इल्तुतमिश | Iltutmish-प्रारम्भिक कठिनाइयां, साम्राज्य, शासन व्यवस्था, क़ुतुबमीनार,उपलब्धियां

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दास वंश के सुल्तानों में इल्तुतमिश सबसे अधिक महान था।  शमसुद्दीन इल्तुतमिश ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था। वह एक दास था जो केबल अपनी योग्यता के बल पर इतने ऊंचे पद पर पहुंच सका। वह मुलतः तुर्किस्तान की इलबरी जाति से था। वह एक उच्च परिवार का था बाल्यकाल में वह अत्यंत सुंदर था और अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि का था। इल्लुतमिश की प्रतिभा से उसके भाई ईर्ष्या करते थे अतः उन्होंने उसे पैतृक निवास व संरक्षण से वंचित करने का प्रयास किया। उसे बुखारा के एक व्यापारी के हाथ बेच दिया गया, जिससे एक अन्य व्यक्ति ने खरीदकर कुतुबुद्दीन ऐबक के हाथ बेच दिया। अपनी योग्यता के बल से इल्तुतमिश धीरे धीरे अपना दर्जा बढ़ाता गया।

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     इल्तुतमिश | Iltutmish -qutub minar delhi
क़ुतुब मीनार दिल्ली -फोटो क्रेडिट britannica.com

इल्तुतमिश: प्रारम्भिक कठिनाइयां

इल्तुतमिश, जिसका पूरा नाम शम्स अल-दीन इल्तुतमिश भी था, इल्तुतमिश ने अल्तमश भी लिखा, उसने 1211 से 29 अप्रैल, 1236 तक शासन किया। वह तथाकथित गुलाम वंश का तीसरा और सबसे प्रभावशाली दिल्ली सुल्तान था। इल्तुतमिश कोबचपन में गुलाम के रूप में बेच दिया गया था, लेकिन उसने अपने मालिक कुतुब अल-दीन ऐबक की बेटी से शादी की, जिसके बाद वह 1211 सुल्तान बनने में सफल हुआ। उसने उत्तरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य को मजबूत और विस्तारित किया और राजधानी को दिल्ली ले गया, जहां उसने महान विजय स्तम्भ, कुतुब मीनार का निर्माण किया।

एक बुद्धिमान और धैर्यवान राजनेता, जिसे अपने पूर्ववर्तियों मुइज़ अल-दीन मुहम्मद इब्न सैम और क़ुतुबुद्दीन ऐबक के नेतृत्व में एक विश्वसनीय प्रशासक के रूप में प्रशिक्षित किया गया था, इल्तुतमिश का सामना न केवल मुस्लिम शासन के बिगड़ने के साथ बल्कि ताज के दावे के साथ भी हुआ था।

अल-दीन यिलदोइज़, गजनी शासक, मुइज़ अल-दीन की सभी विजयों के उत्तराधिकार के लिए और हिंदुओं द्वारा अपने खोए हुए क्षेत्र के कुछ हिस्सों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों के साथ। 1215 में उसने यिल्दोइज़ को पराजित कर दिया, जिसकी जेल में मृत्यु हो गई।

1225 में इल्तुतमिश ने अनियंत्रित बंगाल के गवर्नर को दिल्ली की सत्ता को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया, और इसके तुरंत बाद उसने फिर से मुस्लिम बर्चस्व को मजबूत किया।

इल्तुतमिश अपने शासनकाल में हुए मंगोल आक्रमणों के विनाश के खिलाफ अपने राज्य को संरक्षित करने में सफल हुआ, और वह साम्राज्य के लिए एक प्रशासनिक तंत्र बनाने में सफल रहा।

इल्तुतमिश ने सल्तनत की कला पर 11वीं शताब्दी के इस्लामी क्लासिक्स की खोज की; और अदब अल-मुलुक (“राजाओं का आचरण”), सरकार और युद्ध की कला पर पहला इंडो-मुस्लिम क्लासिक, उनके लिए लिखा गया था।

वह अपने सलाहकारों के आग्रह के बावजूद हिंदुओं के प्रति सहिष्णु थे, और उन्होंने पहली बार सरकार की एक उपयुक्त छवि बनाने के लिए दिल्ली में वाटरवर्क्स, मस्जिदों और सुविधाओं का निर्माण किया। उनके शासनकाल और उनके सलाहकारों, विशेष रूप से वजीर जुनायदी की समकालीनों द्वारा प्रशंसा की गई थी।

इल्तुतमिश के सबसे बड़े बेटे की मृत्यु के बाद, उसके अन्य बेटे अक्षम थे। उसने अपनी बेटी रज़िय्याह (रज़ियात अल-दीन) को एक उत्कृष्ट शिक्षा दी और इच्छा की कि वह उसकी उत्तराधिकारी बने।

उसकी इच्छाएँ तुर्क-ए-चलगानी (चालीस अमीरों का दल) की प्रशासनिक परिषद, इल्तुतमिश के व्यक्तिगत दासों के लिए अपमानजनक थीं, जो उसके सलाहकार के रूप में सेवा करते थे।

रजिया कुछ समय के लिए सिंहासन पर बैठने में सफल रही, लेकिन एक महत्वपूर्ण पद पर एक अफ्रीकी दास की नियुक्ति को अमीरों के लिए अपमानजनक माना गया, जो शीघ्र ही उसके पतन का कारण बना। इसने इल्तुतमिश के वंश के पतन की शुरुआत को चिह्नित किया।

बिन्दुबार इल्तुतमिश की उपलब्धियां और चुनौतियाँ

👉 कुतुबुद्दीन ने उसकी प्रतिभा को पहचान कर बदायूं का सूबेदार  नियुक्त कर दिया।

👉 Qutbuddin Aibak married his daughter to Iltutmish.

👉 अपनी सेवाओं के बदले मुहम्मद गौरी के आदेश से इल्तुतमिश को दासता से मुक्ति मिल गई और साथ ही अमीर- उल- उमरा की उपाधि भी मिल गई।

👉 कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात आराम शाह नामक एक अयोग्य व्यक्ति को सिंहासन पर बैठा दिया गया।

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👉 परंतु आराम शाह की अयोग्यता से सरदारों ने सिंहासन के लिए इल्तुतमिश को आमंत्रित किया और इल्तुतमिश ने बिना देर किए दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर लिया।

👉 बगदाद के खलीफा ने इल्तुतमिश को मान्यता प्रदान कर दी और उसे सम्मान का चौगा भेंट किया।

👉Iltutmish received the title of Sultan-e-Azam (Great Ruler) from the Khalifa. इल्तुतमिश को सुल्तान -ए- आजम ( महान शासक ) की उपाधि प्रदान की खलीफा से प्राप्त हुई।

👉 इल्तुतमिश ने  अपने सिक्कों पर स्वयं को खलीफा का दूत प्रदर्शित किया।

👉 शासक बनने के पश्चात इल्तुतमिश को अपने दो सबसे कड़े प्रतिद्वंद्वीयों से सामना करना पड़ा। एक ताजुद्दीन यल्दौज और दूसरा उच व मुल्तान के प्रांत अध्यक्ष नसरुद्दीन कुबाचा।

👉ताजुद्दीन यल्दौज  ताजुद्दीन यल्दौज स्वयं को मोहम्मद गौरी का उत्तराधिकारी समझता था, और वह यह सहन नहीं कर सकता था कि भारत में इस्लामी राज्य स्वाधीन हो जाए। 1214 ईस्वी में यल्दौज ने लाहौर पर अपना अधिकार जमा लिया। इल्तुतमिश  के लिए यह एक बड़ी असहनीय स्थिति थी।  इल्तुतमिश यल्दौज के विरुद्ध बढ़ा और थानेश्वर के निकट तराइन के युद्ध में उसे परास्त कर दिया। यल्दौज को बंदी बनाकर बदायूं के एक दुर्ग में कैद कर दिया गया जहां बाद में उसकी हत्या कर दी गई। इस प्रकार इल्तुतमिश ने अपने मार्ग से एक सबसे बड़े शत्रु का सफाया कर दिया।

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👉 नासिरुद्दीन कुबाचा- उच व मुल्तान के प्रांताध्यक्ष नासिरुद्दीन कुबाचा का दमन करने में भी  इल्तुतमिश सफल रहा।

👉 1227 ईस्वी में उद्दंड कुबाचा को इल्तुतमिश ने पंजाब से खदेड़ दिया।

👉कुबाचा की पुनः उद्दण्डता से क्रोधित इल्तुतमिश ने 1227 ई० में कुबाचा को पूर्णरुप से पराजित कर दिया

👉बंगाल में अली मरदान ने स्वयं मो स्वतन्त्र घोषित कर दिया था। अतः इल्तुतमिश में 1225 ई० में उसके विरूद्ध अभियान का स्वयं नेतृत्व कर मरदान के उत्तराधिकारी गयासुद्दीन को दण्डित किया।

👉1229 ई० में बंगाल में खिलजी मालिकों ने पुनः विद्रोह किया परन्तु इल्तुतमिश ने बिद्रोही ‘बलका‘ को परास्त कर अलाउद्दीन जानी को बंगाल का प्रबंधक बना दिया।

राजपूत

👉 1226 ईस्वी में इल्तुतमिश ने रणथंबौर का घेरा डालकर   उदयसिंह को आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य कर दिया और कर चुकाने की शर्त पर सत्ता वापस की।

👉 1231 ईसवी में ग्वालियर का भी घेरा डालकर वहां के साथ-साथ मलाई वमर्मदेव को आत्मसमर्पण करने के लिए विवश कर दिया।

👉 1234-35 ईसवी में इल्तुतमिश ने मालवा के एक अभियान का नेतृत्व करते हुए उज्जैन को लूटा और उज्जैन में महाकाल के मंदिर का संहार किया।

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मंगोल आक्रमण

👉  इल्तुतमिश के शासनकाल में ही 1221 ईसवी में सर्वप्रथम मंगोल अपने प्रसिद्ध नेता चंगेज खाँ के अधीन सिंधु नदी के तट पर उपस्थित हुए। 

चंगेज का जन्म 1155 ईस्वी में हुआ था तथा उसका वास्तविक नाम तिमुचीन था (Genghis was born in 1155 AD and his real name was Timuchin.)।

👉 चंगेज खाँ ने ख्वारजम  अथवा खीवा के अंतिम शाह जलालुद्दीन मंगबर्नी पर आक्रमण किया, तब वह (जलालुद्दीन मंगबर्नी ) भागकर पंजाब आया उसने इल्तुतमिश के राज्य में शरण मांगी, दिल्ली के सुल्तान ने अपने इस बिना बुलाए अतिथि की प्रार्थना अस्वीकार कर दिया। मंगबर्नी खोखरों से जा मिला तथा मुल्तान के नासिरुद्दीन कुबाचा को पराजित कर सिंध एवं उत्तरी गुजरात को लूटा और पारस चला गया। मंगोल भी लौट गए। इस तरह भारत एक भयानक संकट से बच गया।

👉Iltutmish’s last campaign was against Banyan. इल्तुतमिश का अंतिम अभियान बनियान के विरुद्ध हुआ।

👉 29 अप्रैल 1236 ईस्वी को इल्तुतमिश का देहांत हो गया।

👉 Iltutmish’s tomb is located in Delhi which is roofless.

👉 1231-32 ईसवी में इल्तुतमिश नें दिल्ली में महरौली के निकट सुप्रसिद्ध कुतुब मीनार का निर्माण पूरा कराया। यह इल्तुतमिश की महत्ता का एक जीता-जागता प्रमाण है। कुतुब मीनार का नाम कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर नहीं है बल्कि यह बगदाद के निकट उच  के एक निवासी ख्वाजा कुतुबुद्दीन के नाम पर है जो निवास के लिए भारत आया था।

👉 इब्न-बतूता के मतानुसार इल्तुतमिश ने अपने प्रासाद में एक घंटी व जंजीर का प्रबंध कर रखा था जिससे पीड़ित व्यक्ति बिना अधिक कठिनाई के सुल्तान तक अपनी पहुंच कर सके।

👉 इल्तुतमिश ने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।(Iltutmish made Delhi his capital in place of Lahore.)

👉इल्तुतमिश ने ही ,देश (सल्तनत) को एक राजधानी, सम्प्रभुता-सम्पन्न राज्य, एक राजतन्त्रात्मक प्रकार की शासन-व्यवस्था और तुर्कान-ए-चाहलगनी या चालिसा (चालीस अमीरों का समूह ) नामक  प्रदान किया।

👉इल्तुतमिश ने साम्राज्य को असंख्य छोटी इक्ताओं में विभाजित किया -Iltutmish divided the empire into innumerable small iqtas।

👉इक्ता का अर्थ- नगद वेतन के बदले किसी को कृषि योग्य भूमि या लगान हस्तांतरित करना।

👉 दो प्रकार के मूल सिक्कों- चाँदी का टंका और ताँबे का जीतल का प्रचलन किया।

👉 तबकात-ए-नासिरी के लेखक मिनहाज-उस-सिराज को इल्तुतुमिश  ने ही आश्रय दिया था ।

👉 अवफी  ने जवामी-उल-हिकायत की रचना इल्तुतमिश के शासनकाल में की।


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