और भारत का इतिहास वैदिक काल से ही प्रारंभ माना जाता था। परंतु बीसवीं शताब्दी के तृतीय दशक में इस भ्रामक धारणा … Read more

मौलिक अधिकार हिंदी में | Fundamental Rights In Hindi

Fundamental Rights -मौलिक अधिकार बुनियादी मानवाधिकारों के एक समूह को संदर्भित करते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए उनकी जाति, लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता या किसी अन्य विशेषता की परवाह किए बिना निहित हैं। ये अधिकार किसी व्यक्ति के विकास और भलाई के लिए आवश्यक माने जाते हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं।

मौलिक अधिकार हिंदी में | Fundamental Rights In Hindi

Fundamental Rights-मौलिक अधिकार हिंदी में

मौलिक अधिकार अक्सर किसी देश के संविधान में निहित होते हैं, और उनमें आम तौर पर जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता और व्यक्ति की सुरक्षा, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम करने का अधिकार और शिक्षा का अधिकार, वोट देने का अधिकार और सरकार में भाग लेने का अधिकार शामिल होता है। कानून के तहत समान सुरक्षा का अधिकार।

मौलिक अधिकारों की अवधारणा समय के साथ विकसित हुई है, और अब इसे व्यापक रूप से लोकतांत्रिक समाजों की आधारशिला के रूप में मान्यता प्राप्त है। न्यायसंगत और समतामूलक समाज सुनिश्चित करने के लिए मौलिक अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है जहां सभी को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अवसर मिले।

भारत जैसे विशाल एवं विविधतापूर्ण देश में जहाँ सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक रूप से नागरिकों में पर्याप्त विभेद हैं, उस देश में मूल अधिकारों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। भारत में नागरिक अधिकारों का प्रारम्भ ब्रिटिशकालीन भारत में ही प्रारम्भ हुआ। भारत की आज़ादी के बाद भारत के संविधान में नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए मूल अधिकारों की व्यवस्था की गयी।

मूल अधिकार वह अधिकार होते हैं जो संविधान अपने नागरिकों को प्रदान करता है, उन्हें प्रायः प्राकृतिक अधिकार अथवा मूल अधिकार की संज्ञा दी जाती है। मूल अधिकारों का उद्देश्य सरकार अथवा राज्यों को मनमानी करने से रोकना है और नागरिकों को सर्वांगीण विकास के अवसर प्रदान करना है। ये अधिकार न्यायलय द्वारा बाध्य किये जा सकते हैं और कोई भी नागरिक सर्वोच्च न्यायालय में ऐसा करने के लिए जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय उन सभी कानूनों को जो इन अधिकारों का उल्लंघन करते हैं अथवा अपमानित करते हैं उन्हें अवैध घोषित कर सकता है। परन्तु मूल अधिकार पूर्णतया असीमित (Absolute) नहीं हैं। सरकार आवश्यकता पड़ने पर उन्हें सीमित कर सकती है। संविधान के 42वें संसोधन विधेयक ने संसद द्वारा इन मूल  को सीमित करने का अधिकार स्वीकार कर लिया गया।

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भारत में भूमि कर व्यवस्था: मौर्य काल से ब्रिटिश काल तक

भूमि व्यवस्था एक ऐसा विषय रहा है जिसने प्राचीन काल से लेकर मध्यकाल और ब्रिटिश काल तक शासन व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भू-राजस्व सरकार की आय का एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है चाहे राजतंत्र हो या प्रजातंत्र। हर काल और परिस्थिति में भू-राजस्व को अपनी सुविधा और मांग के अनुसार परिवर्तन से गुजरना … Read more

विजयनगर साम्राज्य: इतिहास, शासक, शासन व्यवस्था और महत्व

विजयनगर साम्राज्य एक शक्तिशाली दक्षिण भारतीय साम्राज्य था जो 14वीं से 17वीं शताब्दी तक अस्तित्व में था। इसकी स्थापना 1336 में ऋषि विद्यारण्य के मार्गदर्शन में हरिहर प्रथम और उनके भाई बुक्का राय प्रथम ने की थी। साम्राज्य वर्तमान कर्नाटक में विजयनगर (अब हम्पी) शहर में केंद्रित था, और यह दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों में फैल गया। विजयनगर साम्राज्य अपनी प्रभावशाली वास्तुकला, जीवंत संस्कृति और मजबूत सेना के लिए जाना जाता था। यह एक हिंदू राज्य था, लेकिन इसमें अच्छी खासी मुस्लिम आबादी भी थी। 16वीं शताब्दी में साम्राज्य का पतन हो गया, और अंततः 1565 में मुस्लिम सल्तनतों के गठबंधन द्वारा इसे जीत लिया गया।

विजयनगर साम्राज्य: इतिहास, शासक, शासन व्यवस्था और महत्व 

विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति– 

विजयनगर का प्रारंभिक इतिहास स्पष्ट नहीं है। “ए फॉरगॉटेन एंपायर” के प्रसिद्ध लेखक सीवेल (Sewell) ने विजयनगर की उत्पत्ति के विषय में बहुत सी परंपरागत कथाओं पर प्रकाश डाला है और उन्होंने यह विचार प्रकट किया है कि, “शायद अत्यधिक न्याय संगत विवरण तभी मिल सकता है जबकि हिंदुओं की किवदंतियों का सामान्य प्रवाह ऐतिहासिक तथ्यों की निश्चितता में मिश्रित कर दिया जाए।”

सीवेल ने उस परंपरा को स्वीकार किया है जिसके अनुसार संगम के पांच पुत्रों ने ( जिनमें से दो का नाम हरिहर व बुक्का था ) तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर उसके उत्तरी तट वाले अनागोंडी दुर्ग के सामने विजयनगर की नींव डाली थी। संगम के पुत्रों की इस आवश्यकता को प्रेरणा देने का उत्तरदायित्व उस समय के दो महान विद्वान सायण व माधव विद्यारण्य पर है।

विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों के उद्भव से संबंधित तीन मुख्य विचारधाराएं प्रचलित हैं—

(क)- तेलुगू, आंध्र या काकतीय उद्भव,
(
ख)- कर्नाट (कर्नाटक) या होयसल उद्भव,
(
ग)-कम्पिली उद्भव,

प्रथम विचारधारा के अनुसार हरिहर और बुक्काअंतिम काकतीय शासक प्रताप रूद्रदेव काकतीय के कोषाधिकारी (प्रतिहार) थे।तुगलक सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक द्वारा काकतीय राज्य की विजय के पश्चात ये दोनों भाई विजयनगर के वर्तमान स्थान पर पहुंचे जहां एक वैष्णव संत विद्यारण्य ने उन्हें अपना संरक्षण प्रदान किया तथा उन्हें विजयनगर नामक नगर तथा साम्राज्य की स्थापना करने के लिए अनुप्रेरित किया। इस मान्यता की पुष्टि मुख्यत: कालज्ञान ग्रंथों विशेषकर विद्यारण्य कालज्ञान तथा कुछ अन्य स्रोतों से होती है।

विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों के तेलुगु या काकतीय उद्भव की मान्यता का समर्थन करने वाले आधुनिक विद्वानों ने अपनी मान्यता के समर्थन में यह भी तर्क प्रस्तुत किया है कि विजयनगर नरेशों ने अपने राज्य चिन्ह और प्रशासकीय प्रभावों को काकतीय से ग्रहण किया था। इसके अतिरिक्त विजयनगर नरेशों ने तेलुगु भाषा और साहित्य को अत्यधिक संरक्षण प्रदान किया था।

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आधुनिक भारतीय इतिहास पर आधारित समान्य अध्ययन

आधुनिक भारतीय इतिहास से संबंधित प्रश्न अक्सर आपको प्रतियोगी परीक्षाओं में देखने मिलते हैं। आपके लिए 100 सर्वश्रेष्ठ सर्वश्रेष्ठ प्रश्नोत्तर आपको यहाँ मिलेंगे।    आधुनिक भारतीय इतिहास: इतिहास सामान्य अध्ययन 1- भारत विभाजन या माउंटबेटन योजना को  तीन जून योजना नाम क्यों दिया जाता है? ANS-क्योंकि 3 जून 1947 को हाउस ऑफ कॉमंस में एटली … Read more

महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण: महमूद गजनवी का इतिहास

यह सत्य है की की भारत पर आक्रमण करने वाला प्रथम मुस्लिम आक्रमणकारी  मुहम्मद-बिन-कासिम था।  जिसने 711 ईस्वी में भारत पर आक्रमण किया। उसके आक्रमण का ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि वह भारत की पश्चिमी सीमा तक ही आया था। परंतु उसके आक्रमण के लगभग 300 वर्ष पश्चात एक और दुर्दांत आक्रमणकारी भारत में आया जिसने भारत पर लगभग 17 बार आक्रमण किए और भारत को बुरी तरह लूटा। उसने विभिन्न मंदिरों को लूटा और लोगों कीहत्याएं कीं। उस दुर्दांत आक्रमणकारी का नाम महमूद गजनबी था।

महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण: महमूद गजनवी का इतिहास

अरबों का आरंभ किया हुआ कार्य तुर्कों ने पूर्ण कर दिया। आठवीं और नवीं शताब्दियों में तुर्कों ने बगदाद के खलीफा की शक्ति हथिया ली। तुर्कों और अरबों में असमानता थी तुर्क, अरबों से अधिक क्रूर थे और उन्होंने बलपूर्वक इस्लाम धर्म का प्रचार किया। वे योद्धा थे और उनमें अपार साहस था। उनका दृष्टिकोण पूर्णतः भौतिक था। वे महत्वकांक्षी भी थे। पूर्व में सैनिक साम्राज्य की स्थापना के लिए सब गुण उनमें विद्यमान थे। डॉ० लेनपूल ने तुर्कों के प्रसार को “10वीं और 11वीं शताब्दियों में मुसलमानों के साम्राज्य के लिए अद्वितीय आंदोलन का रूप दिया है।”

महमूद गजनवी

जन्म 2 नवम्बर 971 गजनी अफगानिस्तान,
शासनावधि 997 -1030,
पिता सुबुक्तगीन,
राज्याभिषेक 1002, गजनी अफगानिस्तान,
मृत्य 30 अप्रैल 1030 गजनी अफगानिस्तान।

गजनी वंश का संस्थापक

अलप्तगीन

अलप्तगीन पहला तुर्क आक्रमणकारी था जिसका संबंध मुसलमानों की भारत विजय की कहानी से है। वह असाधारण योग्यता और साहस का स्वामी था वह बुखारा के समानी शासक अब्दुल मलिक का दास था। अपने परिश्रम से वह हजीब-उल-हज्जाब के पद पर नियुक्त हुआ। 956 ईसवी में उसे खुरासान का शासन भार सौंप दिया गया। 962 ईसवी में अब्दुल मलिक के देहांत के पश्चात उसके भाई और चाचा में सिंहासन के लिए युद्ध हुआ।

अलप्तगीन ने उसके चाचा की सहायता की परंतु अब्दुल मलिक का भाई मंसूर सिंहासन पाने में सफल हुआ। इन परिस्थितियों में अलप्तगीन ने अपने 800 व्यक्तिगत सैनिकों के साथ अफगान प्रदेश के गजनी नगर में निवास किया। उसने मंसूर के प्रयासों को उसे गजनी से बाहर निकालने के लिए असफल किया और इस शहर और उसके पड़ोसी भागों पर अधिकार स्थापित रखा।

महमूद गजनवी का पिता

सुबुक्तगीन

सुबुक्तगीन महमूद गजनबी का पिता था जिसने 977 ईसवी में अलप्तगीन की मृत्यु के पश्चात गजनी का सिंहासन को प्राप्त किया था। सुबुक्तगीन गजनी का शासक बन गया। सुबुक्तगीन प्रारंभ में एक दास था। नासिर-हाजी नामक व्यापारी से जो उसे तुर्किस्तान से बुखारा लाया था, अलप्तगीन ने उसे खरीदा। उसकी प्रतिभा को देखकर अलप्तगीन ने उसे एक के बाद एक दूसरे उच्च पदों पर नियुक्त किया। सुबुक्तगीन को अमीर-उल-उमरा की उपाधि उपाधि दी गई।
अलप्तगीन ने अपनी कन्या का विवाह उससे किया। सिंहासनारूढ़ होने के पश्चात उसने आक्रमणों का जीवन प्रारंभ किया, जिससे उसे पूर्वी संसार में प्रसिद्धि मिली।

सुबुक्तगीन द्वारा भारत पर आक्रमण

 सुबुक्तगीन एक महत्वाकांक्षी शासक था इसलिए उसने अपना सारा ध्यान धन और मूर्ति-पूजकों से परिपूर्ण भारत की विजय की ओर लगाया। उसकी शाही वंश के राजा जयपाल, जिसका राज्य सरहिंद से लमगान (जलालाबाद) और कश्मीर से मुल्तान तक था, से सबसे पहले भेंट हुई। शाही शासकों की राजधानियां क्रमशः  ओंड, लाहौर और भटिंडा थीं।
986-87 ईसवी में सुबुक्तगीन ने प्रथम बार भारत की सीमा में आक्रमण किया और उसने अनेक किलों अथवा नगरों को विजय किया “जिसमें इससे पहले विधर्मियों (हिन्दुओं) के अतिरिक्त और कोई न रहता था और जिन्हें मुसलमानों के घोड़ों और ऊंटों ने कभी भी पददलित नहीं किया था। जयपाल यह सहन न कर सका। वह अपनी सेना को एकत्रित कर लमगान की घाटी की ओर बढ़ा, जहां सुबुक्तगीन और उसके बेटे (महमूद गजनवी) से उसका सामना हुआ। युद्ध कई दिन तक होता रहा। जयपाल की सभी योजनाएं बर्फ के तूफान के कारण असफल हुईं। उसने संधि के लिए प्रार्थना की।

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