क्या आप जानते हैं भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त का दिन क्यों चुना गया था

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क्या आप जानते हैं भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त का दिन क्यों चुना गया था-अब जबकि भारत की आजादी के 75 साल पूरे हो चुके हैं और देश आजादी का अमृत पर्व मना रहा है। लेकिन एक विषय जो हमेशा चर्चा में रहता है वह है भारत की आजादी और विभाजन से जुड़ा विवाद। आजादी के 75 साल: क्या भारत की आजादी की तारीख अचानक तय हो गई थी? आइए जानते हैं क्या है सच्चाई।

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क्या आप जानते हैं भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त का दिन क्यों चुना गया था?
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क्या आप जानते हैं भारत की आजादी के लिए 15 अगस्त का दिन क्यों चुना गया था?

कोई भी भारतीय नहीं जानता था कि 3 जून 1947 का दिन भारत की आजादी की तारीख तय करेगा।

वैसे, 3 जून 1947 को वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को भारत की स्वतंत्रता और विभाजन दोनों की औपचारिक घोषणा करनी थी। लेकिन वह तारीख क्या होगी यह अभी स्पष्ट नहीं है।

वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन इस दिन ‘3 जून योजना’ यानी ‘माउंटबेटन योजना’ (जिसमें भारत और पाकिस्तान के विभाजन का प्रारूप भी था) की घोषणा करने वाले थे।

अपनी घोषणा से एक रात पहले, उन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ दो बैठकें कीं, जिनका उल्लेख डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स की पुस्तक फ्रीडम एट मिडनाइट में व्यापक रूप से किया गया है। वे लिखते हैं कि फिर उस रात वायसराय भवन के लंबे बरामदों में अँधेरा और सन्नाटा था।

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3 जून की रात से पहले क्या हुआ था?

लैपियरे और कॉलिन्स ने अपनी पुस्तक में उल्लेख किया है कि 2 जून 1947 को सात भारतीय नेता समझौते के दस्तावेजों को पढ़ने और सुनने के लिए वायसराय से मिलने लॉर्ड माउंटबेटन के कमरे में गए थे। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी थे।

दूसरी ओर, मुस्लिम लीग के नेता, मोहम्मद अली जिन्ना, लियाकत अली खान और अब्दुर्रब निश्तार वहां मौजूद थे, जबकि बलदेव सिंह सिखों के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में वहां पहुंचे। गौरतलब है कि महात्मा गांधी इस पहली मुलाकात में शामिल नहीं थे।

माउंटबेटन ने इस बैठक में अनावश्यक बहस न करने का निर्णय लिया था। इसलिए उन्होंने सबसे पहले जिन्ना से पूछा कि क्या वे कैबिनेट मिशन में कल्पना के अनुसार भारत को स्वीकार करेंगे। जिन्ना तैयार नहीं थे।

लॉर्ड माउंटबेटन ने तब अपनी योजना का एक बिंदु रखना शुरू किया:

  • पंजाब और बंगाल में, जो हिंदू और मुस्लिम बहुल जिले हैं, उनके सदस्यों की एक अलग बैठक बुलाई जाएगी।
  • यदि कोई दल प्रांत का बंटवारा चाहता है तो वह किया जाएगा।
  • दो डोमिनियन और दो संविधान सभाएं बनेंगी।
  • सिंध प्रांत अपना फैसला लेगा।
  • असम के नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर और सिलहट में जनमत संग्रह होगा कि भारत के किस हिस्से (भारत या पाकिस्तान) के साथ वे जाना चाहते हैं।
  • भारतीय राजवाड़ों (स्वदेशी राजाओं) को स्वतंत्र रहने का विकल्प नहीं दिया जा सकता। इसलिए उन्हें या तो भारत में शामिल होना होगा या पाकिस्तान में।
  • पाकिस्तान में शामिल नहीं होगा हैदराबाद यानि यह भारत का हिस्सा होगा।
  • यदि विभाजन में कोई समस्या या अड़चन आती है तो एक स्वतंत्र सीमा आयोग का गठन किया जाएगा।

बैठक में अपनी बात को समाप्त करते हुए माउंटबेटन ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि आप सभी आधी रात तक इस योजना पर अपना जवाब दें।

उन्होंने आशा व्यक्त की कि आधी रात से पहले मुस्लिम लीग, कांग्रेस और सिख सभी इस योजना को स्वीकार करने के लिए सहमत होंगे।

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दूसरी बैठक में, गांधी, और मौन (गांधी का मौन व्रत)

गौरतलब है कि महात्मा गांधी ने भारत की आजादी और बंटवारे से जुड़ी पहली बैठक में शामिल होने से इसलिए मना कर दिया था क्योंकि उस वक्त वह कांग्रेस के किसी पद पर नहीं थे। लेकिन इसके बावजूद पूरी सभा पर उनका वजूद छाया रहा। लॉर्ड माउंटबेटन गांधी के लिए बहुत सम्मान प्रदर्शित करते थे।

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लेकिन आधी रात को एक और बैठक हुई और उसमें गांधी मौजूद थे। माउंटबेटन इस बात से आशंकित थे कि गांधी ऐसी बात न छेड़ें जिससे दोनों के बीच दरार पैदा हो जाए।

लैपिएरे और कॉलिन्स ने लिखा कि माउंटबेटन अपनी कुर्सी से उठे और महात्मा गांधी के स्वागत के लिए तेजी से आगे बढ़े, लेकिन अचानक उनके कदम रुक गए। गांधी ने अपने होठों पर उंगली रखकर (इशारा किया कि आज उनका मौन व्रत है) उन्हें रोका। माउंटबेटन को यह समझने में देर नहीं लगी कि आज गांधी जी का मौन व्रत है।

इसके बाद माउंटबेटन ने अपनी पूरी योजना के बारे में बताया। गांधी ने एक लिफाफा लिया और उसके पीछे कुछ लिखने लगे। लिखते समय गाँधी ने पाँच पुराने लिफाफे भरे। लॉर्ड माउंटबेटन ने उन लिफाफों को आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखा था।

गांधी ने लिखा, “मुझे खेद है कि मैं आज बोल नहीं सकता। मैं सोमवार को मौन व्रत का पालन करता हूं। मौन का व्रत लेते हुए, मैंने केवल दो स्थितियों में इसे तोड़ने की अनुमति दी है। एक, जब एक उच्च अधिकारी के साथ एक तत्काल कोई समस्या है, और दूसरा जब किसी बीमार की देखभाल करते हैं। लेकिन मैं भलीभांति जानता हूं कि आप ऐसा नहीं चाहते कि मैं आज अपनी चुप्पी तोड़ूं। मुझे कुछ चीजों के बारे में कुछ कहना है लेकिन आज नहीं। अगर मैं फिर से मिलूं, तो मैं निश्चित रूप से कहूंगा ।”

इसके बाद गांधी सभा से उठे और बाहर चले गए।

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जिन्ना की हठधर्मिता और माउंटबेटन की कुंद

लॉर्ड माउंटबेटन ने समय सीमा के भीतर स्वतंत्रता और विभाजन के संबंध में कांग्रेस और सिखों की सहमति प्राप्त कर ली थी, लेकिन मुहम्मद अली जिन्ना फिर भी नहीं माने। डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स ने इस घटना के बारे में विस्तार से लिखा है।

वह लिखते हैं कि जिन्ना अभी भी ‘हां’ कहने में झिझक रहे थे, लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन ने भी मन बना लिया था कि वह उन्हें ‘हां’ करने के लिए बाध्य करते रहेंगे।

दोनों के बीच बातचीत शांति से चलती रही, जिन्ना स्थिति को टालते रहे, और फिर अंत में माउंटबेटन ने जोर देकर कहा, “मिस्टर जिन्ना मैं आपको अवगत करना चाहता हूं कि मैं आपको अपनी विभाजन और स्वतंत्रता की इस योजना को बर्बाद नहीं करने दूंगा।

कल होने बैठक वाली बैठक में मैं कहूंगा कि मुझे कांग्रेस की स्वीकृति मिल चुकी है। उन्होंने कुछ संदेह व्यक्त किये हैं जिन्हें मैं दूर कर दूंगा। सिखों ने भी अपनी सहमति व्यक्त की है।

लॉर्ड माउंटबेटन ने आगे कहा, “उसके बाद, मैं सभा में मौजूद सदस्यों से कहूंगा कि कल रात मिस्टर जिन्ना के साथ मेरी बहुत दोस्ताना माहौल में बातचीत हुई और हमने योजना पर विस्तार से चर्चा की और जिन्ना साहब ने मुझे व्यक्तिगत तौर से आस्वस्त किया है कि वह योजना से सहमत हैं।” उस समय मैं तुम्हारी ओर देखूंगा। मैं नहीं चाहता कि आप उस समय कुछ कहें।”

“मैं जिन्ना साहब बस आपसे इतना चाहता हूं कि आप उस समय चुप रहें और सिर हिलाकर अपनी स्वकृति जाहिर करें, यह दर्शाने के लिए कि आप मेरी बात से पूरी तरह सहमत हैं। यदि ऐसा नहीं करते हैं, तो समझ लें कि मैं भविष्य में आपके लिए कुछ करने में असमर्थ रहूँगा। आपका पूरा बनाया हुआ खेल बिगड़ जाएगा। सब कुछ खत्म हो जायेगा।”

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विभाजन की घोषणा

और फिर जैसा पहले ही तय हो चुका था। लॉर्ड माउंटबेटन ने विभाजन और स्वतंत्रता की औपचारिक स्वीकृति के लिए भारतीय नेताओं के साथ एक बैठक की, जिसमें सब कुछ वैसा ही हुआ, जैसा उन्होंने एक रात पहले जिन्ना को समझाया था।

3 जून 1947 को शाम करीब सात बजे सभी प्रमुख नेताओं ने औपचारिक रूप से दो अलग-अलग देशों के निर्माण के लिए अपनी सहमति की घोषणा की।

बैठक में मौजूद सदस्यों के बीच लॉर्ड माउंटबेटन ने सबसे पहले अपनी बात की पूरी की। माउन्टवेटन के पश्चात् नेहरू ने हिंदी में अपनी बात कही, “दर्द और यातना के बीच भारत का विभाजन हो रहा है और इसके महान भविष्य का निर्माण हो रहा है।”

फिर मोहम्मद अली जिन्ना की बारी आई। उन्होंने अंग्रेजी में भाषण दिया और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे के साथ अपना भाषण समाप्त किया। उनका भाषण बाद में रेडियो उद्घोषक द्वारा उर्दू में पढ़ा गया। विभाजन की सहमति की घोषणा रेडियो के माध्यम से की जा रही थी।

अगले दिन लार्ड माउंटबेटन को संदेश मिला कि महात्मा गांधी कांग्रेस नेताओं से नाता तोड़कर प्रार्थना सभा करने वाले हैं और जो रात को बैठक में नहीं कह सके, वे आज कहेंगे.

लैपिएरे और कॉलिन्स विस्तार से लिखते हैं कि एक प्रार्थना सभा हुई, लेकिन गांधी ने कहा, “विभाजन के लिए माउंटबेटन को दोष देने से कोई फायदा नहीं है। स्वयं को देखो को देखो, अपने दिमाग को झकझोरे, तब आपको होश आएगा कि क्या हुआ है।”

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अचानक आजादी की तारीख तय हो गई!

अगले दिन लॉर्ड माउंटबेटन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया और अपनी योजना के बारे में बताया, जो भारत का भूगोल और भविष्य बदलने वाली थी। सब लोग वायसराय का भाषण ध्यान से सुन रहे थे। और सवालों की बौछार हो रही थी।

फिर एक सवाल आया जिसका जवाब तय नहीं था। सवाल था, “अगर हर कोई इस बात से सहमत है कि सत्ता जल्द से जल्द सौंप दी जानी चाहिए, सर, क्या आपने कभी निश्चित तारीख के बारे में सोचा है?”

डोमिनिक लैपिएरे और लैरी कॉलिन्स ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में लिखते हैं, “माउंटबेटन ने अपना दिमाग दौड़ाना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्होंने कोई तारीख तय नहीं की थी। लेकिन उनका मानना ​​था कि यह काम जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए। हर कोई उस तारीख को सुनने का इंतजार कर रहा था। वहां हॉल में सन्नाटा पसरा हुआ था।

लैपियरे और कोलिन्स ने लिखा है कि लॉर्ड माउंटबेटन ने बाद में इस घटना को याद करते हुए कहा, “मैं यह साबित करने के लिए दृढ़ था कि सब कुछ मेरा किया है।”

अचानक माउंटबेटन ने उस समय प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि मैंने सत्ता सौंपने की तारीख तय कर दी है। इतना कहते ही उनके दिमाग में कई तारीखें घूमने लगीं।

तभी उन्हें अपने जीवन की सबसे शानदार जीत याद आई, जब जापानी सेना ने उनके नेतृत्व में आत्मसमर्पण कर दिया। जापानी सेना के आत्मसमर्पण की दूसरी वर्षगांठ निकट थी।

लैपिएरे और कॉलिन्स लिखते हैं, “अचानक माउंटबेटन की आवाज गुंजी और उन्होंने घोषणा की कि 15 अगस्त, 1947 को सत्ता भारतियों को हस्तांतरित कर दी जाएगी।”

अचानक से लंदन से भारत में एक विस्फोट हुआ जिसकी गूंज आज भी 75 साल बाद भी सुनाई देती है, जिस दिन भारत की स्वतंत्रता की तारीख निश्चित की गई और अपने मुताबिक स्वत्नत्रता और विभाजन घोषित किया गया। किसी ने नहीं सोचा था कि लॉर्ड माउंटबेटन भारत में ब्रिटेन के इतिहास पर इस तरह से पर्दा डाल देंगे।

अंतत: 14 और 15 अगस्त की दरम्यानी (आधी रात) रात को भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान एक नए देश के रूप में दुनियां के नक्से पर अस्तित्व में आया। अब दोनों देश स्वत्रन्त्र थे लेकिन एकजुट नहीं।

SOURCES-BBC

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