अकबर के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक सुधार | Akbar’s Social, Religious and Political Reforms

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अकबर मुग़ल वंश का तीसरा सम्राट था जिसने 1553 से 1605 तक शासन किया। अकबर को मुग़ल सम्राटों में सबसे महान माना जाता है। अकबर ने भारत में अनेक सामाजिक सुधारों को अंजाम दिया। उसने हिन्दू मुस्लिम एकता और धार्मिक सौहार्द स्थापित करने का सफल प्रयास किया। अकबर ने ऐसे अनेक सुधार किये जिनका सीधा प्रभाव जनता पर पड़ा यद्यपि इनमें से बहुत से सुधार असफल ही सिद्ध हुए। आइये जानते हैं अकबर ने अपने शासनकाल के दौरान कौन-कौन से सुधार किये।

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अकबर के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक सुधार-अकबर मुग़ल वंश का तीसरा सम्राट था जिसने 1553 से 1605 तक शासन किया। अकबर को मुग़ल सम्राटों में सबसे महान माना जाता है। अकबर ने भारत में अनेक सामाजिक सुधारों को अंजाम दिया।

अकबर के सुधार

1- तीर्थयात्रा कर की समाप्ति- अकबर ने हिन्दुओं का समर्थन प्राप्त करने के लिए उन पर लगाने वाले तीर्थयात्रा कर को 1563 ईस्वी में समाप्त कर दिया। मुसलमानों ने अबार के इस निर्णय का विरोध किया और तर्क दिया कि इससे राजकोष में भारी कमी आएगी। दूसरा तर्क यह दिया कि चूँकि हिन्दू इसे बहुत पुराने समय से अदा करते चले आ रहे हैं और यह कोई भेदभाव वाला कार्य नहीं है।

“पुराण कर कोई कर नहीं है’ जैसी कहावत को तर्क के रूप में पेश किया गया। पुनः यह लोगों के “भ्रमपूर्ण विचारों” पर कर है। लेकिन अकबर हर विरोध और तर्क को अनदेखा किया और हिन्दुओं की सद्भावना प्राप्त करने के लिए 1 करोड़ रूपये वाले वार्षिक कर की चिंता नहीं की।

2- जजिया कर की सम्पति- अकबर ने दूसरा निर्णय जो सीधे हिन्दुओं से जुड़ा था वह था जजिया कर को समाप्त करना। यह कर गैर मुसलमानों से ही वसूला जाता था। इस कर के कारण हिन्दू मुस्लिम शासकों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। अकबर के इस कार्य से हिन्दुओं के मन में अकबर के लिए सम्मान की भावना पनपी।

3- सती प्रथा को समाप्त करने का प्रयास – अकबर ने हिन्दुओं विशेषकर राजपूतों में प्रचलि सती प्रथा को समाप्त करने का प्रयत्न किया। इस प्रथा में मृतक पीटीआई के साथ उसकी पत्नी को जिन्दा उसी चिता में जला दिया जाता था। अकबर ने विशेष निरीक्षक नियुक्त किये जो यह देखते थे कि महिला को उसकी मर्जी से सती किया जा रहा है या जबरदस्ती। किसी भी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं जलाया जा सकता था। यद्यपि हिन्दुओं ने इस निर्णय को अपने धर्म के विरुद्ध समझा।

4- दास प्रथा का अंत- अकबर ने पराजित देशों की स्त्रियों और बच्चों को दास बनाने की प्रथा का अंत कर दिया। भारत में प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र था।

5- बाल-विवाह और शिशु हत्या का अंत – भारत में उस समय प्रचलित सबसे घ्रणित प्रथाओं में से एक प्रथा बाल विवाह और जन्मते ही कन्या शिशु की हत्या करना था। अकबर ने लड़की के लिए विवाह की आयु 14 वर्ष और लड़के के लिए 16 वर्ष कर दी। वर-वधु को विवाह के लिए अनुमति लेनी पड़ती थी। एक अन्य निर्णय के अनुसार कोई भी सरदार अपने पुत्र या पुत्री की शादी बिना वैध आयु घोषित किये नहीं कर सकता था। ‘तुरबेग’ नामक दो कर्मचारी प्रत्येक नगर में नियुक्त किये गए जो वर-वधु के विषय में जाँच करते थे।

अकबर ने वर पक्ष हुए वधु पक्ष से उनकी हैसियत के अनुसार कर लिया। दहेज के प्रचलन को अकबर ने हतोत्साहित किया। उसने बहु विवाह की आलोचना की, परन्तु स्वयं उसके हरम में 100 से ज्यादा रानियां थीं। उसने स्वकृति से किये जाने वाले अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहित किया। यदि किसी हिन्दू को उसके बाल्यकाल में उसको मुसलमान बनाया गया तो उसे वयस्क होने पर पुनः हिन्दू बनने की स्वतंत्रता थी।

6- घोड़ों पर दाग लगाने की प्रथा- घोड़ों पर दाग या मुहर लगाने के लिए कुछ नियम निर्धारित किये गये। शाही अस्तबल के घोड़ों पर शाही मुहर और संख्या दर्ज की जाती थी। एक तरह से यह परिपाटी अलाउद्दीन द्वारा चलाई गई ‘चेहरा और दाग’ का ही पुनः प्रचलन था। विभिन्न राजकीय अस्तबलों में मौजूद घोड़ों की संख्या के साथ कीमत दर्ज होती थी। उत्तम किस्म के घोड़ों पर विशेष चिन्ह दर्ज किया जाता था। इस व्यवस्था से सरदारों को झूठे खाते बनाने में मुश्किल हुई।

7- जागीरदारी प्रथा का अंत- अकबर ने जागीरदारी प्रथा का नट कर दिया और सभी जागीरें शाही जमीन घोषित कर दी गईं। अब इन जमीनों का कर सीधे राजकीय कोषागार में जमा हुआ और इसी से कर्मचारियों को वेतन दिया गया।

8- मीर-अर्ज की नियुक्ति- जनता को सीधे सम्राट से मिलने और उनकी प्राथनाओं को सम्राट तक पहुँचाने के लिए मेरे-अर्ज नामक अधिकारी नियुक्त किया गया।

9- कठिन परीक्षाओं से मुकदमों का फैसला करना बंद कर दिया गया।

10- न्यायलय के लेखा रिकॉर्ड बनवाना- अकबर ने एक लेख-प्रमाण कार्यलय स्थापित किया जो न्यायलय की समस्त कार्यवाही को लेखबद्ध करता था और उसका रिकॉर्ड रखता था।

11- शाहो टकसालों में परिवर्तन- अकबर ने शाही टकसाल व्यवस्था में कई परिवर्तन किये। मुद्रा अधिकारी के रूप में अब्दुल समद की नियुक्ति की गई। प्रांतीय मुद्रा अधिकारीयों की नियुक्ति- लाहौर, गुजरात, बंगाल और जौनपुर के लिए की गई। मुद्रा निर्माण में शुद्ध सोने का प्रयोग किया जाता था। सिक्कों का वजन प्रामाणिक होता था।

इतिहासकार स्मिथ ने अकबर के इस कार्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है ‘अकबर इस कार्य के लिए महान प्रशंसा का पात्र है। उसके नियंत्रित मुद्रा प्रचलन, धातु की शुद्धता, प्रामाणिक भार और कलात्मक उत्पादन वास्तव में उसे प्रशंसा का पात्र बनाते हैं। अगर अकबर के काल की मुद्राओं की तुलना महारानी एलिज़ाबेथ तथा उस समय के यूरोपीय राजाओं की मुद्रा से की जाये थो अकबर की मुद्रा श्रेष्ठ थी। अकबर और उसके उत्तराधिकारियों ने मुद्रा के वजन और शुद्धता से कभी समझौता नहीं किया’।

निष्कर्ष

अकबर मध्यकाल का वह सम्राट था जिसने विजय और मित्रता को एक साथ चलाया और सामाजिक सुधारों के लिए प्रयत्नशील रहा। अकबर को महान कहना अतिश्योक्ति नहीं कहा जा सकता। उसने वास्तव में अपने कार्यों से यह मुकाम हासिल किया है कि वह एक निरंकुश शासक होते हुए भी इतिहास में प्रशांसा हक़दार है।

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