भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, महत्व और क्यों असफल हुआ ?

भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, महत्व और क्यों असफल हुआ ?

Share This Post With Friends

Last updated on April 29th, 2023 at 01:27 pm

भारत छोड़ो आंदोलन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त, 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू किया गया एक स्वाधीनता आंदोलन था, जिसमें भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को भारत से समाप्त करने की मांग की गई थी। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया था। आंदोलन को छात्रों, किसानों और श्रमिकों सहित समाज के सभी वर्गों से व्यापक समर्थन मिला।

भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, महत्व और क्यों असफल हुआ ?

भारत छोड़ो आंदोलन

अंग्रेजों ने आंदोलन का कड़ा जवाब दिया और कई भारतीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिनमें महात्मा गांधी भी शामिल थे, जिन्हें दो साल के लिए जेल में डाल दिया गया था। अंग्रेजों ने भी आंदोलन को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक विरोध और भारतीय प्रदर्शनकारियों और ब्रिटिश अधिकारियों के बीच झड़पें हुईं।

अंग्रेजों की भारी-भरकम प्रतिक्रिया के बावजूद, भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। इसने नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत बनाने में मदद की। अंत में, लगभग 200 वर्षों के ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के बाद, भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की।

असहयोग आंदोलन वह आंदोलन था जिसका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यही वह आंदोलन था जब अहिंसा  पुजारी महात्मा गाँधी भी हिंसा के लिए तैयार हो गए, जब गाँधी जी ने नारा दिया ‘करो या मरो’ ( do or die ),  यदयपि यह प्रश्न अक्सर उठता है कि भारत छोड़ो आंदोलन क्यों असफल हुआ’। इस लेख मैं आपको भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े सभी प्रश्नों से परिचित कराऊंगा। यह लेख पूर्णतया  शोध करके तैयार किया गया है ताकि पाठकों के सम्मुख विश्वसनीय और शोधपरक जानकारी प्रस्तुत की जा सके।

भारत छोड़ो आंदोलन क्यों शुरू किया गया 

मानव इतिहास में सदा ही जालिम और विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किये गए दमन तथा अत्याचार का विरोध होता रहा है।  जब-जब मानव का विरोध सफल हुआ, उसे स्वतंत्रता मिली। 1942 में होने वाला ‘भारत छोडो आंदोलन’ भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक ऐसी ही महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। समस्त देश में फैलने वाले इस आंदोलन ने अंग्रेजों को भारतीय राष्ट्रवाद की शक्ति का परिचय दिया। इस आंदोलन के पीछे निम्नलिखित कारण थे —

1- क्रिप्स मिशन की विफलता से यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों की अनिच्छुक साझेदारी तो रखना चाहती थ, लेकिन किसी सम्मानजनक समझौते के लिए तैयार नहीं थी। नेहरू और गाँधी भी जो इस फ़ासिस्ट-विरोधी युद्ध को किसी तरह कमजोर करना नहीं चाहते थे, इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि और अधिक चुप रहना यह स्वीकार कर लेना होगा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की इच्छा जाने बिना भारत का भाग्य तय करने का अधिकार है। अतः कांग्रेस ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा। 

2- भारत छोडो आंदोलन के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण यह था कि विश्व युद्ध के कारण जरुरी सामान की कीमते बहुत बढ़ गयी थीं और आवश्यक वस्तुओं की बाजार में भारी कमी हो गई थी।बंगाल और उड़ीसा में सरकार ने नावों को इस संदेह में जब्त कर लिया कि कहीं इनका प्रयोग जापानियों द्वारा न किया जाये।सिंचाई की नहरों को सूखा दिया गया जिससे फसलें सूखने लगीं। सिंगापुर और रंगून पर जापानियों के कब्जे के बाद कलकत्ता पर बम बरसाए गए जिससे हजारों लोग शहर छोड़कर फ़ाग गए। 

3- मलाया और वर्मा को ब्रिटिश सरकार ने जिस तरह खाली किया, यानि सिर्फ गोरे लोगों को सुरक्षित निकला गया और स्थानीय जनता को उसके भाग्य पर छोड़ दिया गया।भारतीय जनता भी अब यही सोचकर परेशान थी कि यदि जापानियों का भारत पर हमला हुआ तो अंग्रेज यहाँ भी ऐसा ही करेंगे। अतः राष्ट्रिय आंदोलन के नेताओं ने जनता में विश्वास पैदा करने के लिए संघर्ष छेड़ने का निश्चय किया। 

4- विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार की स्थिति देखकर जनता का विश्वास घट गया था लोग बैंकों और डाकघरों से जमा पैसा निकलने लगे थे और उस पैसे को सोने चांदी में निवेश करने लगे थे।अनाज की जमाखोरी अचानक बहुत बढ़ गयी थी। 

Read Also

5- गाँधी जी को लगने लगा था कि अब देर करना सही नहीं होगा।  उन्होंने कांग्रेस को चुनौती दे डाली थी कि अगर उसने संघर्ष का उनका प्रस्ताव अस्वीकार किया तो “मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा”। इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा की अपनी बैठक ( 14 जुलाई 1942 ) में संघर्ष के निर्णय को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। 

गाँधी जी ने ‘हरिजन’ पत्रिका में अंग्रेजों को भारत छोड़ने की मांग करते हुए कहा “भारत को भगवान के भरोसे छोड़ दो और यदि वह असम्भव हो तो उसे अराजकता के भँवर में छोड़ दो” । 

गाँधी जी ने 5 जुलाई 1942 को ‘हरिजन’ में लिखा अंग्रेजों भारत को जपनके लिए मत छोड़ो बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ”

भारत छोडो का प्रस्ताव कब पास किया गया 

वर्धा में 7-14 जुलाई, 1942 को हुई कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद, सरोजनी नायडू, जवाहरलाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल, डॉ० राजेंद्र प्रसाद, सीतारमैया, गोविन्द बल्ल्भ पंत, प्रफुल्ल चंद घोष, सैयद महमूद, आसफ अली, जीवतराम भगवानदास आचार्य कृपलानी, महात्मा गाँधी आदि ने भाग लिया तथा ‘भारत छोडो’ नामक आंदोलन प्रस्ताव पास किया। 

करो या मरो का नारा किसने दिया 

वर्धा प्रस्ताव के बाद गाँधी जी ने कहा आपने सिर्फ अपना फैसला करने का सम्पूर्ण अधिकार मुझे सौंपा है।अब मैं वायसराय से मिलूंगा और उनसे कहूंगा कि वे कांग्रेस का पसताव स्वीकार काट लें। इसमें दो या तीन हफ्ते लग जायेंगे।

लेकिन इतना आप निश्चित जान लें कि मैंमंत्रिमण्डलों वगैरह पर वायसराय से कोई समझौता नहीं करने जा रहा हूँ। सम्पूर्ण आजादी से कम किसी चीज से मैं संतुष्ट नहीं होने वाला। हो सकता है की वे नमक टैक्स, शराबखोरी आदि खत्म करने का प्रस्ताव दें। लेकिन मेरे शब्द होंगे ‘आज़ादी से कम कुछ भी नहीं’।

इसके बाद ही गाँधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया, “एक मंत्र है छोटा -सा मंत्र जो मैं आपको देता हूँ। वह मन्त्र है करो या मरो ( Do Or Die ) या तो हम भारत को आजाद कराएँगे या इस कोशिश में अपनी जान दे देंगे। अपनी गुलामी का स्थायित्व देखने के लिए हम ज़िंदा नहीं रहेंगे। “

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय गवर्नर जनरल (वायसराय )कौन था 

उस समय लार्ड लिनलिथगो  भारत  का वायसराय था। वर्धा  कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित करने के बाद गवर्नर जनरल ने 29 जुलाई, 1942 को कौंसिल की एक बैठक बुलाई, जिसमे उसने गाँधी तथा अन्य कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करने की ओर इशारा किया परन्तु 8 अगस्त तक यह कदम नहीं उठाया गया। 

 भारत छोड़ो आंदोलन कब शुरू हुआ 

8 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सम्मलेन में कहा “….मामूली संघर्ष का अर्थ आंदोलन की शुरुआत नहीं है। आपने केवल अपनी शक्ति मेरे हाथ में दे दी है।  मैं अब वायसराय से भेंट करूँगा तथा उसके द्वारा कांग्रेस की मांग स्वीकार करने की प्रतीक्षा करूँगा।”

गाँधी जी वासराय से मिल भी नहीं पाए तब तक 9 अगस्त 1942 को सभी शीर्ष कोंग्रेसी नेता – गाँधी जी सहित नजरबंद  कर दिए गए। 

गाँधी जी को पूना के आगा खां के महल में नज़रबंद रखा गया। 

शेष कोंग्रेसी नेता – नेहरू, अबुल कलाम, आसफ अली, गोविन्द बल्लभ पंत, प्रफुल्ल चंद घोष, डॉ. पट्टाभि सीतारमैया, डॉ. सैयद महमूद, और जीवतराम भगवान दास आचार्य कृपलानी को अहमद नगर के किले में नजरबन्द रखा गया।

कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य राजेंद्र प्रसाद को पटना में नज़रबंद रखा गया। ये कोंग्रेसी नेता 15 जून 1945 तक बंदीगृह में रहे। इसके साथ ही अंग्रेजी सरकार ने भरतीय कांग्रेस समिति, कांग्रेस कार्यकारिणी तथा प्रांतीय कांग्रेस समिति को भी गैरकानूनी घोषित कर दिया। http://www.histortstudy.in

सरकार की इस आक्रामक कार्यवाही से जनता में भारी आक्रोश  और विदेशी शासन के विरुद्ध जनता उठ कड़ी हुई। इस प्रकार ‘9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन शुरू हो गया’।सर्कार के इस अचनाक हमले से देशभर में तूफान सा आ गया बम्बई में लाखों लोग ग्वालिया टैंक  ओर उमड़ पड़े, जहां एक जनसभा होने की घोषणा की गई थी। अधिकारीयों से भी मुठभेड़ हुई।

अहमदाबाद और पूना में भी यही हुआ।10 अगस्त को दिल्ली, कानपुर, इलाहबाद, वाराणसी, पटना इत्यादि शहरों में हड़ताल रही तथा बड़े-बड़े जुलुस निकले।इसके साथ ही सरकार ने प्रेस पर  पाबंदियां लगा दीं। ‘नेशनल हेराल्ड’ और ‘हरिजन’तो पुरे आंदोलन के दौरान नहीं निकले। 

 भारत छोडो आंदोलन का नेतृत्व किसने किया 

आंदोलन से जुड़े सभी प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे ऐसे में आन्दोलन का कोई एक प्रमुख नेतृत्वकर्ता नहीं था। इस आंदोलन ने धर्मनिरपेक्षता, अंतर्राष्ट्रीयवाद, भाईचारा और स्वतंत्रता का पैगाम गया। आंदोलन को प्रगति देने  उद्देश्य से कांग्रेस के कुछ नेताओं गुप्त रूप से काम करते हुए सूचनाओं के प्रसारण के लिए रेडिओ स्थापित किया। 

राममनोहर लोहिया, वी. एम. खाकर, नादिमन अब्रबाद प्रिंटर तथा उषा मेहता उन अग्रण्य सदस्यों में से थे जिन्होंने आंदोलन के दौरान कांग्रेस की सूचनाओं और कार्यक्रमों के प्रसारण की व्यवस्था की। कांग्रेस प्रसारण स्टेशन मुख्य रूप से बंबई और नासिक से कार्य कर रहा था, परन्तु पुलिस को चकमा देने के लिए स्टेशन को कई बार स्थानांतरित किया गया। 

सरकार को जनता के खुले-आम विद्रोह पर काबू पाने में छः से सात महीने का समय लगा। पर इस बीच देश के विभिन्न हिस्सों में आंदोलन का एक भूमिगत संगठनात्मक ढांचा भी तैयार हो रहा था। आंदोलन की बागडोर अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, राममनोहर लोहिया, सुचेता कृपलानी, छोटुभाई पुराणिक, बीजू पटनायक, आर. पी. गोयनका और बाद में जेल से निकल भागने के बाद जयप्रकाश नारायण जैसे अखिल भारतीय नेताओं ने फरार रहते हुए संभाल ली थी। 

भारत छोडो आंदोलन के समय कुल कितने लोगों की जान गई 

सरकार ने सेना तथा पुलिस की मदद से इस आंदोलन को दबाने के लिए कड़े कदम उठाये। 

सरकारी सूत्रों  अनुसार 538 अवसरों पर निहत्थी जनता पर पुलिस ने गोलियां चलाईं। इससे आंदोलन और भी हिंसक हो गया। लोगों ने सरकारी सम्पत्ति तथा संचार के साधन नष्ट करने शुरू कर दिए। बंगाल तथा मद्रास कई स्थानों पर सशस्त्र आक्रमण किये गए। 

सितम्बर 1942 से फरवरी 1943 तक कुछ स्थानों पर बमों का प्रयोग किया गया, मुख्यतः बम्बई, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के प्रांतों में।  लगभग सारे देश में इस प्रकार की घटनाएं घटने लगीं। सरकारी सूत्रों के अनुसार 940 व्यक्ति मारे गए। 1630 व्यक्ति पुलिस की गोलियों के शिकार हुए, 60229 व्यक्ति बंदी बनाए गए, 18000 व्यक्ति हिरासत में ले लिए गए, 60 जगहों पर फ़ौज की सहायता ली गई और 6 जगहों पर बमों का प्रयोग किया गया।https://studyguru.org.in 

गाँधी जी का उपवास तथा सरकार की नीति 

फरवरी 1943 में गाँधी जी ने जेल में 10 फरवरी से उपवास शुरू कर दिया और घोषणा की कि यह 21 दिन चलेगा।आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के लिए सरकार ने गाँधी जी को दोषी ठहरया। चर्चिल ने 10 दिसंबर 1942 को लोकसभा में कहा था कि कांग्रेस ने गाँधी के अहिंसात्मक मार्ग को त्याग दिया है तथा क्रांति के मार्ग को अपनाया है। 

गाँधी जी के उपवास की खबर फैलते ही आगा खां पैलेस ( जहाँ गाँधी जीको नज़रबंद किया गया था ) के बहार तमाम समर्थकों की भीड़ लग गई। सभी  वर्ग के लोगों  ने गाँधी जी की रिहाई की मांग की यहाँ तक कि अमेरिका का भी दवाब अंग्रेजी सरकार पर था। 

ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की इस घोषणा से कि “जब दुनिया में हम हर कहीं जीत रहे हैं, ऐसे वक़्त में हम एक कमबख्त बुड्ढे के सामने कैसे झुक सकते हैं, जो हमेशा हमारा दुश्मन रहा है।” 

गाँधी जी को बीमारी के आधार पर 6 मई 1944 को रिहा कर दिया गया और इसके साथ ही राजनीतिक गतिविधियों में कमी आ गयी। 

 भारत छोड़ो आंदोलन के प्रति भारत के विभिन्न दलों का रवैया 

मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और मुसलमानों को इससे दूर रहने को कहा। 

हिन्दू महासभा के प्रमुख वीर सावरकर तथा हिन्दू महासभा के नेताओं ने यद्पि सरकार की कटु आलोचना की मगर आंदोलन में हिन्दुओं को भाग न लेने को कहा। 

उदारवादियों ने भी आंदोलन को अच्छा  नहीं समझा।  सर तेज बहादुर सप्रू ( उदारवादी ) ने कॉग्रेस के प्रस्ताव को अकल्पित तथा असामयिक बतया तथा कहा कि गाँधी को अब अपने-आपको राजनीति से अलग कर लेना चाहिए। सर्वेंट ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष ह्रदयनाथ कुंजरू ने कहा कि “जन नागरिक अवज्ञा आंदोलन देश के विरुद्ध होगा”। 

1942 के असहयोग आंदोलन के संबंध में डा० अम्बेडकर ने कहा “कानून और व्यवस्था को कमजोर करना पागलपन है जब कि दुश्मन हमारी सीमा पर है”।

सिखों और ईसाइयों ने भी भी इस आंदोलन का विरोध किया केवल पारसियों ने समर्थन किया। 

भारत छोड़ो आंदोलन क्यों असफल हुआ

भारत छोड़ो आंदोलन जिसे अगस्त क्रांति  के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय जनता के अदम्य साहस और लड़ाकूपन की अद्वितीय मिशाल है। उसका दमन भी उतना ही पाशविक और अभूतपूर्व था। जिन परिस्थितियों में यह संघर्ष छेड़ा गया, वैसी प्रतिकूल स्थितियां भी राष्ट्रीय आंदोलन में अब तक नहीं आई थीं। युद्ध का सहारा लेकर अंग्रेज सर्कार ने स्वयं को सख्त-से-सख्त कानूनों से लैस कर लिया था और शांतिपूर्ण गतिविधियों को भी प्रतिबंधित कर दिया था। अब प्रश्न यह उठता है कि जब परिस्थितियां इतनी प्रतिकूल थीं और कठोर दमन लगभग निश्चित था, तब भी इतना बड़ा संघर्ष छेड़ना क्यों जरुरी था।

भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के कारण 

 जहां तक भारत छोड़ो आंदोलन के तात्कालिक उद्देश्यों ( स्वतंत्रता ) काप्रश्न था वह असफल रहा।सरकार ने कुछ ही समय में इस विद्रोह को दबा दिया। इस आंदोलन की असफलता के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं –

1- आंदोलन की असफलता का कारण समय की अनुपयुक्तता या लोगों की कमी नहीं, बल्कि आंदोलन  पीछे सुसंगठित योजना का अभाव था। सुसंगठित योजना के अभाव के कारण आंदोलन से पहले ही सारे नेता गिरफ्तार कर लिए गए। 

2- गाँधी जी का अति आत्मविश्वास भी इस आंदोलन की असफलता का कारण बना। 

3- इस आंदोलन का कोई मुख्य नेतृत्वकर्ता नहीं था जिसके कारण आंदोलन रास्ता भटक गया। 

4- आंदोलन को बहुत सारे नेताओं का समर्थन प्राप्त नहीं था। 

5- अंग्रेजों का कठोर कठोर दमनचक्र भी इस आंदोलन की असफलता का प्रमुख कारण था।

निष्कर्ष 

भारत छोडो आंदोलन यद्यपि अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो पाया लेकिन इसने अंग्रेजों के पैर हिला दिए। सारी दुनिया का ध्यान भारत की ओर गया और तमाम देशों ने भारत को आज़ाद करने के लिए अंग्रेजों पर दवाब बनाना शुरू कर दिया। इस आंदोलन के बाद भारत की आज़ादी की की शीघ्र आस बंध गई। इस आंदोलन के बाद पुरे भारत में जनमत तैयार हो गया और अंग्रेजों को अहसास हो गया कि अब भारत को ज्यादा दिन गुलाम नहीं रखा जा सकता। अतः यह आंदोलन  भले ही तत्कालिक रूप से असफल रहा लेकिन वास्तविक रूप से जो परिणाम सामने आये वह इस आंदोलन की ही सफलता थी।https://www.onlinehistory.in/


Share This Post With Friends

Leave a Comment

Discover more from 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading