Sen Vansh Kaa Itihas | बंगाल के सेन राजवंश का इतिहास और उपलब्धियां

Sen Vansh Kaa Itihas

भारतीय इतिहास में बंगाल का अत्यंत महत्व रहा है मध्यकाल में बंगाल में पाल वंश के पतन के बाद Sen Vansh-सेन वंश के हाथ में बंगाल की शासन सत्ता आई। सेन शासक शक्तिशाली थे और उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। सेन वंश इतिहास कई उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। सेन शासक साहित्य तथा … Read more

बंगाल का गौड़ साम्राज्य, शंशांक, हर्ष से युद्ध, राज्य विस्तार, शशांक का धर्म और उपलब्धियां

महान गुप्त साम्राज्य (तीसरी-छठी शताब्दी ईस्वी) के राजनीतिक विघटन के परिणामस्वरूप, पूर्वी भारत में 6वीं शताब्दी के अंत में बंगाल का गौड़ साम्राज्य अस्तित्व में आया। इसका मुख्य क्षेत्र कर्णसुवर्ण (आधुनिक मुर्शिदाबाद शहर के पास) में राजधानी के साथ, भारत में बंगाल राज्य और बांग्लादेश देश के उत्तरी भागों में स्थित था। एक संक्षिप्त अवधि … Read more

Establishment of British rule in Bengal-बंगाल में अंग्रेजी शासन की स्थापना | प्लासी, बक्सर का युद्ध

बंगाल भारत का सबसे समृद्ध राज्य था जो अपने समुद्री व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। औपनिवेशिक शासकों ने बंगाल के आर्थिक महत्व को समझा और बंगाल अपने व्यापार की जड़ें जमाई। बंगाल से शुरू हुआ हुआ ये व्यापार का खेल कब सत्ता के खेल में बदल गया भारतीय शासक समझने में विफल रहे। आज इस लेख में हम ‘बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना’ शीर्षक के अंतर्गत प्लासी और बक्सर युद्धों के साथ इलाहबाद की संधि के महत्व और उनकी पृस्ठभूमि को को भी समझेंगे। यह लेख पूर्णतया ऐतिहासिक विवरणों और प्रामाणिक पुस्तकों की सहायता से तैयार किया गया है। कृपया लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
Establishment of British rule in Bengal-बंगाल में अंग्रेजी शासन की स्थापना | प्लासी, बक्सर का युद्ध

         

British rule in Bengal-बंगाल में ब्रिटिश सत्ता की स्थापना

अंग्रेजों की प्रारम्भिक स्थिति और नीतियों को देखकर कह सकते हैं कि बंगाल में अंग्रेजी शक्ति का उदय आकस्मिक और परिस्थितिजन्य घटनाओं के कारण हुआ था। तत्कालीन बंगाल के नवाब (सिराजुद्दौला) और उसकी कमजोरी के कारण बंगाल में अंग्रेजों को पैर जमाने का अवसर प्राप्त हो गया, जिसका उन्होंने भरपूर लाभ उठाया। भारत की गुलामी की दास्तां बंगाल से ही शुरू हुई। इस ब्लॉग के माध्यम से हम बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी के उदय और बंगाल की गुलामी के विषय में जानेंगे।

British rule in Bengal-बंगाल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-

बंगाल में अंग्रेजों के आने से पूर्व की स्थिति को जानना आवश्यक है ताकि औपनिवेशिक शासकों की नीतियों को आसानी से समझा सके।

समकालीन बंगाल में आधुनिक पश्चिमी बंगाल प्रांत, संपूर्ण बांग्लादेश, बिहार और उड़ीसा सम्मिलित थे। बंगाल मुगलकालीन भारत का सबसे संपन्न राज्य था। 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में जहां शेष भारत में हर तरफ पतन, पराजय और दिवालिएपन के बादल मंडरा रहे थे अकेला बंगाल प्रांत ही ऐसा था जहाँ साधन संपन्नता और समृद्धि की झलक दिखाई पड़ती थी और मुगल शासन के लिए यही एकमात्र चांदी की खान रह गया था। सौभाग्य से बंगाल को योग्यतम शासक मिले.


1700 ई० में मुर्शिद कुली खां बंगाल का दीवान नियुक्त हुआ और मृत्युपर्यंत (1727 ईस्वी तक) बंगाल की बागडोर संभाले रहा। इसके बाद उसके दामाद शुजा ने 14 वर्ष तक बंगाल पर शासन किया। इसके पश्चात 1 वर्ष के अल्प समय के लिए शासन मुर्शिद कुली खां के निकम्मे बेटे के हाथ में आ गया लेकिन शीघ्र ही अलीवर्दी खाँ ने उसका तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली और 1756 तक बंगाल पर शासन किया। ये तीनों ही शासक बड़े समर्थ और सबल थे, इनके शासनकाल में बंगाल इतना अधिक समृद्ध हो गया था कि इसे बंगाल, स्वर्ग कहा जाने लगा।

कुशल प्रशासन के अतिरिक्त बंगाल को अन्य लाभ भी थे– एक ओर जहां शेष भारत सीमावर्ती युद्धों,मराठा आक्रमणों और जाट विद्रोह से ग्रस्त था और उत्तरी भारत नादिरशाह और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों से विनष्ट हो चुका था, वहीं बंगाल में कुल मिलाकर शांति बनी रही। यहां व्यापार, वाणिज्य, उद्योग धंधे और कृषि, सभी पर्याप्त रूप से समृद्ध थे।

कोलकाता की आबादी, 1706 में 15,000 थी, 1750 में बढ़कर एक लाख तक पहुंच गई और ढाका तथा मुर्शिदाबाद घनी आबादी वाले नगर बन गए लेकिन समृद्धि की जगमगाहट के पीछे की दशा इतनी अधिक निराशाजनक और नाजुक थी कि ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह समृद्धि कच्ची-ईंटों की दीवार की भांति है जो तूफान के एक छोटे से झोंके से भरभराकर गिरकर समुद्र में विलीन हो जाएगी। बंगाल के अहंकारी नवाब शासक और अरसे से शोषित उनकी प्रजा अभी भी एक-दूसरे के माया जाल से बंधे रहने के लिए अभिशप्त थे।

  • 1690 में जॉन चारनॉक ने अंग्रेज बस्ती के रूप में कोलकाता की स्थापना की।
  • 1697 में फोर्ट विलियम नाम से एक किलेबन्द फैक्ट्री बनाई जिसने एक नए प्रांत का रुप ले लिया। और 1700 में इसे औपचारिक रूप से बंगाल में फोर्ट विलियम प्रांत (प्रेसीडेंसी) कहा गया।
  • सुतनौती, कलिकाता और गेाविन्दपुर को मिलाकर आधुनिक नगर कलकत्ता(कोलकता) का विकास हुआ।

British rule in Bengal-बंगाल में अंग्रेजों का आगमन

बंगाल में अंग्रेजों की बस्तियों की स्थापना से पूर्व का इतिहास अनेक सुस्पष्ट चरणों में विभाजित है।
सन 1633 से 1663 ईसवी के मध्य बंगाल में अंग्रेजों की बस्तियों और फैक्ट्रियों की स्थापना मुगल शासन के अधीन केवल शांतिपूर्वक व्यापार करने के लक्ष्य को लेकर की गई थी। उस समय उनका कोई अन्य लक्ष्य नहीं था।
1633 से पूर्व अंग्रेजों का आगमन उस समय हुआ जब उड़ीसा के मुगल सूबेदार ने उन्हें हरिहरपुर (महानदी के मुहाने के समीप) और उत्तर में बालासोर में अपनी फैक्ट्रियाँ खोलने की अनुमति दी और अंग्रेजों ने उड़ीसा में 1641 में अपनी बस्तियाँ स्थापित कीं। 
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी ने जड़ें जमाने से पूर्व भारत के सबसे समृद्ध राज्य बंगाल में अपनी प्रथम कोठी 1651ई० में तत्कालीन बंगाल के सूबेदार शाह जहान के दूसरे पुत्र शाहशुजा की अनुमति से बनाई। उसी वर्ष एक राजवंश की स्त्री की डॉक्टर बौटन (Dr.Boughton) द्वारा चिकित्सा करने पर उसने अंग्रेजों को RS-3000 वार्षिक में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में मुक्त व्यापार की अनुमति दे दी। शीघ्र ही अंग्रेजों कासिम बाजार, पटना तथा अन्य स्थान पर कोठियां बना लीं।
1698 में सूबेदार अजीमुशान ने उन्हें सूतानती, कालीघाट तथा गोविंदपुर ( जहाँ आज कोलकाता बसा है) की जमींदारी दे दी जिसके बदले उन्हें केवल RS-1200 पुराने मालिकों को देने पड़े। 1717 में सम्राट फर्रूखसियर ने पुराने  सूबेदारों द्वारा दी गई व्यापारिक रियायतों की पुनः पुष्टि कर दी तथा उन्हें कोलकाता के आस-पास के अन्य क्षेत्रों को भी किराए पर लेने की अनुमति दे दी।

1741 में बिहार का नायब सूबेदार अलीबर्दी खाँ बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के नायब सरफराज खाँ से विद्रोह कर, उसे युद्ध में मार कर स्वयं इस समस्त प्रदेश का नवाब बन गया। अपनी स्थिति को और भी सुदृढ़ करने के लिए उसने सम्राट मुहम्मद शाह से बहुत से धन के बदले एक पुष्टि पत्र (confermation) प्राप्त कर लिया। परंतु उसी समय मराठा आक्रमणों ने विकट रूप धारण कर लिया तथा अलीवर्दी खां के शेष 15 वर्ष उनसे भिड़ने में व्यतीत हो गए।
मराठा आक्रमण से बचने के लिए अंग्रेजों ने नवाब की अनुमति से अपनी कोठी जिसे अब फोर्टविलियम की संज्ञा दे दी गई थी, के चारों ओर एक गहरी खाई (moat) बना ली। अलीवर्दी खां का ध्यान कर्नाटक की घटनाओं की ओर आकर्षित किया गया जहां विदेशी कंपनियों ने समस्त सत्ता हथिया ली थी। अंग्रेज बंगाल में जड़ न पकड़ लें, इस डर से उसे कहा गया कि वह अंग्रेजों को बंगाल से पूर्णरूपेण निष्कासित कर दे।
नवाब ने यूरोपियों को मधुमक्खियों की उपमा दी थी। कि यदि उन्हें छेड़ा जाए  तो वे शहद देंगी और यदि छेड़ा जाए तो काट-काट कर मार डालेंगी। शीघ्र ही यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो गई।