ऋग्वेद - 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

वैदिक काल की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों की खोज” – एक व्यापक विश्लेषण

वैदिक काल काल प्राचीन भारत के इतिहास में सबसे प्रारंभिक और सबसे महत्वपूर्ण अवधियों में से एक है। इसे वैदिक काल के रूप में भी जाना जाता है, और इसकी विशेषता ऋग्वेद की रचना है, जो हिंदू धर्म के सबसे पुराने पवित्र ग्रंथों में से एक है। ऋग्वेद भजनों और मंत्रों का एक संग्रह है जो प्राचीन इंडो-आर्यन लोगों द्वारा रचित थे, जो 1500-1000 ईसा पूर्व के आसपास भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रहते थे।

वैदिक काल की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों की खोज" - एक व्यापक विश्लेषण

वैदिक काल

वैदिक काल काल को अक्सर दो चरणों में विभाजित किया जाता है, प्रारंभिक ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल। प्रारंभिक ऋग्वैदिक काल के दौरान, इंडो-आर्यन लोग मुख्य रूप से देहाती और खानाबदोश थे, और उनका समाज जनजातियों और कुलों के आसपास संगठित था। वे प्रकृति की शक्तियों की पूजा करते थे और देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करते थे।

बाद के ऋग्वैदिक काल में, इंडो-आर्यन बसने लगे और कृषि का अभ्यास करने लगे, जिसके कारण गाँवों का विकास हुआ और एक अधिक जटिल सामाजिक संरचना का उदय हुआ। समाज को चार वर्णों या वर्गों में विभाजित किया गया था, और पुजारी वर्ग (ब्राह्मण) धार्मिक और सामाजिक मामलों में अधिक प्रमुख हो गए थे। ऋग्वैदिक काल में भी जाति व्यवस्था का उदय हुआ, जो आने वाली शताब्दियों के लिए भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग बन गया।

ऋग्वैदिक काल से क्या तात्पर्य है?

ऋग्वैदिक काल उस समय को संदर्भित करता है जब आर्य पंजाब के उत्तरी भागों और गंगा घाटी में मौजूद थे। ऋग्वेद एक ऐसा ग्रन्थ है जो उस समय के सभी पहलुओं जैसे धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक आयामों पर प्रकाश डालता है। इसे ऋग्वेद कहा जाता है क्योंकि यह उस समय के इन सभी आयामों के बारे में ज्ञान प्रस्तुत करता है।

ऋग्वैदिक काल की तिथि कौन-सी है ?

ऋग्वैदिक काल की तिथि लगभग (1500 से 1000) ईसा पूर्व मानी जाती है।

ऋग्वैदिक काल की सामाजिक संरचना

जाति प्रथा-

ऋग्वैदिक काल में समाज दो वर्गों या समूहों में विभाजित था। इस विभाजन का मूल कारण ‘वर्ण’ यानी रंग था। एक वर्ग में आर्य थे, जो गोरे रंग के थे और यज्ञ व अग्नि पूजा करते थे। दूसरे वर्ग में दस्यु थे, जो काले रंग के थे और लिंग की उपासना करते थे। आर्य संस्कृत बोलते थे जबकि दासों की भाषा अस्पष्ट थी। दासों की नाक चपटी होती थी। ऋग्वेद में ब्राह्मण और क्षत्रिय शब्द का अधिक उपयोग होता था।

परिवार की संरचना

वैदिक काल में विवाह की संस्था पितृसत्तात्मक व्यवस्था पर आधारित थी। ऋग्वेद में, पिता का अपने बच्चों पर पूरा नियंत्रण था, यहाँ तक कि वह अपने बेटे को बेच भी सकता था। पत्नी को घरेलू गहना (आभूषण ) माना जाता था, और वह अपने पति, ससुर, ज्येष्ठ, ननद और इंद्र जैसे देवताओं जैसे अन्य देवताओं के प्रति कर्तव्यबद्ध थी। इससे पता चलता है कि उस समय संयुक्त परिवार का प्रचलन था।

विवाह का प्रचलन

विवाह वैवाहिक जीवन का आधार था। ब्राह्मण विवाह प्रचलित था, हालाँकि गंधर्व, राक्षस, क्षत्र और असुर विवाह के भी संकेत थे। बाल विवाह और विधवा विवाह उस समय प्रचलित नहीं थे। आमतौर पर एक पत्नी रखने की प्रथा थी, और यह संभव है कि वेश्यावृत्ति का प्रचलन भी था। कुछ धनी लोग एक से अधिक पत्नियां भी रखते थे।

Read more

जानिए ऋग्वेद के सबसे लोकप्रिय देवता-इन्द्र- rigved ke devta indra ki kahani

ऋग्वेद में जिस देवता की स्तुति में सबसे ज्यादा मन्त्रों की रचना की गयी उनका नाम इंद्र है। इंद्र आर्यों के सबसे बड़े और तेजस्वी देवता थे। यह बात ध्यान देने योग्य है कि आज हिन्दू धर्म में राम और कृष्ण को जिस प्रकार उच्च स्थान प्राप्त है उन्हें ऋग्वेदिककाल में कोई जनता तक नहीं … Read more

वैदिक काल में स्त्री की दशा,अपाला, घोषा, लोपामुद्रा

हड़प्पा सभ्यता एक ऐसी सभ्यता थी जिसमें नारी को बहुत ऊँचा स्थान दिया गया था। उसके बाद भारत में वैदिक सभ्यता का उदय हुआ और यह सभ्यता एक पुरुष प्रधान सभ्यता थी। वैदिक काल में स्त्री की दशा,अपाला, घोषा, लोपामुद्रा , जहां देवी-देवताओं से सिर्फ पुत्र प्राप्ति की इच्छा की जाती थी। लेकिन इतना होने पर भी वैदिक काल नारी की दशा उतनी दयनीय नहीं थी जितनी आगे जाकर हो गयी। इस लेख में हम वैदिक काल की प्रमुख विदुषी महिलाओं के बारे में जानेंगे जिन्होंने वेदों की ऋचाओं की भी रचना की।
 वैदिक काल में स्त्री की दशा,अपाला, घोषा, लोपामुद्रा 

वैदिक काल में स्त्री की दशा

प्राचीन काल, मध्यकाल और वर्तमान काल तक महिलाओं की दशा के विषय में निरंतर चिंतन और मनन होता रहा है। परंतु इस विषय में अधिकांश विद्वान और ऋषि-मुनि रूढ़िवादी और पुरुषवादी मानसिकता से ग्रसित रहे। वर्तमान समय में जिस प्रकार महिलाओं के प्रति अत्याचार और  अपराध को देख कर मन में यही प्रश्न उठता है कि क्या भारत में सदा ही महिलाओं की स्थिति इतनी ही दयनीय और पीड़ादायक थी?

यद्यपि संविधान में महिलाओं को बराबर का दर्जा दिया गया है परंतु फिर भी भारत ही क्या समस्त विश्व में महिलाओं के प्रति दोयम दर्जे की ही सोच दिखाई पड़ती है। यद्यपि परिस्थितियों में सुधार के भी अंश दिखाई देते हैं परंतु उनकी गति अत्यंत मंद है। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या महिलाओं की स्थिति प्राचीन काल से ही ऐसी थी या मध्यकाल में अत्यंत दयनीय हुई या आधुनिक काल में ज्यादा दयनीय है?    

ऋग्वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति

 ऋग्वेद से यह ज्ञात नहीं होता कि सप्त सिंधु की आर्य- स्त्रियों की दशा उतनी हीन थी, जितनी कि आगे चलकर हो गई। यह ठीक है अब वह सामंतवादी व्यवस्था के अधीन नहीं थीं, जिसमें जन (पितृसत्ता के ) अवस्था के अधिकार सुलभ नहीं थे। शुद्ध जन- व्यवस्था में स्त्रियां हथियार लेकर लड़ सकती हैं। ईसा-पूर्व छठी शताब्दी में मध्य-एशिया के शकों में ऐसा ही देखा जाता था, जहां घुमंतू स्त्रियों ने कितनी ही बार हथियार उठाये। लेकिन, स्त्रियों का युद्ध में जाना आर्य बुरा समझते थे।

शम्बर के पहाड़ी लोग जन अवस्था में थे, उनके लिए स्वभाविक था, कि दिवोदास के साथ उनका जो जीवन-मरण का संघर्ष चल रहा था, उसमें पुरुषों की तरह स्त्रियाँ भी शामिल हों। पर आर्य ऋषियों ने “अबला क्या करेगी” कह कर इसका उपहास किया था ( बभ्रु की एक ऋचा -५।३०।९ में है—–“दास ने स्त्रियों को आयुध ( हथियार) बनाया।” इस पर इन्द्र ने कहा— “इसकी अबला सेना मेरा क्या करेगी?”) 

स्त्रियों के लिए अबला शब्द का प्रयोग शायद यहीं सर्वप्रथम हुआ , जिससे ध्वनित होता है, कि स्त्रियों में योद्धा होने की योग्यता नहीं है। इस प्रकार आर्य-स्त्रियों के संग्राम में खुलकर भाग लेने की संभावना सप्तसिन्धु में नहीं थी। वैसे अपवाद के तौर पर स्त्रियों ने कभी अपने हाथ दिखाये हों, तो दूसरी बात है।

युद्ध बाद सबसे महत्व था ऋचाओं ( पदों ) की रचनाओं, जिसके कारण उन्हें ऋषि, ऋषिका कहा जाता । ऋषिकाओं की संख्या ऋग्वेद में दो दर्जन से कम नहीं हैं । पर विश्लेषण करने पर उनमें से अधिकांश को मानुषी नहीं कल्पित ही देखा जाता है। केवल घोषा और विश्ववारा को ही ऐतिहासिक ऋषि माना जा सकता है।

Also Readउत्तर वैदिक काल: राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक जीवन

Read more