सल्तनत कालीन प्रशासन: केंद्रीय, प्रांतीय, सैन्य व्यवस्था, सुल्तान और ख़लीफ़ा, उलेमा और अमीर, न्याय व्यवस्था

भारत में मुसलमानों के आगमन का प्रभाव समाज, संस्कृति, शासन, और प्रशासन पर पड़ा। प्रथम मुस्लिम शासन गुलाम वंश द्वारा प्रारम्भ किया गया और 1526 तक के मुस्लिम शासन को सल्तनत काल कहा जाता है। इस काल में 5 अलग-अलग वंशों ने शासन किया और एक अलग प्रशासनिक व्यवस्था अपनाई। इनमें एक बात समान थी कि यह वयवस्था इस्लाम के सिद्धांतों पर आधारित थी। इस लेख में हम विस्तृत रूप में ‘सल्तनत कालीन प्रशासन’ के विषय का अध्ययन करेंगें।

सल्तनत कालीन प्रशासन: केंद्रीय, प्रांतीय, सैन्य व्यवस्था, सुल्तान और ख़लीफ़ा, उलेमा और अमीर, न्याय व्यवस्था

सल्तनत कालीन प्रशासन


राज्य की प्रकृति और स्वरूप-

मुस्लिम राज्य सैधान्तिक रूप से एक धर्माधारित या धर्मप्रधान राज्य था। राज्य का सर्वोच्च प्रमुख सुल्तान होता था। ऐसा माना जाता था कि इसे उसके पद और अधिकार ईश्वर ने दिए हैं।

इस्लाम में एक राज्य इस्लामी राज्य, एक ग्रन्थ कुरान, एक धर्म इस्लाम तथा एक जाति मुसलमान की अवधारणा है। मुसलमानों का विश्वास है कि ‘कुरान’ में अल्लाह की जो शिक्षाएं और आदेश संचित है उनमें सभी कालों व सभी देशों के लिए उपयुक्त निर्देश है। इसलिए इस्लामी शासन का संगठन उन्हीं के आधार पर किया गया है।

कुरान के अनुसार सारी दुनिया का वास्तविक मालिक और बादशाह अल्लाह है। अल्लाह की आज्ञा का पालन सभी का पवित्र कर्त्तव्य है। उलेमाओं (इस्लामी ग्रन्थों के व्याख्याकार) के विभिन्न परिस्थितियों और देश में उपस्थित समस्याओं के समाधान के लिए कुरान व हदीश के आधार पर व्यवस्थाएं दी जो शरीयत कहलाया।

वास्तव में इस्लामी कानून शरीयत, कुरान और हदीश पर अधारित है। इस्लाम धर्म के अनुसार शरीयत प्रमुख है। खलीफा तथा शासक उसके अधीन होते हैं। शरीयत के अनुसार कार्य करना उनका प्रमुख कर्त्तव्य होता है। इस दृष्टि से खलीफा और सुल्तान धर्म के प्रधान नहीं बल्कि शरीयत के कानून के अधीन राजनीतिक प्रधान मात्र थे। इनका कर्त्तव्य धर्म के कानून के अनुसार शासन करना था।

दिल्ली सल्तनत को इसके तुर्क अफगान शासकों ने एक इस्लामी राज्य घोषित किया था। वे अपने साथ ऐसे राजनैतिक सिद्धान्त लाए थे जिसमें राज्य के राजनैतिक प्रमुख और धार्मिक प्रमुख में कोई भेद नहीं समझा जाता था।

इस्लाम का राजनैतिक सिद्धान्त तीन प्रमुख आधारों पर स्थापित था –

(1) एक धर्म ग्रन्थ
(2) एक सम्प्रभु
(3) एक राष्ट्र।

एक धर्म ग्रन्थ कुरान था । सम्प्रभु इमाम, नेता तथा खलीफा था और राष्ट्र मिल्लत (मुस्लिम भाईचारा ) था। मुस्लिम राजनैतिक सिद्धान्त की • विशेषता इन तीनों तत्वों की अविभाज्यता थी।

दिल्ली सुल्तानों की नीति पर धर्म का प्रभाव रहा और कम या अधिक मात्रा में इस्लाम धर्म के कानूनों का पालन करना उनका कर्त्तव्य रहा । यद्यपि जब एक बार इल्तुतमिश ने अपने वजीर मुहम्मद जुनैदी से इस्लामिक कानूनों को पूरी तरह से लागू करने को कहा तब उसने उत्तर दिया कि भारत में मुस्लिम समुद्र में बूँद के समान है अतः यहाँ इस्लामिक कानूनों को पूरी लागू करना तथा दारुल हरब (काफिर देश) को दारूल इस्लाम (इस्लामी देश तरह से लागू नहीं किया जा सकता। सुल्तान का आदर्श लोगों को इस्लाम धर्म में में परिवर्तित करना था ।

खलीफा-


खलीफा मुस्लिम जगत का प्रधान होता था। मुहम्मद के बाद प्रारम्भ में चार खलीफा हुए-अबूबक्र, उमर, उस्मानअली। प्रारम्भ में खलीफा का चुनाव होता था किन्तु आगे चलकर खलीफा का पद वंशानुगत हो गया। 661 ई० में उमैय्या वंश खलीफा के पद पर प्रतिष्ठित हुआ। उसका केन्द्र दश्मिक (समिरिया) था।

750 ई० में अब्बासी खलीफा स्थापित हुआ। इसका केन्द्र बगदाद था। 1253 ई० में चंगेज खाँ का पोता हलाकू खाँ ने बगदाद के खलीफा की हत्या कर दी। इस घटना के बाद खलीफा की सत्ता का केन्द्र मिस्र हो गया। अब खलीफा के पद के कई दावेदार हो गये थे, यथा- स्पेन का उम्मैया वंश, मिश्र का फतिमी वंश और बगदाद का अब्बासी वंश प्रारम्भ में एक ही इस्लाम राज्य था।

कालान्तर में जब खलीफा की राजनैतिक सत्ता कमजोर पड़ी तो कुछ क्षेत्रों में ” खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में स्वतंत्र शासकों ने सत्ता ग्रहण की व्यवहारिक रूप से ये शासक पूर्णतः स्वतंत्र थे और सार्वभौम सत्ता का उपयोग करते थे किन्तु सैद्धान्तिक रूप से उन्हें खलीफा का प्रतिनिधि माना जाता था। उन्हें खलीफा द्वारा मान्यता प्रदान की जाती थी। ऐसे शासक ‘सुल्तान’ कहे जाते थे। धीरे-धीरे इनका पद वंशानुगत होता गया और इस तरह राजतंत्र का विकास हुआ।

सुल्तान-


सुल्तान शब्द शक्ति अथवा सत्ता का द्योतक है। कभी-कभी खलीफा के प्रान्तीय राज्यपालों के लिए भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता था। जब खिलाफत का विघटन शुरू हुआ तो विभिन्न प्रदेशों के स्वतंत्र मुसलमान शासकों ने सुल्तान की उपाधि धारण कर ली।

भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नींव शासकों द्वारा सुल्तान की उपाधि धारण करने के साथ प्रारम्भ हुयी दिल्ली के सुल्तानों ने सुल्तान की उपाधि महमूद गजनवी से ग्रहण किया था। महमूद गजनवी पहला स्वतंत्र शासक था जिसने अपने आपको सुल्तान की उपाधि से विभूषित किया। उसने यह उपाधि समारिदों की प्रभुसत्ता से स्वतंत्र होने के उपरान्त धारण की थी।

सुल्तान पूर्णरूप से निरंकुश शासक था सल्तनत की प्रशासनिक संरचना में वह सर्वाधिक प्रतिष्ठित स्थिति में था। वह एक सैनिक निरंकुश शासक था। राज्य की समस्त शक्तियों, कार्यपालिका, विधायी न्यायिक अथवा सैन्य उसके हाथों में केन्द्रित थी। वह एक धुरी था जिसके चारों ओर सल्तनत की समस्त प्रशासनिक संरचना घूमती थी हिन्दू विचारधारा के अनुसार भी राजा मानव रूप में ईश्वर होता है।

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दुनिया में इस्लाम का उदय और विकास हिंदी में

इस्लाम एक अब्राहमिक-एकेश्वरवादी धर्म है जो पैगंबर मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला (570-632 ईस्वी) की शिक्षाओं पर आधारित है, जिसके नाम के बाद मुसलमान परंपरागत रूप से “शांति उस पर हो” या लिखित रूप में, पीबीयूएच) जोड़ते हैं। दुनिया में इस्लाम का उदय और विकास in Hindi ईसाई धर्म और यहूदी धर्म के साथ, यह इब्राहीम की … Read more

मुहम्मद गोरी-भारत में मुस्लिम शासन की नींव रखने वाला आक्रमणकारी

शिहाब अल-दीन (मुइज़्ज़ अल-दीन मुहम्मद इब्न सैम), जिसे मुहम्मद गोरी ( 1173-1206 ईस्वी ) के नाम से जाना जाता है, वह मुस्लिम शासक था जिसने भारत के बाद के इस्लामी शासक राजवंशों की नींव रखी जिसने बाद में इसका शिखर देखा।
मुगल साम्राज्य में (1526-1857 ई.) उन्होंने अपने बड़े भाई गियाथ अल-दीन मुहम्मद ( 1139-1202 ईस्वी ) के साथ आधुनिक अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, ईरान, बांग्लादेश, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान के कुछ हिस्सों पर शासन किया, जिसे व्यापक रूप से घुरिद या गोरी साम्राज्य  के नाम जाना जाता था।
मुहम्मद गोरी-भारत में मुस्लिम शासन की नींव रखने वाला आक्रमणकारी

मुहम्मद गोरी-

मुहम्मद गोरी का संबंध किस देश था

मुहम्मद गोरी फ़ारसी मूल के थे, हालाँकि, उनकी सटीक जातीयता पर अभी भी बहस चल रही है। वह निस्संदेह इस्लामी और भारतीय इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक है। यद्यपि वह कई लड़ाइयों में पराजित हुआ था, विशेष रूप से चाहमान शासक पृथ्वीराज III ( 1178-1192 ईस्वी) द्वारा 1191 ईस्वी में तराइन की पहली लड़ाई में, गुजरात के  चालुक्य शासक मुलराज द्वितीय द्वारा ईस्वी सन1178 ईस्वी और ख्वारज़म साम्राज्य के शासकों द्वारा, उन्होंने कभी भी अपनी विजय नहीं छोड़ी और एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।

हालांकि, 1206 ई. में उनकी हत्या से पहले वह अपने साम्राज्य को मजबूत नहीं कर सका था। उसका मुख्य उद्देश्य और अधिक प्रांतों पर कब्जा करना था, और एक चतुर सेनापति के रूप में, उन्होंने अपने धर्म का इस्तेमाल जब भी आवश्यक हो, अपनी सेना को प्रेरित करने के लिए किया। ( जैसा कि पानीपत की प्रथम लड़ाई में हारने के बाद किया )

उन्होंने इस्लाम के सुन्नी विश्वास का पालन किया और यह वही था जिन्होंने वास्तव में भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामी वर्चस्व स्थापित किया था। एक बहुत ही सक्षम प्रशासक होने के नाते, लेकिन एक संतान के बिना, मुहम्मद समझ गए थे कि न केवल उन्हें अपने क्षेत्र में सक्षम दरबारियों की आवश्यकता थी, उन्हें अपने कुछ करीबी सहयोगियों की भी आवश्यकता होगी ताकि वे सफल हो सकें और उनके जाने के बाद अपने साम्राज्य पर नियंत्रण कर सकें।

इस्लामी शासकों के बीच यह भी एक प्रथा थी कि वे अपने दासों का पालन-पोषण करते थे जो आगे चलकर सुल्तानों के सबसे करीबी विश्वासपात्र बन जाते थे। उसी तरह, मुहम्मद गोरी ने अपने कुछ सबसे प्रतिभाशाली दासों को चुना और उन्हें आम तौर पर राजकुमारों को दिए जाने वाले विशेष प्रशिक्षण के साथ लाया।
उनकी मृत्यु के बाद, उनके पसंदीदा और सबसे भरोसेमंद गुलाम कुतुब अल-दीन ऐबक ने समृद्ध भारतीय मैदानों के सबसे पोषित क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया और दिल्ली सल्तनत (1206-1526 सीई) के पहले सम्राट बने। ताजुद्दीन यल्दौज गजनी का शासक बना, नसीरुद्दीन कबाचा मुल्तान के आसपास के क्षेत्र का शासक और मुहम्मद बख्तियार खिलजी बंगाल क्षेत्र का पहला इस्लामी शासक बना।

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