इस्लाम धर्म अथवा रेगिस्तान का धर्म जिस प्रकार उभरा वह आश्चर्यजनक तो था ही लेकिन उससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक उसका तेजी से संसार में फैलना था। प्रसिद्ध इतिहासकार सर वुल्जले हेग ने ठीक ही कहा है कि इस्लाम का उदय इतिहास के चमत्कारों में से एक है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम ‘इस्लाम का उदय कब हुआ, विषय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
इस्लाम का उदय
इस्लाम एक अभिव्यक्ति धर्म है जो 7वीं सदी में मुहम्मद नामक एक नबी द्वारा स्थापित किया गया था। इस्लाम के अनुयायी मुसलमान कहलाते हैं। इस्लाम का मतलब है “समर्पण” या “आत्मसमर्पण” जो आलोचनात्मक ध्यान के विरुद्ध होता है। इस्लाम धर्म में एक ईश्वर होता है, जिसे अल्लाह कहा जाता है।
622 ईसवी में एक पैगंबर ने मक्का को छोड़कर मदीना की शरण ली, और फिर उसके एक शताब्दी बार उसके उत्तराधिकारियों और उसके अनुयायियों ने एक ऐसे विशाल साम्राज्य पर शासन करना शुरू किया जिसका विस्तार प्रशांत महासागर से सिंधु तक और कैस्पियन से नील तक था। क्या यह सब कुछ अचानक हुआ? यह सब कुछ कैसे हुआ? यह एक शिक्षाप्रद कहानी है। परंतु उस कहानी हो जानने से पहले हमें यह जानना उचित होगा वह कौन-से स्रोत हैं जिनसे हमें इस्लाम के साथ-साथ दिल्ली सल्तनत का इतिहास जानने में भी सहायता मिलेगी।
मध्यकालीन भारत का इतिहास जानने के प्रमुख स्रोत कौन-कौन से हैं
मध्यकालीन भारत का इतिहास जानने के लिए हमारे पास बहुत अधिक संख्या में मौलिक पुस्तके हैं जिनसे हमें महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। हमें ईलियट और डौसन के अनुवादों से ऐसी सामग्री भरपूर मात्रा में मिल सकती है।
1-चाचनामा-
चाचनामा आरंभ में अरबी भाषा में लिखा गया ग्रन्थ है। मुहम्मद अली बिन अबूबकर कुफी ने बाद में नसिरुद्दीन कुबाचा के समय में उसका फारसी में अनुवाद किया। डॉक्टर दाऊद पोता ने उसे संपादित करके प्रकाशित किया है। यह पुस्तक अरबों द्वारा सिंध की विजय का इतिहास बताती है। यह हमारे ज्ञान का मुख्य साधन होने की अधिकारिणी है।
2 -तवकात-ए-नासरी-
तबकात-ए-नासिरी का लेखक मिनहाज-उस-सिराज था। राबर्टी ने उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया । यह एक समकालीन रचना है और 1260 ईस्वी में यह रचना पूर्ण हुई। दिल्ली सल्तनत का 1620 ईस्वी तक का इतिहास और मोहम्मद गौरी कि भारत विजय का प्रत्यक्ष वर्णन इस पुस्तक में मिलता है। इस पर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मिनहाज-उस-सिराज एक पक्षपात रहित लेखक ने था उसका झुकाव मुहम्मद गौरी, इल्तुतमिश और बलबन की ओर अधिक था।
3- तारीख-ए-फिरोजशाही-
तारीख-ए-फिरोजशाही का लेखक जियाउद्दीन बरनी था। यह लेखक गयासुद्दीन तुगलक, मुहम्मद तुगलक और फीरोज तुगलक का समकालीन था। बरनी ने बलबन से लेकर फीरोज तुगलक तक का इतिहास लिखा है। उसने दास वंश, खिलजी वंश और तुगलक वंश के इतिहास का बहुत रोजक वर्णन किया है।
यह पुस्तक, जो अब बंगाल की एशियाटिक सोसायटी ने प्रकाशित की है, 1339 ईस्वी में पूर्ण हुई। यह पुस्तक इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखी गई है, जो शासन में उच्च पद पर नियुक्त था और जिसे शासन का वास्तविक ज्ञान था। लेखक ने भूमि-कर प्रबंध का विस्तार से वर्णन किया है। परन्तु बरनी भी एक पक्षपात रहित लेखक नहीं था इसके अतिरिक्त उसकी लेखनी बहुत गूढ़ है।
4- तारीख-ए-फिरोजशाही-
शम्मस-ए-सिराज अफीफ ने अपनी पुस्तक ‘तारीख-ए-फिरोजशाह’ में फीरोज तुगलक का इतिहास लिखा है। लेखक स्वयं फीरोज तुगलक के दरबार सदस्य था। निश्चित ही यह एक उच्च कोटि की पुस्तक है।
5- ताज-उल-मासिर-
इस पुस्तक का लेखक हसन निजामी है। इस पुस्तक में 1162-से- 1228 ईस्वी तक का दिल्ली सल्तनत का इतिहास वर्णित हैं। लेखक ने कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवन और इल्तुतमिश के राज्य के प्रारम्भिक वर्षों का वर्णन किया है। एक समकालीन वृतांत होने के कारण यह उत्तम कोटि का ग्रन्थ है।
6- कामिल-उत-तवारीख-
शेख अब्दुल हसन ( जिसका उपनाम इब्नुल आमिर था ) ने ‘कामिल-उत-तवारीख’ की रचना की। इसकी रचना 1230 ईस्वी में हुई। इसमें मुहम्मद गौरी की विजय का वृतान्त मिलता है। यह भी एक समकालीन वर्णन है और यही इसके उपयोगी होने का कारण है।
पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्म कब हुआ
इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद साहब थे। अरब के एक नगर मक्का में उनका जन्म 570 ईसवी में हुआ। दुर्भाग्य से उनके पिता की मृत्यु उनके जन्म से पूर्व ही हो गई और जब वह केवल 6 वर्ष की अवस्था के थे तब उनकी माता की भी मृत्यु हो गई।
मुहम्मद साहब का पालन पोषण किसने किया
माता-पिता की मृत्यु के बाद मुहम्मद साहब का पालन पोषण उनके चाचा अबू तालिब ने किया। मुहम्मद साहब का बचपन अत्यंत गरीबी में गुजरा। उन्होंने भेड़ों के एक समूह की देख-भाल की व व्यापार कार्य में अपने चाचा का हाथ बटाया.
मुहम्मद साहब की पत्नी का क्या नाम था
मुहम्मद साहब का वैवाहिक जीवन बहुत सरल और आदर्शवादी था। वे खुद एक आदर्श वैवाहिक जीवन जीते थे और लोगों को एक सुदृढ़ वैवाहिक सम्बन्ध बनाने के लिए प्रेरित किया था।
मुहम्मद साहब का पहला विवाह उनकी जवाहिर बिंते खुज़ैमा से हुआ था। उन्हें उससे बहुत प्यार था और वे उसे “खादीजा” के नाम से जानते थे। वे उम्र में मुहम्मद साहब से बहुत बड़ी थीं और उन्हें विधवा होने के बाद सम्बन्ध बनाने का विचार आया था। खादीजा के साथ मुहम्मद साहब के 25 साल तक के सुखद वैवाहिक जीवन का जीता जागता उदाहरण दिया जाता है।
उन्होंने खादीजा के बाद और भी कई वैवाहिक सम्बन्ध बनाए, जिनमें एक बेहतरीन सम्बन्ध था जो उनकी दूसरी पत्नी आइशा के साथ था। वे आइशा को अपनी आखिरी और सबसे प्यारी पत्नी मानते थे।