बौद्ध धर्म प्राचीन भारत में 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में सिद्धार्थ गौतम द्वारा स्थापित एक धर्म और दर्शन है, जिन्हें महात्मा बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग पर आधारित है, जिनका उद्देश्य दुख को समाप्त करना और ज्ञान प्राप्त करना है।
बुद्ध का जीवन और शिक्षाएं
बौद्ध धर्म पूरे एशिया में फैल गया, चीन, जापान और थाईलैंड जैसे देशों में एक प्रमुख धर्म बन गया। आज, दुनिया भर में इसके करोड़ों अनुयायी हैं और इसे विश्व के प्रमुख धर्मों में से एक माना जाता है जो अहिंसा के सिद्धांत का पालन करता है।
बौद्ध शिक्षाओं का केंद्र नश्वरता की अवधारणा और यह अहसास है कि सभी चीजें अन्योन्याश्रित हैं और लगातार बदलती रहती हैं। बौद्ध जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में विश्वास करते हैं, और जागरूकता, करुणा और ज्ञान की खोज करके ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।
बौद्ध धर्म किसी ईश्वर की पूजा पर आधारित नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत प्रयास और व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है। बौद्ध धर्म में ध्यान और सचेतनता केंद्रीय प्रथाएं हैं, जो अनुयायियों को अंतर्दृष्टि विकसित करने और स्वयं के भ्रम को दूर करने में मदद करती हैं।
महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय
नाम | गौतम बुद्ध |
वास्तविक नाम | सिद्धार्थ (गोत्रीय अभिधान-गौतम) |
जन्म | 563 ई0पू0 |
जन्म-स्थान | लुम्बिनी (कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में) |
पिता का नाम | शुद्धोधन (कपिलवस्तु के शाक्य गण के प्रधान) |
माता का नाम | माया देवी अथवा महामाया (कोलिय वंश की कन्या ) |
पालन-पोषण | मौसी महाप्रजापति गौतमी द्वारा |
पत्नी का नाम | यशोधरा ( शाक्य कुल की) |
संतान एक पुत्र | राहुल |
मृत्यु | 483 ई०पू० (मल्लों की राजधानी कुशीनगर में) |
उदय का कारण | मुख्यत उत्तर-पूर्व में एक नवीन प्रकार की आर्थिक व्यवस्था का प्रादुर्भाव होना। |
गौतम बुद्ध
गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में लगभग 563 ईसा पूर्व में या 566 ई० पू० में कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी ग्राम के आम्र-कुंज में हुआ था। उनका जन्म एक शाही परिवार में हुआ था, और उनके पिता शुद्धोधन शाक्य वंश के राजा थे। जन्म के 7वें दिन उनकी माता का देहावसान हो गया। अतः इनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने इनका पालन-पोषण किया।
बुद्ध का 80 वर्ष की आयु में लगभग 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, भारत में निधन हो गया। इस घटना को महापरिनिर्वाण या अंतिम मृत्यु के रूप में जाना जाता है। बौद्ध परंपरा के अनुसार, उन्होंने 35 वर्ष की आयु में पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया और अपने जीवन के शेष 45 वर्ष अध्यापन और अपनी शिक्षाओं के प्रसार में बिताए, जब तक कि उनकी मृत्यु नहीं हो गई।
कालदेव तथा ब्राह्मण कौण्डिन्य ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक एक महान चक्रवर्ती राजा अथवा महान संन्यासी होगा। सिद्धार्थ अल्पायु से ही गंभीर व्यक्तित्व के थे। वे जम्बू वृक्ष के नीचे प्रायः ध्यान मग्न बैठे रहते थे। 16 वर्ष की आयु में इनका विवाह यशोधरा ( इनके अन्य नाम गोपा, बिम्बा तथा भद्रकच्छा भी हैं) से कर दिया गया। इनसे राहुल नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।
गौतम बुद्ध के जीवन सम्बन्धी चार दृश्य अत्यन्त प्रसिद्ध हैं, जिन्हें देखकर उनके मन में वैराग्य की भावना उठी-
1. वृद्ध व्यक्ति को देखना
2. बीमार व्यक्ति को देखना
3. मृत व्यक्ति को देखना
4. प्रसन्न मुद्रा में संन्यासी को देखना
निरंतर चिंतन में डूबे सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया। बौद्ध ग्रंथों में इस घटना को महाभिनिष्क्रमण कहा गया है।
बुद्ध के सारथी का नाम चाण (चन्ना) तथा घोड़े का नाम कन्थक था, जो इन्हें रथ द्वारा महल से कुछ दूर ले जाकर छोड़ आया। बुद्ध सर्वप्रथम अनुपिय नामक आम्र-उद्यान में एक सप्ताह तक रहे। इसके बाद मगध की राजधानी राजगृह पहुँचे, जहाँ का शासक विम्बसार था। वैशाली के समीप बुद्ध की मुलाकात आलार कालाम नाम संन्यासी से हुई जो सांख्य दर्शन का आचार्य था। राजगृह के समीप इनकी मुलाकात रुद्रक रामपुत्र नामक धर्माचार्य से हुई।
तदुपरान्त वे उरुवेला (बोध गया) पहुंचे तथा निरंजना नदी के तट पर एक वृक्ष के नीचे तपस्या की। इनके साथ 5 ब्राह्मण संन्यासी भी तपस्या कर रहे थे। इनके नाम थे कौण्डिन्य, ओज, अस्सजि, बप्प और भद्दिय।