भारतीय प्रागैतिहासिक काल लिखित अभिलेखों के आगमन से पहले भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में प्रारंभिक मानव के समय को संदर्भित करता है। यह लिखित दस्तावेजों या शिलालेखों की अनुपस्थिति की विशेषता है, जिससे इस अवधि की हमारी समझ काफी हद तक पुरातात्विक साक्ष्यों, जीवाश्मिकी निष्कर्षों और मानवशास्त्रीय अध्ययनों पर निर्भर करती है। भारतीय प्रागैतिहासिक काल ने बाद के ऐतिहासिक काल की नींव रखी, जिसमें प्रारंभिक मानव समाजों का उदय, कृषि और बसे हुए समुदायों का विकास, और प्रारंभिक सभ्यताओं का उदय, भारतीय उपमहाद्वीप के समृद्ध और विविध इतिहास के लिए मंच तैयार किया।
प्रागैतिहासिक काल
प्रागैतिहासिक काल अर्थ है
भारतीय प्रागैतिहासिक काल को तीन व्यापक चरणों में विभाजित किया गया है:
इतिहास का विभाजन प्रागितिहास ( Pre-History ), आद्य इतिहास ( Proto-History ), तथा इतिहास ( History ) तीन भागों में किया गया है—
प्रागितिहास-– प्रागितिहास काल से तात्पर्य उस काल से है जिसमें किसी भी प्रकार की लिखित सामग्री का अभाव है। जैसे पाषाण काल जिसमें लिखित सक्ष्य नहीं मिलते।
आद्य इतिहास– वह काल जिसमें लिपि के साक्ष्य तो हैं परन्तु वह अभी तक पढ़े नहीं जा सके। जैसे हड़प्पा सभ्यता की लिपि आज तक अपठ्नीय है।
इतिहास– जिस काल से लिखित साक्ष्य मिलने प्रारंभ होते हैं उस काल को ऐतिहासिक (इतिहास ) काल कहते हैं
इस दृष्टि से पाषाण कालीन सभ्यता प्रागितिहास तथा सिंधु एवं वैदिक सभ्यता आद्य-इतिहास के अंतर्गत आती है। ईसा पूर्व छठी शती से ऐतिहासिक काल प्रारंभ होता है। किंतु कुछ विद्वान ऐतिहासिक काल के पूर्व के समस्त काल को प्रागितिहास की संज्ञा देते हैं।
पाषाण काल का विभाजन
भारत में पाषाणकालीन सभ्यता का अनुसंधान सर्वप्रथम 1807 ईस्वी में प्रारंभ हुआ जबकि भारतीय भूतत्व सर्वेक्षण विभाग के विद्वान ‘रॉबर्ट ब्रूस फुट’ ने मद्रास के पास स्थित पल्लवरम् नामक स्थान से पूर्व पाषाण काल का एक पाषाणोपकरण प्राप्त किया।
तत्पश्चात विलियम किंग, ब्राउन, काकबर्न, सी०एल० कार्लाइल आदि विद्वानों ने अपनी खोजों के परिणामस्वरूप विभिन्न क्षेत्र से कई पूर्व पाषाणकाल के उपकरण प्राप्त किये। सबसे महत्वपूर्ण अनुसंधान 1935 ईस्वी में डी० टेरा तथा पीटरसन द्वारा किया गया इन दोनों विद्वानों के निर्देशन में येल कैंब्रिज अभियान दल ने शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसे हुए पोतवार के पठारी भाग का व्यापक सर्वेक्षण किया था।
इन अनुसंधानों से भारत की पूर्व पाषाणकालीन सभ्यता के विषय में हमारी जानकारी बढ़ी। विद्वानों का विचार है कि इस सभ्यता का उदय और विकास प्रतिनूतनकाल ( प्लाइस्टोसीन एज ) में हुआ। इस काल की अवधि आज से लगभग 500000 वर्ष पूर्व मानी जाती है।