भारत पर विजय पताका फहराने वाले तुर्क सिर्फ लड़ाकू ही नहीं थे बल्कि उन्हें साहित्य और कला से भी लगाव था। सल्तनत काल की वास्तुकला के विषय में फरग्युसन ने कहा है कि यह पूरी तरह से “पठानी” या “इंडो-सरसीनी” है इसी प्रकार हेवल ने कहा है कि सल्तनत कालीन कला “शरीर व आत्मा” में यह पूर्णतया भारतीय है। अतः हेवल का मनना है कि सल्तनत कालीन वास्तु कला इस्लामी व हिन्दू कला का मिश्रित स्वरूप है।
सल्तनत कालीन वास्तुकला
सल्तनत कालीन वास्तुकला भारत के इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को दर्शाती है। यह वह समय था जब मुस्लिम शासन भारत में था और इस समय के वास्तुकला का चरित्र इस्लामिक वास्तुकला के साथ संगठित था।
सल्तनत काल में वास्तुकला का मुख्य उद्देश्य इस्लामिक संस्कृति और स्थानीय भारतीय संस्कृति को मिश्रण करना था। यह वास्तुकला फ़ारसी वास्तुकला और स्थानीय भारतीय वास्तुकला के समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण है।
सलतनत कालीन वास्तुकला का विशेष लक्षण उसकी विस्तृत और शानदार मस्जिदों, मकबरों, किलों और महलों है। इन भवनों की विशेषताएं इस्लामिक वास्तुकला के साथ स्थानीय भारतीय वास्तुकला के संगम से बनाई गई थीं। इनमें से कुछ उत्कृष्ट उदाहरण हैं जैसे कि कुतुब मीनार, दिल्ली का लाल किला, फतेहपुर सीकरी का बुलंद दरवाज़ा, और ताज महल।
सर जान मार्शल ने इस संबंध में विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि “इस्लामी-हिन्दू कला इस्लामी कला का स्थानीय स्वरूप मात्र प्रतीत नहीं होता। “
आइये अब उन इमारतों की चर्चा करते हैं जिनका निर्माण सल्तनत काल के दौरान किया गया—
सल्तनतकालीन वास्तुकला
1-Quwwat-Ul-Islam Mosque (कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद )
दिल्ली को विजय करने के पश्चात् उसकी विजय कीर्ति के रूप में कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसका निर्माण कराया था। इसके निर्माण का उद्देश्य इस्लाम की शक्ति को प्रदर्शित करना था। इस मस्जिद के अंदर एक चौकोर खुला आंगन निर्मित है जिसके चारों ओर दालान बने है। इसके वास्तविक रूप को देखने पर यह मंदिर की सामग्री से निर्मित प्रतीत होती है जो सच भी है क्योंकि इसके निर्माण में सत्ताईस (२७) मंदिरों के अंश प्रयुक्त किया गया था।
2- दिल्ली स्थित क़ुतुब मीनार – Qutb Minar
क़ुतुब मीनार के निर्माण का मूल उद्देश्य मुसलमानों को नमाज के लिए पुकारना था, लेकिन कुछ समयोपरांत इसे भी चित्तौड़ व मांडू की तरह विजय कीर्ति सतम्भ माना जाने लगा। प्रारम्भ में इसकी ऊंचाई 225 फ़ीट और चार मंजिलें बननी थी। परन्तु कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसकी सिर्फ पहली मंजिल का निर्माण कराया शेष कार्य दामाद इल्तुतमिश ने पूर्ण कराया।
ऐसा भी कहा जाता है कि फ़िरोज़ तुगलक के समय में इस पर आसमानी बिजली गिरी तब चौथी मंजिल को तोड़कर दो और मंजिलों निर्माण करा दिया गगया। इस निर्माण के फलस्वरूप इसकी ऊंचाई 234 फ़ीट हो गयी।
3-Tomb of Iltutmish ( इल्तुतमिश मकबरा )–
यह एक सादा चौकोर इमारत है जो अपने स्वरूप व पहलुओं में पूर्णतया स्पष्ट है। इसकी अंदर की सजावट बहुत उत्कृष्ट है। अंदर के भाग में छत से लेकर फर्श दीवारें कुरान की आयतों से भरी हैं।
4- The Sultan Ghari सुल्तान घड़ी –
1231-32 में सुल्तान घड़ी का निर्माण किया गया। इस मकबरे की योजना इल्तुतमिश के मकबरे या भारत में स्थित किसी अन्य मकबरे के जैसी नहीं है। यह बीचोंबीच स्थित है और इसके चारों किनारों पर गुम्बदों का निर्माण किया गया है। मस्जिद व दालान और मकबरे का वाहरी भाग संगमरमर से निर्मित है।
5- अजमेर स्थित अढ़ाई-दिन-का-झोपड़ा
कहते हैं सिर्फ ढाई दिन में मस्जिद का निर्माण हुआ था। अजमेर में कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1200 ईस्वी में इसका निर्माण कराया था। इसके निर्माण की शैली कुब्बत-उल-इस्लाम मस्जिद के जैसी है। इस मस्जिद पर हरकेलि नाटक के अंश खुदे हैं।
6- दिल्ली के महरौली स्थित बलबन का मकबरा Tomb of Balban
यह सादा इमारत है जिसमें एक चौकोर वाला गुंम्बद है।
7- Jamaat Khana Masjid जमात खाना मस्जिद –
दिल्ली-मथुरा मार्ग पर खिलजी शासक अलाउद्दीन खिलजी ने अलाई दरबाजा और निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के निकट जमात खाना मस्जिद को निर्मित कराया गया। यह प्रथम मस्जिद है जो पूर्णतया इस्लामी विचारों पर निर्मित है। यह लाल पत्थर से निर्मित तीन कमरों वाली मस्जिद है। प्रारम्भ में यह शेख निजामुद्दीन के लिए निर्मित मकबरा था, जिसमें केवल एक केंद्रीय कमरा था। तुगलक शासकों ने इसे विस्तार देकर मस्जिद का रूप दे दिया।
8- Alai Darwaja अलाई दरवाजा दिल्ली –
अलाई दरवाजा का निर्माण 1311 ईस्वी में खिलजी शासक अलाउद्दीन खिलजी द्वारा दिल्ली में कुब्बत-उल-मस्जिद में निर्मित है। यद्यपि यह अब टूट-फूट चुकी है परन्तु अब भी यह इस्लामी वास्तुकला का एक श्रेष्ठ उदाहरण है। यह लाल पत्थर से निर्मित है।
अल्लाउद्दीन खिलजी ने अन्य निर्माण भी कराये
- सीरी का नगर (1303)
- हौज-ए-अलाई
- हौज खास का तालाब
* तुगलकाबाद और स्वयं के लिए निर्मित मकबरा मुहम्मद तुगलक की प्रसिद्ध स्मारक हैं। गयासुद्दीन तुगलक के मकबरे में संगमरमर और लाल पत्थर का इस्तेमाल किया गया है।
* मुहम्मद तुगलक ने आदिलाबाद के छोटे से दुर्ग और जहाँपनाह नगर की नींव रखी।
फिरोज शाह तुगलक ने नगरों, दुर्गों, महलों बांधों , मस्जिदों और मकबरों के निर्माण में विशेष रूचि दिखाई।
* जौनपुर , फतेहाबाद और हिसार फिरोजा के नगरों के निर्माण का श्रेय फिरोज तुगलक को जाता है। उसने दिल्ली में फिरोजाबाद का दुर्ग का निर्माण कराया।
* फिरोज तुगलक ने 120 के लगभग सरायों का निर्माण कराया।
* फिरोज शाह कोटला का निर्माण भी फिरोज तुगलक ने कराया।
* फिरोज शाह तुगलक ने अपने लिए एक विद्यालय हौज खास पर और एक मकबरे का भी निर्माण कराया।
* नासिरुद्दीन मुहम्मद शाह के शासन काल (1389-92) में फ़क़ीर कबीरुद्दीन औलिया का मकबरा जिसे सामन्यता लाल गुम्बद भी कहते हैं का निर्माण हुआ।
* सिंकंदर लोदी के बजीर इब्राहिम लोदी ने प्रसिद्ध मोठ की मस्जिद का निर्माण कराया।
* गयासुद्दीन तुगलक को रुकन-ए-आलम के मकबरे के निर्माण का श्रेय प्राप्त है।
* अदीना मस्जिद के निर्माण का श्रेय सिकंदर शाह को है जिसे उसने अपनी नई राजधानी पंडुआ में 1358-89 में निर्मित कराया।
* सिकंदर शाह के ही शासन काल में गौड़ (बंगाल ) में सिराजुद्दीन की मस्जिद व मकबरे का निर्माण हुआ। सिकन्दर शाह ने अदीना मस्जिद काभी निर्माण कराया।
* पांडुआ में ‘एकलखा मकबरा’ जलालुद्दीन मुहम्मद शाह का मकबरा है।
* साठ गुम्बद मस्जिद का निर्माण 1456 ईस्वी में हुआ यह वर्तमान में बांग्लादेश के बागेरहाट शहर में है। इसका निर्माण उलुग खान के समय में हुआ।
* ईंटों से निर्मित लोटन मस्जिद बंगाली कला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
* बंगाल के शासक हुसैन शाह (1493-1552 ) के समय छोटा सोना मस्जिद, बड़ा सोना मस्जिद और कदम रसूल मस्जिदों का निर्माण हुआ।
* गुजरात के शहर अहमदाबाद की नींव अहमद शाह ने रखी।
* हिंडोला महल का निर्माण मालवा के शासक हुसँग ने कराया। इसका रूप अंग्रेजी के अक्षर T के समान है।
* भारत हां का प्रथम मकबरा जो पूर्णतया संगमरमर से निर्मित किया गया वह है हुसँग का मकबरा।
* हुसँग महमूद का एक अन्य निर्माण जहाज महल है।
* जौनपुर के शासक इब्राहिम शर्की ने अटाला मस्जिद का निर्माण कराया। कहते हैं यह पहले अटाला देवी का मंदिर था।
* इल्तुतमिश के अन्य निर्माण – हौज-ए-शम्सी , शम्स-ए-ईदगाह , और बदायूं की जामी मस्जिद।
* कश्मीर के शासक जैन-उल-आबदीन 1420-70 के शासन काल के दौरान माँड़नी का मकबरा बनवाया गया।
* हिन्दू वास्तुकला का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हजारा मंदिर के मिर्माण का श्रेय कृष्णदेव राय को है। कृषणदेव राय ने विट्ठल नाथ मंदिर का भी निर्माण कराया।
* मेवाड़ के प्रसिद्ध शासक राणा कुम्भा को विजय स्तम्भ और कुम्भलनेर के दुर्ग निर्माण श्रेय जाता है।
* गोलगुंबद बीजापुर ( आदिलशाह का मकबरा )
इस प्रकार संक्षेप में हमने सल्तनत कालीन प्रमुख इमारतों के विषय में जाना। इस ब्लॉग का उद्देश्य प्रतियोगी परीक्षार्थियों को उपयोगी व विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध कराना है।