कल 2 अक्टूबर है और इस दिन को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं। भारत में ऐसे बहुत से लोग मिल जायेंगे जो गाँधी जयंती के दिन उनके हत्यारे नाथू राम गोडसे का गुणगान करते हैं। हिन्दू साम्प्रदायिक विचारधारा के लोगों की नज़र में गोडसे द्वारा गाँधी जी की हत्या को सही ठहराया जाता है। आखिर गोडसे ने गाँधी जी की हत्या क्यों की थी और क्या किसी की हत्या को जायज ठहराया जा सकता है ?
नाथू राम गोडसे
नाथू राम विनायक गोडसे भारत के एक उग्र हिंदूवादी विचारों से प्रेरित कार्यकर्त्ता थे जिन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी। उन्होंने 30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिरला भवन में गांधी जी की गोली मारकर हत्या की थी। इस हत्या के बाद, उन्हें गिरफ्तार किया गया और उन्हें दोषी के रूप में फांसी की सजा दी गई। नाथूराम गोडसे को 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के समय में महात्मा गाँधी की भूमिका को लेकर गुस्सा था और उसने इसका बदला उनकी हत्या करके लिया।
15 अगस्त 1947 से पूर्व देश में साम्प्रदायिक माहौल इतना ख़राब कर दिया गया था कि गाँधी जी को भी दु:खी मन से बंटबारे को स्वीकार करना पड़ा। बंटबारे से गाँधी जी अत्यंत दुःखी थे विशेषकर बंटबारे के बाद जो परिस्थितियां उत्पन्न हो रहीं थीं। गाँधी जी को अब भी विश्वास था कि भारत एक राष्ट्र के रूप में पंथनिर्पेक्ष राष्ट्र होगा जहां सभी पंथों के लोग, हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई और अन्य को भारत भूमि पर समान अधिकार प्राप्त होगा।
नाथू राम गोडसे ने महात्मा गांधी को क्यों मारा?
नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी, 1948 को नई दिल्ली, भारत में महात्मा गांधी की हत्या कर दी। गोडसे के कृत्य के पीछे के कारण जटिल और विवादास्पद हैं, और इस प्रश्न का कोई एक उत्तर नहीं है।
गोडसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) नामक चरमपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठन का सक्रीय सदस्य था और उसका मानना था कि गांधी भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के लिए जिम्मेदार थे। गोडसे और आरएसएस के अन्य सदस्य भी हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए गांधी की वकालत से असहमत थे, क्योंकि गोडसे और आरएसएस हिंदू धर्म की सर्वोच्चता में विश्वास करते थे।
इसके अलावा, गोडसे उस समय के राजनीतिक और सामाजिक माहौल से भी प्रभावित था, जिसमें भारत के विभाजन के दौरान हुई हिंसा और दंगों के साथ-साथ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव भी शामिल था। उन्होंने गांधी के शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने के प्रयासों को अपने स्वयं के राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाधा के रूप में देखा।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गोडसे के कार्यों की भारतीय समाज के अधिकांश लोगों ने निंदा की, जिसमें कई हिंदू भी शामिल थे, और उनके अतिवादी विचार व्यापक हिंदू समुदाय के प्रतिनिधि नहीं थे।
कलकत्ता दंगा और गाँधी जी की भूमिका
जब 1946-47 में कलकत्ते में साम्प्रदायिक दंगे हुए थे तो गाँधी जी स्वयं ‘एक व्यक्ति की सेना’ ( one man army ) लेकर कलकत्ता चले गए थे ताकि वह दंगा प्रभावित हिन्दुओं की सहायता कर सकें। गाँधी जी न सिर्फ कलकत्ता के हिन्दू-मुस्लिम दंगों को शांत कराने गए बल्कि जहां-जहां भी हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए वह लोगों को शांत कराने गए। बिहार और नोआखाली ( पूर्वी बंगाल ) ऐसे ही दंगा प्रभावित क्षेत्र थे वहां भी गाँधी जी गए।
1947 की शरद ऋतु में गाँधी जी दिल्ली लौट आये ताकि वह मुसलमानों को, जिन्हें दिल्ली से निकाला जा रहा था, बचा सकें। उस समय तक पश्चिमी पंजाब, सिंध तथा उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त से लाखों हिन्दू बेसाजो-सामान के अत्यंत दयनीय अवस्था में दिल्ली आ गए थे। दिल्ली पहुंचे ये हिन्दू लोग अपना घर-बार, जमीं-जायदाद, सभी कुछ पाकिस्तान में छोड़ आये थे। उनके संबंधी मार दिए गए थे। हिन्दू लड़कियों को जबरन पाकिस्तान में रख लिया गया था और वे दयनीय अवस्था में थीं।
ये हिन्दू शरणार्थी अपने साथ मुसलमानों और पाकिस्तान सरकार की निर्दयता की कथाएं लेकर आये थे। ये लोग जगह-जगह पर भारत सरकार और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा लगये गए तम्बुओं में रह रहे थे।
कई परिवार तो मस्जिदों में भी शरण लिए हुए थे। उस तनावपूर्ण वातावरण में कई मुसलमान परिवार भय से अपने मकान खाली करके वर्तमान पाकिस्तान चले गए थे। कुछ मुस्लमान स्वयं को असुरक्षित समझते थे। ऐसे समय में मुसलमानों की रक्षा करने के लिए, महात्मा गाँधी दिल्ली आ पहुंचे थे। उन्होंने अपनी सार्वजानिक प्रर्थना सभा बिड़ला भवन में आरम्भ कर दी।
भारत के बंटबारे से मुस्लिम लीग काफी खुश थी और इसे अपनी विजय के रूप में देख रही थी , इसके विपरीत यह विभाजन हिन्दुओं और सिक्ख समुदाय के लिए एक ऐसी त्रासदी के रूप में था जो विश्व इतिहास में इतना भयानक कभी नहीं हुआ। यह सत्य है कि भारत के कुछ भाग 1200 ईस्वी से 1805 ईस्वी तक मुस्लिम साम्राज्य के अधीन रहे थे परन्तु पहले हिन्दुओं के साथ इतना बर्बर व्यवहार कभी नहीं हुआ था और न ही कभी उन्हें उनके घरों से निकला गया था। लेकिन अब ये पीड़ित हिन्दू तम्बुओं में जीवन गुजरने को मजबूर थे।
मुस्लिम लीग के विरोध में कुछ हिन्दू कट्टरपंथियों ने भी हिन्दू महासभा का गठन कर लिया था। ये कट्टरपंथी हिन्दू मुस्लिम सोच के ही थे जिस प्रकार मुसलमानों ने पाकिस्तान को सिर्फ मुसलमानों का देश कहा उसी प्रकार इन हिन्दू संगठन ने भारत को सिर्फ हिन्दुओं का देश कहा। इन कटटरपंथिंयों ने मुसलमानों से बहुसंख्यकों ( हिन्दुओं ) के धर्म, संस्कृति तथा परम्पराओं का आदर करने की चेतावनी दी।
इसी प्रकार 1926 में आरएसएस ( राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का भी गठन हो चुका था इस संस्था ने लाहौर ( पंजाब ) में सबसे पहले 1939 में सैकड़ों हिन्दू युवाओं को अपने संगठन में शामिल किया। ये संगठन एक अखंड भारत की कल्पना करते थे और बंटबारे से बहुत दु:खी थे।
हिन्दू कटटरपंथी संस्थाओं का मानना था कि भारतीयराष्ट्रीय कांग्रेस के नेता ही, गाँधी जी समेत, भारत विभाजन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार थे। ये हिन्दू संगठन गाँधी जी को खलनायक की तरह देखते थे और उनके प्रति आक्रोशित थे। तीस और चालीस के दशक में गाँधी जी ने जिन्ना से कई बार मुलाक़ात की पर बार-बार उन्हें निराशा ही हाथ लगी थी।
उस समय गाँधी जी कांग्रेस के सदस्य भी नहीं थे। कटटरपंथी हिन्दुओं की नज़र में गाँधी और उनके समर्थक देशद्रोही थे।1945 से 1947 तक गाँधी जी ने यही कहा कि ‘भारत का बँटबारा मेरे शव के ऊपर से होगा’। लेकिन अब गंधी जी बंटबारे की सहमति दे चुके थे।
गाँधी जी मुसलमानों की रक्षा के लिए दिल्ली में डेरा जमाये बैठे थे। पाकिस्तान को रोकड़ बाकी ( cash balance ) दिलाने के लिए गाँधी जी ने आमरण व्रत कर रखा था और पाकिस्तान को पैसा दिलाया।
गाँधी जी अपनी प्रार्थना सभाओं में क़ुरान की आयतें पढ़ते थे। ईश्वर अल्ल्हा तेरो नाम का गाना गाते थे लेकिन मुसलमान इस गाने को गाने को तैयार नहीं थे।इस प्रकार गाँधी जी के अनेकों ऐसे कार्य थे जो कट्टरपंथी हिन्दुओं को पसंद नहीं थे।गाँधी जी की इन्हीं नीतियों से अप्रसन्न एक मराठी व्यक्ति नाथू राम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महत्मा गाँधी की पिस्तौल से गोली मारकर हत्या कर दी।
गाँधी जी की हत्या से दिल्ली सहित समस्त भारत में लाखों लोग दुःखी हो गए और भारत शोक में डूब गया। लाखों लोग गाँधी जी की शव यात्रा में शामिल होने देश के कोने-कोने से आये। शवदाह यमुना के किनारे किया गया।
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने आकशवाणी के दिल्ली केंद्र से समस्त भारत को सम्बोधित करते हुए कहा ‘हमारे जीवन से प्रकाश बुझ गया है और अब चहुं ओर अँधेरा है।…….. देश के पिता अब नहीं रहे।सबसे अच्छी प्रार्थना जो हम उनके लिए अथवा उनकी स्मृति में कर सकते हैं वह है कि हम अपने आप को सत्य के लिए तथा उन आदर्शों को समर्पण करें जिनके लिए वह जिए और मरे।’
क्या भारत और पाकिस्तान के विभाजन के लिए महात्मा गांधी जिम्मेदार थे?
नहीं, महात्मा गांधी भारत और पाकिस्तान के विभाजन के लिए जिम्मेदार नहीं थे। भारत का विभाजन मुख्य रूप से राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक कारकों का परिणाम था जो गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने से पहले कई वर्षों से चल रहे थे।
1940 के दशक में मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग द्वारा भारत को धार्मिक आधार पर विभाजित करने का विचार पहली बार प्रस्तावित किया गया था। ब्रिटिश सरकार, जो उस समय भी भारत पर नियंत्रण रखती थी, अंततः इस विचार से सहमत हुई और 1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम को पारित किया, जिसने भारत और पाकिस्तान के स्वतंत्र राष्ट्रों का निर्माण किया।
जबकि गांधी ने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उनका अहिंसक प्रतिरोध का दर्शन और अखंड भारत की उनकी दृष्टि वास्तव में विभाजन के विचार के विरोध में थी। वास्तव में, वह 1947 में विभाजन की अगुवाई में भड़की सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में भूख हड़ताल पर चले गए थे, और उन्हें भारत के विभाजन और उसके साथ हुई हिंसा से गहरा दुख हुआ था।
निष्कर्ष
हम हत्या को किसी भी रूप में जायजनहीं ठहरा सकते।वैचारिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन इससे यह अर्थ नहीं कि गाँधी जी का उद्देश्य भारत का अहित करना था। गाँधी जी को इस्लाम की सत्यता और हिन्दुओं की शांतिप्रिय नीति में विश्वास था। लेकिन वह भूल गए थे की मुस्लमान अब कटटरता की और थे और हिन्दुओं ने शांति के साथ अहिंसा को भी अपना लिया है।गाँधी जी अनजाने में ही पाकिस्तान की मदद करके भारत के लिए दुश्मन बन चुके थे। क्योंकि पाकिस्तान ने भारत द्वारा दी गयी आर्थिक मदद का बदला भारत पर आक्रमण करके दिया था।यद्यपि गाँधी जी के विचार पवित्र थे।साडी ज़िंदगी अहिंसा का पाठ पढ़ने वाले अहिंसा के पुजारी का अंत हिंसा से ही हुआ।