Hadappa Sabhyata-हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने की ?
हड़प्पा सभ्यता की खोज सन 1921 में राय बहादुर दयाराम साहनी द्वारा की गई। पाकिस्तान स्थित पंजाब (पाकिस्तान) के मोंटगोमरी ज़िले में रावी नदी के किनारे बसे हड़प्पा स्थल की खुदाई की थी भारतीय पुरातत्व विभाग के अध्यक्ष जॉन मार्शल के समय 1921 में हड़प्पा की खुदाई कराइ गई। यहाँ से तांबे की इक्का गाड़ी, उर्वरता की देवी, कांस्य दर्पण, मछुआरे का चित्र,गरुड़ की मूर्ति,अबलोकितेश की मूर्ति साक्ष्य के रूप में मिले हैं। इसके अतिरिक्त भी बहुत से साक्ष्य मिले हैं।
हड़प्पा सभ्यता: सामाजिक जीवन
हड़प्पा सभ्यता में परिवार सामाजिक जीवन का मुख्य आधार था। परिवार में सब लोग प्रेमपूर्वक रहते थे। परिवार का मुखिया माता को माना जाता था यानि हड़प्पा सभ्यता में समाज मातृसत्तात्मक था।मोहनजोदड़ो की खुदाई से सामजिक विभाजन के संकेत प्राप्त होते हैं।सम्भवतः समाज चार वर्णों में विभाजित था- विद्वान-वर्ग, योद्धा, व्यापारी तथा शिल्पकार और श्रमिक।
- विद्वान वर्ग के अंतर्गत सम्भवतः पुजारी, वैद्य, ज्योतिषी तथा जादूगर सम्मिलित थे।
- समाज में पुरोहितों का सम्मानित स्थान था।
- हड़प्पा सभ्यता में मिले मकानों की विभिन्नता के आधार पर कुछ विद्वानों ने समाज जाति प्रथा के प्रचलित अनुमार लगाया है।
- खुदाई में प्राप्त तलवार, पहरेदारों भवन तथा प्राचीरों अवशेष मिलने से वहां क्षत्रिय जैसे किसी योद्धा वर्ग के अनुमान लगाया जाता है।
- तीसरे वर्ग में व्यापारियों तथा शिल्पियों जैसे पत्थर काटने वाले, खुदाई करने वाले, जुलाहे, स्वर्णकार, आदि को शामिल किया है।
- अंतिम वर्ग में विभिन्न अन्य व्यवसायों से जुड़े लोग जैसे- श्रमिक, कृषक, चर्मकार, मछुआरे, आदि।
- कुछ विद्वान हड़प्पा सभ्यता में दास प्रथा के प्राचलन का भी अनुमान लगते हैं।
- परन्तु एस. आर. राव ने दास प्रथा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है।
हड़प्पा सभ्यता में नारी का स्थान
हड़प्पा सभ्यता में नारी का बहुत ऊँचा स्थान था।वह सभी सामाजिक धार्मिक कार्यों तथा उत्सवों में पुरुषों समान ही भाग थी।अधिकांश महिलाऐं घरेलु कार्यों से जुडी थीं। पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।
सिंधु सभ्यता के लोगों का भोजन
- सिंधु सभ्यता शाकाहारी तथा माँसाहारी दोनों प्रकार का भोजन ग्रहण करते थे।
- गेहूँ, जौ, चावल, तिल, दाल आदि प्रमुख खाद्यान्न थे।
- शाक-सब्जियां, दूध तथा विभिन्न प्रकार फलों खरबूजा, तरबूज, नीबू, अनार, नारियल आदि का सेवन करते थे।
- मांसाहारी भोजन में सूअर, भेड़-बकरी, बत्तख, मुर्गी, मछलियां, घड़ियाल आदि खाया जाता था।
सिन्धुवासियों के वस्त्र
- सिन्धुवासी सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्रों का प्रयोग करते थे।
- स्त्रियां जूड़ा बांधती थीं तथा पुरुष लम्बे-लम्बे बाल तथा दाढ़ी-मुँछ रखते थे।
हड़प्पा सभ्यता आभूषण
- महिलाऐं तथा पुरुष दोनों ही आभूषणों का इस्तेमाल करते थे जैसे- अंगूठी, कर्णफूल, कंठहार आदि।
- हड़प्पा से सोने के मनकों वाला छः लड़ियों का एक सुन्दर हार मिला है।
- छोटे-छोटे सोने तथा सेलखड़ी निर्मित मनकों वाले हार बड़ी संख्या में मिले। हैं
- मोहनजोदड़ो से मार्शल ने एक बड़े आकर का हार प्राप्त किया है जिसके बीच गोमेद के मनके हैं।
- कांचली मिटटी, शंख तथा सेलखड़ी की बानी चूड़ियां मिली हैं।
- सोने, चांदी, तथा कांसे की चूड़ियां, मिटटी और तांबे की अंगूठियां भी मिली हैं।
- मोहनजोदड़ो की स्त्रियां काजल, पाउडर, तथा श्रृंगार प्रसाधन का प्रयोग थीं।
- चन्हूदड़ो से लिपस्टिक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- शीशे, कंघी, का भी प्रयोग था।
- तांबे दर्पण, छूरे, कंघें, अंजन लगाने की शलाइयाँ, श्रृंगादान आदि हैं।
- आभूषण बहुमूल्य पत्थरों, हाथी-दांत, हड्डी और शंख के बनते थे।
- खुदाई में घड़े, थालियां, कटोरे, तश्तरियां, गिलास, चम्मच आदि बर्तन हैं आलावा चारपाई, स्टूल, चटाई प्रयोग था।
- ऋग्वेदिककालीन भाषा और काव्य
सिन्धुवासियों के मनोरंजन के साधन
- पासा इस सभ्यता के लोगों का प्रमुख खेल था।
- हड़प्पा से मिटटी, पत्थर तथा मिटटी के बने सात पासे मिले हैं।
- सतरंज जैसे कुछ गोटियां भी मिली हैं जो मिटटी, शंख, संगमरमर, स्लेट, सेलखड़ी आदि से बनीं हैं।
- नृत्य भी प्रिय साधन था जैसा कि मोहनजोदड़ो से कांस्य निर्मित नृत्य मुद्रा में मिली मूर्ति प्रतीत होता है।
- जंगली जानवरों शिकार भी मनोरंजन साधन था
- मछली फंसना तथा चिड़ियों शिकार करना नियमित व्यवसाय था।
- मिटटी की बानी खिलौना गाड़ियां मिली हैं जिनसे खेलते होंगे।
हड़प्पा सभ्यता की भाषा, लिपि, बाट और माप
- उत्खनन में बड़ी संख्या में पत्थर के बाट मिले हैं। सामन्यतः ये बाट चकमक ( चर्ट ), सेलखड़ी, चूना-पत्थर, स्फटिक, स्लेट, सूर्यकान्त मणि ( जास्पर ), तथा अन्य पत्थरों से बांये गए हैं। लेकिन चकमक ( चर्ट ) से बने बाटों की संख्या अधिक है।
- बाट क्रमबद्ध रूप से 1,2,4,8 से 64 तक और फिर 160 तक जाते थे। उसके बाद 16 के दशमलव गुणांकों में 320, 640, 1600, 3200, 6400, 8000 ( अर्थात 1600 X 5 ) और 12800 ( अर्थात 1600 X 8 ) में आगे बढ़ती है।
- सबसे अधिक प्रचलित 16 मूल्य का बाट था जिसका वजन 13.5 से 13.7 ग्राम था
- यहाँ के निवासी घनाकार बांटों का प्रयोग करते थे।
- तराजू के भी प्रयोग के साक्ष्य हैं।
- दशमलव पद्धति से वे परिचित थे।
- इसके अतिरिक्त उत्खन में वहुसंख्यक अस्त्र-शस्त्र, औजारों व हथियारों के नमूने मिले हैं। युद्ध अथवा शिकार में तीर-धनुष, परशु, भाला, कटार, गदा, तलवार आदि का प्रयोग होता था।
- औजार और अस्त्र-शस्त्र सामन्यतः ताँबे तथा कांसे धातु के बने होते थे।
- बरछा, कुल्हाड़ी, बसूली, आरा आदि का प्रयोग होता था।
सिंधु सभ्यता की जनसंख्या
सिंधु सभ्यता की आबादी, जिसे हड़प्पा सभ्यता के रूप में भी जाना जाता है, का अनुमान है कि इसकी चरम अवधि के दौरान 5 मिलियन से 10 मिलियन लोगों की सीमा थी, जो कि 2600 ईसा पूर्व और 1900 ईसा पूर्व के बीच माना जाता है।
हड़प्पा सभ्यता के लोगों का आर्थिक जीवन
सिंधु सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी और कृषि,पशुपालन, शिल्प-उद्योग, व्यापार उनके जीवन यापन के मुख्य आधार थे। हम उनके आर्थिक स्रोतों का क्रमबद्ध अध्ययन करेंगें
कृषि अर्थव्यवस्था: कृषि हड़प्पा सभ्यता की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। सभ्यता में एक उन्नत सिंचाई प्रणाली थी, जैसा कि सुनियोजित कृषि क्षेत्रों और परिष्कृत जल निकासी प्रणालियों के अवशेषों से पता चलता है। गेहूं, जौ, मटर, कपास और चावल जैसी फसलों की खेती पुरातात्विक निष्कर्षों के माध्यम से पहचानी गई है, जो जीविका और व्यापार के लिए कृषि पर निर्भरता साक्ष्य के प्राप्त हुए हैं।
कृषि
- सिंधु सभ्यता के लोगों के जीवन का मुख्य आधार कृषि कार्य था। सिंधु और उसकी सहायक नदियां प्रतिवर्ष अपने साथ उपजाऊ मिटटी बहाकर लाती थी जिनसे पैदावार काफी अच्छी होती थी।
- सिन्धुवासियों का प्रमुख खाद्यान्न गेहूं तथा जौ थे। खुदाई में गेहूं तथा जौ के दाने मिले हैं।
- सिंधु क्षेत्र के लोग धान की खेती से अपरिचित थे।
- लोथल तथा रंगपुर से धान की खेती के साक्ष्य मिले हैं।
- धान की खेती का स्पष्ट प्रमाण हुलास से मिलता है परन्तु यह उत्तरकालीन है
- लोथल तथा रंगपुर बाजरे की खेती के भी प्रमाण मिले हैं।
- हड़प्पा में मटर तथा तिल खेती होती थी।
- सर्वप्रथम हड़प्पावासियों ने ही कपास की खेती प्रारम्भ की।
- ऐतिहासिक काल में मेसोपोटामिया में कपास के लिए ‘सिंधु शब्द’ का प्रयोग किया जाने लगा तथा यूनानियों ने इसे सिन्डन ( sindon ) कहा जो सिंधु का ही यूनानी रूपान्तर है।
- सिन्धुवासी फलों भी कसरते थे , केला, नारियल , खजूर , अनार, नीबू, तरबूज आदि की खेती करते थे।
- कालीबंगन से जुटे हुए खेत के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
- मोहनजोदड़ो से मिटटी के बने एक हल का प्रारूप तथा बनावली से मिटटी के बने हल का पूरा प्रारूप प्राप्त है।
- सिंधु निवासी एक साथ दो फसलें उगाने की विधि से परिचित थे।
- लोथल से वृत्ताकार चक्की के दो पाट भी मिले हैं। ऊपर वाले पाट आनाज डालने के लिए एक छेद बनाया गया है।
पशुपालन–
कृषि के साथ-साथ सिन्धुवासी पशुपालन भी करते थे। सिंधु सभ्यता से प्राप्त मृदभांडों और मोहरों पर पायी गयी चित्रकारी तथा प्राप्त जीवाश्मों के आधार पर उनके पालतू पशु-पक्षियों के विषय में जानकारी मिलती है।
- कूबड़दार वृषभ का अंकन मुहरों पर सर्वाधिक मिलता मिलता है।
- बैल, गाय, भैंस, कुत्ते, सूअर, भेड़, बकरी, हिरन, खरगोश, आदि भी पीला जाते थे।
- मुर्गा, बत्तख, तोता, हंस आदि पक्षी भी पीला जाते थे।
- ऊंट तथा घोड़े का अंकन मुहरों पर नहीं मिलता। परन्तु मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगन, सुरकोटडा के स्थलों से एक कूबड़दार ऊंट का जीवाश्म मिला है।
- सुरकोटड़ा, लोथल, कालीबंगन आदि से घोड़े की मृण्मूर्तियां, हड्डियां, जबड़े आदि के अवशेष मिले हैं।
- अतः घोड़े से हड़प्पा सभ्यता के लोग परिचित थे।
सिंधु सभ्यता के शिल्प तथा उद्योग-धंधे
- उत्खनन से प्राप्त उपकरणों ( तकली, सुई आदि ) से पता चलता है कि बुनना एक प्रमुख उद्योग था।
- शाल तथा धोती यहाँ के निवासियों के प्रमुख वस्त्र थे तथा ये लोग वस्त्रों की कढ़ाई तथा रंगाई की विधि से परिचित थे।
- चाक पर मिटटी के वर्तन बनाना, खिलौने बनाना, मुद्राओं का निर्माण करना, आभूषण एवं गुरियों का निर्माण करना आदि कुछ प्रमुख उद्योग-धंधे थे।
- धातुओं में उन्हें सोना, चांदी, तांबा, काँसा तथा सीसा का उन्हें ज्ञान था। तांबे तथा कांसा का प्रयोग मानव एवं पशु मूर्तियां बनाने में भी किया जाता था।
- शंख, सीप, घोंघा, हाथी दांत से भी उपकरणों का निर्माण होता था।
- सिंधु सभ्यता के बने पक्के मकानों से पता चलता है कि ईंट उद्योग बड़े पैमाने पर होगा।
- नावों का निर्माण करना भी यहाँ के लोगों को आता था।
- चन्हूदड़ो तथा लोथल मनका बनाने के प्रमुख केंद्र थे।
- चन्हूदड़ो में सेलखड़ी मुहरें तथा चर्ट के बटखरे ( बाट , बजन ) भी तैयार किये जाते थे।
- बालाकोट तथा लोथल का सीप उद्योग भी सुविकसित था।
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सिंधु सभ्यता में व्यापार तथा वाणिज्य
सिन्धुवासी आंतरिक और वह्य व्यापार दोनों में रूचि लेते थे।
हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो व्यापार के प्रमुख केंद्र थे।
सैंधव निवासी बहुत सी वास्तुओं आयात करते थे–
सोना | मैसूर |
तांबा | राजस्थान,बलूचिस्तान तथा मद्रास से |
सीसा | अजमेर से |
वर्तन रंगने का गेरुआ रंग | फारस की कड़ी स्थित हार्मुज से |
बहुमूल्य पत्थर- | कश्मीर एवं काठियावाड़ से |
चांदी- | अफगानिस्तान , आर्मेनिया तथा ईरान से |
लाजवर्द मणि- | अफगानिस्तान , आर्मेनिया तथा ईरान से |
लोथल के बंदरगाह से | ताँबा तथा हाथी-दांत की वस्तुएं मेसोपोटामिया के नगरों को भेजी जाती थीं। |
मोहनजोदड़ो-से प्राप्त एक मुहर तथा ठीकरे ( मिटटी के वर्तन का टुटा टुकड़ा ) से सुमेरियन नावों के चित्र अंकित मिले हैं जिससे समुद्री व्यापार संकेत हैं।
सुमेरियन लेखों से तीन स्थानों – मेलुहा, दिल्मुन ( तिल्मुन), तथा मगन (मकन) का उल्लेख मिलता है।
मेलुहा की पहचान सिंध प्रदेश से गयी है। यहाँ से उर्र के व्यापारी सोना, ताँबा, कार्निलियन ( लाल पत्थर ), लारजवर्द मणि, हाथी-दांत, की वस्तुएं, खजूर, विविध प्रकार की लकड़ियां विशेषकर आबनूस ( काली लकड़ी ) , मोर पक्षी आदि प्राप्त करते थे।
- मेसोपोटामिया में प्रवेश के लिए उर्र प्रमुख बंदरगाह था।
- चन्हूदड़ो तथा लोथल में मनके बनाने का कारखाना था।
- दिल्मुन की पहचान बहरीन द्वीप से की गयी है। मगन की पहचान बलूचिस्तान के मकरान तट से की गयी है।
- सैन्धव सभ्यता की उन्नति में विदेशी व्यापार का प्रमुख योगदान था।
- इसके अतिरिक्त सोवियत तुर्कमानिया, मेसोपोटामिया, ईरान आदि से व्यापार होता था।
- सिक्कों का प्रचलन नहीं था , क्रय-विक्रय वास्तु विनिमय द्वारा होता था।
- मोहनजोदड़ो तथा लोथल से हाथी-दाँत तराजू के पलड़े मिले हैं।
- स्थल पर बैलगाड़ियों, हाथियों तथा खच्चरों से सामान ढोया जाता था।
- नावों द्वारा जल मार्गों से व्यापार किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित प्रमुख स्थल
हड़प्पा: प्रारम्भिक स्थल
भौगोलिक स्थिति: हड़प्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में स्थित है।
खोज एवं खुदाई: 1826 में, एक अंग्रेज़ यात्री चार्ल्स मैसन ने सर्वप्रथम हड़प्पा के विषय में प्रारम्भिक जानकारी प्रदान की। 1921 में श्री दयाराम साहनी के नेतृत्व में व्यवस्थित और क्रमबद्ध खुदाई प्रारम्भ हुई।
इस स्थल पर आबादी वाले क्षेत्र के दक्षिणी भाग में, एक खुदाई में एक कब्रिस्तान का पता चला जिसे विद्वानों ने ‘कब्रिस्तान एच’ नाम दिया है। इसके अतिरिक्त, हड़प्पा की खुदाई से एक विशाल अन्न भंडार जिसे अन्नागार भी कहते हैं के महत्वपूर्ण साक्ष्य सामने आए हैं, जिससे यह सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई के दौरान खोजी गई सभी संरचनाओं में से दूसरी सबसे बड़ी संरचना बन गई है। इस अन्न भंडार का निर्माण कुल बारह बड़े कक्षों से किया गया है जो प्रत्येक तरफ छह की पंक्तियों में व्यवस्थित हैं।
हड़प्पा स्थल से एक दिलचस्प वास्तु भी मिली है, कांस्य से बनी एक पहिए वाली गाड़ी, साथ ही एक टेराकोटा की मूर्ति जिसमें एक महिला को बच्चे को जन्म देते हुए दर्शाया गया है। इसके अलावा, सिंधु लिपि वाली अधिकांश उत्कीर्ण मुहरें और कलाकृतियाँ हड़प्पा से प्राप्त हुई हैं, जो इस प्राचीन सभ्यता के बारे में मूल्यवान समझ और जानकारी प्रदान करती हैं।
मोहनजोदड़ो: दूसरा महत्वपूर्ण स्थल
भौगोलिक स्थिति: मोहनजोदड़ो सिंध प्रांत के लरकाना जिले में, भारत के पास, सिंधु नदी के किनारे स्थित है।
प्रारम्भिक खोज: सर राखलदास बनर्जी के नेतृत्व में 1922 में खुदाई की शुरुआत हुई।
महत्वपूर्ण सामग्री: मोहनजोदड़ो सबसे महत्वपूर्ण खोज एक विशाल स्नानागार {स्नान कुंड} और ग्रिड-पैटर्न वाली सड़कें हैं।
शिलालेखों वाली सबसे बड़ी संख्या में मुहरें मोहनजो-दारो स्थल से प्राप्त हुई हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि उत्कीर्ण मुहरों की सबसे अधिक संख्या हड़प्पा स्थल से प्राप्त होती है। यहां से प्राप्त उल्लेखनीय कलाकृतियों में कांस्य से बनी एक नृत्य करती हुई स्त्री की मूर्ति, पशुपति शिव की आकृति वाली एक मुहर, कपड़े के टुकड़े और दाढ़ी युक्त पुजारी की मूर्ति शामिल हैं।
चन्हुदड़ो:
भौगोलिक स्थिति: चन्हुदड़ पाकिस्तान के सिंध प्रांत में, सिंधु नदी के किनारे में स्थित है।
खोज: 1935 में, अर्नेस्ट मैके के नेतृत्व में खुदाई इस स्थल की गई।
महत्वपूर्ण सामग्री: चन्हुदड़ो अपने शहरी नियोजन के लिए प्रसिद्ध है और सिंधु घाटी सभ्यता के औद्योगिक केंद्र के रूप में माना जाता है। यहाँ पर मणि निर्माण कारखाना, उपकरण, और संचालन तंतु के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। यहाँ पर वक्राकार शैली की ईटों की खोज हुई हैं।
कालीबंगा:
भौगोलिक: कालीबंगा भारत के वर्तमान राजस्थान में स्थित है, यह प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे स्थिति है।
खोज: 1953 में अमलानंद घोष द्वारा इस मध्यवपूर्ण स्थल की खोज की गई।
महत्वपूर्ण सामग्री: कालीबंगा ने हड़प्पा लोगों के कृषि के बारे में जानकारी प्रदान की, जिसमें विभिन्न फसलों के साक्ष्य और भव्य सड़कों का सिस्टम शामिल है।
कालीबंगन स्थल से जुते हुए खेतों, एक साथ दो फसलों की खेती और अग्नि वेदियों के अवशेष के साक्ष्य मिले हैं। हालाँकि, इस स्थान पर जल निकासी व्यवस्था का कोई सबूत नहीं है। विशेष रूप से, कालीबंगन से पुरातात्विक खोजों के साथ गेंडा रूपांकनों और सजावटी ईंटों के साथ मुहरें प्राप्त हुई हैं।
लोथल:
भौगोलिक स्थिति: लोथल गुजरात, भारत के अहमदाबाद के पास भोगवा नदी के किनारे स्थित है।
खोज: S. R. राव ने 1957 में इस स्थल की खुदाई की थी।
यह स्थल एक प्रमुख बंदरगाह था। सिंधु घाटी सभ्यता की सीमा में लोथल से एक बड़े बंदरगाह का पता चला है, जो एक प्रमुख समुद्री व्यापार केंद्र के रूप में इसके महत्व को प्रदर्शित करता है। लोथल से, चावल और बाजरा की खेती के साक्ष्य के साथ-साथ तीन अलग-अलग कब्रिस्तान स्थलों की भी खोज की गई है।
धौलावीरा:
स्थान: धौलावीरा गुजरात के कच्छ जिले की भचाऊ तहसील में स्थित है, सरस्वती नदी के पास।
खोज: 1953 में अमलानंद घोष द्वारा खोजा गया था।
धोलावीरा वर्तमान गुजरात में कच्छ जिले के भचाऊ तालुका [तहसील] में स्थित है। यह मनहर और मानसर नदियों के पास स्थित है, जो इसे सिंधु घाटी सभ्यता के युग के स्थलों में से एक बनाता है। धोलावीरा विशिष्ट स्थल है क्योंकि यह तीन भागों में विभाजित है, सिंधु घाटी सभ्यता के अन्य स्थलों के विपरीत जो दो भागों में विभाजित हैं। धोलावीरा में जलाशयों और कृत्रिम जल प्रबंधन प्रणालियों की उपस्थिति उस समय के दौरान इस शहर में जल प्रबंधन के उन्नत स्तर का संकेत देती है।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन-संभावित अनुमान
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन में योगदान देने वाले कारकों के विषय में विद्वानों के मध्य विभिन्न मतभेद हैं। हालाँकि, ऐसा कोई एक सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है जिसे उपलब्ध साक्ष्यों की अनुमानित प्रकृति के कारण समान रूप से स्वीकार किया जा सके।
गॉर्डन चाइल्ड, मोर्टिमर व्हीलर और सर पिगॉट जैसे प्रतिष्ठित विद्वानों ने एकमत से सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण आर्यों के आक्रमण को दिया था। फिर भी, ताजा अध्ययनों ने इस सिद्धांत को सिरे से ख़ारिज कर दिया है, यह सिद्ध करते हुए कि आर्य कोई बहरी आक्रमणकारी नहीं थे, बल्कि वह भारत के मूल निवासी थे। इस प्रकार, आर्य आक्रमण सिद्धांत को सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के लिए एक सर्वमान्य स्पष्टीकरण नहीं माना जा सकता है।
इसके अलावा, विभिन्न विद्वान जलवायु परिवर्तन, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक आपदाएं, पारिस्थितिक असंतुलन, प्रशासनिक अस्थिरता और सभ्यता के पतन के संभावित कारणों जैसे कारकों की ओर इशारा करते हैं।
उपलब्ध साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि सिंधु घाटी सभ्यता अत्यधिक उन्नत शहरी सभ्यता थी। फिर भी, यह निश्चित रूप से समझाना कि इस सभ्यता का पतन कैसे हुआ, एक चुनौती बनी हुई है। इसके अतिरिक्त, सिंधु घाटी सभ्यता की चित्रात्मक लिपि भी आजतक अपठनीय बनी हुई है। जब तक यह लिपि पढ़ी नहीं जाती, तब तक इन उलझे सवालों के स्पष्ट उत्तर देना एक अतिश्योक्ति अथवा अनुमान ही रहेगा।
FAQ-सिंधु सभ्यता के सामाजिक जीवन से संबंधित परीक्षोपयोगी महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न: सिंधु सभ्यता क्या थी?
Ans: सिंधु सभ्यता, जिसे हड़प्पा सभ्यता के रूप में भी जाना जाता है, एक कांस्य युग की सभ्यता थी जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में लगभग 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व तक पनपी थी।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता कहाँ स्थित थी?
Ans: सिंधु सभ्यता सिंधु नदी घाटी में स्थित थी, जो अब आधुनिक पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत का हिस्सा है।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता के प्रमुख नगर कौन से थे?
Ans: सिंधु सभ्यता के प्रमुख शहर हड़प्पा, मोहनजो-दारो और लोथल थे।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता की सामाजिक संरचना क्या थी?
Ans: माना जाता है कि सिंधु सभ्यता की सामाजिक संरचना अपेक्षाकृत समतावादी थी, जिसमें धन या व्यवसाय के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव का सबूत नहीं था।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता में लोगों के मुख्य व्यवसाय क्या थे?
Ans: सिंधु सभ्यता में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि, व्यापार और शिल्प जैसे मिट्टी के बर्तन बनाना, धातु का काम करना और मनका बनाना था।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता में महिलाओं की क्या भूमिका थी?
Ans: सिंधु सभ्यता में महिलाओं की भूमिका अपेक्षाकृत समान मानी जाती है, विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी और कला और मूर्तिकला में उनके चित्रण के प्रमाण के साथ।
प्रश्न: क्या सिंधु सभ्यता में लेखन की कोई प्रणाली थी?
Ans: हाँ, सिंधु सभ्यता में लेखन की एक प्रणाली थी जिसे सिंधु लिपि के रूप में जाना जाता था, लेकिन इसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है, और इसका सटीक उद्देश्य और सामग्री एक रहस्य बनी हुई है।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता में लोगों का धर्म क्या था?
Ans: सिन्धु सभ्यता में लोगों का धर्म स्पष्ट ग्रंथों की कमी के कारण अच्छी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह देवी-देवताओं की पूजा के साक्ष्य के साथ बहुदेववादी रहा है।
प्रश्न: क्या सिंधु सभ्यता की कोई राजनीतिक व्यवस्था थी?
Ans: सिंधु सभ्यता की राजनीतिक प्रणाली की सटीक प्रकृति ज्ञात नहीं है, लेकिन यह माना जाता है कि यह शहर-राज्यों या क्षेत्रीय केंद्रों के आसपास केंद्रीकृत प्राधिकरण के कुछ रूपों के साथ आयोजित किया गया है।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता की अंत्येष्टि प्रथाएं क्या थीं?
Ans: सिंधु सभ्यता की दफन प्रथाएं अलग-अलग थीं, दफनाने और श्मशान दोनों के साक्ष्य के साथ। कुछ अंत्येष्टि कब्र के सामान के साथ थे, जो बाद के जीवन में विश्वास का सुझाव देते हैं।
प्रश्न: क्या सिंधु सभ्यता के लोग अन्य सभ्यताओं के साथ व्यापार करते थे?
Ans: हां, सिंधु सभ्यता के लोगों का अन्य सभ्यताओं के साथ एक व्यापक व्यापार नेटवर्क था, जैसा कि दूर के क्षेत्रों से मुहरों, मोतियों और मिट्टी के बर्तनों जैसी कलाकृतियों की खोज से पता चलता है।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता की कला और वास्तुकला कैसी थी?
Ans: सिंधु सभ्यता की कला और वास्तुकला को उनके परिष्कृत शिल्प कौशल की विशेषता थी, जिसमें जटिल मिट्टी के बर्तनों, मूर्तियों, मुहरों और मोहनजो-दड़ो में ग्रेट बाथ जैसी स्मारकीय संरचनाओं के प्रमाण थे।
प्रश्न: क्या सिंधु सभ्यता के लोग धातुओं का उपयोग करते थे?
Ans: हाँ, सिंधु सभ्यता के लोग कुशल धातुकर्मी थे, जिनके पास ताँबे और काँसे के औजार, हथियार और आभूषण के प्रमाण थे।
प्रश्न: क्या सिंधु सभ्यता में सामाजिक असमानता के प्रमाण थे?
Ans: सिंधु सभ्यता में सामाजिक असमानता के सीमित प्रमाण हैं, जैसे घरों के आकार और लेआउट में भिन्नता, जनसंख्या के बीच कुछ हद तक धन या स्थिति के अंतर का सुझाव देते हैं।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता में परिवार की संरचना कैसी थी?
Ans: सिंधु सभ्यता में पारिवारिक संरचना को मातृसत्तात्मक माना जाता है, जिसमें विस्तारित परिवार बहु-कमरे वाले घरों में रहते हैं और संयुक्त परिवारों के साक्ष्य हैं।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता में कौन सी फसलें उगाई जाती थीं?
Ans: सिंधु सभ्यता को गेहूं, जौ, मटर, तिल और कपास सहित विभिन्न फसलों की खेती के लिए जाना जाता था।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता व्यापार में कैसे संलग्न हुई?
Ans: सिंधु सभ्यता का एक परिष्कृत व्यापार नेटवर्क था जो मेसोपोटामिया और फारस की खाड़ी जैसे क्षेत्रों तक फैला हुआ था। वे मोतियों, धातुओं, मिट्टी के बर्तनों और वस्त्रों जैसे सामानों का व्यापार करते थे।
प्रश्न: सिंधु सभ्यता में शिल्प और उद्योग की क्या भूमिका थी?
A: सिंधु सभ्यता की अर्थव्यवस्था में शिल्प और उद्योग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुरातात्विक साक्ष्य कुशल कारीगरों के अस्तित्व का सुझाव देते हैं जो मिट्टी के बर्तनों, धातु के काम और वस्त्रों जैसे सामान का उत्पादन करते थे।
प्रश्न: क्या सिंधु सभ्यता में मौद्रिक व्यवस्था थी?
Ans: सिंधु सभ्यता में एक मौद्रिक प्रणाली के सीमित प्रमाण हैं। हालाँकि, वस्तु विनिमय और वस्तुओं के आदान-प्रदान के माध्यम से व्यापार होने की संभावना थी।
प्रश्न: क्या सिंधु सभ्यता कराधान का अभ्यास करती थी या एक केंद्रीकृत आर्थिक व्यवस्था थी?
Ans: सिंधु सभ्यता ने एक केंद्रीकृत आर्थिक प्रणाली या कराधान के स्पष्ट प्रमाण नहीं छोड़े। ऐसा माना जाता है कि उनकी अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार और स्थानीय विनिमय के संयोजन पर आधारित थी।
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