वर्तमान भारत की सरकार ने भारतीय संविधान में परिवर्तन कर इंडिया (India) शब्द को संविधान से हटाने और सिर्फ “भारत” नाम से देश की पहचान करने का निर्णय लिया है। सरकार के इस निर्णय पर तमाम तरह की बहस शुरू हो चुकी है। विपक्ष साथ-साथ विद्धिजीवियों ने इसे सिर्फ एक राजनीति से प्रेरित मुद्दा बताया है। आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि वास्तव में भारत, इंडिया और हिंदुस्तान कैसे हमारे देश का नाम पड़ा? साथ ही जानेंगे कि यह मुद्दा वास्तव में राजनीतिक है अथवा महज एक छलावा है।
वेदों में भारत को किस नाम से संबोधित किया गया है
भारत के इतिहास का प्रारम्भ ऋग्वेद से ही होता है। भले ही इतिहासकार वेदों को भगवान पुरुषों की वाणी न मानते हों पर अपने सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, ऐतिहासिक सामग्री के कारण वेद हमारी सबसे महान और अनमोल धरोहर के रूप में मौजूद हैं।
सप्तसिंधु प्रदेश
वेदों की रचना करने वाले ऋषियों ने सर्वप्रथम इस देश की जिस धरती पर कदम रखा उसे उन्होंने सप्तसिंधु (पंजाब) के रूप में वर्णित किया। ऋग्वैदिककालीन राजा सुदास ने “दाशराज्ञ” युद्ध में विजय प्राप्त करके आर्यों की जान-व्यवस्था के स्थान पर एकताबद्ध सामंती व्यवस्था लाने का प्रयत्न किया।
आर्यवर्त
जब आर्यों ने अपना विस्तार भारत के विभिन्न स्थानों पर कर लिया और राजतंत्र की स्थापना के बाद अलग-अलग राजा बन गए तब इस विशाल देश को आर्यवर्त (आर्यों का देश अथवा भूमि) कहा जाने लगा और इस देश के लोग आर्यजन कहे जाने लगे। उदहारण के तौर पर हम रामायण और महाभारत में देश सकते हैं जब राजा को आर्यपुत्र कहकर पुकारा गया।
हिन्दू अथवा हिंदुस्तान शब्द का उद्भव
राहुल संकृत्यायन ने अपनी पुस्तक “ऋग्वैदिक आर्य” के प्रथम अध्याय में लिखा है कि ईरानी जो कि आर्यों के रक्तसम्बन्धी थे ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ किया करते थे इसलिए सप्तसिंधु क्षेत्र में आने वाले अपने भाइयों के देश को वे ‘हप्तहिन्दु‘ कहते थे। इसी शब्द को संछेप ,में ‘हिन्द’ कहा जाने लगा।
इंडिया (India) नाम कैसे पड़ा
राहुल संकृत्यायन ने इसी अध्याय में लिखा है कि पश्चिम देशों के सबसे शक्तिशाली देश ग्रीक (यूनान) के निवासी ‘ह’ का उच्चारण करने में असमर्थ थे और वे ह के स्थान पर ‘अ’ का उच्चारण करने लगे इस प्रकार हिन्दू इन्दु या इन्ड बन गया।
भारत नाम कैसे पड़ा
भारत, जिसे भरत के नाम से भी जाना जाता है, आर्य समुदाय का एक समूह था जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में बस गया था। इनका उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में मिलता है, जिसका श्रेय इसी समुदाय के महर्षि विश्वामित्र को दिया जाता है। ऋग्वेद 3:33 में पूर्ण भरत जनजाति के नदी पार करने का वर्णन है। ऋग्वेद का सातवां मंडल दस राजाओं की लड़ाई (दशराज्ञ युद्ध) में भरतजन द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन करता है, जहां त्रित्सु शाखा के राजा सुदास विजयी हुए थे। इस जीत ने इंडो-आर्यों के प्रभुत्व को चिह्नित किया, जिससे भारतीय समुदायों को सिंधु नदी से परे विस्तार करने और कुरुक्षेत्र क्षेत्र में बसने की अनुमति मिली।
इस काल के दौरान, राजनीतिक परिदृश्य जनजातीय गणराज्यों से केंद्रीकृत राजशाही तक विकसित हुआ। दशराज्ञ युद्ध में त्रित्सु सहित विजयी भरत कबीले ने, दस विरोधी जनजातियों की लगभग धार्मिक प्रकृति के विपरीत, राजत्व ग्रहण किया।
बाद के इतिहास में, भरत और पुरु जनजातियों ने मिलकर कुरु समुदाय का गठन किया। इसी नाम से सम्राट भरत का उदय हुआ, जिनके नाम पर आधुनिक भारत राष्ट्र का नाम पड़ा।
विद्वानों की राय है कि ये लोग संभवतः वर्तमान पंजाब में रावी नदी के आसपास के क्षेत्र में रहते थे।
हिंदुस्तान नाम कैसे पड़ा
“हिंदुस्तान” नाम की उत्पत्ति समय के साथ विकसित हुई है और भारतीय उपमहाद्वीप में ऐतिहासिक और भाषाई विकास से निकटता से जुड़ी हुई है। हालाँकि इसकी उत्पत्ति के लिए एक भी निश्चित व्याख्या नहीं है, लेकिन इस शब्द के निर्माण में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों पर विचार करना महत्वपूर्ण है।
सिंधु नदी का प्रभाव: माना जाता है कि “हिंदुस्तान” नाम संस्कृत शब्द “सिंधु” से लिया गया है, जो सिंधु नदी को संदर्भित करता है। प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता, दुनिया की सबसे पुरानी शहरी सभ्यताओं में से एक, सिंधु नदी के आसपास केंद्रित थी। समय के साथ, कुछ विदेशी समूहों द्वारा “एस” का उच्चारण “एच” के रूप में करने से “सिंधु” का “हिंदू” में परिवर्तन हो सकता है।
फ़ारसी प्रभाव: अचमेनिद साम्राज्य के दौरान, विशेष रूप से डेरियस प्रथम के शासन के तहत, इस बात के प्रमाण हैं कि सिंधु नदी से परे के क्षेत्र को “हिंदू” या “हिंदूश” कहा जाता था। फारसियों ने संभवतः इस शब्द का उपयोग सिंधु से परे की भूमि का वर्णन करने के लिए किया था, जिसमें नदी का नाम शीर्षनाम में शामिल था।
भाषाई विकास: जैसे-जैसे इस क्षेत्र में भाषाएँ विकसित हुईं, “हिंदू” शब्द में धीरे-धीरे फ़ारसी प्रत्यय “-स्तान” शामिल हो गया, जिसका अर्थ है “भूमि” या “स्थान”। इस भाषाई विकास के कारण “हिंदुस्तान” का निर्माण हुआ, जिसका अर्थ “सिंधु नदी की भूमि” था।
मध्यकालीन काल: मध्यकाल के दौरान जैसे ही तुर्क और ईरानियों सहित विभिन्न समूहों ने भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश किया, उन्हें इस शब्द का सामना करना पड़ा और उन्होंने इसे अपनाया होगा। इन विदेशी भाषाओं और उनकी उच्चारण प्रथाओं के प्रभाव ने “हिंदुस्तान” शब्द को और अधिक आकार दिया होगा।
भारत का नाम India कैसे पड़ा
मौर्यकाल में भारत पर सेल्यूकस ने आक्रमण किया जो सिकंदर की मृत्यु के बाद यूनान का शासक बना परन्तु वह चन्द्रगुप्त मौर्य से पराजित हो गया। दोनों शासकों में संधि के पश्चात् मित्रता हो गई। तत्पश्चात सेल्युकस ने अपना एक राजदूत मेगस्थनीज को मौर्य दरबार में भेजा। उसने भारत के संबंध में एक पुस्तक ‘इंडिका’ लिखी। सम्भवतः यह यूनानी ही थे जिन्होंने भारत को पहली बार इंडिया कहा। लेकिन बहुत से लोग एक अलग तर्क भी प्रस्तुत करते हैं।
यह एक रुचिकर और ऐतिहासिक जानकारी है कि अंग्रेजों ने भारत को “इंडिया” कहने का अच्छा आदान-प्रदान किया और इसके पीछे की विशेष वजहें। यह बात सही है कि नामों का उत्थान और विकास विशिष्ट इतिहासिक और भाषाई प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है, और इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं।
इंडिया नाम के पीछे की कुछ मुख्य वजहें शामिल हो सकती हैं:
सिंधु नदी (Indus River) का प्रभाव: जैसा कि आपने सही रूप से कहा है, अंग्रेज भारत में पहुँचे और सिंधु नदी के नाम का उपयोग किया, जो भारत के पश्चिमी सीमा के पास है। इससे “हिंदुस्तान” शब्द का निर्माण हुआ, जो “सिंधुस्थल” का अर्थ होता है और इसे इंग्लिश में “India” के रूप में प्रस्तुत किया गया।
उच्चारण की समस्या: “हिंदुस्तान” का उच्चारण अंग्रेजों के लिए कठिन था, इसलिए वे इंडस नदी के नाम का उपयोग करने में साहस किया। “हिंदुस्तान” शब्द को “इंडिया” में समाहित कर दिया गया, जिससे इसे उच्चारित करने में साहसिक समस्या कम हो गई।
संविधान में स्थान: आपके स्थानीय जनराज्य के संविधान में “इंडिया दैट इज भारत” का उल्लेख है, जिससे यह भी पुष्टि मिलता है कि “इंडिया” शब्द भारत का एक प्रमुख नाम है।
इसके परिणामस्वरूप, “इंडिया” शब्द आजकल भारत का प्रमुख नाम हो गया है और इसका उपयोग दुनियाभर में किया जाता है। नामों के ऐतिहासिक प्रक्रिया और उनके विकास का अध्ययन दिलचस्प और महत्वपूर्ण होता है, और यह समझने में मदद करता है कि एक देश का नाम कैसे बनता है।
अगर इस बात पर विश्वास कर लिया जाये तो यह कैसे मान लिया जाये कि भारत आने से पहले ही अंग्रेजों ने अपनी व्यापारिक कम्पनी का नाम ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी’ कैसे रख लिया? स्पष्ट है कि अंग्रेज पहले से ही इंडिया शब्द से परिचित थे। और वास्तव में यूनानी ही इंडिया शब्द के जनक हैं।
क्यों बदलना चाहती हैं मोदी सरकार इंडिया शब्द को?
अब सवाल यह उठता है कि मोदी सरकार अचानक इस शब्द को संविधान से हटाने को क्यों आतुर हो गई? जबकि संविधान में स्पष्ट तौर पर कहा गया है “India That Is Bharat” यानि संविधान स्पष्ट तौर पर स्वीकार करता है की India ही भारत है। तो सरकार की मंशा क्या है?
इसका सीधा मतलब विपक्षी गठबंधन जिसने अपना नाम INDIA रखा है को राजनीतिक रूप से वेअरथ कर देना है। ताकि INDIA शब्द केवल विदेशी नाम के तौर पर जाना जाये और विपक्ष को नुकसान पहुँचाया जाए।
तथाकथित देशभक्तों ने दिया सरकार को समर्थन
अक्सर वास्तविक मुद्दों पर मौन रहने वाले महानायक अमिताभ बच्चन, वीरेंद्र सहवाग, से लेकर कई औरों ने सरकार के सुर में सुर मिलाते हुए समर्थन किया। लेकिन ये लोग, महंगाई, बेरोजगारी, जातिवाद, साम्प्रदायिकता जैसे संवेदनशील मुद्दों पर मौन साध लेते हैं।
T 4759 – 🇮🇳 भारत माता की जय 🚩
— Amitabh Bachchan (@SrBachchan) September 5, 2023
मणिपुर में जहाँ बीजेपी की सरकार है और महीनों से हिंसा जारी है। जहाँ महिलाओं को सरेआम नग्न घुमाया गया, तब ये नायक और महानायक ख़ामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं। तथाकथित राष्ट्र्वादी गीतकार और लेखक मनोज मुंतसिर सनातन का पाठ पढ़ाने आ जाते हैं, जबकि कुछ दिन पहले आई फिल्म आदिपुरुष में अपनी घटिया और निम्न स्तर की सोच को संवाद लेखन से दर्शा चुके हैं।
I have always believed a name should be one which instills pride in us.
— Virender Sehwag (@virendersehwag) September 5, 2023
We are Bhartiyas ,India is a name given by the British & it has been long overdue to get our original name ‘Bharat’ back officially. I urge the @BCCI @JayShah to ensure that this World Cup our players have… https://t.co/R4Tbi9AQgA
Casting off the chains of its colonial history will fortify its sovereign identity. With bold determination,
— Manoj Muntashir Shukla (@manojmuntashir) September 5, 2023
Bharat will carve new paths on the global stage, stronger and brighter than ever before.
भारतं वर्षं, जगत्यम्ब सुपुत्रं,
वन्दे मातरम्, सुखदं नामामि।#MeraBharatMahan
निष्कर्ष
अंत में हम कह सकते हैं कि भारत की वर्तमान सरकार संविधान की मूल भावना के विपरीत ही काम करती है। वो सर्फ अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ऐसे व्यर्थ मुद्दों को उठाती है। जबकि ऐसे मुद्दों से न तो देश की महंगाई, बेरोजगारी, जैसे मुद्दे हल होने वाले हैं और न ही इस देश की जनता का भला होने वाला है। अगर सरकार वास्तव में इस देश को आगे ले जाना चाहती है तो जनता की समस्याओं पर ध्यान दे।