भीम राव अंबेडकर से क्यों नफरत करते थे नेहरू और पटेल?

भीम राव अंबेडकर से क्यों नफरत करते थे नेहरू और पटेल?

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भीम राव अंबेडकर से क्यों नफरत करते थे नेहरू और पटेल?-भारत का बच्चा-बच्चा संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर के नाम से से परिचित है। अम्बेडकर जिन्होंने न सिर्फ भारत का संविधान लिखा, बल्कि उन्होंने करोड़ों लोगों और महिलाओं का उद्धार किया जिन्हें भारतीय समाज और हिन्दू व्यवस्था में कोई अधिकार नहीं था।

लेकिन क्या आप जानते हैं भारत के प्रथम प्रधान मंत्री नेहरू और उप प्रधान मंत्री तथा गृह मंत्री बल्लभ भाई पटेल अम्बेडकर से किस कदर घृणा करते थे कि उन्होंने अम्बेडकर को संविधान सभा में पहुँचने से रोकने के लिए हर सम्भव प्रयास किया था। इस लेख में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रोफेसर मिर्ज़ा असमेर बेग के शोध आलेख से हम आपको यह जानकारी दे रहे हैं कि भीम राव अंबेडकर से क्यों नफरत करते थे नेहरू और पटेल?

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भीम राव अंबेडकर से क्यों नफरत करते थे नेहरू और पटेल?
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भीम राव अंबेडकर से क्यों नफरत करते थे नेहरू और पटेल?

भारत के लिए संविधान सभा का गठन होना था और कांग्रेस ने अम्बेडकर को संविधान सभा में भाग लेने से रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया।

एक प्रसिद्ध समाज सुधारक के रूप में अम्बेडकर की जो छवि देश में थी वह कांग्रेस के लिए चिंता का विषय थी। यही कारण था कि कांग्रेस पार्टी और नेहरू ने उन्हें संविधान सभा से दूर रखने की योजना बनाई।

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आपको बता दें कि अम्बेडकर संविधान सभा के लिए चुने गए पहले 296 सदस्यों में से नहीं थे। इसके अतिरिक्त अम्बेडकर सदस्य बनने के लिए बॉम्बे के अनुसूचित जाति संघ में शामिल भी नहीं हो सके।

बंबई के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजी खेर ने भल्लभ भाई पटेल के कहने पर यह सुनिश्चित किया कि अम्बेडकर किसी भी दशा में 296 सदस्यीय निकाय के लिए निर्वाचित न हों पाएं।

जोगेंद्रनाथ मंडल और मुस्लिम लीग का समर्थन

जब अम्बेडकर बंबई में असफल हुए तो बंगाल के दलित नेता जोगेंद्रनाथ मंडल उनकी मदद के लिए आगे आए। वह मुस्लिम लीग की मदद से अंबेडकर को संविधान सभा में भेजने में सफल रहे।

आपको बता दें जोगेंद्रनाथ मंडल बाद में पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री बना। यह एक विवादस्पद कहानी है कि 1950 में वे पाकिस्तान छोड़कर भारत बापस आ गए।

दूसरी ओर, भीमराव अम्बेडकर को संविधान सभा में पहुँचने से पहले कुछ अन्य बाधाओं को पार करना पड़ा।

सम्भवतः अम्बेडकर को रोकने के लिए बंटबारे के समय हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद, चार जिले पाकिस्तान को सौंप दिए गए

जिन जिलों के वोट से अंबेडकर संविधान सभा तक पहुंचे थे, वे हिंदू बहुसंख्यक होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान (अब बंगलादेश) का हिस्सा बन गए।

इस सब का परिणाम यह हुआ कि अम्बेडकर पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य बन गए। भारत की संविधान सभा में उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई थी।

पाकिस्तान के अलग देश के रूप में गठन के बाद, संविधान सभा के सदस्य फिर से बंगाल के उन हिस्सों से चुने गए जो भारत में रह गए थे।

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जब कोई उम्मीद नहीं बची, तो अम्बेडकर ने धमकी दी कि वह संविधान को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे एक राजनीतिक मुद्दा बना देंगे।

कहा जाता है कि इसके बाद ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें संविधान सभा में स्थान देने का फैसला किया। इस बीच, बॉम्बे के एक सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

कांग्रेस पार्टी ने फैसला किया कि एमआर जयकर के रिक्त स्थान को अंबेडकर द्वारा भरा जाएगा।

हिंदू कोड बिल पर गुस्सा

सितंबर 1951 में जब अम्बेडकर ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया, तो उनके इस्तीफे के कारणों को विस्तार से बताया। वह सरकार की अनुसूचित जातियों की उपेक्षा से नाराज थे।

आखिरकार, जिस बात ने उन्हें इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया, वह थी हिंदू कोड बिल के साथ कांग्रेस सरकार का व्यवहार।

यह विधेयक (हिन्दू कोड बिल )1947 में सदन में पेश किया गया था लेकिन बिना किसी चर्चा के इसे जमीन पर उतार दिया गया था। अम्बेडकर का मानना ​​था कि यदि यह बिल पास होता तो यह इस देश की विधायिका द्वारा किया गया सबसे बड़ा सामाजिक सुधार होता।

अम्बेडकर ने कहा कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आश्वासन के बावजूद यह बिल संसद में गिरा दिया गया।

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अपने भाषण के अंत में अम्बेडकर ने कहा, “अगर मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री के वादे और काम के बीच अंतर होना चाहिए, तो यह निश्चित रूप से मेरी गलती नहीं है।”

नेहरू ने अंबेडकर के प्रति अपनी नापसंदगी को नहीं छुपाया

इसके बाद भी अम्बेडकर कांग्रेस का विरोध करते रहे।

1952 में, अंबेडकर ने उत्तरी मुंबई लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा। लेकिन कांग्रेस ने अंबेडकर के पूर्व सहयोगी एनएस काजोलकर को अम्बेडकर के सामने उतार दिया और अंबेडकर चुनाव हार गए।

कांग्रेस ने अपनी सफाई में कहा कि अंबेडकर सामाजिक पार्टी के साथ थे, इसलिए उनके पास विरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

नेहरू ने चुनाव प्रचार के दौरान दो बार निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और अंत में, अम्बेडकर 15,000 मतों से चुनाव हार गए।

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई, 1954 में बांदारा लोकसभा उपचुनाव में अंबेडकर ने एक बार फिरसे किस्मत आजमाई लेकिन इस बार भी उनको कांग्रेस से हार का सामना करना पड़ा।

इन घटनाओं से यह साबित होता है कि कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेताओं खासकर नेहरू ने कभी भी अंबेडकर पर भरोसा नहीं किया और न ही उनकी नापसंदगी को छिपाने की कोशिश की। अतः नेहरू ने अम्बेडकर के रास्ते में बाधाएं खड़ी करने का कोई मौका नहीं छोड़ा और उनके इस काम में पटेल हमेशा नेहरू के साथ थे।

स्रोत- बीबीसी के लिए मिर्ज़ा असमेर बेग
प्रोफ़ेसर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

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