उत्तरवर्ती मुगल सम्राट, भारत में मुगल साम्राज्य के शासकों का उल्लेख करते हैं, जिन्होंने सम्राट औरंगजेब (1658-1707 तक शासन किया), तथाकथित “महान मुगलों” में से अंतिम थे। बाद के मुग़ल बादशाहों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिनमें राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक गिरावट और क्षेत्रीय शक्तियों के साथ संघर्ष शामिल थे, जिसके परिणामस्वरूप मुग़ल साम्राज्य का क्रमिक पतन हुआ।
उत्तरकालीन मुगल सम्राट
18 वीं शताब्दी के आरंभ में मुग़ल साम्राज्य अवनति की ओर जा रहा था। औरंगजेब का राज्यकाल मुगलों का संध्याकाल था। साम्राज्य को अनेक व्याधियों ने घेर रखा था और यह रोग शनै: शनै: समस्त देश में फैल रहा था। बंगाल, अवध और दक्कन आदि प्रदेश मुगल नियंत्रण से बाहर हो गए।
उत्तर-पश्चिम की ओर से विदेशी आक्रमण होने लगे तथा विदेशी व्यापारी कंपनियों ने भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करना आरंभ कर दिया। परंतु इतनी कठिनाइयों के होते हुए मुगल साम्राज्य का दबदबा इतना था कि पतन की गति बहुत धीमी रही। 1737 में बाजीराव प्रथम और 1739 में नादिरशाह के दिल्ली पर आक्रमणों ने मुगल साम्राज्य के खोखले पन की पोल खोल दी और 1740 तक यह पतन स्पष्ट हो गया।
उत्तरकालीन मुगल सम्राट – Later Mughal Emperors
बहादुर शाह प्रथम ( शाह बेखबर )-1707-12– मार्च 1707 में औरंगजेब की मृत्यु उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के युद्ध का बिगुल था
- मुहम्मद मुअज़्ज़म(शाह आलम)
- मुहम्मद आजम और
- कामबख्स
उपरोक्त तीनों में से सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद मुअज्जम की विजय हुई। मुहम्मद मुअज़्ज़म उत्तराधिकार की लड़ाई में विजयी रहा और ‘बहादुर शाह’ के नाम से गद्दी पर बैठा। वह उत्तरवर्ती मुगलों में पहला और अंतिम शासक था जिसने वास्तविक प्रभुसत्ता का उपयोग किया जब वह सिंहासन पर बैठा तो उसकी आयु काफी हो चुकी थी लगभग(67वर्ष)।
इस मुगल सम्राट ने शांतिप्रिय नीति अपनाई। यद्यपि यह कहना कठिन है कि यह नीति उसके शिथिलता की द्योतक थी अथवा उसकी सोच समझ का फल था। उसनें शिवाजी के पौत्र साहू को जो 1689 से मुगलों के पास कैद था, मुक्त कर दिया और महाराष्ट्र जाने की अनुमति दे दी।
राजपूत राजाओं से भी शांति स्थापित कर ली और उन्हें उनके प्रदेशों में पुनः स्थापित कर दिया। परंतु बहादुर शाह को सिक्खों के विरुद्ध कार्यवाही करनी पड़ी क्योंकि उनके नेता बंदा बहादुर ने पंजाब में मुसलमानों के विरुद्ध एक व्यापक अभियान आरंभ कर दिया था। बंदा लोहगढ़ के स्थान पर हार गया। मुगलों ने सरहिंद को 1711 में पुनः जीत लिया। परंतु यह सब होते हुए भी बहादुर शाह सिक्खों को मित्र नहीं बना सका और ना ही कुचल सका।
बहादुर शाह उदार, विद्वान और धार्मिक था लेकिन धर्मांध नहीं था। वह जागीरें देने तथा पदोन्नतियाँ देने में भी उधार था। उसने आगरा में जमा वह खजाना भी खाली कर दिया जो 1707 उसके हाथ लगा था। मुगल इतिहासकार खाफी खाँ ने उसके बारे में कहा है, “यद्यपि उसके चरित्र में कोई दोष नहीं था लेकिन देश की सुरक्षा प्रशासन व्यवस्था में उसने इतनी आत्मसंतुष्टि और लापरवाही दिखाई कि परिहास और व्यंग करने वाले व्यक्तियों ने द्वयार्थक रूप में उसके राज्यरोहण के तिथि-पत्र को ‘शाह बेखबर’ के रूप में उल्लेखित किया है।