मुगल कालीन इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-मुगल युग में उर्दू, फारसी और अरबी साहित्य

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मुगलों ने इन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान देते हुए वास्तुकला, साहित्य, विज्ञान और प्रशासनिक दक्षता सहित विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। मुगल युग साहित्य के उल्लेखनीय उत्कर्ष का गवाह बना।

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मुगल कालीन इतिहास जानने के साहित्यिक स्रोत-मुगल युग में उर्दू, फारसी और अरबी साहित्य

मुगल कालीन इतिहास

भारतीय साहित्य के विकास ने चौथी शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्ध में एक स्वतंत्र भाषा के रूप में उर्दू के उद्भव को जन्म दिया। ख़ुसरो (1253-1325) को सबसे पुराना उर्दू कवि माना जाता है, जिन्होंने निज़ाम उद-दीन औलिया से प्रभावित होने के दौरान सुल्तान बलबन के शासनकाल के दौरान अपनी काव्य यात्रा शुरू की थी। बाबर और हुमायूँ दोनों ने साहित्य के लिए गहरी प्रशंसा की। बाबर स्वयं फ़ारसी का एक प्रसिद्ध विद्वान था और उसने अत्यधिक सम्मानित पुस्तक तुज़ेक-ए-बाबरी लिखी, जिसने तुर्की साहित्य में बहुत योगदान दिया।

सैय्यद अहमद खान और मिर्जा गालिब के उल्लेखनीय प्रयासों की बदौलत मुगल साम्राज्य के अंतिम दिनों में उर्दू साहित्य का और विकास हुआ। मिर्जा गालिब, अपने समय के एक प्रसिद्ध कवि, ने सैय्यद अहमद खान की रचनाओं से प्रेरणा ली और उर्दू कविता के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उर्दू के अतिरिक्त फारसी और अरबी ने भी भारतीय साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तुर्कों और मंगोलों के आगमन के साथ इन भाषाओं का भारत में परिचय हुआ। हुमायूँ, एक उत्सुक शिक्षार्थी, ने अरबी में विभिन्न ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा प्रदान की। फ़ारसी कई शताब्दियों तक दरबारी भाषा बनी रही, और हिंदी और फ़ारसी के बीच परस्पर क्रिया ने उर्दू को एक विशिष्ट भाषा के रूप में विकसित किया।

अकबर के शासनकाल में सीखने की ओर एक मजबूत झुकाव स्पष्ट था। इस अवधि के दौरान “अकबरनामा,” “सूर सागर,” और “राम चरितामानस” जैसी प्रमुख साहित्यिक कृतियों का निर्माण किया गया। इसके अतिरिक्त, मलिक मुहम्मद जायसी की “पद्मावत” और केशव की “राम चंद्रिका” एक ही युग के दौरान लिखी गई थीं। कला के संरक्षण के लिए जाने जाने वाले जहाँगीर ने साहित्य और उसके विकास को आगे बढ़ाया।

मुगल कालीन इतिहास जानने के लिए प्रमुख साहित्यिक स्रोत अग्रलिखित है,

बाबरनामा- इसे तुजके-बाबरी या वाक्याते बाबरी भी कहा जाता है। यह बाबर की आत्मकथा है जिसे उसने तुर्की भाषा में लिखा था। बाद में इसका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। सर्वप्रथम मूल तुर्की भाषा से अंग्रेजी अनुवाद मैडम बेवरीज द्वारा किया गया। अब्दुर्ररहीम खान-खाना ने 1598-90 ई० में इसका फारसी अनुवाद किया। इन संस्करणों का उर्दू अनुवाद मिर्जा नासिरुद्दीन हैदर ने 1924 में दिल्ली में प्रकाशित किया। इसमें बाबर के विषय में बहुत उपयोगी जानकारी मिलती है।

तारीख-ए-रशीदी- इस ग्रन्थ की रचना मिर्जा मुहम्मद हैदर ने फारसी भाषा में किया है। इसमें उसने बाबर व हुमायूँ के समय की घटनाओं का वर्णन किया है। मिर्जा हैदर बाबर का सम्बन्धी था। छोटी आयु में ही उसकी सेवा में आ गया था। अपने इस ग्रन्थ में उसने तत्कालीन समय की घटनाओं को जो अपनी आँखों से देखा वर्णन किया। उसने तारीख-ए-रशीदी को दो भागों में लिखा। एक भाग में 1527- 1533 ई० तक के मध्य के समय की बाबर और हुमायूँ की घटनाओं का उल्लेख किया तथा दूसरे हिस्से में 1541 ई० तक अपने जीवन की घटी प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया।

हुमायूँनामा- बादशाह अकबर के आग्रह पर बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने इसकी रचना की थी। इस ग्रन्थ के अधिकांश भाग में गुलबदन बेगम ने हुमायूँ के जीवन की सफलताओं, विजय-पराजय और कठिनाईयों का वर्णन किया है। उसने हुमायूँ और कामरान के मध्य युद्ध का वर्णन किया ।

तजकिरात-उल-वाकियात- इस ग्रन्थ की रचना जौहर आफताबची ने अकबर के आदेश पर फारसी भाषा में की थी। जौहर आफताबची वर्षो तक हुमायूँ की सेवा में रहा। वह हुमायूँ दुर्दिन और सैनिक अभियानों में उसके साथ मौजूद रहा। अतः यह हुमायूँ के बारे में जानकारी के लिए यह एक ग्रन्थ प्रमाणिक है।

तारीख-ए-दौलत-ए-शेरशाही- इस ग्रन्थ की रचना हसन अली खाँ ने फारसी भाषा में लिखा था। इससे शेरशाह के व्यक्तित्व जीवन और शासन के बारे में उपयोगी सामग्री प्राप्त होती है।

तारीख-ए-शेरशाही- अब्बास खाँ सरवानी ने अकबर के आदेश पर इस ग्रन्थ को फारसी भाषा में लिखा था। इस ग्रन्थ से शेरशाह के जीवन चरित्र और शासन-प्रबंध पर प्रकाश पड़ता है।

वाकियात-ए-मुश्ताकी- यह शेख रिजाकुल्ला मुश्ताकी द्वारा फारसी भाषा में लिखित लोदी और सूर काल पर प्रकाश डालने वाली सबसे पहली पुस्तक है। बहलोल लोदी से लेकर अकबर के शासन काल के मध्य भाग तक का वर्णन इस ग्रन्थ में मिलता है।

तारीख-ए-दाउदी – अब्दुल्ला ने इस ग्रन्थ की रचना सम्भवतः जहाँगीर के शासन में की। इसमें उसने शेरशाह के शासनकाल के बारे में विस्तृत वर्णन किया है।

अकबरनामा- इस ग्रन्थ की रचना बादशाह अकबर के शासनकाल में अबुलफजल ने की थी। यह मुगल इतिहास जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इसके तीन भाग हैं। तीसरा भाग आइने अकबरी, अकबरनामा की जान है। इसके पहले भाग में अमीर तैमूर से लेकर हुमायूँ तक मुगल शासको के इतिहास का वर्णन किया गया है। दूसरे और तीसरे भाग में 1602 ई० तक बादशाह अकबर के इतिहास का वर्णन है।

तबकात-ए-अकबरी- इसके लेखक निजामुद्दीन अहमद थे। यह तीन भांगों में विभाजित है। इसमें भारत में मुस्लिम शासन स्थापित होने से लेकर बादशाह अकबर के उन्नतालीस वर्ष तक का इतिहास दिया गया है। इस प्रकार मध्ययुगीन भारत के एक बड़े भाग का इतिहास जानने का यह एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

तारीख-ए-बदायूँनीइसके लेखक अब्दुल कादिर बदायूँनी है वह अकबर के समय का महत्वपूर्ण विद्वान था। अकबर ने उसे अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया तथा इमाम के पद पर नियुक्त किया। उसने कई अरबी और संस्कृत ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया। तारीख-ए-बदायूँनी के तीन भाग है। प्रथम भाग में सुबुक्तगीन के समय से लेकर हुमायूँ के शासन काल तक की घटनाओं का वर्णन है तथा दूसरे भाग में 1594 ई० तक के अकबर के शासन की घटनाएँ है। तीसरे भाग में बदायूँनी ने समकालीन विद्वानों और संतों के जीवन के बारे में उल्लेख किया है।

तुजुक ए-जहाँगीरी- यह जहाँगीर की आत्मकथा है जिसमें उसने अपने सिंहासन पर बैठने से लेकर अपने शासन के 17वें वर्ष तक का वर्णन किया है। बाद में स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण आगे की घटनाओं को लिखने का दायित्व अपने बक्शी मुतामिद खाँ को सौंप दिया जिसने जहाँगीर के शासन के उन्नीसवें वर्ष तक की घटनाओं को लिखा।

इकबालनामा- इसे मुतामिद खाँ ने लिखा था यह तीन भागों में है। प्रथम भाग में अमीर तैमूर के परिवार, बाबर तथा हुमायूँ के काल का इतिहास है। दूसरे भाग में बादशाह अकबर के समय का इतिहास है तथा तीसरे भाग में जहाँगीर के काल का इतिहास है।

पादशानामा- पादशाहनामा तीन दरबारी इतिहासकारों ने अलग लिखा है। तीनों मूलतया शाहजहाँ के काल के इतिहास को लिखा है सर्वप्रथम बादशाहों ने अपने शासन काल के आठवें वर्ष में मुहम्मद अमीर काजविनी को अपने शासन काल के इतिहास लिखने का आदेश दिया। उसने शाहजहाँ के प्रथम दस वर्षों के इतिहास को लिखा।

बाद में शाहजहाँ आगे की घटनाओं को लिखने पर रोक लगा दिया। अमीर काजविनी शाहजहाँ का पक्षधर था। अपने दस साल की घटनाओं में उसने शाहजहाँ के विद्रोह के लिए बेगम नूरजहाँ को दोषी ठहराया। कुछ समय पश्चात् शाहजहाँ ने इसे पुनः लिखने का आदेश दिया।

इस कार्य के लिए उसने हमीद लाहौरी को नियुक्त लिया। उसने भी अपने ग्रन्थ का नाम पादशनाम रखा। उसने पादशाहनामा को दो भागों में विभक्त किया। प्रथम भाग में अमीर तमूर से लेकर शाहजहाँ के काल के प्रथम दस वर्षों का वर्णन किया तथा दूसरे भाग में शाहजहाँ के शासन के अगले दस वर्षों तक का उल्लेख किया। तीसरे पादशाहनामा की रचना मुहम्मद वारिस ने की थी। अब्दुल हमीद लाहौरी वृद्ध होने के कारण शाहजहाँ के काल की आगे की घटनाओं को लिखने का उत्तरदायित्व वारिस को सौंप दिया। वारिस ने अब्दुल हमीद लाहौरी के पाद शाहनामा को ही आधार बनाकर शाहजहाँ के काल का सम्पूर्ण इतिहास सृजित किया।

मुन्तखाब-उल-लबाब- इसकी रचना हाशिम खफी खाँ ने की थी। इस ग्रन्थ में उसने मुगल काल के इतिहास को बाबर के भारत पर अभियान से लेकर उत्तरकालीन मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के प्रथम पन्द्रह वर्षो तक लिखा है। खफी खाँ ईरानी था। औरंगजेब के शासन काल में वह उच्च पद पर था। बाद में वह हैदराबाद राज्य के संस्थापक निजामुल मुल्क का दीवान बन गया। अपने इस ग्रन्थ को उसने मुहम्मद शाह को भेंट किया।

नुसखा-ए-दिलखुशा- इस ग्रन्थ के लेखक भीमसेन थे। उसने यह ग्रन्थ तब लिखा जब वह मुग़ल राज्य की सेवा से पूर्णतया मुक्त था। इस कारण उसने पूरी निपक्षता से तत्कालीन घटनाओं का वर्णन किया है। यह ग्रन्थ समकालीन इतिहास मुख्यतया दक्षिण भारत के इतिहास को जानने का एक महत्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत है।

खुलासात उत-तवारीय – इसकी रचना सुजानराय खत्री ने की थी इस ग्रन्थ में उसने महाभारत के पाण्डव से लेकर मुगल शासक औरंगजेब के समय तक का इतिहास लिखा है।

कानून-ए-हुमायूँ – यह ख्वांद मीर की अन्तिम रचना है। 1533 ई० में उसने इसे लिखना प्रारम्भ किया तथा 1534 ई० में पूरा किया। यह हुमायूँ के काल का एक समसामयिक ग्रन्थ है जिसमें उसने तत्कालीन समय की आंखों देखी घटनाओं का वर्णन किया है।

तोहफाए-ए-अकबर -शाही अब्बास खाँ सरवानी ने यह पुस्तक अकबर के आदेश पर लिखा था। इसमें शेरशाह के शासन का विस्तृत विवरण मिलता है। यह ग्रन्थ अकबर को समर्पित की किया गया था।

इन ग्रन्थों के अतिरिक्त अहमद यादगार की तारीख-ए-शाही, मीर अलाउद्दौला कजवीनी की नफाइस-उल-मनासिर, मोहम्मद सालेह का अमल-ए-सालेह, सादिक खाँ की तारीख-ए-शाहजहानी, ईसवरदास नागर की फुतहात-ए-आलमगीरी व साकी मुसतइद खाँ की मासिर-ए-आलमगीरी आदि मुगलकालीन इतिहास जाने के महत्वपूर्ण साहित्यिक स्रोत है।

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