भारतीय संविधान नम्यता और अनम्यता का अनोखा मिश्रण है। इसका तातपर्य है कि इसके संशोशण की प्रक्रिया न तो इंग्लैंड के संविधान की भांति अत्यंत लचीली है और न ही अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया या कनाडा के संविधान की भांति अत्यंत कठोर है।
भारतीय संविधान निर्माता विश्व के संघात्मक संविधान के सञ्चालन की कठनाइयों से पूर्णतः परिचित थे, परिणामस्वरूप उन्होंने संविधान संशोधन के लिए अत्यधिक लचीलेपन या कठोरता से इतर एक मध्यम मार्ग अपनाया। संविधान संशोधन की यह प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका के संविधान से ग्रहण की गई है।
Procedure for Amendment of the Constitution | भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया
संविधान का भाग 20, अनुच्छेद 368 संविधासन संशोशण से संबंधित है। भारत में संविधान संशोधन की शक्ति संसद को दी गई है। राज्य विधान मंडलों को संविधान संशोधन का अधिकार नहीं है।
संसद, प्रस्तावना तथा मूल अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है किन्तु संविधान के ‘आधार भूत ढांचे ( Basic Structure ) में संशोधन नहीं कर सकती। ( केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य )। अनुच्छेद 368 के अनुसार संविधान संशोधन की शक्ति और प्रक्रिया दी गई है।
संविधान संशोधन के लिए तीन प्रकार की प्रक्रिया का प्रावधान किया गया है ——
1- साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
2- विशेष बहुमत द्वारा संशोधन, तथा
3- विशेष बहुमत और राज्यों के अनुसमर्थन द्वारा संशोधन। Amendment by special majority and ratification of the states.
साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
संविधान के कुछ उपबंधों में संसद साधारण बहुमत से विधेयक पारित कर ( संबंधित अनुच्छेद में निर्दिष्ट प्रक्रिया के अनुसार ) संशोधन कर सकती है। साधारण बहुमत से तात्पर्य, सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले आधे से अधिक सदस्यों के बहुमत से है।
यह संविधान संशोधन की सबसे सरल प्रक्रिया है, किन्तु इसके द्वारा किये गए संशोधनों को अनु. 368 के अर्थों में संविधान संशोधन नहीं माना जाता, यद्यपि इसके द्वारा संविधान के कुछ उपबंधों में परिवर्तन किया जाता है।
यह संविधान संशोधन साधारण विधि के समान होता है। कौन से उपबंध साधारण बहुमत संशोधित किये जा सकेंगे, यह संबंधित अनुच्छेद या अनुसूची बताया गया है। साधारण बहुमत से संशोधित किये जाने वाले कुछ प्रमुख उपबंध अधोलिखित हैं यथा —–
- संघ में नवीन राज्यों का प्रवेश -अनु. -2
- नए राज्यों का निर्माण या वर्तमान राज्यों के क्षेत्र, नाम या सीमा में परिवर्तन अनु. -3
- नागरिकता प्रावधान -अनु.- 11
- राज्यों में विधान परिषद का सृजन या समापन – अनु.- 169
- संघ क्षेत्र के लिए विधान मंडल या मंत्रिपरिषदों का सृजन -अनु.- 239 क
- राष्ट्र्पति, उपराष्ट्रपति, न्यायाधीशों आदि के वेतन एवं भत्ते -अनु.- 2
- प्रथम 5वीं, 6वीं तथा 8वीं अनुसूची आदि में।
*विशेष बहुमत द्वारा संशोधन
विशेष बहुमत द्वारा संशोधन की प्रक्रिया अनु. 368 में उल्लिखित है। विशेष बहुमत से तात्पर्य है, सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत। संविधान में ऐसे उपबंध जिन्हें साधारण बहुमत द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता है तथा जिन्हें संशोधित करने के लिए आधे राज्यों का अनुसमर्थन आवश्यक है को छोड़कर, शेष सभी उपबंध संसद दवरा विशेष बहुमत से संशोधित किये जा सकते हैं।
इस प्रकार संविधान के सर्वाधिक संशोधन इस प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है। वस्तुतः जब तक अन्यथा उपबंधित न हो, अतः संविधान के लगभग सभी अनुच्छेदों में इस विधि द्वारा संशोधन किया जाना सम्भव है।
*विशेष बहुमत और राज्यों के अनुसमर्थन द्वारा संशोधन | Amendment by special majority and ratification of the states
यह संविधान संशोधन की सबसे कठिन प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया भी-अनु. – 368 में उल्ल्खित है। इस प्रक्रिया अनुसार संविधान संशोधन के लिए संसद के प्रत्येक सदन के विशेष बहुमत के साथ-साथ कम से कम आधे राज्यों के विधान मंडलों का अनुसमर्थन आवशयक है।
यहाँ राज्यों के विधान मण्डलों से आशय उस राज्य की विधान सभा एवं विधान परिषद् ( यदि हो ) दोनों के अनुसमर्थन से है। इसके द्वारा संविधान के उन उपबंधों का संशोधन किया जाता है, जो संघात्मक ढांचे से संबंधित हैं।
अनुच्छेद 368 (2) के तहत उन उपबंधों का उल्लेख किया गया है, जिनमें इस प्रक्रिया द्वारा संशोधन किया जाना अपेक्षित है। ऐसे उपबंध अधोलिखित हैं। यथा —
- अनुच्छेद 54 – राष्ट्रपति का निर्वाचन ,
- अनुच्छेद 55 – राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीती,
- अनुच्छेद 73 – संघ सरकार ( Union Government.) की कार्यपालिका शक्तियों के विस्तार से संबंधित।
- अनुच्छेद 162 – राज्य सरकारों ( स्टेट गवर्नमेंट )की कार्यपालिका शक्तिके विस्तार से संबंधित
- अनुच्छेद 241 – संघ राज्य क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय,
- भाग 5 अध्याय 4 – संघ की न्यायपालिका,
- भाग 6 अध्याय 5 – राज्यों के उच्च न्यायालय,
- भाग 11 अध्याय 1 – संघ व राज्यों के बीच विधायी संबंध,
सातवीं अनुसूची में उल्लिखित किसी सूची ( संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची-Union List, State List, Concurrent List ) में, - संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व -Representation of States in Parliament( अनुसूची 4 , या
- सवयं अनुच्छेद 368 ( संविधान संशोधन की प्रक्रिया ) में,
उल्लेखनीय है कि राज्यों के विधानमण्डल द्वारा संविधान में संशोधन विधेयक अनुसमर्थन साधारण बहुमत से किया जाना आवश्यक है, विशेष ( दो-तिहाई) बहुमत से नहीं।
* संशोधन की प्रक्रिया
संविधान संशोधन के लिए सर्वप्रथम ‘संविधान संशोधन विधेयक’ संसद में प्रस्तुत किया जाता है। यह विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है।
संविधान संशोधन विधेयक को संसद में प्रस्तुत करने हेतु राष्ट्रपति की पूर्व सहमति आवश्यक नहीं है। विधेयक को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा यथास्थिति साधारण या विशेष बहुमत द्वारा पारित कर दिए जाने पर राष्ट्रपति की सहमति हेतु भेजा जाता है।
यदि संशोधन अनु. 368 (2) में वर्णित उपबंधों में किया जाना हो तो यह राष्ट्रपति को सहमति के लिए विधेयक भेजने के पूर्व कम से कम आधे राज्यों विधानमंडलों द्वारा साधारण बहुमत से उसका अनुसमर्थन कराना आवश्यक होता है।
राष्ट्रपति संविधान संशोधन विधेयक पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य होता है। अर्थात संविधान संशोधन विधेयकों को न तो रोक सकता है और न ही पुर्नविचार के लिए वापस भेज सकता है। राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त हो जाने पर संविधान संशोधन विधेयक, ( bill ) संविधान संशोधन अधिनियम ( Act ) बन जाता है, और इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार संविधान में संशोधन हो जाता है।
ज्ञातव्य है कि संविधान संशोधन विधेयक पर संसद के दोनों सदनों के दोनों सदनों में मतभेद की स्थिति में उनका संयुक्त अधिवेशन ( अनु. 108 ) नहीं बुलाया जाता है, अर्थात विधेयक दोनों सदनों द्वारा अपेक्षित बहुमत से पृथक-पृथक पारित किया जाता है। अतः यदि लोकसभा द्वारा पारित किसी संविधान संशोधन विधेयक को उच्चसदन ( राज्यसभा ) अस्वीकार कर देती है, तो वह विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाता है।
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