गुप्तकाल को मुख्य तौर पर ब्राह्मण व्यवस्था के पोषक के तौर पहचाना जाता है। गुप्त शासकों ने हिन्दू व्यव्स्था की स्थापना की। उन्होंने वैदिककालीन धर्म और समाज को पुनः स्थापित किया। इस लेख में हम Social condition of the Guptas in Hindi-गुप्तकालीन सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन करेंगे।
Social condition of the Guptas in Hindi | गुप्तकालीन सामाजिक स्थिति
चतुर्वर्ण प्रणाली पर आधारित समाज
Social condition of the Guptas-गुप्तकालीन समाज परम्परागत चार वर्णों में विभक्त था। समाज में ब्राह्मणों का स्थन सर्वोच्य था। क्षत्रियों का स्थान दूसरा तथा वैश्यों का तीसरा था। शूद्रों का मुख्य कर्तव्य अपने से उच्च वर्णों की सेवा करना था। गुप्तकाल में ये वर्ण भेद स्पष्ट रूप से थे।
वाराहमिहिर ने वृहत्संहिता में चारो वर्णों के लिए विभिन्न बस्तियों की व्यवस्था की। उसके अनुसार ब्राह्मण के घर में पांच, क्षत्रिय के घर में चार, वैश्य के घर में तीन और शूद्र के घर में दो कमरे होने चाहिए। प्राचीनकाल में कौटिल्य ने भी चारों वर्गों के लिए अलग-अलग बस्तियों का विधान किया था।
वर्णभेद आधारित न्याय व्यवस्था
न्याय व्यवस्था में भी वर्ण भेद बने रहे। न्याय संहिताओं में कहा गया है कि ब्राह्मण की परीक्षा तुला से, क्षत्रिय की अग्नि से, वैश्य की जल से व शूद्र की विष से की जानी चाहिए।
वृहस्पति के अनुसार सभी वर्णों से सभी दिव्य (परीक्षा) कराए जा सकते हैं, केवल विष वाला दिव्य ब्राहण से न कराया जाए।
कात्यायन के अनुसार किसी मुकदमें में अभियुक्त के विरुद्ध गवाही वही दे सकता है जो जाति में उसके समान हो। निम्न जाति का वादी उच्च जाति के साथियों से अपना वाद प्रमाणित नहीं करा सकता। परन्तु नारद ने साक्ष्य देने की पुरानी वर्णमूल भेदक व्यवस्था के विरुद्ध कहा है कि सभी वर्णों के साक्षी किए जा सकते हैं।
भेदभावपूर्ण दण्डव्यवस्था
दण्ड व्यवस्था भी वर्ण पर आधारित थी। नारद स्मृति के अनुसार चोरी करने पर ब्राह्मण का अपराध सबसे अधिक और शूद्र का सबसे कम माना जाएगा। विष्णु स्मृति ने हत्या के पाप से शुद्धि के सन्दर्भ में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र की हत्या के लिए क्रमशः बारह, नौ, छः और तीन वर्ष का महाव्रत नामक तप बताया है।
दाय विधि में भी यह नियम बना रहा कि उच्च वर्ण के शूद्र पुत्र को सम्पत्ति में सबसे कम अंश मिलेगा। विष्णु स्मृति के अनुसार ब्राह्मण के शूद्र पुत्र का अंश पिता की सम्पत्ति का आधा या बहुत कम होगा। गड़ा खजाना मिलने पर ब्राह्मणों को उसे पूर्णतया ले लेने का अधिकार था, जबकि अन्य वर्ण को इस अधिकार से वंचित किया गया।
इस प्रकार गुप्तकालीन स्मृतिकारों ने वर्णभेदक नियमों का समर्थन किया परन्तु वर्णव्यवस्था सदा सुचारु रूप से नहीं चली। इस काल में केवल क्षत्रिय ही नहीं ब्राह्मण, वैश्य, और शूद्र राजाओं का वर्णन भी मिलता है।
- मयूरशर्मन् नामक ब्राह्मण ने कदम्ब वंश की स्थापना की।
- विंध्यशक्ति नामक ब्राह्मण ने वाकाटक राजवंश की स्थापना की।
- मृच्छकटिक के अनुसार ब्राह्मण चारुदत्त वाणिज्य-व्यापार करता था।
- गुप्त वंश के राजा और हर्षवर्धन सम्भवतः वैश्य थे।
- सौराष्ट्र, शन्ति और मालवा के शूद्र राजाओं की चर्चा मिलती है।
- हवेनसांग ने सिंध के शासक को शुद्र बताया है।
ब्राह्मणों की पवित्रता पर भी बल दिया जाता था। इस काल के ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मण को शूद्र का अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए क्योंकि इससे आध्यात्मिक बल घटता है।
याज्ञवल्क्य के अनुसार स्नातकों (ब्राह्मण छात्रों) को शूद्रों और पतितों का अन्न नहीं खाना चाहिए। वृहस्पति ने संकट में ब्राह्मणों को दासों और शूद्रों का अन्न खाने की अनुमति दी है। मृच्छकटिक में कहा गया कि ब्राहण और सूद्र एक ही कुएं से पानी भरते थे।