विजयनगर साम्राज्य में आने वाले विदेशी यात्री

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विजयनगर साम्राज्य जिसकी स्थापना हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों द्वारा की गई थी और यह मध्यकालीन इतिहास का सबसे प्रसिद्ध दक्षिण का राज्य था। विजयनगर साम्राज्य की ख्याति देश और विदेश में फैली। इस साम्राज्य में कई विदेशी यात्रियों ने भ्रमण किया और इसके बारे में अपने वृतांत लिखे। इस लेख में हम विजयनगर साम्राज्य में आने वाले विदेशी यात्रियों के विषय में अध्ययन करेंगे।

विजयनगर साम्राज्य

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ईस्वी में हरिहर और बुक्का नाम के दो भाइयों द्वारा की गई थी। विजयनगर को वर्तमान में हम्पी नाम से जाना जाता है। इस साम्राज्य में कई विदेशी यात्री आये जिनका विवरण अग्रलिखित है–

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विजयनगर साम्राज्य में आने वाले विदेशी यात्री

1– निकोलोकोंटी

यह इटली का रहने वाला था जिसने 1420 ईस्वी में देवराय प्रथम के शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की। उसने अपनी विजयनगर यात्रा का बहुत ही सजीव वर्णन किया है और वह लिखता है कि- “इस शहर का व्यास 70 मील है। इसकी दीवारें पहाड़ तक जाती हैं। 90 हज़ार कुशल अस्त्र-शास्त्र चलाने वाले पुरुष इस राज्य में रहते हैं। विजय नगर साम्राज्य का शासक अन्य भारतीय राजाओं से अधिक शक्तिशाली है।” निकोलोकोंटी अपने वर्णन में विजयनगर साम्राज्य में प्रचलित दास प्रथा का भी वर्णन करता है। उसने दासों की खरीद-फरोख्त को वेस-वग कहा है।

2- अब्दुर्रज्जाक

अब्दुर्ररज़्ज़ाक़ फारस का रहने वाला था और इसने 1443 ईस्वी में देवराय द्वितीय के समय विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की। वह खुरासान के शासक [सुल्तान शाहरुख़] द्वारा राजदूत के रूप में विजयनगर भेजा गया था। इसने विजय नगर की प्रशासनिक इकाई सचिवालय का बहुत अच्छा विवरण प्रस्तुत किया है। विजयनगर शहर का वर्णन करते हुए वह लिखता है कि- “विजयनगर जैसा नगर इस पृथ्वी पर न तो किसी ने देखा और न सुना था।” अबुर्रज्जाक विजय नगर में 300 बंदरगाहों का उल्लेख करता है और कालीकट को प्रमुख बंदरगाह बताता है।

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3- बारबोसा-

यह पुर्तगाली यात्री था जो कृष्ण्देवराय के शासनकाल में विजयनगर आया। यह विजयनगर साम्राज्य में प्रचलित सती प्रथा का वर्णन करता है। प्रतंतु वह यह भी बताता है कि ब्राह्मणो, लिंगायतों और चेट्टियों में सती प्रथा का प्रचलन नहीं था। लेकिन इसके विपरीत अधिकांश अभिलेखीय प्रमाण सिद्ध करते हैं कि सती प्रथा का प्रचलन उच्च वर्गों और राज परिवार तक ही सिमित था। बारबोसा बताता है कि दक्षिण भारत के जहाज मालद्वीव से बनकर आते थे।

अब्दुर्रज्जाक - निकितिन

4- पायस

यह भी पुर्तगाल का यात्री था जिसने 1520-22 में विजयनगर साम्राज्य की यात्रा की। यह कृषणदेव राय के समय में भारत आया। वह लिखता है कि विजयनगर साम्राज्य 200 प्रांतों में विभाजित था। विजयनगर साम्राज्य का विवरण करते हुए वह लिखता है कि “मैंने जो देखा [विजयनगर] वह वास्तव में उतना ही बड़ा था जितना बड़ा रोम और देखने में अत्यंत सुंदर यह विश्व का सबसे व्यवस्थित नगर है।”

पायस अपने विवरण में नवरात्र के त्यौहार का विवरण देता है। वह लिखता है कि “राजा के सामने 24 भैंसों और 150 भेड़ों की बलि दी जाती थी। नवरात्र पर्व के अंतिम दिन 250 भैसों और 4500 भेड़ों की बलि चढ़ाई जाती थी।” पायस ने कृष्णदेव राय के समय प्रचलित शिल्प और व्यापार के विषय में लिखता है कि “प्रत्येक गली में एक मंदिर है क्योंकि सभी शिल्पियों और व्यापारों के संस्थादातओं के होते हैं।”

पायस, बारबोसा, नूनिज

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5- नूनिज

यह पुर्तगाल का यात्री था जो अच्युत देवराय के समय में विजयनगर आया और 1535 से 1537 तक रहा। यह भी उस समय विजयनगर में सती प्रथा के प्रचलन का विवरण देता है।

6- सीजर फ्रेडरिक

यह भी एक पुर्तगाली यात्री था जो तालीकोटा के युद्ध के पश्चात् विजयनगर आया।

7- निकितिन

यह घोड़ों का व्यापारी था और रूस का रहने वाला था। यह 1470 ईस्वी से 1474 ईस्वी के बीच बहमनी शासक मुहम्मद तृतीय के दरबार में आया। वह अपने विवरण में विजयनगर में प्रचलित सामाजिक भेदभाव और असमानता का विवरण देता है। वह लिखता है कि “भूमि का अधिकांश हिस्सा धनि और उच्च वर्ग के पास था और आमजन की स्थिति दयनीय थी। कुलीन वर्ग सभी सुख सविधाओं का उपभोग करता था और आमजन इससे वंचित था। निकितिन का अधिकांश समय बीदर में ही व्यतीत हुआ।

8- अबू अब्दुल्लाह/इब्नेबतूता

वह मोरक्को का निवासी थाl वह घुमक्कड़ प्रवृत्ति का था और उसने अपने जीवन के तीस साल उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी अफ्रीका, दक्षिणी यूरोप, पूर्वी यूरोप, भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और पूर्वी चीन की यात्रा में बिताए थे. उसने अपनी किताब “रेहला” (तुहफाट-उल-नज़र फी गरीब उल-अम्सर वा अजीब-उल-असर) में “हरिहर प्रथम” के शासनकाल का वर्णन किया हैl संदर्भ

निष्कर्ष

इस प्रकार इन विदेशी यात्रियों के वृतांतों से हमें तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक दशा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। कई बार दरबारी कवी और इतिहासकार राजा के दबाव में सही जानकारी देने से बचते थे। ऐसे में इन विदेशी यात्रियों के वृतांत सही और तथ्यपरक जानकरी प्रदान करते हैं। कई बार ये विदेशी यात्री भाषा और संस्कृति के मामले में भ्रमित भी हो जाते थे। उम्मीद है आपको यह जानकारी पसंद आएगी।

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