मौर्यकाल में शूद्रों की दशा: किसान, दास, भोजन, वस्त्र और सामाजिक स्थिति

उत्तर वैदिककालीन सामाजिक दशा अपने वास्तविक स्वरूप से निकलकर उत्तरोत्तर कठिन होती गयी। बढ़ती जनसंख्या और आर्थिक महत्व ने कुछ विशेष वर्गों को अपने निजी हितों को संरक्षित करने को प्रेरित किया। इन निजी हितों ने समाज में जातिव्यवस्था को जन्माधारित स्वरूप प्रदान कर उसे धर्म सम्मत सिद्ध करने का षड्यंत्र किया और उसमें वे … Read more

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था: केंद्रीय, प्रांतीय, मंडल और ग्राम प्रशासन, प्रमुख अधिकारी

मौर्यकाल (चाणक्यकाल) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण काल है, जब मगध साम्राज्य अधिकार था और चंद्रगुप्त मौर्य एवं उसके बाद के शासकों द्वारा प्रशासन किया जाता था। मौर्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था भारतीय इतिहास में एक प्रमुख विषय है। चाणक्य (कौटिल्य) जैसे महान राजनीतिज्ञ द्वारा तैयार की गई अर्थशास्त्रिक ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ में मौर्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था का विस्तृत वर्णन है।

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था: केंद्रीय, प्रांतीय, मंडल और ग्राम प्रशासन, प्रमुख अधिकारी

मौर्यकालीन प्रशासनिक व्यवस्था का मुख्य लक्ष्य सामाजिक न्याय, राष्ट्रिय सुरक्षा, और समर्थन के प्रदान के साथ समृद्धि की दिशा में था। मौर्यकालीन संगठन में राजा या सम्राट सर्वाधिक प्रबल और सर्वोपरि पदधारी व्यक्ति था, जो सम्राट या राजा के नाम पर शासन करता था। मौर्य साम्राज्य के प्रशासन का आधार चाणक्य के अर्थशास्त्र और धर्मशास्त्र पर था।

मौर्य साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था

      संपूर्ण प्राचीन विश्व में मौर्य साम्राज्य विशालतम साम्राज्य था और इसने पहली बार एक नए प्रकार की शासन व्यवस्था अर्थात केंद्रीयभूत शासन व्यवस्था की स्थापना की। अशोक के शासनकाल में यह केंद्रीय शासन व्यवस्था पितृवत निरंकुश तंत्र में परिवर्तित हो गई। अशोक ने अपने इस पितृवत दृष्टिकोण को इस कथन के द्वारा व्यक्त किया है कि “समस्त मनुष्य मेरी संतान हैं” यह कथन प्रजा के प्रति अशोक के दृष्टिकोण को व्यक्त करने वाला आदर्श वाक्य बन गया था।

 राजा का स्थान- 

मौर्य राजा अपनी दैवी उत्पत्ति का दावा नहीं करते थे फिर भी उन्हें देवताओं का प्रतिनिधि माना जाता था। राजाओं का उल्लेख ‘देवनाम्प्रिय’ (देवताओं के प्रिय) रूप में मिलता है। राजा सभी प्रकार की सत्ता का स्रोत एवं उसका केंद्रबिंदु, प्रशासन, विधि एवं न्याय का प्रमुख तथा सर्वोच्च न्यायाधीश था। वह अपने मंत्रियों का चुनाव स्वयं करता था उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करता था और उनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखता था।

उस युग में पर्यवेक्षक और निरीक्षण की एक सुनियोजित प्रणाली थी। राजा का जीवन बड़ा श्रमसाध्य होता था तथा वह अपनी प्रजा के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए सदैव तत्पर रहता था। कौटिल्य के अनुसार एक आदर्शवादी शासक वह है जो अपने प्रदेश का निवासी हो (अर्थात देशीय हो) जो शास्त्रों की शिक्षाओं का अनुगमन करता हो, जो निरोग, वीर, दृढ़, विश्वासपात्र, सच्चा और अभिजात कुल का हो।

 केंद्रीय शासन व्यवस्था

अर्थशास्त्र में केंद्रीय प्रशासन का अत्यंत विस्तृत विवरण मिलता है। शासन की सुविधा के लिए केंद्रीय प्रशासन अनेक विभागों में बंटा हुआ था। प्रत्येक विभाग को ‘तीर्थ ‘ कहा जाता था। अर्थशास्त्र में 18 तीर्थों के प्रधान पदाधिकारियों का उल्लेख है।

मंत्री और पुरोहित प्रधानमन्त्री तथा प्रमुख धर्माधिकारी।
समाहर्ता राजस्व विभाग का प्रमुख।
सन्निधाता राजकीय कोषाधिकरण का प्रमुख।
सेनापति युद्ध विभाग का मंत्री।
युवराज राजा का उत्तराधिकारी।
प्रदेष्टा फौजदारी न्यायालय का न्यायाधीश।
नायक सेना का संचालक।
कर्मान्तिक उद्योग-धन्धों का प्रधान निरीक्षक।
व्यवहारिक दीवानी न्यायालय का न्यायाधीश।
मन्त्रिपरिषदाध्यक्ष मन्त्रीपरिषद का अध्यक्ष।
दण्डपाल सेना के लिए रसद पूर्ति का अधिकारी।
अन्तपाल सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक।
दुर्गपाल आन्तरिक दुर्गों का प्रबन्धक।
नागरक नगर का प्रमुख अधिकारी।
प्रशास्ता राजकीय दस्ताबेजों और राजाज्ञाओं को लिखने वाला।
दौवारिक राजमहल की देख-रेख वाला अधिकारी।
अन्तर्वशिक
सम्राट की अंगरक्षक सेना का प्रमुख तथा
आटविक वन विभाग का प्रमुख अधिकारी।

           

मौर्य शासन व्यवस्था नौकरशाही पर आधारित पूर्णतः एक नौकरशाही प्रशासन-तंत्र था, जिसका विभिन्न पदासीन अधिकारियों के माध्यम से संचालन किया जाता था। कौटिल्य ने कहा है– “जैसे एक पहिए से कोई वाहन नहीं चल सकता, ठीक वैसे ही एक व्यक्ति से प्रशासन कार्य नहीं चल सकता।”

साम्राज्य की शासन व्यवस्था के लिए निर्धारित सामान्य प्रशासन तंत्र की रचना निम्नलिखित तत्वों से मिलकर हुई थी—–

(1) राजा।

(2)  राज्य प्रमुख और राज्यपाल जो राजा के प्रतिनिधियों के रूप में प्रांतों में कार्य करते थे।

(3) मंत्री।

(4)  विभाग प्रमुख।

(5)  अधीनस्थ नागरिक (सिविल)सेवा और

(6)  ग्रामीण प्रशासन के प्रभारी अधिकारी।

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