बुद्ध का जीवन और शिक्षाएं: जीवन और शिक्षा, सिद्धांत, अष्टांगिक मार्ग, बौद्ध संगीतियाँ, उपासक, साहित्य, पतन के कारण

बौद्ध धर्म प्राचीन भारत में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में सिद्धार्थ गौतम द्वारा स्थापित एक धर्म और दर्शन है, जिन्हें महात्मा बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित है, जिनका उद्देश्य दुख को समाप्त करना और ज्ञान प्राप्त करना है।

बुद्ध का जीवन और शिक्षाएं: जीवन और शिक्षा, सिद्धांत, अष्टांगिक मार्ग, बौद्ध संगीतियाँ, उपासक, साहित्य, पतन के कारण

बुद्ध का जीवन और शिक्षाएं

बौद्ध धर्म पूरे एशिया में फैल गया, चीन, जापान और थाईलैंड जैसे देशों में एक प्रमुख धर्म बन गया। आज, दुनिया भर में इसके करोड़ों अनुयायी हैं और इसे विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक माना जाता है जो अहिंसा के सिद्धांत का पालन करता है।

बौद्ध शिक्षाओं का केंद्र नश्वरता की अवधारणा और यह अहसास है कि सभी चीजें अन्योन्याश्रित हैं और लगातार बदलती रहती हैं। बौद्ध जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में विश्वास करते हैं, और जागरूकता, करुणा और ज्ञान की खोज करके ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।

बौद्ध धर्म किसी ईश्वर की पूजा पर आधारित नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत प्रयास और व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है। बौद्ध धर्म में ध्यान और सचेतनता केंद्रीय प्रथाएं हैं, जो अनुयायियों को अंतर्दृष्टि विकसित करने और स्वयं के भ्रम को दूर करने में मदद करती हैं।

महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय

नाम गौतम बुद्ध
वास्तविक नाम सिद्धार्थ (गोत्रीय अभिधान-गौतम)
जन्म 563 ई0पू0
जन्म-स्थान लुम्बिनी (कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में)
पिता का नाम शुद्धोधन (कपिलवस्तु के शाक्य गण के प्रधान)
माता का नाम माया देवी अथवा महामाया (कोलिय वंश की कन्या )
पालन-पोषण मौसी महाप्रजापति गौतमी द्वारा
पत्नी का नाम यशोधरा ( शाक्य कुल की)
संतान एक पुत्र राहुल
मृत्यु 483 ई०पू० (मल्लों की राजधानी कुशीनगर में)
उदय का कारण मुख्यत उत्तर-पूर्व में एक नवीन प्रकार की आर्थिक व्यवस्था का प्रादुर्भाव होना।

गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में लगभग 563 ईसा पूर्व में या 566 ई० पू० में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी ग्राम के आम्र-कुंज में हुआ था। उनका जन्म एक शाही परिवार में हुआ था, और उनके पिता शुद्धोधन शाक्य वंश के राजा थे। जन्म के 7वें दिन उनकी माता का देहावसान हो गया। अतः इनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने इनका पालन-पोषण किया।

बुद्ध का 80 वर्ष की आयु में लगभग 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में निधन हो गया। इस घटना को महापरिनिर्वाण या अंतिम मृत्यु के रूप में जाना जाता है। बौद्ध परंपरा के अनुसार, उन्होंने 35 वर्ष की आयु में पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया और अपने जीवन के शेष 45 वर्ष अध्यापन और अपनी शिक्षाओं के प्रसार में बिताए, जब तक कि उनकी मृत्यु नहीं हो गई।

कालदेव तथा ब्राह्मण कौण्डिन्य ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक महान चक्रवर्ती राजा अथवा महान संन्यासी होगा। सिद्धार्थ अल्पायु से ही गंभीर व्यक्तित्व के थे। वे जम्बू वृक्ष के नीचे प्रायः ध्यान मग्न बैठे रहते थे। 16 वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा ( इनके अन्य नाम गोपा, बिम्बा तथा भद्रकच्छा भी हैं) से कर दिया गया। इनसे राहुल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।

गौतम बुद्ध के जीवन सम्बन्धी चार दृश्य अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, जिन्हें देखकर उनके मन में वैराग्य की भावना उठी-

1. वृद्ध व्यक्ति को देखना

2. बीमार व्यक्ति को देखना

3. मृत व्यक्ति को देखना

4. प्रसन्न मुद्रा में संन्यासी को देखना

निरंतर चिंतन में डूबे सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया। बौद्ध ग्रंथों में इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।

बुद्ध के सारथी का नाम चाण (चन्ना) तथा घोड़े का नाम कन्थक था, जो इन्हें रथ द्वारा महल से कुछ दूर ले जाकर छोड़ आया। बुद्ध सर्वप्रथम अनुपिय नामक आम्र-उद्यान में एक सप्ताह तक रहे। इसके बाद मगध की राजधानी राजगृह पहुँचे, जहाँ का शासक विम्बसार था। वैशाली के समीप बुद्ध की मुलाकात आलार कालाम नाम संन्यासी से हुई जो सांख्य दर्शन का आचार्य था। राजगृह के समीप इनकी मुलाकात रुद्रक रामपुत्र नामक धर्माचार्य से हुई।

तदुपरान्त वे उरुवेला (बोध गया) पहुंचे तथा निरंजना नदी के तट पर एक वृक्ष के नीचे तपस्या की। इनके साथ 5 ब्राह्मण संन्यासी भी तपस्या कर रहे थे। इनके नाम थे कौण्डिन्य, ओज, अस्सजि, बप्प और भद्दिय

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अशोक का धम्म

अपने दूसरे स्तंभ-लेख में अशोक स्वयं प्रश्न करता है कि—- ‘कियं चु धम्मे?’ (धम्म क्या है?)। इस प्रश्न का उत्तर अशोक दूसरे एवं सातवें स्तंभ लेख में स्वयं देता है। वह हमें उन गुणों को गिनाता है जो धम्म का निर्माण करते हैं। इन्हें हम इस प्रकार रख सकते हैं—‘अपासिनवेबहुकयानेदयादानेसचेसोचयेमाददेसाधवे च।’ अर्थात् धम्म —–

अशोक के धम्म के सिद्धांत

१– अल्प पाप ( अपासिनवे) है।

२– अत्याधिक कल्याण ( बहुकयाने ) है।

३– दया है।

४– दान है।

५– सत्यवादिता है।

६– पवित्रता ( सोचये )।

७– मृदुता ( मादवे) है।

८– साधुता ( साधवे )।

इन गुणों को व्यवहार में लाने के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक बताई गई हैं—

१– अनारम्भो प्राणानाम् ( प्राणियों की हत्या न करना)।

२– अविहिंसा भूतानाम् ( प्राणियों को क्षति न पहुंचाना)।

३– मातरि-पितरि सुस्रूसा ( माता-पिता की सेवा करना )।

४– थेर सुस्रूसा ( वृद्धजनों की सेवा करना )।

५– गुरुणाम् अपचिति ( गुरुजनो का सम्मान करना )।

६– मित संस्तुत नाटिकाना बहमण-समणाना दान संपटिपति ( मित्रों, परिचितों, ब्राहम्णों तथा श्रमणों के साथ सद्व्यवहार करना )।

७– दास-भतकम्हि सम्य प्रतिपति ( दासों एवं नौकरों के साथ अच्छा व्यवहार करना )।

८– अप-व्ययता ( अल्प व्यय )।

९– अपभाण्डता (अल्प संचय )।

यह धर्म के विधायक पक्ष हैं। इसके अतिरिक्त अशोक के धम्म का एक निषेधात्मक पहलू भी है जिसके अंतर्गत कुछ दुर्गुणों की गणना की गई है। यह दुर्गुण व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग में बाधक होते हैं। इन्हें ‘आसिनव’ शब्द में व्यक्त किया गया है। ‘आसिनव’ को अशोक तीसरे स्तंभ-लेख में पाप कहता है। मनुष्य ‘आसिनव’ के कारण सद्गुणों से विचलित हो जाता है। ( उसके अनुसार निम्नलिखित दुर्गुणों से ‘आसिनव’ हो जाते हैं—

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गुप्तकालीन सामाजिक स्थिति: शूद्रों की दशा, महिलाओं की दशा, कायस्थ का उदय, दास प्रथा | Social condition of the Guptas in Hindi

गुप्तकाल को मुख्य तौर पर ब्राह्मण व्यवस्था के पोषक के तौर पहचाना जाता है। गुप्त शासकों ने हिन्दू व्यव्स्था की स्थापना की। उन्होंने वैदिककालीन धर्म और समाज को पुनः स्थापित किया। इस लेख में हम Social condition of the Guptas in Hindi-गुप्तकालीन सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन करेंगे।

Social condition of the Guptas in Hindi, गुप्तकालीन सामाजिक स्थिति: शूद्रों की दशा, महिलाओं की दशा, कायस्थ का उदय, दास प्रथा

Social condition of the Guptas in Hindi | गुप्तकालीन सामाजिक स्थिति

चतुर्वर्ण प्रणाली पर आधारित समाज

Social condition of the Guptas-गुप्तकालीन समाज परम्परागत चार वर्णों में विभक्त था। समाज में ब्राह्मणों का स्थन सर्वोच्य था। क्षत्रियों का स्थान दूसरा तथा वैश्यों का तीसरा था। शूद्रों का मुख्य कर्तव्य अपने से उच्च वर्णों की सेवा करना था। गुप्तकाल में ये वर्ण भेद स्पष्ट रूप से थे।

वाराहमिहिर ने वृहत्संहिता में चारो वर्णों के लिए विभिन्न बस्तियों की व्यवस्था की। उसके अनुसार ब्राह्मण के घर में पांच, क्षत्रिय के घर में चार, वैश्य के घर में तीन और शूद्र के घर में दो कमरे होने चाहिए। प्राचीनकाल में कौटिल्य ने भी चारों वर्गों के लिए अलग-अलग बस्तियों का विधान किया था।

वर्णभेद आधारित न्याय व्यवस्था

न्याय व्यवस्था में भी वर्ण भेद बने रहे। न्याय संहिताओं में कहा गया है कि ब्राह्मण की परीक्षा तुला से, क्षत्रिय की अग्नि से, वैश्य की जल से व शूद्र की विष से की जानी चाहिए।

वृहस्पति के अनुसार सभी वर्णों से सभी दिव्य (परीक्षा) कराए जा सकते हैं, केवल विष वाला दिव्य ब्राहण से न कराया जाए।

कात्यायन के अनुसार किसी मुकदमें में अभियुक्त के विरुद्ध गवाही वही दे सकता है जो जाति में उसके समान हो। निम्न जाति का वादी उच्च जाति के साथियों से अपना वाद प्रमाणित नहीं करा सकता। परन्तु नारद ने साक्ष्य देने की पुरानी वर्णमूल भेदक व्यवस्था के विरुद्ध कहा है कि सभी वर्णों के साक्षी किए जा सकते हैं।

भेदभावपूर्ण दण्डव्यवस्था

दण्ड व्यवस्था भी वर्ण पर आधारित थी। नारद स्मृति के अनुसार चोरी करने पर ब्राह्मण का अपराध सबसे अधिक और शूद्र का सबसे कम माना जाएगा। विष्णु स्मृति ने हत्या के पाप से शुद्धि के सन्दर्भ में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र की हत्या के लिए क्रमशः बारह, नौ, छः और तीन वर्ष का महाव्रत नामक तप बताया है।

दाय विधि में भी यह नियम बना रहा कि उच्च वर्ण के शूद्र पुत्र को सम्पत्ति में सबसे कम अंश मिलेगा। विष्णु स्मृति के अनुसार ब्राह्मण के शूद्र पुत्र का अंश पिता की सम्पत्ति का आधा या बहुत कम होगा। गड़ा खजाना मिलने पर ब्राह्मणों को उसे पूर्णतया ले लेने का अधिकार था, जबकि अन्य वर्ण को इस अधिकार से वंचित किया गया।

इस प्रकार गुप्तकालीन स्मृतिकारों ने वर्णभेदक नियमों का समर्थन किया परन्तु वर्णव्यवस्था सदा सुचारु रूप से नहीं चली। इस काल में केवल क्षत्रिय ही नहीं ब्राह्मण, वैश्य, और शूद्र राजाओं का वर्णन भी मिलता है।

  • मयूरशर्मन् नामक ब्राह्मण ने कदम्ब वंश की स्थापना की।
  • विंध्यशक्ति नामक ब्राह्मण ने वाकाटक राजवंश की स्थापना की।
  • मृच्छकटिक के अनुसार ब्राह्मण चारुदत्त वाणिज्य-व्यापार करता था।
  • गुप्त वंश के राजा और हर्षवर्धन सम्भवतः वैश्य थे।
  • सौराष्ट्र, शन्ति और मालवा के शूद्र राजाओं की चर्चा मिलती है।
  • हवेनसांग ने सिंध के शासक को शुद्र बताया है।

ब्राह्मणों की पवित्रता पर भी बल दिया जाता था। इस काल के ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मण को शूद्र का अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए क्योंकि इससे आध्यात्मिक बल घटता है।

याज्ञवल्क्य के अनुसार स्नातकों (ब्राह्मण छात्रों) को शूद्रों और पतितों का अन्न नहीं खाना चाहिए। वृहस्पति ने संकट में ब्राह्मणों को दासों और शूद्रों का अन्न खाने की अनुमति दी है। मृच्छकटिक में कहा गया कि ब्राहण और सूद्र एक ही कुएं से पानी भरते थे।

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history of ancient india for kids In Hindi | Prachin Bharat Kaa Itihas

भारत एक ऐसा देश है जो प्राचीन सभ्यता के उद्गम का स्थल रहा है। भारतीय उपमहाद्वीप में भारत अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के लिए प्रसिद्द है। आज इस लेख में हम आपके लिए प्राचीन भारत का इतिहास से संबंधित जानकारी देंगें, जो बच्चों के लिए आसानी से समझाया गया है। तो इस ‘history of ancient india for kids In Hindi’ को पूरा पढ़िए।

history of ancient india for kids In Hindi | Prachin Bharat Kaa Itihas

history of ancient india for kids In Hindi-दक्षिण एशिया का भौगोलिक परिचय

दक्षिण एशिया उन चार प्रारम्भिक स्थानों में से एक है जहां से मानव सभ्यता शुरू हुई- मिस्र (नील), चीन (पीला) और इराक (टिग्रिस और यूफ्रेट्स) के समान। दक्षिण एशिया में सभ्यता की शुरुआत सिंधु नदी के किनारे हुई थी। दक्षिण एशिया की भूमि पर तीन मुख्य प्रकार की भौतिक विशेषताओं का प्रभुत्व है। पहाड़, नदियाँ और भारत का विशाल त्रिकोणीय आकार का प्रायद्वीप।

50 या 60 मिलियन वर्ष पहले भारत धीरे-धीरे एशिया में बिखर गया और हिमालय और हिंदू कुश पर्वत का निर्माण किया जो भारत को आसपास के क्षेत्र से लगभग अवरुद्ध कर देता है। तट को छोड़कर, खैबर दर्रा जैसे पहाड़ों से होकर जाने वाले कुछ संकरे दर्रे हैं जिन्होंने लोगों को इस भूमि में प्रवेश करने की अनुमति दी है। अन्य मुख्य भौतिक विशेषताएं आधुनिक पाकिस्तान में सिंधु नदी और आधुनिक भारत में गंगा नदी हैं। सिंधु नदी एक बहुत शुष्क क्षेत्र में है जिसे थार रेगिस्तान कहा जाता है – यह शुष्क जलवायु दुनिया की पहली मानव सभ्यताओं में से एक का स्थल है।

सिंधु नदी में पानी मुख्य रूप से पिघलने वाले ग्लेशियरों और इसके चारों ओर के पहाड़ों से प्राकृतिक झरनों से आता है। जैसे-जैसे पानी पहाड़ों और पहाड़ियों से नीचे बहता है, यह उपजाऊ गाद उठा लेता है। सिंधु नदी घाटी में हर साल कम से कम एक बार बाढ़ आती और किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराती है। जब बाढ़ का पानी चला जाता है, तो उपजाऊ गाद की एक पतली परत छोड़ दी।

इस प्रक्रिया से सभी नदी घाटी सभ्यताओं को लाभ हुआ, जिससे खेती के लिए उत्कृष्ट मिट्टी का निर्माण हुआ। आज, दक्षिण एशिया का अधिकांश भाग हवा की दिशा में वार्षिक परिवर्तन का अनुभव करता है जिसे मानसून कहा जाता है जो आमतौर पर भारी मात्रा में वर्षा लाता है। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि सिंधु घाटी में हर साल दो बार बाढ़ आती थी।

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महात्मा बुद्ध: जीवनी, जन्मस्थान वास्तविक नाम, गृहत्याग, प्रथम उपदेश, शिक्षाएं, मृत्यु और सिद्धांत | Mahatma Buddha biography in hindi ((563-483 BC))

महात्मा बुद्ध ने जिस सत्य की खोज की वह आजा भी सार्थक है। बुद्ध ने कभी नहीं कहा कि उन्होंने भगवान को देखा या जाना। उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ जीवन के चक्र को जाना है। उन्होंने सत्य को खोजा है। बुद्ध ने ब्राह्मण धर्म में बढ़ते कर्मकांडों से खिन्न होकर एक नए संप्रदाय की स्थापना की जो बौद्ध धर्म कहलाया। यह इतना प्रसिद्द हुआ कि भारत की सीमाओं को लांघकर चीन, जापान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, आदि एशिया के देशों का राजकीय धर्म बन गया। इस लेख में हम महात्मा बुद्ध के जीवन का अध्ययन ऐतिहासिक आधार पर करेंगे, जाहिर है लेख विस्तृत होगा।Mahatma Buddha biography in hindi

Mahatma Buddha (563-483 BC) biography in hindi

Mahatma Buddha (563-483 BC) biography in hindi

नाम महात्मा बुद्ध
वास्तविक नाम  सिद्धार्थ
अन्य नाम शाक्यमुनि, बुद्ध
जन्म 563 ईसा पूर्व
जन्मस्थान लुंबिनी, कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में स्थित)
पिता का नाम शुद्धोधन
माता का नाम महामाया
सौतेली माता महाप्रजापति गौतमी
पत्नी का नाम
यशोधरा
पुत्र का नाम
राहुल
चचेरा भाई का
नाम देवदत्त
गृह त्याग
29 वर्ष की आयु में (महाभिनिष्कमण)
बुद्ध के प्रथम
गुरु आलार कलाम
ज्ञान प्राप्त
35 वर्ष की आयु में बुद्ध पूर्णिमा के दिन
प्रथम उपदेश
सारनाथ वाराणसी (धर्म चक्र प्रवर्तन)
प्रिय शिष्य
आनंद और उपालि
संरक्षक
बिम्बिसार, अजातशत्रु
मृत्यु
483 ईसा पूर्व
मृत्यु स्थान
कुशीनगर(कुसीनारा) मल्ल गणराज्य
मृत्यु का कारण
जहरीला भोजन
सबसे पवित्र ग्रन्थ त्रिपिटक
पूर्व जन्म की कथाएं
जातक
बुद्ध की शिक्षाओं का संकलन
सुत्त पिटक

महात्मा बुद्ध से जुड़े कुछ ऐतिहासिक तथ्य

बुद्ध, को संस्कृत में “ज्ञानी” एक कबीले का नाम (संस्कृत) गौतम या (पाली) गौतम, व्यक्तिगत नाम (संस्कृत) सिद्धार्थ या (पाली) सिद्धार्थ, उनका जन्म (563 ईसा पूर्व) ईसा पूर्व, लुंबिनी, कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में स्थित) के पास, शाक्य गणराज्य, कोशल साम्राज्य [अब नेपाल में] हुआ।

उनकी मृत्यु, 483 ईसा पूर्व कुसीनारा, मल्ल गणराज्य, मगध साम्राज्य [अब कासिया तहसील बिहार, भारत]), बौद्ध धर्म सिद्धार्थ ने जिस धर्म की स्थापना की वह बौद्ध धर्म कहलाया। बुद्ध एक धार्मिक गुरु से बढ़कर समाज सुधारक भी थे।

उनके अनुयायियों, जिन्हें बौद्ध कहा जाता है, ने उस धर्म का प्रचार किया जो आज बौद्ध धर्म के रूप में जाना जाता है। बुद्ध उपाधि का उपयोग प्राचीन भारत में कई धार्मिक समूहों द्वारा किया गया था और इसके कई अर्थ थे, लेकिन यह बौद्ध धर्म की परंपरा के साथ सबसे अधिक मजबूती से जुड़ा हुआ था और इसका मतलब एक प्रबुद्ध (ज्ञानी) व्यक्ति था, जो अज्ञानता की नींद से जाग गया था, जीवन के सत्य ज्ञान को जानने वाला और कष्टों से मुक्ति प्राप्त की।

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Biography of Ashoka the Great in Hindi: अशोक महान की जीवनी: जन्म, कार्यकाल, धर्म, साम्राज्य, विजय और पतन

मौर्य वंश के तीसरे अशोक महान (कार्यकाल 268-232 ईसा पूर्व) मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) के सबसे महान राजा थे, जो युद्ध के त्याग, धम्म (नैतिक सामाजिक आचरण) की अवधारणा के विकास और देश विदेश में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाने जाते थे। साथ ही लगभग एक अखिल भारतीय राजनीतिक इकाई के रूप में उनका विस्तृत प्रभावी साम्राज्य।Biography of Ashoka the Great in Hindi

Biography of Ashoka the Great in Hindi: अशोक महान की जीवनी: जन्म, कार्यकाल, धर्म, साम्राज्य, विजय और पतन

अपने चरमोत्कर्ष पर, अशोक के अधीन, मौर्य साम्राज्य आधुनिक ईरान से लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप तक फैला हुआ था। अशोक इस विशाल साम्राज्य को प्रारंभ में अर्थशास्त्र के रूप में जाने जाने वाले राजनीतिक ग्रंथ के उपदेशों के माध्यम से शासन करने में सक्षम था, जिसका श्रेय प्रधान मंत्री चाणक्य ( कौटिल्य और विष्णुगुप्त दो अन्य नाम से भी प्रसिद्ध, 350-275 ईसा पूर्व) के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, जिन्होंने अशोक के दादा चंद्रगुप्त मौर्य (आर.सी. 321 – c.297 ईसा पूर्व) के अधीन कार्य किया था जिन्होंने विशाल मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

Biography of Ashoka the Great in Hindi

नामसम्राट अशोक
जन्म304 ईसा पूर्व
पिता का नामबिन्दुसार
माता का नामसुभद्रांगी
दादा का नामचन्द्रगुप्त मौर्य 321 - c.297 ईसा पूर्व
पत्नी का नामकारुवाकी और विदिशा-महादेवी
भाई --सुसीम और विताशोका
वंशमौर्य वंश
राजधानीपाटलिपुत्र
शासनकाल273 - 232 ईसा पूर्व
राज्याभिषेक269 ईसा पूर्व
प्रमुख युद्धकलिंग युद्ध 261 ईसा पूर्व
संतानपुत्र महिंद्र और पुत्री संघमित्रा
मृत्यु232 ईसा पूर्व
पूर्ववर्तीबिन्दुसार
उत्तराधिकारीसम्प्रति

अशोक के नाम का अर्थ-Biography of Ashoka the Great in Hindi

अशोक का अर्थ है “बिना दुःख वाला” जो संभवतः उनका दिया हुआ नाम था। उन्हें उनके शिलालेखों में संदर्भित किया गया है, जो पत्थर में उकेरे गए हैं, देवानामपिया पियादस्सी के रूप में, जो विद्वान जॉन केय के अनुसार (और विद्वानों की सहमति से सहमत हैं) का अर्थ है “देवताओं का प्रिय” और “मीन का अनुग्रह”

ऐसा कहा जाता है कि वह अपने शासनकाल की शुरुआत में बहुत क्रूर रक्तपिपासु था, जब तक कि उसने कलिंग साम्राज्य के खिलाफ ईसा पूर्व में एक अभियान शुरू नहीं किया, 261 ईसा पूर्व, जिसके परिणामस्वरूप ऐसा नरसंहार, विनाश और मृत्यु हुई कि अशोक ने युद्ध नीति को सदा के लिए त्याग दिया और समय के साथ, बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गया, खुद को शांति के लिए समर्पित कर दिया, जैसा कि धम्म की उनकी अवधारणा में उदाहरण है।

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14 Rock Edicts of Ashoka | अशोक के 14 शिलालेख: इतिहास, अनुवाद, महत्व और उपयोगिता

प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रथम महान लोककल्याणकारी शासक के रूप में मौर्य सम्राट अशोक का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। वह प्रथम शासक था जिसने अपनी राजाज्ञाओं को, 14 Rock Edicts of Ashoka सार्वजानिक रूप से पत्थर की शिलाओं पर खुदवाया। यह शिलालेख उस समय की प्रचलित भाषाओँ-ब्रह्मी, खरोष्ठी और आरमेइक में भारत उसके … Read more

महर्षि पाणिनी भारतीय संस्कृत व्याकरण के जनक

त्वरित जानकारी जन्म– लगभग 520 ई.पू, शालतुला (अटॉक के पास), अब पाकिस्तान मृत्यु- लगभग 460 ई.पू, भारत सारांश पाणिनि एक संस्कृत वैयाकरण थे जिन्होंने ध्वन्यात्मकता, ध्वनि विज्ञान और आकृति विज्ञान का एक व्यापक और वैज्ञानिक सिद्धांत दिया। महर्षि पाणिनी भारतीय संस्कृत व्याकरण के जनक जीवनी उनका जन्म आज से लगभग 5000 साल पहले नेपाल के … Read more