सिन्धु घाटी सभ्यता - 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर व्यवस्था | Sindhu Ghaati Sabhyta Ki Nagar Vyavastha

संपूर्ण विश्व में सिंधु सभ्यता जैसी नगर योजना अन्य किसी समकालीन सभ्यता में नहीं पाई गई है। सिंधु सभ्यता के नगर पूर्व नियोजित योजना से बसाये गए थे। सिंधु सभ्यता की  नगर  योजना को देखकर विद्वानों को भी आश्चर्य होता है कि आज भी हम उस सभ्यता का तुलनात्मक अध्ययन करें तो हम अपने आपको आज भी पिछड़ा हुआ ही पाते हैं।

सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर व्यवस्था | Sindhu Ghaati Sabhyta Ki Nagar Vyavasthaसिन्धु घाटी सभ्यता की नगर व्यवस्था

नगरीय सभ्यता के जो प्रतीक होते हैं, और नगर की विशेषताएं होती हैं जैसे– आबादी का घनत्व, आर्थिक एवं सामाजिक प्रक्रियाओं में घनिष्ठ समन्वय, तकनीकी-आर्थिक विकास, व्यापार और वाणिज्य के विस्तार एवं प्रोन्नति के लिए सुनियोजित योजनाएँ तथा दस्तकारों और शिल्पकारों के लिए काम के समुचित अवसर प्रदान करना आदि।

हड़प्पा कालीन नगर योजना को इस प्रकार से विकसित किया गया था कि वह अपने नागरिकों के इन व्यवसायिक, सामाजिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम थी। हड़प्पा सभ्यता का नगरीकरण इसकी विकसित अवस्था से जुड़ा है अनेक विद्वानों ने हड़प्पा कालीन नगरीकरण को ‘नगरीय क्रांति’ की संज्ञा दी है, जिसका किसी शक्तिशाली केंद्रीय सत्ता, विशिष्ट आर्थिक संगठन एवं सामाजिक-सांस्कृतिक एकता के बिना विकास नहीं हो सकता था।

हम वर्तमान नगरीकरण के संदर्भ में सिंधु सभ्यता की नगरीय विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके वर्तमान के लिए विकास का मार्ग तैयार कर सकते हैं। जब हम देखते हैं कि आज भी भारत के बड़े-बड़े नगरों में बरसात के दिनों में जलभराव के कारण संकट उत्पन्न हो जाता है तब हमें धौलावीरा जैसे हड़प्पायी नगरों की याद आती है जहां वर्षा के पानी को एकत्र करने के विशिष्ट इंतजाम किए गए थे और हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो जैसे नगरों में जल को शहर से बाहर निकालने के लिए सुनियोजित नालों को तैयार किया गया था। आइए देखते हैं उस समय की नगरीय व्यवस्था किस प्रकार की थी–

सिंधु सभ्यता की नगरीय व्यवस्था

सिंधु सभ्यता के बड़े नगरों एवं कस्बों की आधारभूत संरचना एक व्यवस्थित नगर योजना को दर्शाती है। सड़कें और गलियां एक योजना के तहत निर्मित की गई थीं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं तथा उनको समकोण पर काटती सड़कें और गलियां मुख्य मार्ग को विभाजित करती हैं

 सिंधु सभ्यता के नगर सुविचार इत एवं पूर्व नियोजित योजना से तैयार किए गए थे। गलियों में दिशा सूचक यंत्र भी लगे हुए थे जो मुख्य मार्गो तथा मुख्य मार्ग  से जाने वाली छोटी गलियों को दिशा सूचित करते थे।

 सड़कें और गलियां  9 से लेकर  34 फुट चौड़ी थीं और कहीं-कहीं पर आधे मील तक सीधी चली जाती थी। ये मार्ग समकोण पर एक-दूसरे को काटते थे जिससे नगर वर्गाकार या आयताकार खंडों में विभाजित हो जाते थे। इन वर्गाकार या आयताकार खंडों का भीतरी भाग मकानों से भरी गलियों से विभाजित था।

 मोहनजोदड़ो की हर गली में सार्वजनिक कुआं होता था और अधिकांश मकानों में निजी कुऍं और स्नानघर होते थे। सुमेर की भांति सिंधु सभ्यता के नगरों में भी भवन कहीं भी सार्वजनिक मार्गों का अतिक्रमण करते दिखाई नहीं पड़ते।

 मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, सुरकोटड़ा जैसे कुछ महत्वपूर्ण नगर दो भागों में विभाजित थे—-

1- ऊंचे टीले पर स्थित प्राचीन युक्त बस्ती जिसे नगर-दुर्ग कहा जाता है। तथा

2- इसके पश्चिम की ओर के आवासीय क्षेत्र को निचला नगर कहा जाता है। 

   हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा और सुरकोटड़ा में नगर-दुर्ग का क्षेत्रफल निचले नगर से कम था और वह हमेशा इसके पश्चिम में स्थित होता है।

मोहनजोदड़ो के नगर-दुर्ग में पाए गई भव्य इमारतें जैसे– विशाल स्नानागार, प्रार्थना-भवन, अन्नागार एवं सभा-भवन पकाई गई ईंटों से बनाए गए थे।

हड़प्पा को सिंधु सभ्यता की दूसरी राजधानी माना जाता है। यहां के नगर-दुर्ग के उत्तर में कामगारों (दस्तकारों) के आवास, उनके कार्यस्थल (चबूतरे) और एक अन्नागार था। यह पूरा परिसर यह दिखाता है कि यहां के कामगार बड़े अनुशासित थे।

राजस्थान में विलुप्त सरस्वती (घग्गर) नदी के बाएं तट पर स्थित कालीबंगा की नगर योजना वैसी ही थी जैसी कि मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की थी अर्थात पश्चिम दिशा में नगर-दुर्ग एवं पूर्व दिशा में निचला नगर। अर्थात नगर-दुर्ग के दो समान एवं सुनिर्धारित भाग थे—

 प्रथम भाग- दक्षिणी भाग में कच्ची ईंटों के बने विशाल मंच या चबूतरे थे जिन्हें विशेष अवसरों के लिए बनाया गया था।

द्वितीय भाग- उत्तरी भाग में आवासीय मकान थे।

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