सैयद बन्धु कौन थे | Who Was Syed Bandhu,?

1713 से 1720 तक मुगल दरबार में सैयद बंधु (अब्दुल्लाह खान और हुसैन अली) सबसे शक्तिशाली थे। ये लोग हिंदुस्तानी दल के नेता थे और प्रायः मुगल विद्रोही और अर्ध-राष्ट्रीय हितों का नेतृत्व करते थे। मुग़ल सम्राट औरंगजेब की मृत्यु के बाद दरबार में आई शिथिलता का फायदा बहुत से दरबारी अमीरों और सदस्यों ने … Read more

उत्तरवर्ती मुगल सम्राट: -1707-1806, कौन था शाहे बेखबर, किसको रंगीला और घृणित कायर कहा गया

उत्तरवर्ती मुगल सम्राट, भारत में मुगल साम्राज्य के शासकों का उल्लेख करते हैं, जिन्होंने सम्राट औरंगजेब (1658-1707 तक शासन किया), तथाकथित “महान मुगलों” में से अंतिम थे। बाद के मुग़ल बादशाहों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक गिरावट और क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संघर्ष शामिल थे, जिसके परिणामस्वरूप मुग़ल साम्राज्य का क्रमिक पतन हुआ।

उत्तरवर्ती मुगल सम्राट: -1707-1806, कौन था शाहे बेखबर, किसको रंगीला और घृणित कायर कहा गया

उत्तरकालीन मुगल सम्राट

 18 वीं शताब्दी के आरंभ में मुग़ल साम्राज्य अवनति की ओर जा रहा था। औरंगजेब का राज्यकाल     मुगलों का संध्याकाल था। साम्राज्य को अनेक व्याधियों ने घेर रखा था और यह रोग शनै: शनै: समस्त देश में फैल रहा था।  बंगाल, अवध और दक्कन आदि प्रदेश मुगल नियंत्रण से बाहर हो गए।

उत्तर-पश्चिम की ओर से विदेशी आक्रमण होने लगे तथा विदेशी व्यापारी कंपनियों ने भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करना आरंभ कर दिया। परंतु इतनी कठिनाइयों के होते हुए मुगल साम्राज्य का दबदबा इतना था कि पतन की गति बहुत धीमी रही। 1737 में बाजीराव प्रथम  और 1739 में नादिरशाह के दिल्ली पर आक्रमणों ने मुगल साम्राज्य के खोखले पन की पोल खोल दी और 1740 तक यह पतन स्पष्ट हो गया।

उत्तरकालीन मुगल सम्राट – Later Mughal Emperors

बहादुर शाह प्रथम ( शाह बेखबर )-1707-12– मार्च 1707 में औरंगजेब की मृत्यु उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के युद्ध का बिगुल था

  • मुहम्मद मुअज़्ज़म(शाह आलम)
  • मुहम्मद आजम और 
  • कामबख्स

उपरोक्त तीनों में से सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद मुअज्जम की विजय हुई। मुहम्मद मुअज़्ज़म उत्तराधिकार की लड़ाई में विजयी रहा और ‘बहादुर शाह’ के नाम से गद्दी पर बैठा। वह उत्तरवर्ती मुगलों में पहला और अंतिम शासक था जिसने वास्तविक प्रभुसत्ता का उपयोग किया जब वह सिंहासन पर बैठा तो उसकी आयु काफी हो चुकी थी लगभग(67वर्ष)।

इस मुगल सम्राट ने शांतिप्रिय नीति अपनाई। यद्यपि यह कहना कठिन है कि यह नीति उसके शिथिलता की द्योतक थी अथवा उसकी सोच समझ का फल था। उसनें शिवाजी के पौत्र साहू को जो 1689 से मुगलों के पास कैद था, मुक्त कर दिया और महाराष्ट्र जाने की अनुमति दे दी। 

राजपूत राजाओं से भी शांति स्थापित कर ली और उन्हें उनके प्रदेशों में पुनः स्थापित कर दिया। परंतु बहादुर शाह को सिक्खों के विरुद्ध कार्यवाही करनी पड़ी क्योंकि उनके नेता बंदा बहादुर ने पंजाब में मुसलमानों के विरुद्ध एक व्यापक अभियान आरंभ कर दिया था। बंदा लोहगढ़ के स्थान पर हार गया। मुगलों ने सरहिंद को 1711 में पुनः जीत लिया। परंतु यह सब होते हुए भी बहादुर शाह सिक्खों को मित्र नहीं बना सका और ना ही कुचल सका।

बहादुर शाह उदार, विद्वान और धार्मिक था लेकिन धर्मांध नहीं था। वह जागीरें देने तथा पदोन्नतियाँ देने में भी उधार था। उसने आगरा में जमा वह खजाना भी खाली कर दिया जो 1707 उसके हाथ लगा था। मुगल इतिहासकार खाफी खाँ ने उसके बारे में कहा है, “यद्यपि उसके चरित्र में कोई दोष नहीं था लेकिन देश की सुरक्षा प्रशासन व्यवस्था में उसने इतनी आत्मसंतुष्टि और लापरवाही दिखाई कि परिहास और व्यंग करने वाले व्यक्तियों ने  द्वयार्थक रूप में उसके राज्यरोहण के तिथि-पत्र को ‘शाह बेखबर’ के रूप में उल्लेखित किया है।

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सैय्यद वंश: प्रमुख शासक, इतिहास और महत्व

सैय्यद राजवंश एक मध्यकालीन भारतीय राजवंश था जिसने 1414 से 1451 तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया था। सैय्यद फारसी मूल के थे और उन्होंने अपने चचेरे भाई और दामाद अली और उनकी पत्नी फातिमा के माध्यम से पैगंबर मुहम्मद से वंश का दावा किया था। सैय्यद वंश तुगलक वंश के पतन के बाद सत्ता में आया, जो कमजोर शासकों, विद्रोहों और आर्थिक अस्थिरता द्वारा चिह्नित था। सैय्यद वंश का पहला शासक खिज्र खान था, जिसने 1414 में अंतिम तुगलक शासक को उखाड़ फेंकने के बाद खुद को दिल्ली के सुल्तान के रूप में स्थापित किया।

सैय्यद वंश: प्रमुख शासक, इतिहास और महत्व

सैय्यद वंश

महमूद शाह की मृत्यु के बाद कुलीन सरदारों ने अपनी निष्ठा का प्रदर्शन दौलत खां लोधी के पक्ष में किया। दौलत खां ने दोआब में प्रवेश किया और उसने इटावा के राजपूतों तथा बदायूं के महावत ख़ां को उनका सार्वभौम शासक मानने पर विवश किया। परंतु दौलत खां दिल्ली वापस चला आया क्योंकि वह जौनपुर के इब्राहिम शाह से संघर्ष करना नहीं चाहता था।

दिसंबर 1413 में खिज्र खाँ ने दौलत खाँ के प्रदेश पर आक्रमण किया और उसने मेवात में प्रवेश किया। उसने संभल में लूट मचा दी। मार्च 1414 में उसने 60,000 अश्वारोहियों के साथ सीरी में दौलत खां को घेर लिया। दौलत खां चार महीनों तक डटा रहा परंतु बाद में उसने आत्मसमर्पण कर दिया। 28 मई 1414 को खिज्र खाँ ने दिल्ली में प्रवेश किया और शहर भवन शासक के रूप में सैय्यद वंश की नींव डाली हिसार में दौलत खां को बंदी बना लिया गया।

खिज्र खाँ का शासन काल-1414-21

खिज्र खां केवल सैयद वंश का संस्थापक कि नहीं वरन् उसका सबसे योग्य शासक भी था। वह एक सैयद था तारीख-ए-मुबारक शाही का लेखक खिज्र के सैयद होने के प्रमाणस्वरूप दो कारण प्रस्तुत करता है। एक तो यह कि एक बार सैय्यदों का प्रधान जलालुद्दीन बुखारी मलिक मरदान के घर आया और जब अभ्यागतों के लिए भोजन परोसा गया, मलिक मरदान ने खिज्र के भाई सुलेमान को सैय्यद साहब के हाथ धुलाने के लिए कहा, परंतु सैय्यद साहब ने कहा “यह सैय्यद है और ऐसा काम इसके लिए उचित नहीं है।” दूसरा कारण यह बताया है कि वह “उदार, वीर, नम्र ,अतिथि-सत्कार करने वाला, वचनों का पालन करने वाला और दयालु था। यह गुण केवल किसी सैय्यद में ही पाए जा सकते थे।”

 बचपन में खिज्र खाँ का पालन पोषण, मुल्तान के गवर्नर मलिक नासिर-उल-मुल्क मरदान द्वारा हुआ था। फिरोज तुगलक ने खिज्र खां को मुल्तान की जागीर दे रखी थी, परंतु जब फिरोज तुगलक की मृत्यु के बाद अव्यवस्था फैल गई, तो मल्लू इकबाल के भाई सारंग खां ने खिज्र खाँ को घेर लिया और बंदी बना लिया। फिर भी खिज्र खाँ ने बचकर भागने का इंतजाम कर लिया। 1398 में वह तैमूर से मिल गया और जाते समय तैमूर उसे मुल्तान की जागीर उसके अधीन भागों को दे गया। 1414 में खिज्र खाँ ने दौलत खाँ को निकाल दिया और दिल्ली पर अधिकार कर लिया।

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तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण: इतिहास, उद्देश्य कारण और प्रभाव

तैमूर के भारत पर आक्रमण को भारतीय इतिहास में एक प्रमुख घटना के रूप में याद किया जाता है, क्योंकि इसने क्षेत्र की राजनीति, समाज और संस्कृति पर स्थायी प्रभाव छोड़ा। उसके आक्रमणों के कारण हुई तबाही और तबाही के कारण उनके सैन्य अभियानों और विजयों को अक्सर इतिहास के एक काले अध्याय के रूप … Read more

फिरोज तुगलक का इतिहास: फ़िरोज़ तुग़लक़ प्रारम्भिक जीवन और उपलब्धियां, जनहित के कार्य

फिरोज तुगलक, जिसे सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के नाम से भी जाना जाता है, 14वीं शताब्दी के दौरान भारत में तुगलक वंश का एक प्रमुख शासक था। वह 1351 ईस्वी में सिंहासन पर बैठा और 1388 ईस्वी तक शासन किया। फिरोज तुगलक को उनके प्रशासनिक सुधारों और उनके उदार शासन के लिए जाना जाता था, जो उनके विषयों के कल्याण पर केंद्रित था। उन्हें कला, वास्तुकला और साहित्य का संरक्षक माना जाता था, और उन्हें अपने राज्य में कई स्मारकों, मस्जिदों और महलों के निर्माण का श्रेय दिया जाता था।

Firuz Tughluq

फिरोज तुगलक का इतिहास

फिरोज तुगलक ने सिंचाई के लिए नहरों और जलाशयों के निर्माण सहित आर्थिक और कृषि क्षेत्रों में सुधार के लिए कई उपायों को भी लागू किया। उन्हें न्याय और निष्पक्षता के सख्त पालन के लिए जाना जाता था, और उनके लोगों द्वारा उनके दयालु और न्यायपूर्ण शासन के लिए बहुत सम्मान किया जाता था।

हालाँकि, उनका शासन चुनौतियों के बिना नहीं था, जिसमें रईसों द्वारा विद्रोह और आर्थिक संकट शामिल थे। इन चुनौतियों के बावजूद, फिरोज तुगलक ने एक शासक के रूप में एक स्थायी विरासत छोड़ी, जिसने अपने लोगों के कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया और अपने राज्य के सांस्कृतिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


नाम फिरोज तुगलक
पूरा नाम सुल्तान फिरोज शाह तुगलक
जन्म 1309 ईस्वी
जन्मस्थान भारत
पिता रज्जब
माता नैला भाटी
शासनकाल 1351-1388
वंश तुगलक वंश
प्रसिद्ध सिंचाई के लिए नहरों और जलाशयों के निर्मा के लिए
मृत्यु सितम्बर 1388 ई॰
मृत्यु का स्थान दिल्ली
मक़बरा हौज़खास परिसर दिल्ली

फिरोज तुगलक, जिसे सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के नाम से भी जाना जाता है, भारत में दिल्ली सल्तनत का मध्यकालीन शासक था। उनका जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था, और उनके पिता गयासुद्दीन तुगलक के पुत्र रज्जब थे, जो तुगलक वंश के संस्थापक थे। फिरोज तुगलक के परिवार और प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि उस काल के ऐतिहासिक स्रोत सीमित हैं।


फ़ीरोज तुगलक का परिचय-  

20 मार्च 1351 ईस्वी में  मुहम्मद तुगलक की थट्टा ( सिंध ) में मृत्यु के बाद उसका चचेरा भाई फिरोज शाह तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना। फिरोजशाह तुगलक का जन्म 1309 ईस्वी में हुआ था व उसकी मृत्यु 1328 ईस्वी में हुई। वह गयासुद्दीन तुगलक के छोटे भाई रजब का पुत्र था। उसकी माता भट्टी राजपूत कन्या थी जिसने अपने पिता ‘रणमल’ ( अबूहर के सरदार ) के राज्य को मुसलमानों के हाथों से नष्ट होने से बचाने के लिए ‘रजब’ से विवाह करने पर सहमति प्रदान कर दी थी। जब फिरोज बड़ा हुआ तो उसने शासन-प्रबंध व युद्ध कला में प्रशिक्षण प्राप्त किया परंतु वह किसी भी क्षेत्र में निपुण न बन सका।

फ़ीरोज तुगलक का सिंहासनारोहण- 

 जब 20 मार्च 1351 ईस्वी को मुहम्मद तुगलक की मृत्यु हो गई, तो उस डेरे में पूर्ण अव्यवस्था व अशांति फैल गई जिसे सिंध के विद्रोहियों व मंगोल वेतनभोगी सैनिकों ने लूटा था व जिन्हें मुहम्मद तुगलक ने तगी के विरुद्ध संग्राम करने के लिए किराए पर रख लिया था।  इन परिस्थितियों के अधीन ही 23 मार्च 1351 ईस्वी को भट्टा के निकट एक डेरे में फिरोज का सिंहासनारोहण हुआ।


फ़ीरोज तुगलक का विरोध ( Opposition of Firoz)

फ़ीरोज को सिंहासनारोहण के समय ही एक अन्य कठिनाई का सामना करना पड़ा। स्वर्गीय सुल्तान के नायव ( deputy ), ख्वाजा-जहां ने दिल्ली में एक लड़के को सुल्तान मुहम्मद तुगलक का पुत्र व उत्तराधिकारी घोषित करके गद्दी पर बैठा दिया। यह परिस्थिति गंभीर हो गई और इसलिए फिरोज ने अमीरों, सरदारों तथा मुस्लिम विधि ज्ञाताओं (jurists) से परामर्श लिया। उन्होंने यह आपत्ति उठाई कि मुहम्मद तुगलक पुत्रहीन था। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ख्वाजा-ए-जहां का अभ्यर्थी इसलिए अयोग्य है क्योंकि  वह नाबालिग है और गद्दी पर ऐसे समय नहीं बिठाया जा सकता जबकि परिस्थिति इतनी गंभीर है।
यह भी कहा गया कि इस्लाम के कानून में उत्तराधिकार का कोई पैतृक अधिकार नहीं है परिस्थितियां यह मांग करती हैं कि दिल्ली की गद्दी पर एक शक्तिशाली शासक होना चाहिए। जब ख्वाजा-ए-जहां ने अपनी स्थिति दुर्बल पाई तो उसने आत्मसमर्पण कर दिया। उसकी पुरानी सेवाओं को देखते हुए फिरोज ने उसको क्षमा कर दिया और उसे समाना में आश्रय लेने की अनुमति दे दी। परंतु मार्ग में शेर खाँ, समाना के सरदार (Commandant) के किसी साथी ने उसका वध कर दिया।

एक अन्य विवाद ( An Other Controversy )

जिन परिस्थितियों में फिरोजशाह तुगलक गद्दी पर बैठा था वे आने वाले समय का सूचक थीं। जियाउद्दीन बरनी का यह मानना है कि मुहम्मद तुगलक ने फिरोजशाह को सुल्तान के लिए नामजद ( Nomination) किया था तथा वही उसकी दृष्टि में इस पद के योग्य था सही प्रतीत नहीं होता।

सिंध में मुहम्मद तुगलक की मृत्यु के समय जो अमीर शाही खेमे में थे वे तय नहीं कर पाए थे कि गद्दी किसको मिलेगी। अंततः यह फैसला किया गया कि सेना दिल्ली की ओर प्रस्थान करे। जहां नया सुल्तान विधिवत नियुक्त होगा। इससे पता चलता है कि सुल्तान के कोई पुत्र नहीं था और ना ही उसने किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।

कहते हैं कि इस परिस्थिति में उलेमा वर्ग के कुछ लोगों ने फिरोजशाह से धार्मिक रियायतों का वायदा ले लिया। इसके बाद अमीर तथा उलेमा वर्ग दोनों ने फिरोज तुगलक को सुल्तान बनाने का निर्णय स्वीकार कर लिया। सुल्तान ने सिंध से लेकर दिल्ली तक के मार्ग में आने वाली मस्जिद, दरगाह तथा खानकाह को दिल खोलकर धार्मिक अनुदान दिए।

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मुहम्मद बिन तुगलक की योजनाएं: जीवनी, राजधानी परिवर्तन, दोआब में कर वृद्धि, सिक्कों का प्रचलन और साम्राज्य विस्तार, मृत्यु

मुहम्मद बिन तुगलक, जिसे आमतौर पर मुहम्मद तुगलक के नाम से जाना जाता है, तुगलक वंश से दिल्ली का सुल्तान था, जिसने 1325 से 1351 ईस्वी तक भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया था। वह अपनी महत्वाकांक्षी और विवादास्पद नीतियों के साथ-साथ अपने प्रशासनिक और सैन्य सुधारों के लिए जाना जाता है। मुहम्मद तुगलक अपने पिता, … Read more

मध्यकालीन भारत में संस्कृत साहित्य

मध्यकालीन भारत में संस्कृत साहित्य, जिसे आमतौर पर 4 से 14वीं सदी तक की आबादी के बीच के काल के रूप में चिह्नित किया जाता है, एक महत्वपूर्ण काल था। इस काल में संस्कृत साहित्य की विविधता और स्थान सबित होती है जो भारतीय संस्कृति, धर्म, दर्शन, कला, विज्ञान, और समाज विषयक विचार और ग्रंथों … Read more

गयासुद्दीन तुगलक: तुग़लक़ वंश का संस्थापक, इतिहास और उपलब्धियां 

गयासुद्दीन तुगलक एक भारतीय शासक थे जो 14वीं सदी में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठे थे। उनकी शासनकालीन वर्ष 1325 ई0 से 1351 ई0 तक रही थी। वे तुगलक खानदान के गुलामी के बाद दिल्ली के सल्तनती शासक बने थे और उनके शासनकाल में वे दक्खिनी भारत में शक्तिशाली थे।

गयासुद्दीन तुगलक: तुग़लक़ वंश का संस्थापक, इतिहास और उपलब्धियां 

गयासुद्दीन तुगलक

तुगलक खानदान का शासक होने के बाद, उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सत्ता को स्थापित किया और दक्षिण भारतीय राज्यों को अपने अधीन किया। उनकी सत्ता के दौरान वे अलौकिक और कठिन निर्णय लेते थे जो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनकी शासन प्रणाली को विवादास्पद और कठिन माना गया है।

तुगलक शासनकाल में कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया गया था, जो आर्थिक विकास को समर्थन करता था। उन्होंने अदालती न्याय प्रणाली को सुधारा, कला और संस्कृति की समर्थन किया और धर्म निर्णयों में नेतृत्व किया। उनके शासनकाल में बारहवीं शताब्दी के विद्वान, साहित्यकार और विचारक अमीर खुसरो भी उनके दरबार में समर्थन करते थे।

हालांकि, गयासुद्दीन तुगलक के शासनकाल में उनकी नीतियों पर विपरीत मतभेद थे। उनकी कड़ी नीतियां, उच्च कर और कड़ा शासन को लेकर विरोध प्राप्त कर गई थीं। वे समाज में न्याय और समावेशीकरण के लिए प्रयास करते रहे, लेकिन उनकी तंगी और सख्त शासन प्रक्रिया ने उनकी प्रशंसा नहीं प्राप्त की।

तुगलक के शासनकाल में अर्थव्यवस्था पर संकट आया था, जो भूमिहीन और गरीब वर्गों को प्रभावित करता था। उनकी कड़ी कर नीतियां ने कृषि, व्यापार और वाणिज्य को प्रभावित किया और जनता को आर्थिक तंगी में डाल दिया। इसके परिणामस्वरूप लोगों की विरोधी आंदोलन और विद्रोह हुए जो उनकी सत्ता को कमजोर कर दिया।

गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु 1351 ई0 में हुई और उनके बेटे जूना खान ने उनकी जगह ली।

नाम गयासुद्दीन तुग़लक़
पूरा नाम गयासुद्दीन गाजी मलिक
जन्म 26 फरवरी, 1284 ईस्वी
जन्मस्थान
संस्थापक तुगलक़ वंश
पिता करौना तुगलक ऐक तुर्क गुलाम
पत्नी
बच्चे पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक़
मृत्यु फरवरी 1325
मृत्यु स्थान कड़ा, मानिकपुर, भारत
शासनावधि 8 सितम्बर 1321 – फरवरी 1325
राज्याभिषेक 8 सितम्बर 1321
पूर्ववर्ती खुसरो खान
उत्तरवर्ती मुहम्मद बिन तुगलक़
समाधि दिल्ली, भारत
घराना तुगलक़ वंश

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रानी पद्मावती की कथा: विवाद और ऐतिहासिक तथ्य, राजनीति

मित्रों आपको याद होगा सन 2018 में एक फ़िल्म आयी थी पद्मावत जो काफी विवादों में रही। रिलीस से पूर्व इस फ़िल्म का नाम् पद्मावती रखा गया था मगर रिलीस से पूर्व ही इस फ़िल्म का विरोध होना शुरू हो गया और इसे राजपूतों का अपमान कहा गया। शहर-शहर विरोध में प्रदर्शन होने शुरू हो … Read more

अलाउद्दीन खिलजी की प्रशासनिक वयवस्था /alauddin khilji ke prashasnik sudhar

अलाउद्दीन खिलजी का  प्रारम्भिक जीवन पिता – शाहबुद्दीन मसूद धर्म  – सुन्नी इस्लाम शासनावधि         1296-1316 राज्याभिषेक           1296 जन्म                     1266 मृत्यु                        1316 दिल्ली अमीर-ए-तुजुक         1290-1291 कड़ा का राज्यपाल  1291-1296 पत्नियां मलिका-ए-जहाँ   (जलालुद्दीन  की       बेटी )  महरू ( अलपखान की बहन) कमला देवी ( राजा कर्ण की विधवा … Read more