भारत परिषद अधिनियम 1909 -भारत में साम्प्रदायिक विभाजन का जन्म 1909 Marle-Minto Act in Hindi

भारत शासन अधिनियम 1909 जिसे साधारणतया मार्ले-मिंटो सुधारों के नाम से जाना जाता है। यह वह अधिनियम था जिसने भारत में साम्प्रदायिक राजनीति को कानूनी रूप देना प्रारम्भ किया। साथ ही सरकारी पदों पर भारतीयों को नियुक्त करने की बात इससे पहले के सभी अधिनियमों में कही गयी लेकिन धरातल पर उसका कोई महत्वपूर्ण परिणाम … Read more

भारत में संवैधानिक विकास: रेग्युलेटिंग एक्ट 1773, उद्देश्य, गुण और दोष, Regulating Act 1773

12 अगस्त 1765 को क्लाइव ने निर्वल मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय से एक फरमान प्राप्त किया। इस फरमान के अनुसार कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हो गयी और उसके बदले कम्पनी को 26 लाख रुपया वार्षिक मुग़ल सम्राट को देना था। इसी प्रकार बंगाल का नवाब अब कंपनी का पेंशनर … Read more

लार्ड विलियम बैंटिक के सामाजिक और प्रशासनिक सुधार , सती प्रथा का अंत, ठगी का अंत, सरकारी सेवाओं में भेदभाव का अंत lord william bentinck reforms in hindi

लार्ड विलियम बेंटिक भारतीय इतिहास में एक सम्मानित गवर्नर जनरल के रूप में विख्यात है। उसने भारतीय महिलाओं के विरुद्ध की जाने वाली अमानवीय प्रथा सती पर रोक लगा दी। विलियम बैंटिक ने अपने सुधारों से भारत में एक नए दौर की शुरुआत की।आज इस ब्लॉग में हम विलियम बैंटिक द्वारा किये गए सुधारों और … Read more

वॉरेन हेस्टिंग्ज -बंगाल के गवर्नर से बंगाल के गवर्नर जनरल तक- History 0f Warren Hastings

वॉरेन हेस्टिंग्ज जिसने भारत में बंगाल के गवर्नर के रूप में न्युक्ति पायी थी और जिसने अपनी साम्राज्यवादी नीति से मुग़ल साम्राज्य के प्रभुत्व का मुखौटा तोड़ डाला। उसने वास्तविकता को पहचानते हुए बंगाल पर विजय के अधिकार से शासन करने का प्रयत्न किया। उसके सामने कठिन चुनौती थी बंगाल में एक कामचलाऊ प्रशासनिक व्यवस्था … Read more

कर्नाटक में अग्रेंजों और फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष: के कारण और वॉरेन हेस्टिंग्ज | Anglo French Rivalry In The Carnatic

पुर्तगालियों के भारत आगमन के साथ ही जलमार्ग द्वारा यूरोप और भारत के मध्य व्यापारिक संबंध बड़ी तेजी से विकसित हुए और एक-एक कर क्रमसः पुर्तगाली, डच, ब्रिटिश और फ्रेंच व्यापारी भारत में व्यापार करने आने लगे। पुर्तगाली और डच अंग्रेजी शक्ति के  सामने कमजोर पड़ गए  और शांतिपूर्वक व्यापार तक सिमित  हो गए। यूरोप … Read more

भारत शासन अधिनियम 1858 – Government of India Act 1858

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध भारतीयों द्वारा किया गया 1857 का विद्रोह यद्पि असफल रहा परन्तु इसने ब्रटिश सरकार को अपनी नीतियों में परिवर्तन हेतु बाध्य किया। भारतीयों के गुस्से को शांत करने और ब्रिटिश शासन को दृढ़ता प्रदान करने के उद्देश्य से भारत शासन अधिनियम 1858 पास किया गया। आज इस ब्लॉग में … Read more

भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, महत्व और क्यों असफल हुआ ?

भारत छोड़ो आंदोलन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त, 1942 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू किया गया एक स्वाधीनता आंदोलन था, जिसमें भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को भारत से समाप्त करने की मांग की गई थी। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी ने की थी, जिन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए बड़े पैमाने पर सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया था। आंदोलन को छात्रों, किसानों और श्रमिकों सहित समाज के सभी वर्गों से व्यापक समर्थन मिला।

भारत छोड़ो आंदोलन: इतिहास, महत्व और क्यों असफल हुआ ?

भारत छोड़ो आंदोलन

अंग्रेजों ने आंदोलन का कड़ा जवाब दिया और कई भारतीय नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिनमें महात्मा गांधी भी शामिल थे, जिन्हें दो साल के लिए जेल में डाल दिया गया था। अंग्रेजों ने भी आंदोलन को दबाने के लिए हिंसा का सहारा लिया, जिसके परिणामस्वरूप व्यापक विरोध और भारतीय प्रदर्शनकारियों और ब्रिटिश अधिकारियों के बीच झड़पें हुईं।

अंग्रेजों की भारी-भरकम प्रतिक्रिया के बावजूद, भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। इसने नेताओं और कार्यकर्ताओं की एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत बनाने में मदद की। अंत में, लगभग 200 वर्षों के ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के बाद, भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की।

असहयोग आंदोलन वह आंदोलन था जिसका भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यही वह आंदोलन था जब अहिंसा  पुजारी महात्मा गाँधी भी हिंसा के लिए तैयार हो गए, जब गाँधी जी ने नारा दिया ‘करो या मरो’ ( do or die ),  यदयपि यह प्रश्न अक्सर उठता है कि भारत छोड़ो आंदोलन क्यों असफल हुआ’। इस लेख मैं आपको भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े सभी प्रश्नों से परिचित कराऊंगा। यह लेख पूर्णतया  शोध करके तैयार किया गया है ताकि पाठकों के सम्मुख विश्वसनीय और शोधपरक जानकारी प्रस्तुत की जा सके।

भारत छोड़ो आंदोलन क्यों शुरू किया गया 

मानव इतिहास में सदा ही जालिम और विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा किये गए दमन तथा अत्याचार का विरोध होता रहा है।  जब-जब मानव का विरोध सफल हुआ, उसे स्वतंत्रता मिली। 1942 में होने वाला ‘भारत छोडो आंदोलन’ भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में एक ऐसी ही महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना है। समस्त देश में फैलने वाले इस आंदोलन ने अंग्रेजों को भारतीय राष्ट्रवाद की शक्ति का परिचय दिया। इस आंदोलन के पीछे निम्नलिखित कारण थे —

1- क्रिप्स मिशन की विफलता से यह स्पष्ट हो गया था कि ब्रिटिश सरकार द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीयों की अनिच्छुक साझेदारी तो रखना चाहती थ, लेकिन किसी सम्मानजनक समझौते के लिए तैयार नहीं थी। नेहरू और गाँधी भी जो इस फ़ासिस्ट-विरोधी युद्ध को किसी तरह कमजोर करना नहीं चाहते थे, इस निष्कर्ष पर पहुंच गए थे कि और अधिक चुप रहना यह स्वीकार कर लेना होगा कि ब्रिटिश सरकार को भारतीय जनता की इच्छा जाने बिना भारत का भाग्य तय करने का अधिकार है। अतः कांग्रेस ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने को कहा। 

2- भारत छोडो आंदोलन के पीछे एक और महत्वपूर्ण कारण यह था कि विश्व युद्ध के कारण जरुरी सामान की कीमते बहुत बढ़ गयी थीं और आवश्यक वस्तुओं की बाजार में भारी कमी हो गई थी।बंगाल और उड़ीसा में सरकार ने नावों को इस संदेह में जब्त कर लिया कि कहीं इनका प्रयोग जापानियों द्वारा न किया जाये।सिंचाई की नहरों को सूखा दिया गया जिससे फसलें सूखने लगीं। सिंगापुर और रंगून पर जापानियों के कब्जे के बाद कलकत्ता पर बम बरसाए गए जिससे हजारों लोग शहर छोड़कर फ़ाग गए। 

3- मलाया और वर्मा को ब्रिटिश सरकार ने जिस तरह खाली किया, यानि सिर्फ गोरे लोगों को सुरक्षित निकला गया और स्थानीय जनता को उसके भाग्य पर छोड़ दिया गया।भारतीय जनता भी अब यही सोचकर परेशान थी कि यदि जापानियों का भारत पर हमला हुआ तो अंग्रेज यहाँ भी ऐसा ही करेंगे। अतः राष्ट्रिय आंदोलन के नेताओं ने जनता में विश्वास पैदा करने के लिए संघर्ष छेड़ने का निश्चय किया। 

4- विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सरकार की स्थिति देखकर जनता का विश्वास घट गया था लोग बैंकों और डाकघरों से जमा पैसा निकलने लगे थे और उस पैसे को सोने चांदी में निवेश करने लगे थे।अनाज की जमाखोरी अचानक बहुत बढ़ गयी थी। 

Read Also

5- गाँधी जी को लगने लगा था कि अब देर करना सही नहीं होगा।  उन्होंने कांग्रेस को चुनौती दे डाली थी कि अगर उसने संघर्ष का उनका प्रस्ताव अस्वीकार किया तो “मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा”। इसका असर यह हुआ कि कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा की अपनी बैठक ( 14 जुलाई 1942 ) में संघर्ष के निर्णय को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। 

गाँधी जी ने ‘हरिजन’ पत्रिका में अंग्रेजों को भारत छोड़ने की मांग करते हुए कहा “भारत को भगवान के भरोसे छोड़ दो और यदि वह असम्भव हो तो उसे अराजकता के भँवर में छोड़ दो” । 

गाँधी जी ने 5 जुलाई 1942 को ‘हरिजन’ में लिखा अंग्रेजों भारत को जपनके लिए मत छोड़ो बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ”

Read more

1857 की क्रन्ति, स्वरुप, कारण और परिणाम ? 1857 ki kranti in hindi

1857 KI KRANTI

1857 की क्रांति जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी कहा जाता है। इस क्रांति से सम्बंधित अनेक प्रश्न हैं जो हमारे सामने अक्सर आते हैं , क्या यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था? क्या यह सैनिक क्रांति थी ? क्रांति कहाँ से शुरू हुई ? क्रांति के प्रमुख नायक, क्रांति क्यों असफल हुई ? क्रांति का स्वरुप क्या था? आदि इन सभी प्रश्नों का उत्तर इस लेख के माध्यम से दिया जायेगा। ये सभी प्रश्न आपको किसी एक लेख में नहीं मिलेंगे, लेकिन हम यह लेख इसीलिए लाये हैं ताकि आपको सम्पूर्ण और सही जानकारी एक ही लेख में मिल जाये।  

1857 ki kranti
1857 की क्रान्ति

 

1857 की क्रन्ति, स्वरुप, कारण और परिणाम 1857 ki kranti in hindi

भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने व्यापारक गतिविधियों के साथ प्रवेश किया और साम्राज्यवाद की प्रवृत्ति के कारण भारत की कमजोर राजनीतिक स्थिति का लाभ भी उठाया। ब्रिटिश लोगों की धनलोलुपता की कोई सीमा नहीं थी।

1857 की क्रांति कोई अचानक हुई क्रांति नहीं थी इसके बीज अंग्रेजों की 100 वर्ष की ( 1757-1857 ) नीतियों में छिपा था। इन सौ वर्षों में अंग्रेजों ने भारत के सभी वर्गों – रियासतों के राजाओं, जमींदारों, सैनकों, किसानों, मौलवियों , ब्राह्मणों , व्यापारियों को भयभीत  कर दिया।

      ऐसा भी नहीं है कि 1857 से पूर्व अंग्रेजों का कोई विरोध नहीं हुआ। समय-समय पर अनेक विद्रोह हुए जिन्हें कुचल दिया गया — वैल्लोर में 1806 में , बैरकपुर में 1824, फिरोजपुर में फरवरी 1842 में 34वीं रेजिमेंट का विद्रोह, 1849 में सातवीं बंगाल कैवेलरी और 64वीं रेजिमेंट और 22वीं रेजिमेंट N.I. का विद्रोह, 1850 में 66वीं N.I. का विद्रोह और1852 में 38वीं N.I. का विद्रोह आदि।

इसी प्रकार 1816 बरेली में उपद्रव हुए, 1831-33 का कोल विद्रोह, 1848 कांगड़ा, जसवार और दातारपुर के राजाओं का विद्रोह, 1855-56 में संथालों का विद्रोह। ये सभी विद्रोह ईस्ट इंडिया कम्पनी की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक नीतियों के कारण हुए। यही अग्नि धीरे-धीरे सुलगते हुए 1857 में विकराल रूप से धधक उठी और ईस्ट इंडिया कम्पनी के भारतीय साम्राज्य की जड़ों को हिला दिया।

1857 की क्रांति का स्वरूप 

       इतिहासकारों ने 1857 की क्रांति के स्वरूप के विषय में भिन्न-भिन्न मत प्रकट किये हैं 

यह एक सैनिक विद्रोह था – 

 इस विचार के प्रतिपादक सर जॉन लारेन्स और जान सीले हैं।  सर जान सीले के अनुसार 1857 का विद्रोह “एक पूर्णतया देशभक्ति रहित और स्वार्थी सैनिक विद्रोह था जिसमें न कोई स्थानीय नेतृत्व ही था और न ही सर्वसाधारण का समर्थन हासिल था।” उसके अनुसार “यह एक संस्थापित  

सरकार के विरुद्ध भारतीय सेना  विद्रोह था

 यह सही है कि यह विद्रोह एक सैनिक विद्रोह के रूप में आरम्भ हुआ लेकिन सभी स्थानों पर यह सेना तक सीमित नहीं था। सभी सैनिक भी विद्रोह में सम्मिलित नहीं हुए, बल्कि अधिकांश सैनिक सरकार के साथ थे। विद्रोही जनता के प्रत्येक  वर्ग से आये थे। अवध में इसे जनता का समर्थन प्राप्त था और इसी प्रकार बिहार के कुछ जिलों में ऐसा हुआ। 1858-59 के अभियोगों में सहस्रों असैनिक, सैनिकों के साथ-साथ विद्रोह के दोषी पाए गए तथा उन्हें दण्ड दिया गया। 

यह धर्मांधों का ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध था 

 यह मत एल. ई. आर. रीज का है उनका यह कहना कि “यह धर्मांधों का ईसाइयों के विरुद्ध युद्ध था” से सहमत होना अत्यंत कठीन है।  विद्रोह की गर्मी में भिन्न-भिन्न धर्मों के नैतिक नियमों का लड़ने वालों पर कोई नियंत्रण नहीं था।दोनों दलों ने अपनी-अपनी ज्यादतियों को छिपाने के लिए अपने-अपने धर्म ग्रंथों का सहारा लिया।

अंततः ईसाई जीत गए ईसाई धर्म नहीं। हिन्दू और मुसलमान पराजित हो गए परन्तु हिन्दू और मुसलिम धर्म पराजित नहीं हुए। ईसाई धर्म प्रचारकों ने ईसाई धर्म के प्रचार के लिए अथक प्रयास किये पर ज्यादा सफलता नहीं मिली। यह न तो धर्मों का युद्ध था और न ही जातियों का युद्ध था। बल्कि यह एक देश के नागरिकों का विद्रोह था जो उन्होंने विदेशी शक्ति  विरुद्ध लड़ा। 

Read more

ब्रिटिश उपनिवेशवाद का भारतीय शिक्षा पर प्रभाव

भारत में प्रारम्भ में आने वाले यूरोपीय व्यापारी एक नई सभ्यता और संस्कृति के ध्वजवाहक थे। इन यूरोपीय व्यापारियों में  ब्रिटिश व्यापारियों ने भारत को कहीं ज्यादा प्रभावित किया।  इस ब्लोग्स में हम ‘ब्रिटिश उपनिवेशवाद का भारतीय  शिक्षा पर प्रभाव’ का अध्ययन करेंगे। भारत आने  वाले यूरोपियन व्यापारियों के तौर-तरीके भारतीयों से बिलकुल भिन्न थे। … Read more

भारत विभाजन के मूल कारण: जानिए भारत विभाजन के वास्तविक कारणों को

भारत का विभाजन इतिहास की महान दुर्घटना थी। यह सब अंग्रेजों की प्राचीन निति ‘बांटों और राज्य करों’ तथा मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिक सोच का परिणाम थी ! बहुत से भारतीय विभाजन के लिए नेहरू-गाँधी और कांग्रेस को मुख्य रूप से जिम्मेदार मानते हैं। ‘भारत विभाजन के मूल कारण,जानिए भारत विभाजन के वास्तविक कारणों को’ … Read more