मित्रों आपको याद होगा सन 2018 में एक फ़िल्म आयी थी पद्मावत जो काफी विवादों में रही। रिलीस से पूर्व इस फ़िल्म का नाम् पद्मावती रखा गया था मगर रिलीस से पूर्व ही इस फ़िल्म का विरोध होना शुरू हो गया और इसे राजपूतों का अपमान कहा गया। शहर-शहर विरोध में प्रदर्शन होने शुरू हो गए। अंत में फ़िल्म का नाम पद्मावत रखा गया,तब जाकर फ़िल्म सिनेमाघरों का मुंह देख पायी। आइये जानते हैं रानी पद्मावती की कथा का सच।
रानी पद्मावती की कथा |
रानी पद्मावती की कथा-रानी पद्मावती कौन थी?
रानी पद्मावती भारतीय इतिहास में एक महान राजपुतानी रानी थी जो राजपूताना के मेवाड़ राज्य की रानी थी। वह लगभग 13वीं शताब्दी में राजा रतन सिंह की पत्नी थी जो चित्तौड़गढ़ के राजा थे। रानी पद्मावती अपनी शानदार सौंदर्य और शौर्यशालिनीता के लिए प्रसिद्ध थीं।
पद्मावती की गाथा राजपूताना के इतिहास में मशहूर है, विशेष रूप से उनके संगमरमर के महल, जिन्हें चित्तौड़गढ़ के किले में विराजमान किया गया था, की खूबसूरती और शौर्य की कहानी को दर्शाते हैं। राजपूताना का इतिहास भव्य राजपूत संस्कृति, गौरवशाली युद्ध और सौंदर्यपूर्ण कला के लिए जाना जाता है, और पद्मावती इसी विरासत का महान उदाहरण हैं।
पद्मावती की कहानी भव्य और प्रेम भरी है, जिसमें वे अपने पति राजा रतन सिंह की रक्षा करती हैं और अंत में वे अग्निदाह में अपने आप को बलिदान करती हैं ताकि वे खलजी वंश के सुल्तान अलाउद्दीन खलजी से बचा सकें। पद्मावती ने अपनी सौंदर्य और बहादुरी के लिए प्रसिद्ध हैं और उनकी कहानी लोकतांत्रिक और धार्मिक मूल्यों को प्रोत्साहित करती है।
पद्मावती की कहानी सन्तानों में बहुत प्रसिद्ध है और इसके आधार पर बहुत सी कविताएँ, कहानियाँ, गीत और फिल्में बनी हैं। एक भारतीय फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्म “पद्मावत” भी इस कहानी पर आधारित है, जिसमें दीपिका पादुकोण ने पद्मावती की भूमिका निभाई थी।
अलाउद्दीन खिलाजी का मेवाड़ अभियान-
रानी पद्मिनी की कहानी का आरंभ अलाउद्दीन खिलजी के मेवाड़ अभियान से शुरू होता है। मेवाड़ के विरुद्ध अभियान का तत्कालीन कारण था कि अलाउद्दीन चित्तौड़ के राणा रतन सिंह की पत्नी पद्मिनी से विवाह करने की इच्छा रखता था। चित्तौड़ के दुर्ग का घेरा डाल दिया गया और पास की एक पहाड़ी की चोटी (चित्तौड़ी ) पर अलाउद्दीन ने अपना शिविर लगाया। लगभग 5 महीने तक घेरा पड़ा रहा और इसे पाने के सारे प्रयोजन असफल रहे। वीर राजपूतों ने ऐसा कठोर विरोध प्रस्तुत किया कि उनके शत्रुओं तक ने उनकी वीरता की प्रशंसा की। परंतु जब और विरोध असंभव हो गया तो राजपूतों ने अपमान की अपेक्षा मृत्यु को अधिक अच्छा समझा।
टाड के अनुसार “अक्रांता ओं को पीछे हटाने के अंतिम प्रयास में राजपूतों के प्राणपण से जूझने से पूर्व उनकी वीरांगनाओं ने ‘जौहर’ का सहारा लिया। दुर्ग के एक तहखाने में एक विशाल चिता रची गई। उस उजाड़ दुर्ग में यह स्थान आज भी उस निर्दयतापूर्ण काल की करुण कहानी सुनाने के लिए विद्यमान है। चिता रची जाने के बाद राजपूत रमणियाँ वहां एकत्रित होने लगीं। सुंदरी पद्मिनी ने उस समूह का नेतृत्व किया जिसमें समस्त स्त्री सौंदर्य एवं यौवन सम्मिलित था, जिसे तातारों की काम पिपासा द्वारा लांछित होने का भय था। इनको स्थान पर लाया गया जहां जलकर खाक होने वाले तत्व (अग्नि) में अपमान से त्राण पाने के लिए अंदर छोड़कर द्वार बंद कर दिया गया।”
26 अगस्त 1303 ई० को अलाउद्दीन ने चित्तौड़ के दुर्ग पर अधिकार कर लिया और चित्तौड़ का शासन प्रबंध अपने जेष्ठ पुत्र खिज्र खां को सौंप दिया। खिज्रखाँ के नाम पर चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया गया। यध् उल्लेखनीय है कि राजपूतों के दबाव के कारण 1311 ई० में खिज्र खाँ चित्तौड़ छोड़ने पर विवश हो गया। ऐसी दशा में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ का प्रबंध मालदेव को सौंप दिया। राजपूतों ने हम्मीर या उसके पुत्र के नेतृत्व में एक बार फिर चित्तौड़ विजय प्राप्त कर ली और इस प्रकार वह पुनः चित्तौड़ की राजधानी बन गया।
रानी पद्मिनी की कहानी –
ऐसा कहा जाता है कि जब चित्तौड़ का घेरा पड़ा हुआ था तो एक गंभीर स्थिति उत्पन्न हुई। अलाउद्दीन ने यह इच्छा प्रकट की कि यदि शीशे द्वारा उसे पद्मिनी का चेहरा दिखा दिया जाये तो वह वापस चला जाएगा। इससे राजा रतन सिंह सहमत हो गया और पद्मिनी को शीशे द्वारा दिखाए जाने का प्रयत्न किया गया। शीशे में पद्मिनी को देखकर सुल्तान को उसे पाने की इच्छा और भी अधिक बढ़ गई और उसने रतन सिंह को बंदी बना लिया।
पद्मिनी के पास यह संदेश भेजा गया कि यदि यह सुल्तान के हरम में रहना स्वीकार कर ले तो उसके पति को मुक्त कर दिया जाएगा। पद्मिनी ने यह संदेश भेजा कि वह अपने सेवकों के साथ आ रही है। 700 पालकियाँ, जिनमें वीर राजपूत सैनिक बैठे हुए थे सुल्तान के शिविर में पहुंचे और यह बताया कि उनमें रानी की पहरेदार हैं और उनकी सहायता से राजा को निकाल लाया गया ।
अलाउद्दीन धोखा खा गया। यद्यपि गोरा व बादल ने चित्तौड़ दुर्ग के बाहरी द्वार पर आक्रमणकारियों का सामना किया, तथापि वे दिल्ली की सेनाओं के विरुद्ध काफी समय तक न टिक सके और चित्तौड़ मुसलमानों के हाथ में आ गया। परंतु मुसलमानों के हाथों से बचने के लिए पद्मिनी ने अपना ‘जौहर’ कर लिया।
रानी पद्मिनी की कहानी को कुछ विद्वानों ने (जैसे श्री गौरीशंकर ओझा, डा० के० एस० लाल इत्यादि ) ने केवल एक कवि की कल्पना माना है। गौरीशंकर ओझा अपनी रचना (राजपूताना का इतिहास) में यह मत प्रकट करते हैं कि समसामयिक रचयिता जियाउद्दीन बरनी व अमीर खुसरो अलाउद्दीन-पद्मिनी की वीर कहानी का वर्णन नहीं करते। यदि इसमें कोई भी सत्यता होती तो उसकी रचनाओं में इसका कुछ विवरण अवश्य प्राप्त होता।
ओझा महोदय का यह विचार है कि पद्मिनी की सारी कथा मलिक मोहम्मद जायसी से शायद उद्घृत की गई है। जिसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पद्मावत’ में 16वीं शताब्दी में इस वीरगाथा की रचना की। फरिश्ता व अन्य आगामी मुस्लिम इतिहासकारों ने पद्मावत से ही कहानी ग्रहण की होगी। मगर यह बताया जाता है कि इन रचनाओं का आधार अमीर खुसरो की रचनाओं के अध्ययन पर आश्रित है। यह संकेत किया जाता है कि आमिर खुसरो पद्मिनी की कथा का वर्णन नहीं करता जबकि उसकी तुलना राजा सालोमान से करता है। वह चित्तौड़ दुर्ग में उसकी शेबा का वर्णन करता है।
अमीर खुसरो अपने को खुद खुद मानता है क्योंकि यही चिड़िया शेरा की रानी बिल्कुल का समाचार राजा सालोमन के पास लाई थी यह ठीक है क्या मेरे को बहुत सी वस्तुएं छोड़ दी है जिन्हें उसका स्वामी अलाउद्दीन बुरा समझता अलादीन द्वारा जलालुद्दीन की हत्या की मान लेना अनुचित हो गए कि पद्मन की कथा पूर्ण तिथि द्वारा रचित गाता है यह स्वीकार नहीं किया जा सकता किसी ने पद्मावत कथा को अमीर खुसरो के गुरु से ग्रहण किया है जायसी की पद्मावत में वीरगाथा संबंधी विस्तार काल्पनिक कहानी का मुख्य भाग ऐतिहासिक तथ्य पर निर्भर है यदि मैं होता तो राजपूत ने अपने गीतों में सम्मिलित ने किया होता विशेषकर तब जबकि सारी कहानी राजपूतों के सम्मान पर एक लांछन (कलंक) है।
पद्मावती फिल्म को लेकर क्यों हुआ विवाद?
फिल्म “पद्मावती” (जिसे बाद में “पद्मावत” के रूप में रिलीज़ किया गया) पर विवाद कई कारकों से उपजा है, जिसमें ऐतिहासिक अशुद्धियाँ, सांस्कृतिक संवेदनशीलता और भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे शामिल हैं।
ऐतिहासिक अशुद्धियाँ: विवाद के मुख्य बिंदुओं में से एक फिल्म में एक प्रसिद्ध राजपूत रानी रानी पद्मावती का चित्रण था। कई राजपूत समूहों ने दावा किया कि फिल्म ने ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत किया और रानी पद्मावती को राजपूत संस्कृति और विरासत के प्रति अपमानजनक तरीके से चित्रित किया। उन्होंने रानी पद्मावती और मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी के बीच एक रोमांटिक रिश्ते के चित्रण पर आपत्ति जताई, जिसके बारे में उनका मानना था कि यह ऐतिहासिक साक्ष्यों द्वारा समर्थित नहीं था और राजपूत इतिहास की विकृति के बराबर था।
सांस्कृतिक संवेदनशीलता: राजपूत समूहों ने फिल्म में राजपूत रीति-रिवाजों, परंपराओं और मूल्यों के चित्रण पर भी आपत्ति जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि फिल्म में राजपूतों को नकारात्मक रूप से दिखाया गया है और उनकी संस्कृति को गलत तरीके से चित्रित किया गया है, जिससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है और उनके गौरव को ठेस पहुंची है। राजपूत अपने इतिहास और परंपराओं पर बहुत गर्व करते हैं, और उनकी संस्कृति की किसी भी कथित विकृति या गलत बयानी से कड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है।
धार्मिक भावनाओं का कथित अपमान: ऐसे भी आरोप लगे थे कि फिल्म में धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले दृश्य थे। कुछ समूहों ने दावा किया कि फिल्म में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच एक सपने के दृश्य को दर्शाया गया है, जिसे वे अपने धार्मिक विश्वासों के लिए अपमानजनक मानते थे और अपने ऐतिहासिक आंकड़ों के प्रति अनादर दिखाते थे।
हिंसा की धमकी: कुछ फ्रिंज समूहों और व्यक्तियों ने फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली और मुख्य अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के साथ-साथ फिल्म की रिलीज के खिलाफ हिंसा की धमकी दी। इन धमकियों ने भय और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया और विवाद बढ़ गया क्योंकि विभिन्न समूहों ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।
राजनीतिक अवसरवाद: “पद्मावती” के विवाद ने भी राजनीतिक रंग लिया, कुछ राजनेताओं और राजनीतिक समूहों ने अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए स्थिति का लाभ उठाया। कुछ राजनेताओं ने खुले तौर पर फिल्म के खिलाफ विरोध का समर्थन किया, जबकि अन्य ने धमकियों की निंदा की और इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया।
सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: विवाद ने भारत में कलात्मक स्वतंत्रता और सेंसरशिप की सीमाओं के बारे में सवाल उठाए। कुछ लोगों ने तर्क दिया कि फिल्म के खिलाफ विरोध और धमकी फिल्म निर्माताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मकता के उल्लंघन के समान है, जबकि अन्य का मानना था कि फिल्म को इसकी कथित ऐतिहासिक अशुद्धियों और आपत्तिजनक सामग्री के कारण सेंसर या प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
कुल मिलाकर, “पद्मावती” पर विवाद एक जटिल मुद्दा था जिसमें ऐतिहासिक अशुद्धियाँ, सांस्कृतिक संवेदनशीलता, धार्मिक भावनाएँ, हिंसा के खतरे, राजनीतिक अवसरवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में बहस शामिल थी, जिसने फिल्म के आसपास अत्यधिक आवेशित और विवादास्पद स्थिति में योगदान दिया।