चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के एक प्रमुख राजनेता थे, जिन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता है। वे भारत के पांचवें प्रधानमंत्री थे, यद्यपि उनका कार्यकाल बहुत कम रहा। वे लगभग 6 माह ही भारत के प्रधानमंत्री (28 जुलाई 1979-14 जनवरी 1980) रहे। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन एक सामान्य भारतीय और किसान के रूप में जिया। भारत सरकार ने वर्ष 2024 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया है. आज इस लेख में हम चौधरी चरण सिंह जी के जीवन से जुड़ी जानकरी जैसे-प्रारम्भिक जीवन, शिक्षा, राजनीतिक जीवन, परिवार और संतान, अनमोल विचार, भारत रत्न के बारे में जानेगे।
Chaudhary Charan Singh–जीवन परिचय जन्मस्थान
चौधरी साहब का जन्म एक साधारण जाट परिवार में हुआ था। उनका जन्म 23 दिसंबर 1902 में वर्तमान हापुड़ जिले के नूरपुर गांव में हुआ था। उन्हें पिता का नाम चौधरी मीर सिंह था, और माता का नाम श्रीमती नेत्र कौर था। चौधरी जी के जन्म के 6 माह बाद उनके पिता सपरिवार जानी खुर्द के पास भूपगढी में आकर रहने लगे।
भूपगढ़ी गांव में ही चौधरी चरण सिंह जी का बचपन बीता और उन्होंने गरीबी तथा किसानों को बहुत निकट से देखा और उनके ह्रदय में उनके लिए शुरू से ही सहानभूति पनपी। उन्होंने किसानों और गरीबों के शोषण को महशुस किया।
नाम | चौधरी चरण सिंह |
जन्म | 23 दिसंबर 1902 |
जन्मस्थान | वर्तमान हापुड़ जिले के नूरपुर गांव |
पिता का नाम | चौधरी मीर सिंह |
माता का नाम | श्रीमती नेत्र कौर |
पत्नी का नाम | गायत्री देवी |
संतान | अजीत सिंह और पांच पुत्री – ज्ञानवती सिंह, सरोज वर्मा, सत्यवती सोलंकी, शारदा सिंह और वेदवती सिंह |
पौत्र | जयंत चौधरी |
जाति | जाट |
गौत्र | तेवतिया |
शिक्षा | आगरा विश्वविद्यालय से बीएससी और 1925 में इतिहास विषय में पोस्ट ग्रेजुएट पूरा किया। 1928 में आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा |
पद | भारत के प्रधानमंत्री (28 जुलाई 1979-14 जनवरी 1980), उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री-17 अप्रैल 1968, 17 फरवरी 1970 |
राजनीतिक संबद्धता | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, जनता पार्टी |
मृत्यु | 29 मई 1987 |
मृत्यु का स्थान | नई दिल्ली |
पुरस्कार और सम्मान | भारत रत्न 2024 |
विकिपीडिया | चौधरी चरण सिंह |
चौधरी चरण सिंह की शिक्षा
चौधरी साहब ने गांव में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद उन्होंने ग्रेजुएट किया। उसके बाद 1919 में राजकीय हाई स्कूल से मैट्रिकुलेशन पासकिया। 1923 में, उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से बीएससी और 1925 में इतिहास विषय में पोस्ट ग्रेजुएट पूरा किया। 1928 में आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने ग़ाज़ियाबाद की जिला अदालत में एक अधिवक्ता के रूप में अपना कार्य शुरू किया। वे सिर्फ सच्चे लोगों के मुकदमें लड़ते थे।
स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
गुलाम भारत में जन्म लेने वाले चौधरी साहब ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया और देश की आज़ादी में योदान दिया। कांग्रेस द्वारा 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का नारा दिया गया, जिससे प्रेरित होकर युवा चौधरी के मन में भारत माता की आज़ादी का कण फूटा। उन्होंने गाज़ियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन और चौधरी चरण सिंह
1930 में महात्मा गाँधी ने नमक आंदोलन, जिसे सविनय अवज्ञा आंदोलन के नाम से जाना जाता है। चौधरी साहब ने गाजियबाद की हिंडन नदी के के किनारे नमक बनाकर नमक कानून की अवज्ञा की। चौधरी साहब के गिरफ्तार कर 6 माह की कैद की सजा सुनाई गई। जेल से निकल कर चौधरी साहब ने खुदको गाँधी और स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्पित कर दिया।
1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी वे गिरफ्तार हुए और 1941 में रिहा किये गए।
भारत छोड़ो आंदोलन और चौधरी चरण सिंह
9 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन जिसे अगस्त क्रांति के नाम से जाना जाता है में चरण सिंह जी ने उल्लेखनीय योगदान दिया।’ करो या मरो’ का नारा गाँधी जी ने इसी दौरान दिया और चरण सिंह भूमिगत रहते हुए मेरठ, बुलंदशहर, हापुड़, सारथना, मवाना और गाज़ियाबाद में गुप्त क्रन्तिकारी संगठन तैयार किया। युवा चरण सिंह के क्रन्तिकारी क्रियाकलापों से त्रस्त ब्रिटिश सरकार ने उन्हें देखते ही गोली मारने के आदेश दिए। उन्हें गिरफ्तार किया गया और डेढ़ वर्ष के सजा हुई। जेल में रहते हुए उन्होंने एक पुस्तक ‘शिष्टाचार’ लिखी। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति और सामाजिक शिष्टाचार पर आधारित एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है।
भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह का योगदान
- भारत की आज़ादी के बाद चरण सिंह जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे किसानों के मसीहा कहे जाते हैं। वे पहली बार 1937 में छपरौली से यूपी विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए। उन्होंने उन्होंने 1946, 1952, 1962 और 1967 में लगातार इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
- उन्होंने 1946 में वे पंडित गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व वाली यूपी विधानसभा में सचिव के रूप में कार्य किया। चौधरी चरण सिंह ने राजस्व, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला।
- 1951 में पदोन्नति करते हुए उन्हें कैबिनेट मंत्री के रूप में न्याय और सूचना विभाग मंत्रालय दिया गया।
- चौधरी साहब की बदौलत 1952 में उत्तर प्रदेश से जमींदारी प्रथा का अंत हुआ और गरीब किसानों को मालिकाना हक़ मिला मिला।
- पटवारी यानि लेखपाल के पद का सृजन किया।
- डॉ. संपूर्णानंद के मंत्रिमंडल 1952 में, उन्होंने राजस्व और कृषि मंत्री का महत्पूर्ण मंत्रालय संभाला।
- उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून 1954 में लागू कराया।
- 1959 में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और तब वे राजस्व एवं परिवहन विभाग मंत्री थे।
- 1960 में चौधरी साहब ने श्री सी.बी. गुप्ता के नेतृत्व वाली सरकार में गृह एवं कृषि मंत्रालय संभाला।
- 1962-63 तक, उन्होंने उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री श्रीमती सुचेता कृपलानी की सरकार में कृषि और वन मंत्री के रूप में पदभार संभाला।
- 1965 में उन्होंने कृषि विभाग से त्यागपत्र दिया और 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग मंत्री पद संभाला।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल
चौधरी साहब पहली बार 3 अप्रैल 1967 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। मगर एक वर्ष पश्चात् 17 अप्रैल 1968 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और मध्यवधि चुनाव में कूद गए।
मध्यवधि चुनाव में उन्हें अच्छी सफलता मिली और कांग्रेस को तोड़कर जनसंघ के सहयोग से दूसरी बार 17 फरवरी 1970 को मुख्यमंत्री का पद संभाला। 2 अक्टूबर 1970 को उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
केंद्र सरकार में कार्य
- 1977 में देश में जनता पार्टी की सरकार बनी और चरण सिंह जी ने केंद्र की राजनीति की और रूख किया। वे केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने और मंडल तथा अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।
- चौधरी साहब ने 1979 में मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
नाबार्ड की स्थापना की
चौधरी चरण सिंह को राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण बैंक यानि नाबार्ड की स्थापना का श्रेय है।
भारत का प्रधानमंत्री के रूप में कार्य
चौधरी चरण सिंह जी भारतीय संसदीय इतिहास में सबसे छोटे कार्यकाल के प्रधानमंत्री रहे। वे बागपत लोकसभा सीट से सांसद बने और उन्होंने 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे प्रधानमंत्री के रूप में एक भी दिन संसद में नहीं गए।
चौधरी चरण सिंह की पत्नी और संतान
चौधरी जी का विवाह गायत्री देवी (विवाह 1929) के साथ हुआ था। गायत्री जी का निधन 10 मई 2002 को हुआ। उनकी संतान के रूप में 6 बच्चों ने जन्म लिया। सबसे बड़े पुत्र अजीत सिंह और पांच पुत्री – ज्ञानवती सिंह, सरोज वर्मा, सत्यवती सोलंकी, शारदा सिंह और वेदवती सिंह। अजीत सिंह की मृत्यु 6 मई 2021 को हुई। पौत्र जयंत चौधरी भारतीय राजनीति में सक्रीय हैं।
मृत्यु कैसे हुई
चौधरी चरण सिंह 29 नवंबर 1985 को ह्रदयघात का सामना करना पड़ा। अमेरिका में उनका इलाज चला। मगर वे इससे बच नहीं सके और 29 मई 1987 को नई दिल्ली आवास पर उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
2024 का भारत रत्न
भारत सरकार ने 2024 के चुनाव को धयान में रखते हुए चौधरी साहब 9 फरवरी 2024 को देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की।
जन्मदिन किस रूप में मनाया जाता है
चौधरी चरण सिंह का जन्मदिवस 23 दिसंबर किसान दिवस राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे किसानों के मसीहा के नाम से प्रसिद्ध हैं।
चौधरी चरण सिंह की कास्ट
चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश की जाट जाति से ताल्लुक रखते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट जाति का वर्चस्व है।
चौधरी चरण सिंह का गोत्र
चौधरी चरण सिंह जाट जाति के तेवतिया गौत्र से संबंधित हैं।
चौधरी चरण सिंह के किस्से
1- मैले- कुचले कपड़े पहनकर इटावा जिले के ऊसराहार थाने पहुँच गए। किसान और लाचार से दिखने वाले चौधरी साहब ने थानेदार से कहा कि मेरी जेब कट गई है मुझे रिपोर्ट लिखानी है मगर सिपाही ने रिपोर्ट के बदले 35 रूपये की रिश्वत मांगी। सिपाही ने कहा अपना अंगूठा लगाओ तब चौधरी साहब ने जेब से एक मुहर निकली जिस पर लिखा था प्रधानमंत्री भारत सरकार। ये देख कर पुलिस के होश उड़ गए। उसके बाद पूरा थाना सस्पेंड हो गया।
2– एक किस्सा 1979 का है जब चौधरी साहब मैले-कुचले कपड़े पहनकर इटावा जिले के ऊसराहार थाने पहुँच गए। किसान और लाचार से दिखने वाले चौधरी साहब ने थानेदार से कहा कि मेरी जेब कट गई है मुझे रिपोर्ट लिखानी है मगर सिपाही ने रिपोर्ट के बदले 35 रूपये की रिश्वत मांगी। सिपाही ने कहा अपना अंगूठा लगाओ तब चौधरी साहब ने जेब से एक मुहर निकली जिस पर लिखा था प्रधानमंत्री भारत सरकार। ये देख कर पुलिस के होश उड़ गए। उसके बाद पूरा थाना सस्पेंड हो गया।
3– किसान बन गए थे रातों-रात मालिक -1952 में उत्तर प्रदेश सरकार ने जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया था. इसी क्रम में भूमि संरक्षण कानून साल 1954 में पारित हुआ. जिसके बाद लाखों की संख्या में किसान रातों-रात जमीन के मलिक हो गए. भूमि का मालिकाना अधिकार मिलने से किसान खुश हो गए. कृषि में कई प्रकार की छूट, आर्थिक मदद के नियम भी उन्हीं की देन हैं. जब केंद्र में वे मंत्री बने तो किसानों की मदद करने वाले बैंक नाबार्ड की स्थापना की.
4- जब 27 हज़ार पटवारियों को किया नौकरी से बाहर – बात 1952 की है जब जमींदारी कानून के विरुद्ध 27 हज़ार पटवारियों सामूहिक इस्तीफा दे दिया। मगर चौधरी साहब ने झुकने की बजाय इन सभी को हमेशा के लिए नौकरी से निकाल दिया और नए पटवारियों की भर्ती की। इसमें 18% दलित पटवारी रखे गए, विशेषकर हरिजन।
चौधरी चरण सिंह द्वारा लिखित पुस्तकें
पुस्तकें | Title in English |
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जमींदारी उन्मूलन | “Abolition of Landlordism” |
सहकारी खेती एक्स-रे | “Cooperative Farming: An Expose” |
भारत की गरीबी और उसका समाधान | “Poverty in India and its Solution” |
किसान स्वामित्व या श्रमिकों के लिए भूमि | “Land Ownership for Farmers or Division of Land Below a Certain Minimum” |
एक निश्चित न्यूनतम से नीचे जोत के विभाजन की रोकथाम | “Prevention of Division of Land Below a Certain Minimum” |
चौधरी चरण सिंह के अनमोल विचार
गांव में असली भारत बसता है।
अगर देश तरक्की करनी है तो सबको पुरुषार्थ करना होगा… हम सब को पुरुषार्थ करना होगा मैं भी उसमें शामिल हूँ… मेरे सहयोगी मंत्रियों को, सबको शामिल करता हूँ … हमें निरंतर परिश्रम करना पड़ेगा … तब मेरा देश प्रगति करेगा।
ग्रामीण भारत के विकास के बिना देश का विकास असंभव है।
किसानों की आर्थिक उन्नति के बिना देश की प्रगति असंभव है।
किसानों के विकास में ही देश का विकास है।
किसानों की खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ेगी तब तक औद्योगिक विकास संभव नहीं है।
अगर देश को तरक्की करनी है तो भ्रष्टाचार को जड़ से ख़तम करना होगा।
चौधरी का अर्थ, जो हल की फाल धरती पर चलाता है।
हरिजन आदिवासी, भूमिहीन, बेरोजगार सिमित रोजगार है और भारत के 50% किसान जिनके पास मात्र 1 हैक्टेयर से कम भूमि है … इन सब सरकार को विशेष ध्यान देना होगा।
किसान इस देश का वास्तविक मालिक है, परन्तु वह अपनी शक्ति को भूल चुका है।
देश की तरक्की का मार्ग गांवों के खेतों-खलिहानों से होकर जाता है
निष्कर्ष
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