सल्तनतकालीन केंद्रीय प्रशासन: वज़ीर, आरिज-ए-मुमालिक, बारिद-ए-मुमालिक और अन्य विभागों की संरचना और कार्य

सल्तनत काल के दौरान, केंद्रीय प्रशासन ने सरकार के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सुल्तान ने मंत्रियों की नियुक्ति की और उन्हें विभिन्न विभाग सौंपे। मंत्रिपरिषद, जिसे ‘मजलिस-ए-खलवत’ के रूप में जाना जाता है, ने प्रशासन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सल्तनतकालीन केंद्रीय प्रशासन समय के साथ, सल्तनत काल में मंत्रियों … Read more

भारत का इतिहास 1206-1757 The Indian History From 1206-1757

आज के समय में प्रतियोगी छात्रों को ध्यान में रखकर मैंने यह ब्लॉग बनाने का प्रयास किया है। जिसमें 1206 ईस्वी से लेकर 1757 ईसवी तक के इतिहास को समेटने का प्रयास किया गया है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम दास वंश से लेकर लोदी वंश तक के सल्तनत काल और संपूर्ण मुगल काल से लेकर उत्तर मुगलकालीन राजनीति, बक्सर तथा प्लासी के युद्ध का  अध्ययन करेंगे।

 

भारत का इतिहास 1206-1757 The Indian History From 1206-1757

भारत का इतिहास 1206-1757

भारत में तुर्क राज्य की स्थापना शिहाबुद्दीन उर्फ मुईनुद्दीन मुहम्मद गोरी ने की। 1194 ईस्वी में चंदावर के प्रसिद्ध युद्ध में गहड़वाल शासक जयचंद को पराजित करने के पश्चात अपने विजित  प्रदेशों की जिम्मेदारी कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप कर वापस गजनी चला गया। 13 मार्च 1206 को मुहम्मद गोरी की हत्या के बाद उसके गुलाम सरदार कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1206 ईस्वी में गुलाम वंश की स्थापना की। 1206 से 1290 के मध्य दिल्ली सल्तनत पर दास या गुलाम वंश का शासन माना जाता है।

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दिल्ली सल्तनत का इतिहास

दिल्ली सल्तनत भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो 1206 से 1526 ई. के बीच उत्तरी भारत में स्थापित हुई थी। यह एक वें शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप में विखंडित और स्वतंत्र राज्यों के ताक में एक मुख्य शक्ति बनी थी।

दिल्ली सल्तनत की शुरुआत 1206 ई. में सुल्तान कुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा की गई थी, जो दिल्ली को अपनी राजधानी बनाने वाले पहले सल्तान थे। उनके बाद उनके बेटे और पोते ने भी सल्तानती सत्ता धारण की, जैसे कि सुल्तान इल्तुतमिश, सुल्तान रुक्नुद्दीन फख्रौद्दीन, सुल्तान बलबन और सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक। इनके शासनकाल में दिल्ली सल्तनत ने विभिन्न क्षेत्रों में आक्रमण किए और विस्तृत सत्ता क्षेत्र को आपूर्ति किया।


 1-गुलाम वंश या दास वंश 1206-1290

     

 कुतुबुद्दीन ऐबक (1206-1210)

▪️ दिल्ली सल्तनत का पहला शासक कुतुबुद्दीन ऐबक था, जिसने 1206 से 1210 ईस्वी तक शासन किया।
▪️ ऐबक ने अपना राज्य अभिषेक जून 1206 से में लाहौर में करवाया।
▪️ इसने अपने नाम से न तो कोई सिक्का चलाया और न ही कभी खुतबे पढ़वाए।
▪️ अपनी दानता तथा उदारता के कारण ऐबक को लाख बख्स (लाखों का दानी) कहा गया।
▪️ इतिहासकार मिनहाज-उस-सिराज ने उसकी दानशीलता के कारण ही उसे (ऐबक) को हातिम द्वितीय की संज्ञा दी।
▪️ ऐबकके दरबार में प्रसिद्ध विद्वान हसन निजामी तथा फक्र-ए-मुदब्बिर को संरक्षण प्राप्त था।
▪️ अपने शासनकाल के 4 वर्ष बाद 1210 ईस्वी में लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय घोड़े से गिरने के कारण ऐबक की मृत्यु हो गई।

  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद 1191 ईस्वी में दिल्ली में बनबाई। 
  • अढ़ाई दिन का झोपड़ा 1200 ईस्वी में अजमेर में बनवाया।  
  • क़ुतुब मीनार का निर्माण  भी ऐबक ने शुरू कराया।
क़ुतुब मीनार का निर्माण  भी ऐबक ने शुरू कराया

 इल्तुतमिश 1210 से 1236

▪️कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद लाहौर के तुर्क अधिकारियों ने ऐबक के विवादित पुत्र आरामशाह को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया। परंतु दिल्ली के तुर्क अधिकारियों एवं नागरिकों के विरोध के कारण ऐबक के दामाद इल्तुतमिश को दिल्ली आमंत्रित कर राज्य सिंहासन पर बैठाया गया।
▪️शासक बनने के पहले इल्तुतमिश बदायूं का सूबेदार था।
▪️विद्रोही सरदारों का दमन करने के उद्देश्य से इल्तुतमिश ने अपने गुलाम 40 सरदारों का एक गुट बनाया, जिसे तुर्कान-ए-चहालगानी का नाम दिया गया।
▪️1215 में इल्तुतमिश ने यल्दौज को तराइन के मैदान में पराजित किया और 1217 में नासिरुद्दीन  कुबाचा ने इल्तुतमिश की अधीनता स्वीकार कर ली।
▪️फरवरी 1229 में बगदाद के खलीफा से सम्मान का चोगा प्राप्त हुआ। सम्मान का चोगा प्राप्त होने के बाद इल्तुतमिश वैध सुल्तान एवं दिल्ली सल्तनत एवं दिल्ली सल्तनत एक वैध स्वतंत्र राज्य बन गया।
▪️इल्तुतमिश पहला तुर्क सुल्तान था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलवाए। इसने सल्तनतकालीन दो महत्वपूर्ण सिक्के चांदी का टंका (लगभग 175 ग्रेन का), तथा तांबे का जीतल चलवाया।
▪️इल्तुतमिश ने  इक्ता व्यवस्था का प्रचलन किया तथा राजधानी को लाहौर से दिल्ली स्थानांतरित किया।
▪️कुतुबुद्दीन ऐबक ने कुतुब मीनार के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। भारत में पहला मकबरा निर्मित करने का श्रेय भी इल्तुतमिश को जाता है।

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रजिया सुल्तान 1236-1240


▪️इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी बनाया था पर उसकी मृत्यु के बाद उसके बड़े पुत्र  रुकनुद्दीन फिरोज को दिल्ली की गद्दी पर बैठाया गया।

▪️फिरोज एवं उसकी मां शाह तुर्कान के अत्याचारों से तंग आकर जनता ने रजिया सुल्तान को दिल्ली का शासक बना दिया।
▪️रजिया सुल्तान भारत की प्रथम मुस्लिम महिला थी जिसने दिल्ली पर शासन किया।
▪️रजिया सुल्तान ने लाल वस्त्र धारण कर (लाल वस्त्र पहनकर ही न्याय की मांग की जाती थी) जनता से शाह तुर्कान के विरुद्ध सहायता मांगी।
▪️ 1240 ईस्वी में इल्तुतमिश के तीसरे पुत्र बहरामशाह ने कैथल के समीप रजिया की हत्या करवा दी।


बहराम शाह 1240-42

▪️मुईजुद्दीन बहरामशाह इल्तुतमिश का तीसरा पुत्र था।

▪️बहरामशाह को बंदी बनाकर मई 1242 ईसवी में उसकी हत्या कर दी गई।


अलाउद्दीन मसूद शाह 1242-46

▪️ वह सुल्तान रुक्नुद्दीन फिरोजशाह का पुत्र और इल्तुतमिश का पौत्र था।
▪️नसीरुद्दीन महमूद और उसकी माता ने एक षड्यंत्र के द्वारा 1246 ईस्वी में मसूद शाह का अंत कर दिया।


नसीरुद्दीन महमूद 1246-66

▪️इल्तुतमिश का पौत्र नासिरुद्दीन महमूद 10 जून 1246 ईसवी को दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। इसके सिंहासन पर बैठने के बाद अमीर सरदारों और सुल्तान के बीच शक्ति के लिए चल रहा संघर्ष समाप्त हो गया।
▪️नासिरुद्दीन ने राज्य के समस्त शक्ति बलबन को सौंप दी। बलबन को 1249 ईस्वी में उलुग खाँकी उपाधि प्रदान की। तदुपरांत उसे अमीर-ए-हाजीब बनाया गया।
▪️ 1249 में ही सुल्तान नासिरुद्दीन ने अपनी बेटी का विवाह बलबन के साथ कर दिया।
▪️इमामुद्दीन रेहानके बढ़ते प्रभाव के कारण बलबन को अमीर-ए-हाजीबपद से हाथ धोना पड़ा (1253 ईस्वी में) तथा उन्हें हाँसी भेज दिया गया।
▪️1254 ईस्वी में तुर्की सरदारों के सहयोग से बलवान ने रेहान को पदच्युत कर पुनः अपने पद को प्राप्त कर लिया।


बलबन1266-1286

▪️ 1266 ईस्वी में नासिरुद्दीन महमूद की अकस्मात मृत्यु के बाद बलबन उसका उत्तराधिकारी बना। क्योंकि महमूद के कोई पुत्र नहीं था।
▪️बलवन इल्बरी जाति का तुर्क सरदार था।
▪️इल्तुतमिश ने ग्वालियर जीतने के उपरांत बहाउद्दीन( बलबन का वास्तविक नाम) को खरीद लिया।(1232)
▪️अपनी योग्यता के कारण बलबन इल्तुतमिश के समय में खासकर रजिया के समय में अमीर-ए-शिकार, बहराम शाह के समय में अमीर-ए-आखूर और महमूद शाह के समय में अमीर-ए-हाजिब, एवं सुल्तान नसीरुद्दीन के समय में अमीर-ए-हाजीब, नायब के रूप में राज्य के संपूर्ण शांति का केंद्र बन गया।
▪️पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत पर मंगोल आक्रमण के भय को समाप्त करने के लिए सैन्य विभाग दीवान-ए-अर्ज की स्थापना की।
▪️बलबन सल्तनत काल का पहला शासक था जिसने अपने सैनिकों को नगद वेतन देने की प्रथा प्रारंभ की।
▪️इसने लौह एवं रक्त की नीति का अनुसरण करते हुए तुर्क-ए-चहलगानी का अंत कर दिया।
▪️सिजदा (लेट कर नमस्कार करना) व पायबोस (पांव का चुंबन लेना) की प्रथा का प्रचलन किया
▪️नवरोज प्रथा प्रचलित की

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▪️बलबन दिल्ली सल्तनत का पहला ऐसा सुल्तान था जिसने अपने राजतत्व सिद्धांत की विस्तारपूर्वक व्याख्या की।
▪️बलवान ने फारसी रीति-रिवाज पर आधारित उनके राजाओं के नाम की तरह अपने पुत्रों के नाम रखे इनका दरबार ईरानी परंपरा के अंतर्गत सजाया गया था।
▪️बलबन ने खलीफा के महत्व को स्वीकारते हुए अपने द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर खलीफा के नाम को अंकित कराया तथा उसके नाम से खुतबे भी पढ़ें।


कैकूबाद- 1287-90

 

▪️अपनी मृत्यु से पूर्व बलबन ने अपने पौत्र कायखुसरो (राजकुमार मुहम्मद के पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया था।
▪️किंतु दिल्ली के कोतवाल फखरुद्दीन ने बलबन के नामनिर्देशन को ठुकरा दिया और बुगरा खाँ के पुत्र कैकूबाद को गद्दी पर बैठा दिया। इस नए सुल्तान ने मुइजुद्दीन कैकुबाद की उपाधि ग्रहण की।
▪️कैकुबाद के शासनकाल में मंगोल ने चढ़ाई कर दी। गजनी का तामर खाँ उनका सरदार था।


2-खिलजी वंश-1290-1320

खिलजी वंश भारतीय इतिहास में मुग़ल साम्राज्य से पहले के एक प्रमुख राजवंश था, जो 1290 ई. से 1320 ई. तक उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में शासन करता था। खिलजी वंश बालबन के बाद से लेकर जलालुद्दीन फ़िरोजशाह तक के चार प्रमुख शासकों की श्रृंखला को संघटित करता है।


जलालुद्दीन खिलजी 1290-96

▪️ 13 जून 1290 को जलालुद्दीन फिरोज खिलजी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा उसने किलोखरी को अपनी राजधानी बनाया।
▪️ किलोखरी एक नया नगर था जिसे कैकूबाद ने दिल्ली से कुछ मिल दूरी पर बनवाया था।
▪️जलालुद्दीन ने अपने राज्य अभिषेक के एक वर्ष बाद दिल्ली में प्रवेश किया।
▪️दिल्ली के सिंहासन पर खिलजी वंश का अधिपत्य हो जाने से भारत में तुर्कों की श्रेष्ठता समाप्त हो गई।
▪️जलालुद्दीन के समय 1290 में कड़ा-मानिकपुर के सूबेदार मलिक छज्जू ने विद्रोह किया था।
▪️इनके समय में दिल्ली का कोतवाल फखरुद्दीन था।
▪️इसी के समय में ईरानी फकीर सिद्धि मौला का विद्रोह हुआ था, जिसे बाद में सुल्तान ने हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया था।
▪️इन्होंने 1290 में रणथंभौर पर आक्रमण किया जो असफल रहा। 1292 में मंडौर पर आक्रमण कर उसे दिल्ली में मिला लिया।
▪️ 1296 ईस्वी में जलालुद्दीन की हत्या उसके भतीजे (दामाद) अलाउद्दीन ने कर दी तथा अपने आप को दिल्ली का सुल्तान घोषित कर दिया।

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अलाउद्दीन खिलजी 1296-1316

▪️अलाउद्दीन खिलजी जलालुद्दीन फिरोज का भतीजा था। चूँकि अलाउद्दीन पिताहीन था इसलिए जलालुद्दीन ने बड़ी चिंता के साथ उसका पालन-पोषण किया और बाद में उसे अपना दामाद बना लिया।
▪️अलाउद्दीन खिलजी पहला सल्तनतकालीन शासक था जिसने शासन में इस्लाम के सिद्धांतों का पालन नहीं किया।
▪️अलाउद्दीन खिलजी ने अपने राज्याभिषेक के बाद यामीन-उल-खिलाफत नासिरी अमीर मुमनिन‘ (खलीफा का नायब) की उपाधि ग्रहण की थी।

▪️अलाउद्दीन स्वेच्छाचारी एवं निरंकुश सुल्तान था। दिल्ली का कोतवाल अला-उल-मुल्क ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था, जिससे अलाउद्दीन ने शासन के विषय में सलाह-मशवरा  किया अथवा जो उसे सलाह देने का साहस कर सका।

▪️अलाउद्दीन ने प्रशासन एवं राजस्व के क्षेत्र में सर्वथा नवीन उपाय लागू किए।
▪️अलाउद्दीन मध्यकाल का पहला शासक था जिसने अपने शासनकाल में आर्थिक विनिमयन को लागू किया। आर्थिक विनिमयन के अंतर्गत खाद्यान्न एवं दैनिक उपयोग की सभी वस्तुएं शासक द्वारा तय दामों पर उपलब्ध थी।
▪️अलाउद्दीन ने बकाया लगान की वसूली के लिए दीवान-ए-मुस्तखराज नामक विभाग की स्थापना की।
▪️सल्तनत काल में अलाउद्दीन स्थायी सेना गठित करने वाला पहला सुल्तान था।
▪️अलाउद्दीन ने अपनी सेना का केंद्रीयकरण किया और साथ ही सैनिकों की सीधी भर्ती एवं नगद वेतन देने की प्रथा प्रारंभ की।
▪️इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार अलाउद्दीन के पास लगभग 4,75,000 सैनिक थे।
▪️अलाउद्दीन खिलजी के शासन के समय मंगोलों के एक दर्जन से ज्यादा आक्रमण हुए।
▪️अलाउद्दीन ने दागया घोड़ों पर निशान लगाने और विस्तृत सूचीपत्रों की तैयारी के लिए हुलियाप्रथा प्रचलित की।
▪️अलाउद्दीन के समय में राज्य गोदामों में अनाज का भंडार किया जाता था।
▪️अलाउद्दीन खिलजी अपनी बाजार व्यवस्था के लिए प्रसिद्ध है। उसके समय में यदि कोई व्यापारी सामान कम  तौलता था, तो उसकी जांघ से उतना ही मांस निकाल लिया जाता था।
▪️राजस्व सुधारों के अंतर्गत अलाउद्दीन ने सर्वप्रथम मिल्क, इनाम, वक्फ के अंतर्गत दी गई भूमि को वापस लेकर उसे खालसा (राजकीय भूमि)  भूमि में बदल दिया। साथ ही स्थानीय जमीदारों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर।
▪️ 2 जनवरी 1316 को अलाउद्दीन की मृत्यु जलोदर रोग से हो गई। कहा जाता है कि विष के मिश्रण में काफूर का हाथ था और इसी से सुल्तान की मृत्यु जल्दी हो गई।
▪️अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद मलिक काफूर ने 36 दिन तक शासन की बागडोर अपने हाथ में रखी। परंतु उसके बाद उसकी हत्या कर दी गई।

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कुतुबुद्दीन मुबारक शाह 1316-20

 

▪️मलिक काफूर के प्रभाव में अलाउद्दीन ने खिज्रखां को उत्तराधिकार से वंचित करके शहाबुद्दीन उमर को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। जब अलाउद्दीन की मृत्यु हुई उस समय इस बालक की आयु लगभग 6 वर्ष की थी। मलिक काफूर ने उसे सिंहासन पर बैठा दिया और स्वयं उसका संरक्षक बन गया। उसने खिज्रखां व शादीखाँ को अंधा करा दिया।

 

▪️मुबारकखाँ जो उस समय 17 या 18 वर्ष की आयु का था, उसे बंदी बना लिया गया और मलिक काफूर ने उसकी आंखें निकाल लेने के लिए अपने नौकर भेजे, किंतु मुबारक ने उन नौकरों को इतनी घूस दी कि उन्होंने मुबारक को अंधा करने के स्थान पर वापस जाकर मलिक काफूर की हत्या कर दी।

 

▪️मलिक काफूर की मृत्यु के बाद शिहाबुद्दीन उमर के संरक्षक का पद मुबारक को प्राप्त हुआ। लगभग दो महीने बाद मुबारक ने शिहाबुद्दीन उमर को गद्दी से उतार दिया और उसे अंधा करके स्वयं सिंहासनारूढ़ हो गया। यह घटना 1 अप्रैल 1316 को घटित हुई। मुबारक ने कुतुबुद्दीन मुबारक शाह की उपाधि ग्रहण की।


▪️ 14 अप्रैल 1320 की रात्रि में खुसरो की सेनाएं राजमहल में घुस आईं और उन्होंने राजमहल के संरक्षकों का वध कर दिया। खुसरो ने स्वयं अपने हाथों से मुबारक शाह के बाल पकड़ लिए और उसके एक साथी झरिया ने उसके पेट में कटारी भोंक कर उसकी हत्या कर दी। मुबारक शाह का सिर काटकर राजमहल के  सहन में फेंक दिया गया।


नासिरुद्दीन खुसरो शाह 1320

▪️मुबारक शाह की हत्या के बाद सरदारों की सहायता से खुसरो का 15 अप्रैल 1320 ईस्वी को सिंहासनारोहण हुआ। 5 सितंबर 1320 ईसवी तक उसका शासन चलता रहा।

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▪️उसने नासिरुद्दीन खुसरो शाह की उपाधि ग्रहण की। बहुत से पुराने अधिकारियों व सरदारों को उनके पद पर रहने दिया गया। कुछ की हत्या भी कर दी गई। खुसरो शाह ने खिज्र खां की विधवा देवल देवी के साथ विवाह कर लिया।


▪️खुसरो शाह की हत्या 5 सितंबर 1320 ईस्वी को कर दी गई इस प्रकार भारत में 30 वर्ष के शासन के बाद खिलजी वंश का अंत हो गया।


3-तुगलक वंश 1320-1414

तुगलक वंश भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण शासक वंश था, जो मुग़ल शासन के पूर्व भाग में भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन करता था। यह वंश 14वीं से 15वीं सदी तक मुग़ल साम्राज्य की स्थापना करने वाले सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक के परिवार से था। तुगलक वंश के शासक दिल्ली सल्तनत के उच्चकोटि और उप-उच्चकोटि शासक थे.

तुगलक वंश के शासकों ने भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापार, संस्कृति, कला, और वैज्ञानिक गतिविधियों का प्रोत्साहन किया था। उनकी शासनकाल में मुग़ल शासन के आधार सिमित होते थे लेकिन वे बिना शासन की परिधि के बढ़ावे के लिए जाने जाते हैं।


गयासुद्दीन तुगलक 1320-1325

▪️गयासुद्दीन तुगलक या गाजी मलिक तुगलक वंश का संस्थापक था।। यह वंश करौना तुर्क के वंश के नाम से प्रसिद्ध है, क्योंकि गयासुद्दीन तुगलक का पिता करौना तुर्क था।
▪️कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी की हत्या कर नासिउद्दीन खुशखशाह 1320 ईस्वी में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। 4 महीने बाद गाजी मलिक ने एक युद्ध में खुशखशाह को पराजित कर मार डाला तथा गयासुद्दीन तुगलक के नाम से सत्ता संभाली। इसके साथ ही सल्तनत काल में तुगलक वंश की नींव पड़ी।
▪️गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था जिसने गाजीया काफिरों का घातककी उपाधि ग्रहण की।
▪️गयासुद्दीन ने सिंचाई के लिए नेहरों एवं कुओं का निर्माण करवाया। नहरों का निर्माण करने वालों में गयासुद्दीन प्रथम सुल्तान था।
▪️गयासुद्दीन तुगलक ने अपने शासनकाल में करीब 29 बार मंगोलों के आक्रमण को विफल किया।
▪️इसने लगान के रूप में उपज का 1/10  हिस्सा ही लेने का आदेश दिया।
▪️बंगाल अभियान से लौटते समय उसके पुत्र जूना खाँ ( मुहम्मद तुगलक) द्वारा निर्मित लकड़ी के महल के गिरने से 1325 ईस्वी में सुल्तान की मृत्यु हो गई।


मुहम्मद बिन तुगलक 1325-1352
  • ▪️गयासुद्दीन की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जूना खाँ मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा।
    ▪️मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद बिन तुगलक सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था।
    ▪️राज्यारोहण के बाद मुहम्मद बिन तुगलक ने कुछ नवीन योजनाओं का निर्माण कर उन्हें क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया जैसे–

    दोआब क्षेत्र में कर वृद्धि- 1326-27
  • राजधानी परिवर्तन –1326-27 (दिल्ली से दौलताबाद)
  • सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन-1329-30
  • खुरासान एवं कराचिल अभियान- 1330-31▪️मुहम्मद बिन तुगलक ने कृषि विकास के लिए अमीर-ए-कोही (दीवाने कोही) नाम के एक नवीन विभाग की स्थापना की।
    ▪️इसके शासनकाल में 1333 ईस्वी में अफ्रीकी यात्री इब्न-बतूता भारत आया। सुल्तान ने इसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया। इब्नबतूता ने अपनी भारत से संबंधित जानकारियों को रेहलानामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया।
    ▪️यह एकमात्र सल्तनतकालीन शासक था जो हिंदुओं के प्रमुख त्योहार होली में भाग लेता था।
    ▪️मुहम्मद तुगलक ने अफ्रीकी यात्री  इब्न-बतूता को अपना राजदूत बनाकर चीन भेजा।
    ▪️ 20 मार्च 1351 को थट्टा (सिन्ध) में एक विद्रोह दबाने के दौरान सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की मृत्यु हो गई।
    इसकी मृत्यु पर इतिहासकार बदायूनी ने इस प्रकार कहा- ” और इस प्रकार सुल्तान को अपनी प्रजा से एवं प्रजा को अपने सुल्तान से मुक्ति मिल गई।”

फिरोजशाह तुगलक 1351-1388

▪️फिरोजशाह,मुहम्मद बिन तुगलक का चचेरा भाई एवं सिपहसालार रजब का पुत्र था। इसकी मां बीवी जैला राजपूत सरदार रणमल की पुत्री थी।
▪️ 23 मार्च 1351 ईस्वी को थट्टा के निकट एक डेरे में फिरोज का सिंहासनारोहण हुआ।
▪️ 1359 में फिरोज ने बंगाल पर चढ़ाई की थी लेकिन वह सफलता प्राप्त नहीं कर सका।
▪️ 1360 में सुल्तान फिरोज ने जाजनगर (उड़ीसा) पर आक्रमण किया तथा वहां पुरी के जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त किया।
▪️1361 में फिरोज ने नगरकोट पर आक्रमण कर वहां के शासक को परास्त कर प्रसिद्ध ज्वालामुखी मंदिर को पूर्णत: ध्वस्त कर दिया।

▪️फिरोज ने अपने शासनकाल में 24 कष्टकारी करों को समाप्त कर केवल चार कर– खराज, खुम्स, जजिया एवं जकात को वसूल करने का आदेश दिया।
▪️सुल्तान ने सिंचाई की सुविधा के लिए यमुना नदी से पांच बड़ी नहरें बनवाई।
▪️इन्होंने मुस्लिम अनाथ स्त्रियों, विधवाओं एवं लड़कियों की सहायता हेतु दीवान-ए-खैरात नामक एक नये विभाग की स्थापना की।
▪️फिरोज ने दासों की देखभाल के लिए दीवाने-ए-बंदगान नामक एक विभाग की स्थापना की।  इनके शासनकाल में दासों की संख्या 1.80 लाख तक पहुंच गई थी।
▪️दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था, जिसने इस्लामी नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए उलेमा वर्ग को प्रशासनिक कार्यों में महत्व दिया।
▪️फिरोजशाह ने जियाउद्दीन बरनी एवं शम्स-ए-शिराज अफीफ जैसे इतिहासकारों को संरक्षण प्रदान किया।
▪️फिरोज ने अपनी आत्मकथा फतुहात-ए-फिरोजशाही की रचना की।
▪️फिरोज शाह ने मुद्रा व्यवस्था के अंतर्गत बड़ी संख्या में चांदी एवं तांबे के मिश्रण से निर्मित सिक्के चलाए, जिसे अद्धा एवं बिख जाता था।
▪️फिरोज प्रथम सुल्तान था जिसने ब्राह्मणों पर जजिया कर लगाया।
▪️फिरोज को निर्माण का सबसे अधिक चाव था। उसने फिरोजाबाद (दिल्ली का आधुनिक फिरोज शाह कोटला)फतेहाबाद, हिसार, जौनपुर और फिरोजपुर (बदायूं के निकट) उसी के द्वारा स्थापित हुए थे।
▪️फिरोजशाह तुगलक ने 4 मस्जिदें, 30 महल, 200 कारवां सराय, 5 जलाशय, 5 अस्पताल, 100 मकबरे, 10 स्नानागार, 10 स्मारक स्तंभ और 100 पुल बनवाए।
▪️फिरोज ने सिंचाई के लिए पांच नेहरे खुदवाईं, उसने दिल्ली के आसपास 1200 उद्यान लगवाए।
▪️फिरोज शाह का मुख्य वास्तुकार मलिक गाजी सहना था। जिसे अपने कार्य में अब्दुल हक की सहायता मिलती थी।
▪️फिरोजशाह तुगलक ने अशोक के 2 स्तंभों को मेरठ व टोपरा (अब अंबाला जिले में) से दिल्ली लाया गया। टोपरा वाले स्तंभ को महल तथा फिरोजाबाद की मस्जिद के निकट पुनः स्थापित कराया गया। मेरठ वाले स्तंभ को दिल्ली के वर्तमान बाड़ा हिंदू राव अस्पताल के निकट एक टीले कश्के शिकार या आखेट-स्थान के पास पुनः स्थापित कराया गया।
▪️फिरोज शाह ने खैराती अस्पताल जिसे दारुल शफा कहते हैं की भी स्थापना की।
▪️ 80 वर्ष की आयु में फिरोज तुगलक की 20 सितंबर 1388 को मृत्यु हो गई। मोरलैंड के मतानुसार फिरोज की मृत्यु से एक युग समाप्त हो गया। कुछ ही वर्षों में साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और पन्द्रहवीं शताब्दी के प्रथमार्द्ध में भारत में एक भी प्रभावशाली मुस्लिम शक्ति न रही।


4 सैयद वंश 1414-1451

खिज्र खां 1414-1422 

▪️तुगलक वंश के अंतिम शासक नासिरुद्दीन महमूद शाह की मृत्यु के बाद खिज्र खाँ ने दिल्ली की गद्दी पर अधिकार कर एक नए राजवंश सैयद वंश की नींव डाली।
▪️खिज्र खाँ ने जीवन पर्यंत 1414 से 1421 सुल्तान की उपाधि न धारण कर अपने को रैयत-ए-आला की उपाधि से प्रसन्न रखा।
▪️खिज्र खाँ अपने को तैमूर के लड़के शाहरुख का प्रतिनिधि बताता था साथ ही उसे नियमित कर भेजा करता था।
▪️ 20 मई 1421 ईसवी को खिज्र खां की मृत्यु हो गई।

For Full Detailsसैय्यद वंश: प्रमुख शासक, इतिहास और महत्व


मुबारक शाह 1421-34

▪️ 20 मई 1421 को खिज्र खाँ का लड़का मुबारक शाह गद्दी पर बैठा। इसने प्रसिद्ध विद्वान एवं इतिहासकार याहिया-बिन-अहमद सरहिंदी को अपना राज्याश्रय प्रदान किया। इसके ग्रंथ तारीख-ए-मुबारक शाही में मुबारक शाह के शासनकाल के विषय में जानकारी मिलती है।
▪️ 20 फरवरी 1434 को मुबारक शाह की हत्या कर दी गई।


मुहम्मद शाह 1434-44

▪️जब मुबारक शाह का वध हुआ, उसके कोई पुत्र नहीं था। अतः अमीरों व सरदारों ने मुहम्मद शाह को गद्दी पर बिठाया जो उसके भाई फरीद का पुत्र था।


आलमशाह 1444-51

▪️जब 1444 में मुहम्मद शाह की मृत्यु हुई तो उसका पुत्र अलाउद्दीन गद्दी पर बैठा ,जिसने आलम शाह की उपाधि धारण की।
▪️यह नया सुल्लान अपने पिता से भी अधिक कमजोर निकला।
▪️19 अप्रैल 1451 को बहलोल लोदी ने दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा कर लिया। और लोदी वंश की स्थापना की।


5 –लोदी वंश 1451-1526  

यह वंश दिल्ली सल्तनत की इतिहास में 1451 से 1526 ईस्वी तक शासन करता रहा। लोदी वंश के शासक बह्लौल लोदी, सिकन्दर लोदी, इब्राहिम लोदी थे। लोदी वंश का संचालन दिल्ली सल्तनत की घोर राजनीतिक और सामरिक परिस्थितियों के दौरान हुआ। लोदी शासकों ने मुग़ल साम्राज्य के प्रति धीरे-धीरे कमजोरी दिखाई दी और वे अपने संघर्षों में कुछ सफलता भी प्राप्त नहीं कर सके।


बहलोल लोदी 1451-1489 
  • बहलोल लोदी ने लोदी वंश( प्रथम अफगान राज्य) स्थापना की।
  • इसके शासन की प्रमुख विशेषता थी जौनपुर का एक बार फिर से दिल्ली में शामिल होना।
  • बहलोल अपने सरदारों को मकसद-ए-अली कहकर पुकारता था।
  • इन्होनें अपने शासन काल में बहलोली सिक्के का प्रचलन करवाया जो अंग्रेजों केसमय तक चलता रहा।
  • बहलोल लोदी का पुत्र एवं उत्तराधिकारी निज़ाम खां 17 जुलाई 1489 में सिकंदर शाह की उपाधि लेकर दिल्ली के सिंघासन पर बैठा।
  • 1505 में सिकंदर लोदी ने आगरा शहर की नींव डाली।
  • सिकंदर लोदी नेभूमि की मापग के लिए एक प्रामाणिक पैमाना गज-ए-सिकंदरी  प्रचलन किया।
  • इन्होने आगरा को 1506 में अपनी नई राजधानी बनाया।
  • 21 नवंबर 1517 को इब्राहिम लोदी आगरा के सिंहासन पर बैठा।
  • 21 अप्रैल 1526 को पानीपत के मैदान में हुए भीषण युद्ध में बाबर के हाथों पराजित होना पड़ा  और अंत में उसकी हत्या कर दी गयी।
  • इब्राहिम कीमृत्यु के साथ ही दिल्ली सल्तनत का भी अंत हो गया। बाबर ने भारत में एक नए वंश ( मुग़ल ) की नींव रखी


मुगल साम्राज्य


मुग़ल साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण शासनकाल था जो 1526 से 1857 तक विचार गया। यह एक बादशाही साम्राज्य था जिसकी स्थापना बाबर ने की थी जो एक चाग़ताई तुर्की शासक थे। मुग़ल साम्राज्य के शासक अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ, और आउरंगज़ेब उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से को शासित करते थे।


बाबर 1526-30
  • जहीरूद्दीन मोहम्मद बाबर भारत में मुगल वंश का संस्थापक था। उसका जन्म 14 फरवरी 1483 को फरगना में हुआ था। उसके पिता मिर्जा उमर शेख फरगना के शासक थे।
  • बाबर अपने पिता पक्ष से तैमूर का पांचवा तथा मातृ पक्ष से चंगेज खाँ का चौदहवां वंशज था। वस्तुतः बाबर को  ‘तुर्क-चुगताईवंश परंपरा से संबंधित माना जाता है।
  • मध्य एशिया व अफगानिस्तान की दुर्बल राजनीतिक व आर्थिक स्थिति, भारत की संसाधन संपन्नता तथा भारत में दिल्ली सल्तनत की अस्थिर राजनीतिक स्थिति ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने की प्रेरणा दी। बाबर ने भारत पर 5 बार आक्रमण किया।
  • 1519 ईसवी में बाबर ने अपने प्रथम अभियान में हिंदुस्तान के प्रवेश द्वार भीरा और बाजौर के किले पर अधिकार किया। यह अभियान युसूफ जाति के विरुद्ध था जिसमें बाबर ने पहली बार तोपखाने का प्रयोग किया था।
  • बाबर ने चौथे अभियान 1524 ईस्वी में लाहौर एवं दीपालपुर पर अधिकार कर लिया। इसी अभियान के समय दौलत खाँ, राणा सांगा ने बाबर को दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया।
  • पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर के पांचवें अभियान की परिणति थी जिसमें अफगान शासक इब्राहिम लोदी (लोदी वंश) की मृत्यु हो गई और दिल्ली सल्तनत का अंत हो गया।
  • पानीपत के युद्ध में बाबर ने उज्बेकों (मंगोलों) की तुलुग्मा युद्ध व्यूह नीतिका प्रयोग किया था, तथा इसमें तोपखाने का संचालन निशानेबाज उस्ताद अली एवं मुस्तफा ने किया
  • पानीपत के युद्ध में लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, रिश्तेदारों सहित नौकरों में बांटा और काबुल के प्रत्येक निवासी को चांदी का एक-एक सिक्का प्रदान किया इस उदारता के कारण बाबर को कलंदर की उपाधि दी गई।
  • पानीपत विजय के बाद बाबर ने अपने सबसे प्रिय पुत्र हुमायूं (बाबर के 4 पुत्र थे—हुमायूं, कामरान, अस्करी तथा हिंदाल ) को प्रसिद्ध कोहीनूर हीरा दिया। जिसे उसने ग्वालियर के राजा विक्रमाजीत से छीना था।
  • बाबर ने अपनी आत्मकथा तजुके-बाबरी तुर्की भाषा में लिखी। इस पुस्तक में बाबर ने भारत की भूमि, लोग, पशु-पक्षी, धनसंपदा और राज्यों का विस्तार से वर्णन करते हुए दक्षिण भारत के विजयनगर के राजा (कृष्णदेव राय) का विशेष उल्लेख किया है और उसे क्षेत्र एवं सेना की दृष्टि से काफिर नृपतियों में सर्वाधिक शक्तिशाली कहा है।
  • खानवा का युद्ध बाबर और मेवाड़ के शासक राणा सांगा के बीच 1527 ईस्वी में लड़ा गया। इस युद्ध के समय बाबर ने मुसलमानों से तमगा करन लेने की घोषणा और राणा सांगा के विरुद्ध जेहाद का ऐलान किया। इस युद्ध में विजय के पश्चात बाबर ने गाजीकी उपाधि धारण की।
  • 26 जनवरी 1528 को बाबर ने चंदेरी पर आक्रमण किया और चंदेरी के युद्ध में राणा सांगा के मित्र और राजपूत शासक मेदिनीराय को पराजित किया।
  • घाघरा का युद्ध 6 मई 1529 को हुआ, जिसमें बाबर ने बिहार के अफगान शासक और बंगाल के शासक नुसरत शाह की सेना को संयुक्त रूप से पराजित किया।
  • बाबर को गद्य लेखन की शैली मुबइयानका जन्मदाता माना जाता है। उसकी मृत्यु 27 दिसंबर 1530 को आगरा में हुई। उसे आगरा के आरामबाग में दफनाया गया जिसे बाद में काबुल ले जाया गया।
  • बाबर ने दिल्ली के सुल्तानों की परंपरा को तोड़कर खलीफा के प्रभुत्व को अस्वीकार किया और 1507 में पादशाह की पदवी धारण की।
  • बाबर की आत्मकथा तुजुके-बावरी का तुर्की से फारसी भाषा में अनुवाद अब्दुर्रहीम खानखाना और प्यादाखाँ ने किया जोबाबरनामाके नाम से जाना जाता है।
  • पानीपत का युद्ध–1526
    खानवा का युद्ध—1527
    चन्देरी का युद्ध—-1528
    घाघरा का युद्ध—-1529
    बाबर की मृत्यु—–1530
  • बाबर का प्रधानमंत्री निजामुद्दीन खलिफा था।
    बाबर ने अपने दरबार का गठन फारसी रीति-रिवाज से किया।
    1826  ईस्वी में लेयडन और इर्सकिन ने तजुक-ए-बाबरी का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया।

हुमायूं 1530-56
भाग्यशाली हुमायूं बाबर का जयेष्ठ पुत्र था उसके तीन भाई कामरान, असकरी और हिंदाल थे।
हुमायूं का जन्म 6 मार्च 1508 में काबुल में हुआ था। उसकी माता का नाम महिम बेगम था जो संभवत: शिया थी।
  • 12 वर्ष की अवस्था में हुमायूं को बाबर ने उत्तराधिकारी घोषित किया और वदख्शां का गवर्नर बनाया।
    30 सितंबर 1530 को हुमायूं आगरा के सिंहासन पर बैठ गया। उस समय उसकी आयु 23 वर्ष की थी।
  • अपने पिता की वसीयत के मुताबिक हुमायूं ने अपने भाई कामरान को काबुल तथा कंधार, अस्करी को संभल और हिंदाल को अलवर तथा मेवात की जागीरें दीं।
  • गुजरात के अफगान शासक बहादुरशाह के विरोध को दबाने के लिए हुमायूं ने 1532 ईस्वी में कालिंजर पर आक्रमण किया। लेकिन बिहार के शासक महमूद लोदी के जौनपुर की तरफ बढ़ने की सूचना पाकर उसने कालिंजर का घेरा उठा लिया और यह सैन्य अभियान असफल रहा।
  • हुमायूं की सेना और महमूद लोदी की सेना के बीच 1532 ईस्वी मेंदौहरिया का युद्धहुआ जिसमें हुमायूं को विजय मिली और उसने जौनपुर पर अधिकार कर लिया।
  • हुमायूं ने 1533 ईसवी में मित्रों एवं शत्रुओं को प्रभावित करने और विरोधी शासकों के आक्रमण से बचने के उद्देश्य से दिल्ली के नजदीक दीन-पनाहनामक नगर की स्थापना की। वस्तुतः यह एक आपातकालीन राजधानी थी।
  • बिहार में 1534 ईसवी में जमान मिर्जा एवं मुहम्मद सुल्तान मिर्जा के विद्रोह को दबाने में हुमायूं सफल रहा.
  • गुजरात के शासक बहादुर शाह ने तुर्की के कुशल तोपची रूमी खां की सहायता से एक बेहतर तोपखाने का निर्माण करवाया लेकिन हुमायूं द्वारा घेरे जाने के बाद बहादुर शाह को इस श्रेष्ठ तोपखाने को स्वयं नष्ट कर भागना पड़ा। परंतु इसके बाद तोपची रूमी खां हुमायूं की सेवा में चला गया।
  • शेरखाँ के व्यवहार से नाराज होकर 1537 ईस्वी में हुमायूं ने चुनार पर दूसरा घेरा डाला। पहला घेरा 1532 ईस्वी में डाला गया था जिसमें 4 महीने पश्चात शेरखाँ ने हुमायूं की अधीनता स्वीकार कर ली थी। तोपची रूमी खाँ के तोपखाने के कुशल संचालन के कारण और कूटनीति द्वारा हुमायूं चुनार के किले पर कब्जा करने में सफल रहा।
  • 26 जून 1539 को हुमायूं एवं शेरखाँ की सेनाओं के बीच चौसा का युद्ध हुआ। जिसमें हुमायूं की पराजय हुई। हुमायूं ने एक भिश्ती(सक्का) की मदद से गंगा नदी पार कर अपनी जान बचाई।
  • 17 मई,1540 को हुमायूं ने अपने भाइयों असकरी और हिन्दाल की सहायता से सेनाएं एकत्रित कर शेरशाह पर आक्रमण किया। लेकिन कन्नौज या बिलग्राम की इस लड़ाई में हुमायूं की निर्णायक पराजय हुई और वह भागकर सिंध चला गया।
  • निर्वासन के समय हुमायूं ने हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु फारसवासी शिया मीर बाबा दोस्त उर्फ मीर अली अकबर जामी की पुत्री हमीदा बानो से 29 अगस्त, 1541 को निकाह किया। अकबर का जन्म हमीदा बानो बेगम से ही हुआ (1543)
  • ईरान के शासक तहमास्प ने हुमायूं को शरण दी और 1544 में दोनों में संधि हुई, जिसके अनुसार हुमायूं ने कंधार ईरान को दे दिया और बदले में हुमायूं को काबुल और गजनी पर अधिकार पाने में सहायता का आश्वासन मिला।
  • ईरान (शाह तहमास्प) द्वारा काबुल व गजनी पर अधिकार करने में मदद नहीं देने पर हुमायूं ने 1545 ईस्वी में ईरानियों से कंधार छीन लिया। 1545 में ही उसने काबुल पर कब्जा कर लिया।
  • सूर शासक इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद हुमायूं  ने लाहौर पर आक्रमण किया और 1558 ईस्वी में लाहौर पर कब्जा कर लिया।
  • अफगान शूर शासक सिकंदर शाह सूर से मच्छीवारा का युद्ध (15 मई 1555) तथा सरहिंद का युद्ध (22 जून, 1555) जीतने के बाद 23 जुलाई, 1555 को हुमायूं ने पुनः दिल्ली की गद्दी प्राप्त की।
  • हुमायूं की मृत्यु 26 जनवरी 1556 को दीन-पनाह किले में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हो गई।

     

  • लेनपूल के अनुसार हुमायूं ने जिस प्रकार लुढ़क-पुढ़ककर जीवन व्यतीत किया उसी प्रकार वह उन मुसीबतों से बाहर निकल आया। लेनपूल के कहने का आशय यह था कि पहले हुमायूं ने सबकुछ खो दिया और बाद में उसने पुनः प्राप्त कर लिया।
  • उसकी मृत्यु पर लेनपूल ने कहा कि वह जीवन भर लड़खड़ाता रहा और लड़खड़ाकर ही उसकी मृत्यु हो गई।
    हुमायूं का ज्योतिष में अत्यधिक विश्वास था। इसलिए उसने सप्ताह के सातों दिन सात रंग के कपड़े पहनने के नियम बनाएं।
  • हुमायूं के जीवन वृत्त हुमायूंनामाकी रचना उसकी बहन गुलबदन बेगम ने की।कालिंजर का युद्ध— 1531
    दौराहा का युद्ध ——-1532
    चुनार का घेरा——- 1532
    बहादुरशाह के साथ युद्ध-1535-36
    शेरखाँ के साथ युद्ध 1537-39
    चौसा का युद्ध——– 1539
    कन्नौज का युद्ध—-    1540

शूरवंश 1540-1555

शेरशाह सूरी 1540-1545 ईसवी

शेरशाह ने उत्तर भारत में सूर् वंश के अंतर्गत द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की। उसके बचपन का नाम फरीद था और पिता हसन खाँ जौनपुर राज्य के अंतर्गत सहसराम बिहार के जमींदार थे।

  • फरीद ने जौनपुर में शिक्षा ग्रहण की थी और वहां 3 वर्षों तक अरबी और फारसी का ज्ञान प्राप्त किया।
  •  1497 ईस्वी 1528 ईसवी तक निरंतर 21 वर्ष तक फरीद ने अपने पिता की जागीर की देखभाल की और शासन का अनुभव प्राप्त किया।
  • फरीद ने भारत में दक्षिण बिहार के सूबेदार बाहर खाँ लोहानी के यहां नौकरी कर ली। वहां एक शेर को मारने के कारण फरीद को शेर खाँकी उपाधि दी गई।
  • एक समय शेर खां बाबर की सेवा में चला गया था, जहां उसने मुगलों के सैनिक संगठन और रणनीति को समझा। वह 1528 ईसवी में चंदेरी के युद्ध में शामिल हुआ था।
  • 1528 में बंगाल के शासक नुसरत शाह ने दक्षिण बिहार पर आक्रमण किया परंतु शेर खां ने उसे परास्त कर दिया। शेर खां की बढ़ती शक्ति से भयभीत होकर लोहानी सरदार जलाल खां को लेकर बंगाल भाग गए। इसी अवसर पर शेर खां ने हजरत-ए-आलाकी उपाधि ग्रहण की और वह दक्षिण बिहार का वास्तविक स्वामी बन बैठा।
  • 1530 इसमें उसने चुनार के किलेदार जातखां की विधवा लाड मलिका से विवाह किया और चुनार के शक्तिशाली किले पर अधिकार के साथ-साथ अकूत संपत्ति प्राप्त की।
  • 1532 ईसवी में दौहरिया का युद्ध महमूद लोदी के नेतृत्व में अफ़गानों ने हुमायूं से किया। इसमें शेर खां ने भी भाग लिया था जिसमें अफ़गानों की पराजय हुई थी।
  • 1534 ईस्वी में बंगाल के शासक महमूद शाह ने दक्षिणी बिहार पर आक्रमण किया, जिसे शेर खां ने सूरजगढ़ा के युद्धमें पराजित किया।
  • 1539 में चौसा का युद्ध हुमायूं और शेर खां के बीच हुआ जिसमें हुमायूं पराजित हुआ। इस विजय के पश्चात शेर खां ने शेरशाह सुल्तान-ए-आदिल की उपाधि ग्रहण की और वह बंगाल और बिहार का सुल्तान बन गया।
  • 1540 में शेरशाह ने कन्नौज या बिलग्राम के युद्ध में हुमायूं को पुनः पराजित किया और उसके बाद आगरा, दिल्ली, संभल, ग्वालियर, लाहौर आदि सभी स्थान पर अधिकार कर लिया।
  • 1541 ईस्वी में शेरशाह ने पश्चिमोत्तर सीमा के गक्खरों पर आक्रमण किया। गक्खर जाति मुगलों के प्रति वफादार थी।
  • पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा व्यवस्था के लिए शेरशाह ने वहां एक दृढ़ किला बनवाया जिसका नाम रोहतास गढ़ रखा।
  • 1541 में ही खिज्र खां नामक सूबेदार ने बंगाल में विद्रोह किया, जिसे शेरशाह ने स्वयं जाकर दबाया।
  • शेरशाह ने बंगाल के प्रशासनिक व सैन्य शक्ति का पुनर्गठन कर एक सैनिक अधिकारी को नव सृजित पद आमीन-ए-बंगलाअथवा अमीर-ए-बंगाल पर नियुक्त किया। सर्वप्रथम काजी फजीलात नामक व्यक्ति को यह पद दिया गया।
  • 1542 ईस्वी में शेरशाह ने मालवा को कादिर शाह से और 1543 ईसवी में रायसीन को पूरनमल से जीत लिया। चालाकी, धोखे और विश्वासघात के करण रायसीन की विजय को शेरशाह के नाम पर गहरा धब्बा माना जाता है।
  • 1543 में ही शेरशाह ने मुल्तान और 1544 ईस्वी में मारवाड़ पर विजय प्राप्त की। मारवाड़ विजय भी शेरशाह की कूटनीतिक चालों और चालाकी का परिणाम था। मारवाड़ के राजपूतों के शौर्य से प्रभावित हो उसने कहा : मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैं हिंदुस्तान के साम्राज्य को प्रायः खो चुका था।
  • 1545 ईस्वी में बुंदेलखंड के कालिंजर के किले पर किया गया अभियान शेरशाह का का अंतिम अभियान था। गोला बारूद के ढेर में आग लग जाने के कारण शेरशाह बुरी तरह जख्मी हो गया। उसकी मृत्यु के पूर्व कालिंजर को जीत लिया गया था।
  • शेरशाह की मृत्यु 22 मई 1545 ईस्वी को हुई।
  • शेरशाह महान शासन प्रबंधक था उसे अकबर का अग्रणी माना जाता है।
  • पंजाब के फौजदार या हाकिम हैबत खां को शेरशाह ने मसनद-ए-आलाकी उपाधि प्रदान की थी।
  • शेरशाह की लगान-व्यवस्था मुख्यतः रैयतवाड़ी थी। जिसमें किसानों से प्रत्यक्ष संपर्क किया गया था। मुल्तान के अतिरिक्त राज्य के सभी भागों में यह लागू की गयी थी।
  • न्याय करना धार्मिक कार्य में सर्वश्रेष्ठ है और इसे सभी काफिर और मुसलमान बादशाह स्वीकार करते हैं। -यह कथन शेरशाह का है।
  • शेरशाह ने दामनामक ताँबे के नए सिक्के चलाए।
  • शेरशाह की मृत्यु के बाद उसका छोटा लड़का जलाल खां 27 मई 1545 ईसवी को इस्लामशाह के नाम से सिंहासन पर बैठा।
  • 1553 इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद फिरोजशाह गद्दी पर बैठा लेकिन उसके मामा मुबारिज खां ने उसकी हत्या कर दी और मुहम्मद आदिलशाह के नाम से शासक बना। हेमू इसी का सेनापति था।

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