विजयनगर साम्राज्य एक शक्तिशाली दक्षिण भारतीय साम्राज्य था जो 14वीं से 17वीं शताब्दी तक अस्तित्व में था। इसकी स्थापना 1336 में ऋषि विद्यारण्य के मार्गदर्शन में हरिहर प्रथम और उनके भाई बुक्का राय प्रथम ने की थी। साम्राज्य वर्तमान कर्नाटक में विजयनगर (अब हम्पी) शहर में केंद्रित था, और यह दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों में फैल गया। विजयनगर साम्राज्य अपनी प्रभावशाली वास्तुकला, जीवंत संस्कृति और मजबूत सेना के लिए जाना जाता था। यह एक हिंदू राज्य था, लेकिन इसमें अच्छी खासी मुस्लिम आबादी भी थी। 16वीं शताब्दी में साम्राज्य का पतन हो गया, और अंततः 1565 में मुस्लिम सल्तनतों के गठबंधन द्वारा इसे जीत लिया गया।
विजयनगर साम्राज्य की उत्पत्ति–
विजयनगर का प्रारंभिक इतिहास स्पष्ट नहीं है। “ए फॉरगॉटेन एंपायर” के प्रसिद्ध लेखक सीवेल (Sewell) ने विजयनगर की उत्पत्ति के विषय में बहुत सी परंपरागत कथाओं पर प्रकाश डाला है और उन्होंने यह विचार प्रकट किया है कि, “शायद अत्यधिक न्याय संगत विवरण तभी मिल सकता है जबकि हिंदुओं की किवदंतियों का सामान्य प्रवाह ऐतिहासिक तथ्यों की निश्चितता में मिश्रित कर दिया जाए।”
सीवेल ने उस परंपरा को स्वीकार किया है जिसके अनुसार संगम के पांच पुत्रों ने ( जिनमें से दो का नाम हरिहर व बुक्का था ) तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी तट पर उसके उत्तरी तट वाले अनागोंडी दुर्ग के सामने विजयनगर की नींव डाली थी। संगम के पुत्रों की इस आवश्यकता को प्रेरणा देने का उत्तरदायित्व उस समय के दो महान विद्वान सायण व माधव विद्यारण्य पर है।
विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों के उद्भव से संबंधित तीन मुख्य विचारधाराएं प्रचलित हैं—
(क)- तेलुगू, आंध्र या काकतीय उद्भव,
(ख)- कर्नाट (कर्नाटक) या होयसल उद्भव,
(ग)-कम्पिली उद्भव,
प्रथम विचारधारा के अनुसार हरिहर और बुक्काअंतिम काकतीय शासक प्रताप रूद्रदेव काकतीय के कोषाधिकारी (प्रतिहार) थे।तुगलक सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक द्वारा काकतीय राज्य की विजय के पश्चात ये दोनों भाई विजयनगर के वर्तमान स्थान पर पहुंचे जहां एक वैष्णव संत विद्यारण्य ने उन्हें अपना संरक्षण प्रदान किया तथा उन्हें विजयनगर नामक नगर तथा साम्राज्य की स्थापना करने के लिए अनुप्रेरित किया। इस मान्यता की पुष्टि मुख्यत: कालज्ञान ग्रंथों विशेषकर विद्यारण्य कालज्ञान तथा कुछ अन्य स्रोतों से होती है।
विजयनगर साम्राज्य के संस्थापकों के तेलुगु या काकतीय उद्भव की मान्यता का समर्थन करने वाले आधुनिक विद्वानों ने अपनी मान्यता के समर्थन में यह भी तर्क प्रस्तुत किया है कि विजयनगर नरेशों ने अपने राज्य चिन्ह और प्रशासकीय प्रभावों को काकतीय से ग्रहण किया था। इसके अतिरिक्त विजयनगर नरेशों ने तेलुगु भाषा और साहित्य को अत्यधिक संरक्षण प्रदान किया था।