चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास
Contents
- 1 चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास
- 2 तक्षशिला | तक्षशिला विश्वविद्यालय किस शासक द्वारा स्थापित किया गया
- 3 The U.S. Capitol Attack-On January 6, 2021
- 4 सावित्री बाई फुले | भारत की प्रथम महिला शिक्षिका
- 5 पूना पैक्ट गाँधी और सवर्णों की साजिश ?
- 6 फ्रांसीसी क्रांति – 1789 के प्रमुख कारण और परिणाम
- 7 भारत सरकार ने विदेशों से धन प्राप्त करने पर मदर टेरेसा चैरिटी पर क्यों लगाया गया प्रतिबंध
- 8 चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास
- 9 मगध का इतिहास
- 10 बुद्ध कालीन भारत के गणराज्य
- 11 भारत की प्रथम मुस्लिम महिला शासिका | रजिया सुल्तान 1236-1240
- 12 सरकारिया आयोग का गठन कब और क्यों किया गया था।
- 13 मोतीलाल नेहरू के पूर्वज कौन थे | नेहरू शब्द का अर्थ और इतिहास
चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास
दक्षिण भारतीय राजनीति में चालुक्य शासकों का अपना एक विशेष महत्व है। इस वंश का सबसे प्रतापी शासक पुलकेशिन द्वितीय था। इस ब्लॉग में हम ‘चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां तथा इतिहास’ के बारे में जानेंगे।
बादामी या वातापी के चालुक्य वंश का प्रारम्भिक इतिहास
दक्षिणापथ पर छठी शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी तक शासन करने वाले चालुक्य वंश का इतिहास बहुत ही गौरवशाली रहा है। उनका उत्कर्ष जिस स्थान से हुआ ( बादामी या वातापी ) उसी नाम से उन्हें पुकारा गया यानि बादामी या वातापी चालुक्य। यह स्थल वर्तमान में कर्नाटक राज्य के बीजापुर जिले में स्थित बादामी ( वातापी ) है। हर्षवर्धन और दक्षिण के पल्ल्वों के विरोध के बावजूद चालुक्यों ने दो शताब्दी तक अपना शासन चलाया।
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बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक
बादामी के चालुक्य वंश का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था। पुलकेशिन प्रथम ने वातापी में एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण कराया और उसे अपनी राजधानी बनाया। ऐहोल अभिलेख में उसकी विजयों और अश्वमेध यज्ञ करने का वर्णन है। पुलकेशिन प्रथम ने सत्याश्रय तथा रणविक्रम जैसी उपाधियाँ धारण की।पिल्केशीं प्रथम का विवाह बटपुर परिवार की कन्या दुर्लभदेवी से हुआ। पुलकेशिन प्रथम ने 535 ईस्वी से 566 ईस्वी तक शासन किया।
पुलकेशिन द्वितीय का इतिहास
पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य शासकों में सबसे शक्तिशाली और महान शासक सिद्ध हुआ। पुलकेशिन द्वितीय ने अपने चाचा ( मंगलेश )की हत्या कर गद्दी प्राप्त की और 609-10 ईस्वी में शासन पर कब्जा कर लिया।
ऐहोल अभिलेख में संदर्भित है कि “जब पुलकेशिन द्वितीय ने मंगलेश (अपने चाचा ) के शासन का अंत किया, तब संसार अरिकुल (शत्रुसमूह ) के अंधकार से ढँक गया।”
इस प्रकार कहा जा सकता है कि पुलकेशिन द्वितीय जब सिंहासन पर बैठा तब राज्य में अराजकता से घिरा था। अनेक सामंतों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी थी।
पुलकेशिन द्वितीय के सामने उस समय दो चुनौतियाँ थीं —
१- राज्य की बहरी आक्रमणों से रक्षा करना।
२- स्वतन्त्रता घोषित कर चुके सामंतों को पुनः नियंत्रण में लाना।
पुलकेशिन द्वितीय की उपलब्धियां –
१- कदम्ब राज्य पर विजय –ऐहोल लेख से ज्ञात होता है कि पुलकेशिन द्वितीय ने सर्वप्रथम कदम्बों पर आक्रमण क्र बनवासी नगर को ध्वस्त किया। बनवासी एक वैभवशाली नगर था जिसकी तुलना इंद्रपुरी से की गयी है। पुलकेशिन ने कदम्बों को हराकर उसे अपने राज्य में शामिल कर लिया। इस क्षेत्र की बागडोर उसने अपने सामंतों- आलूपों तथा सेन्द्रकों के हाथ में सौंप दिया।
२- आलुप तथा गंग पर विजय — ऐहोल लेख में वर्णित है कि ‘उसने आलुपों तथा गंगों को अपनी आसन्न सेवा का अमृतपान कराया।
- आलुप दक्षिणी कन्नड़ जिले में शासन करते थे। पराजित आलुप शासक ( सामंत ) कुंदवर्मरस’ था।
- गंगों से तात्पर्य पश्चिमी गंगों से है जिनका रज्य ‘गंगवाडि’ नाम से जाना जाता था। गंग नरेश ‘दुर्वीनीत’ ने अधीनता स्वीकार कर अपनी पुत्री का विवाह पुलकेशिन से कर दिया।
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मगध का इतिहास
३- कोंकण प्रदेश की विजय –अपने विजय अभियान के अगले क्रम में पुलकेशिन ने कोंकण प्रदेश पर आक्रमण किया।
“कोंकण में उस समय मौर्यों का अधिपत्य था, वे वे पुलकेशिन ठहर नहीं पाए और उन्होंने आसानी अधीनता स्वीकार कर ली। इसके पश्चात् पुलकेशिन ने कोंकण की राजधानी – पुरी ( धारापुरी ), जिसे ‘ पर नौकाओं द्वारा आक्रमण किया।
” पुरी ( धारापुरी ), जिसे
‘पश्चिमी समुद्र की लक्ष्मी’ कहा गया है।”
पुरी की पहचान बम्बई के समीप एलिफेंटा द्वीप पर स्थित ‘धारापुरी’ से की गयी है। यह एक प्रसिद्ध बंदरगाह था।
४- लाट, मालव तथा गुर्जर प्रदेश — लाट राज्य दक्षिणी गुजरात में स्थित था। इसकी राजधानी नवसारिका ( बड़ौदा स्थित नौसारी ) में थी। यहां भी पुलकेशिन ने विजय प्राप्त की।
गुर्जर सम्भवतः इनका राज्य किम तथा माही नदियों के मध्य था।
मालवा की विजय को इतिहासकार संदिग्ध मानते हैं।
५- हर्षवर्धन से युद्ध
जिस समय दक्षिणापथ में पुलकेशिन द्वितीय अपनी शक्ति का विस्तार कर रहा था, उसी समय उत्तरी भारत में हर्षवर्धन अनेक राजाओं को पराजित कर अपनी अधीनता में ला रहा था। हर्ष के इन विजय अभियानों ने उसके राज्य की सीमा पश्चिम में नर्मदा नदी तक पहुंचा दी। ऐसी स्थति में हर्ष और पुलकेशिन के मध्य युद्ध को अवश्यम्भावी बना दिया।
हर्षवर्धन ( कन्नौज के शासक ) और पुलकेशिन द्वितीय के मध्य नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ जिसमें हर्ष की पराजय हुई।
हुएनसांग ने भी इस युद्ध का वर्णन करते हुए पुलकेशिन की वीरता की प्रशंसा की है —
“राजा शीलादित्य ( हर्ष ) अपने सेनानायकों के साथ स्वयं सेना की अचूक सफलता तथा अपने कौशल पर गर्व करते हुए आत्मविश्वास के साथ स्वयं सेना का नेतृत्व सम्भालते हुए इस राजा से लड़ने के लिए गया। किन्तु वह उसे पराजित अथवा अधीन करने में असफल रहा, यद्यपि उसने पंचभारत से सेना तथा सभी देशों के सर्वश्रेष्ठ सेनानायकों को एकत्रित किया था।”
“ऐहोल अभिलेख रविकीर्ति द्वारा लिखा गया”
हर्ष की पराजय को कुछ विद्वान स्वीकार नहीं करते। कुछ समय के पश्चात् हर्ष ने 643 ईस्वी में कोगोन्द पर आक्रमण कर पुलकेशिन द्वितीय के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर पुराणी पराजय का बदला लिया।
६- त्रिमहाराष्ट्रको पर अधिकार — ऐहोल अभिलेख के अनुसार उसने ‘त्रिमहारष्ट्रको’ पर अधिकार लिया। इसमें ९९००० ग्राम थे। ये ग्राम नर्मदा तथा ताप्ती नदियों के बीच के भूभाग में फैले हुए थे।
७- पूर्वी दकन की विजय — उपरोक्त विजयों के बाद पुलकेशिन द्वितीय ने अपने भाई विष्णुवर्धन को ‘युवराज’ बनाया तथा उसके कन्धों पर अपनी राजधानी की जिम्मेदारी का भार सौंप कर वह पूर्वी दक्खिन की विजय के लिए चल पड़ा।
इस विजय क्रम में सर्वप्रथम कोशल तथा कलिंग ने उसकी अधीनता स्वीकार की। कलिंग पर पांड्यवंश का शासक बालार्जुन शिवगुप्त था। कलिंग पर उस समय गंगवंशी शाखा का शासन था।
इस विजय के बाद पुलकेशिन ने आंध्रप्रदेश में स्थित पिष्टपुर पर आक्रमण किया। यहाँ विष्णुकुंडीन वंश का शासन था। भयंकर युद्ध के बाद पुलकेशिन ने इस राज्य पर अधिकार कर लिया।
इसके बाद पुलकेशिन ने काञ्ची के पल्ल्वों के साथ उसका संघर्ष हुआ।
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चालुक्य-पल्ल्व संघर्ष
आंध्र के दक्षिण में पल्ल्वों का शक्तिशाली राज्य था। इस समय पल्लव वंश का महेन्द्रवर्मन प्रथम ( 600-630ईस्वी ) शासन कर रहा था। महेन्द्रवर्मन और पुलकेशिन द्वितीय के बीच भयंकर युद्ध हुआ। महेन्द्रवर्मन अपनी राजधानी काञ्ची को बचाने में सफल रहा। लेकिन उसके उत्तरी प्रांतों पर पुलकेशिन द्वितीय का अधिकार हो गया।
पल्ल्वों पर विजय प्राप्त कर पुलकेशिन वापस अपनी राजधानी लौट आया। राजधानी आकर उसने अपने भाई विष्णुवर्धन को आंध्र प्रदेश का वायसराय बनाकर शासन करने के लिए भेजा। वहां उसने पूर्वी चालुक्य वंश के शाखा की स्थापना की जिसने आंध्र देश पर 1070 ईस्वी तक शासन किया।
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पल्ल्वों के साथ दूसरा संघर्ष पुलकेशिन द्वितीय ने काञ्ची पर आक्रमण के साथ शुरू हुआ। इस समय पल्ल्व शासक नरसिंह वर्मन 630-668 ( महेन्द्रवर्मन के पुत्र ) का शासन था। नरसिंहवर्मन एक शक्तिशाली शासक था और कई बार उसने पुलकेशिन को हराया। अपनी पराजय के पश्चात् पुलकेशिन राजधानी लौट आया। नरसिंहवर्मन ने अपनी विजय से उत्साहित होकर चालुक्यों की राजधानी वातापी पर आक्रमण किया और इस युद्ध में लड़ते हुए पुलकेशिन द्वितीय मारा गया।
इस प्रकार पुलकेशिन द्वितीय जो एक महान शासक था और उसका अंत दुखद रूप में हुआ। उसने 610-11 से 642 ईस्वी तक शासन किया।