सुदर्शन झील गिरनार, गुजरात में स्थित एक मौर्यकालीन मानव निर्मित प्राचीन झील है, और एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व और विरासत रखती है। इस झील का निर्माण मौर्य वंश के संस्थापक तथा भारत के प्रथम चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने करवाया था। इसके निर्माण की जिम्मेदारी राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य को सौंपी गई थी, जो उस समय … Read more
मौर्य साम्राज्य एक शक्तिशाली प्राचीन भारतीय राजवंश था जो 322 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक फला-फूला। चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित, यह अधिकांश भारतीय उपमहाद्वीप में फैला हुआ था, जो इसे अपने समय के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक बनाता है। चंद्रगुप्त और उनके उत्तराधिकारियों, जैसे बिंदुसार और अशोक के शासन के तहत, … Read more
चंद्रगुप्त मौर्यका जन्म 345 ईसा पूर्व में हुआ था और उन्होंने पूरे भारत को एक शासन के तहत एकजुट करते हुए मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। उसने लगभग 24 वर्षों तक शासन किया और उसका शासन लगभग 285 ईसा पूर्व समाप्त हुआ। भारतीय कलैण्डर के अनुसार उसका शासन काल 1534 ईसा पूर्व से प्रारम्भ होता है।
चंद्रगुप्त मौर्य और ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज
ग्रीक राजदूत मेगस्थनीज ने चार साल तक चंद्रगुप्त के दरबार में सेवा की और ग्रीक और लैटिन ग्रंथों में चंद्रगुप्त को क्रमशः सैंड्रोकोट्स और एंडोकोट्स के रूप में जाना जाता है। चंद्रगुप्त के सिंहासन पर चढ़ने से पहले, सिकंदर ने भारत-यूनानियों और स्थानीय शासकों द्वारा शासित क्षेत्र को छोड़कर उत्तर-पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया था। चंद्रगुप्त ने विरासत को सीधे संभाला।
मौर्य साम्राज्य और चंद्रगुप्त का नेतृत्व
चंद्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य के साथ मिलकर एक नया साम्राज्य बनाया, राज्यचक्र के सिद्धांतों को लागू किया, एक बड़ी सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना जारी रखा। उन्होंने एक विशाल विजयवाहिनी के साथ नंद वंश का अंत किया और चाणक्य को ब्राह्मण ग्रंथों में ‘नन्दनमूलन’ का श्रेय दिया जाता है।
चंद्रगुप्त की सेना और भारत की विजय
अर्थशास्त्र के अनुसार, चंद्रगुप्त ने चोरों, म्लेच्छों, आटविकों और सशस्त्र बलों जैसी श्रेणियों से सैनिकों की भर्ती की। मुद्राराक्षस से पता चलता है कि चंद्रगुप्त ने हिमालय क्षेत्र के राजा पर्वतक के साथ एक संधि की थी। शक, यवन, किरात, कंबोज, पारसिक और वाहलिक भी उसकी सेना का हिस्सा माने जाते थे। प्लूटार्क के अनुसार, सैंड्रोकोटस ने 6,00,000 सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ पूरे भारत को जीत लिया। जस्टिन के अनुसार सम्पूर्ण भारत चन्द्रगुप्त के अधिकार में था।
मृत्यु और विरासत
चंद्रगुप्त मौर्य ने 297 ईसा पूर्व में सल्लेखना के माध्यम से अपने नश्वर शरीर को छोड़ दिया, जिससे उनके आत्म-भुखमरी के दिन समाप्त हो गए। बिंदुसार, उनके पुत्र, ने उनका उत्तराधिकारी बनाया और अशोक को जन्म दिया, जो भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक बन गया। चंद्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली सम्राटों में से एक हैं।
नाम
चन्द्रगुप्त मौर्य, (यूनानी में -सैण्ड्रोकोट्स और एण्डोकॉटस)
जन्म
345 ईसा पूर्व
जन्मस्थान
पिपलीवन गणराज्य, वर्तमान गोरखपुर क्षेत्र, उत्तर प्रदेश।
पिता का नाम
महाराज चंद्रवर्धन मौर्य
माता का नाम
महारानी माधुरा उर्फ मुरा
गुरु का नाम
चाणक्य
पत्नी का नाम
दुर्धरा महापदमनंद की बेटी और हेलेना (सेल्यूकस निकटर की पुत्री)
संतान
बिन्दुसार
पौत्र
सम्राट अशोक
संस्थापक
मौर्य वंश
राजधानी
पाटलिपुत्र
धर्म
जैन धर्म
जैन गुरु
भद्रवाहु
मृत्यु
298 ईसा पूर्व (आयु 47–48)
मृत्यु का कारण
जैन धर्म की संल्लेखना विधि ( भूखे रहना)
मृत्यु का स्थान
श्रवणबेलगोला, मैसूर चन्द्रगिरि पर्वत कर्नाटक
चंद्रगुप्त मौर्य: भारत के महान सम्राट
चंद्रगुप्त मौर्य को निर्विवाद रूप से मौर्य साम्राज्य के संस्थापक के रूप में स्वीकार किया जाता है, जो प्रथम भारतीय राष्ट्रिय साम्राज्य था। उन्हें देश के कई छोटे राज्यों के एकीकरण और उन्हें एक एकल, व्यापक साम्राज्य में समामेलित करने का श्रेय दिया जाता है।
मौर्य साम्राज्य, उनके शासनकाल में, पूर्व में बंगाल और असम, पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान, उत्तर में कश्मीर और नेपाल और दक्षिण में दक्कन के पठार तक फैला हुआ था। अपने गुरु चाणक्य के साथ, चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद साम्राज्य को उखाड़ फेंका और मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।
23 साल के सफल शासन के बाद, चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी भौतिक संपत्ति को त्याग दिया और जैन भिक्षु बन गए। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने ‘सल्लेखना’ अनुष्ठान किया, जिसमें मृत्यु तक उपवास करना शामिल है।
चंद्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। उनका जन्म 340 ईसा पूर्व में मगध राज्य में हुआ था, जो अब आधुनिक बिहार है। वह एक कुलीन परिवार का बेटा था लेकिन कम उम्र में ही अनाथ हो गया था। उसके बाद उनका पालन-पोषण शिकारियों के एक समूह ने किया, जिन्होंने उन्हें जीवित रहने के कौशल, शिकार और युद्ध करना सिखाया।
चंद्रगुप्त मौर्य
चंद्रगुप्त मौर्य प्रसिद्ध दार्शनिक चाणक्य के शिष्य बने, जिन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने उन्हें नंद वंश को उखाड़ फेंकने और मौर्य साम्राज्य की स्थापना में मदद की। चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध, कलिंग और वर्तमान अफगानिस्तान और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों सहित भारत के कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की।
चंद्रगुप्त मौर्य अपने प्रशासनिक कौशल, सैन्य रणनीति और कूटनीति के लिए जाने जाते थे। उन्होंने अपने लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई सुधार और नीतियां पेश कीं, जिनमें एक केंद्रीकृत सरकार, वजन और माप की एक समान प्रणाली और सड़कों और बुनियादी ढांचे का एक नेटवर्क शामिल है।
24 वर्षों तक शासन करने के बाद, चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने पुत्र बिंदुसार के पक्ष में सिंहासन छोड़ दिया और जैन धर्म का पालन करते हुए एक तपस्वी बन गए।
चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम आते ही हमारे दिमाग में एकदम उस राजा की छवि घूमने लगती है जिसने भारत में एक ऐसा साम्राज्य स्थापित सम्पूर्ण भारत को अपने छत्र के निचे ले लिया और उस साम्राज्य का नाम था मौर्य साम्राज्य। चन्द्रगुप्त मौर्य इस साम्राज्य का संस्थापक था। मौर्य साम्राज्य का इतिहास या उसकी सत्यता जानने के लिए हमें देशी और विदेशी साहित्य साक्ष्यों का सहारा लेना पड़ता है। इसके सह ही पुरातत्व संबंधी साक्ष्यों का भी सहारा लेना पड़ता है
मौर्य वंश का इतिहास जानने के साधन
ब्राह्मण साहित्यिक साक्ष्य– ब्राह्मण साहित्य के अंतर्गत पुराण, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस नाटक प्रमुख हैं। कौटिल्य का अर्थशास्त्र इनमें सबसे महत्पूर्ण है ऐतिहासिक दृष्टि से यह बहुत महत्व रखता है। अर्थशास्त्र मौर्य वंश के विषय में मत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
बौद्ध ग्रन्थ— बौद्ध ग्रंथों दीपवंश, महावंश, महावंश टीका, महाबोधिवंश, दिव्यदान, आदि ग्रंथों में मौर्यों के विषय में उपयोगी जानकारी मिलती है।
जैन ग्रन्थ— जैन ग्रंथों में भद्रवाहु का कल्पसूत्र तथा हेमचन्द्र का परिशिष्ट पर्वन का सहारा लेते हैं।
विदेशियों विवरण–क्लासिकल ( यूनानी-रोमन ) लेखकों के विवरण से भी बहुत महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। हमें इन लेखकों ग्रंथों से चन्द्रगुप्त मौर्य के विषय में पता चलता है। यूनानी ग्रंथों में चन्द्रगुप्त मौर्य को ‘सेंड्रोकोट्स’ तथा ‘एण्ड्रोकोट्स’ कहा गया है। इन नामों को सबसे पहले विलियम जोन्स ने चन्द्रगुप्त से सुमेलित किया।
सिकन्दर के लेखक – नियार्कस, आनेसिक्रित्स तथा आरिस्टोबुलस के विवरण चन्द्रगुप्त के विषय में महत्वपूर्ण सूचनाएं देते हैं। सिकन्दर के बादके लेखकों में मेगस्थनीज का प्रमुख स्थान है जो चन्द्रगुप्त मौर्य दरबार में चार वर्ष रहा। उसकी पुस्तक इंडिका ही मूल्यवान है दुर्भाग्यवस पुस्तक अपने मूल रूप उपलब्ध लेकिन स्ट्रैबो, डियोडोरस, प्लिनी, एरियन, प्लूटार्क तथा जस्टिन लेखों में इंडिका के उद्धरण मिलते हैं।
पुरातत्व सम्बन्धी साक्ष्य– पुरातात्विक साक्ष्यों में सबसे पहला स्थान अशोक के अभिलेख हैं। अशोक के लगभग 40 अभिलेख भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के विभिन्न भागों में प्राप्त हुए हैं। अशोक के अभिलेखों के अतिरिक्त महाक्षत्रप रुद्रदामन के जूनागढ़ ( गिरनार ) मौर्यकाल के विषय में जानकारी मिलती है।
मौर्य वंश की स्थापना
भारत के महानतम सम्राटों में विख्यात चन्द्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापना की। मौर्य वंश का उदय इतिहास की सबसे रोमांचकारी घटना है। भारत को यूनानी दस्ता से मुक्त करने तथा नंदों के घृणित और अत्याचारी शासन से भारत की जनता को मुक्ति दिलाने के साथ संपूर्ण भारत को राजनितिक एकता के सूत्र में संगठित करने का महान कार्य चन्द्रगुप्त मौर्य ने ही किया।
चन्द्रगुप्त मौर्य की जाति, क्या चन्द्रगुप्त मौर्य शूद्र थे?
चन्द्रगुप्त मौर्य जाति विषय में बहुत मतभेद हैं और भारत अधिकांश इतिहासकारों में मौर्यों को क्षत्रिय सिद्ध करने की होड़ लगी है। जबकि अधिकांश ग्रंथों में चन्द्रगुप्त को शूद्र अथवा निम्नकुल में जन्मा बताया गया है। तत्कालीन भारतीय समाज में शायद ही जाती इतना विकराल रूप जैसा आज देखने को मिलता है। लेकिन भारतीय इतिहासकार यहाँ जातिगत पूर्वाग्रह ग्रसित नज़र आते हैं। वो वर्तमान ऊंच-नीच की श्रेष्ठता को चालाकी से अपने लेखों में मनमाने अर्थों में इसका प्रयोग जातिगत श्रेष्ठता को स्थापित करने के लिए करते हैं। आगे हम निम्न ग्रंथों में मौर्यों की जातिगत पहचान की समीक्षा करेंगे।
वह ग्रन्थ जो मौर्यों को शूद्र घोषित करते हैं
पुराण– ब्राह्मण साहित्य में हम सर्वप्रथम पुराणों उल्लेख कर सकते हैं। विष्णु पुराणमें कहा गया है कि शैशुनागवंशीन शासक महानंदी के पश्चात् शूद्र योनि शासक पृथ्वी पर शासन करेंगे ( ततः प्रभृत्ति राजानो भविष्यन्ति शूद्रयोनयः। — पार्जिटर, डायनेस्टीज ऑफ़ कलिएज, पृष्ठ 25 ) श्रीधर स्वामी जो विष्णुपुराण के एक भाष्यकार के एक भाष्यकार हैं के इस कथन के आधार पर चन्द्रगुप्त को नंदराज की पत्नी ‘मुरा’ से पैदा हुआ बताया है। उनके अनुसार मुरा का पुत्र होने के कारण ही वह मौर्य कहलाये।
मुद्राराक्षस–विशाखदत्त रचित ‘मुद्राराक्षस’ नामक नाटक में चद्रगुप्त मौर्य को नंदराज का पुत्र मन गया है। परन्तु इसमें जो वर्णन किया गया है उसके अनुसार चन्द्रगुप्त नंदराज का वैध पुत्र नहीं था। इस नाटक में नदवंश को चन्द्रगुप्त का ‘पितृकुलभूत’ अर्थात पितृकुल बनाया गया पद उल्लिखित है। यदि चन्द्रगुप्त नंदराज का वैध पुत्र होता तो उसके लिए ‘पितृकुल’ का प्रयोग होता। मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त को ‘वृषल’ तथा ‘कुलहीन’कहा गया है। मौर्यों की शूद्र जाती समर्थक विद्वान इन शब्दों को शूद्र शूद्र जाति के संबंध में ग्रहण किया है।
मुद्राराक्षस के टीकाकार धुण्ढिराज का मत-– धुण्ढिराज ने एक कहानी के द्वारा चन्द्रगुप्त को शूद्र सिद्ध करने किया है। इस कहानी के अनुसार सर्वार्थीसिद्धि नामक एक क्षत्रिय राजा की दो पत्नियां थीं- सुनंदा तथा मुरा। सुनंदा एक क्षत्राणी थी पुत्र हुए जो ‘नव नन्द’ कहलाये। मुरा शूद्र ( वृषलात्मजा) थी।उसका एक पुत्र हुस जो मौर्य कहलाया।
कथासरित्सागर तथा बृहत्कथामंजरी का विवरण– सोमदेव कृत ‘कथासरित्सागर’ तथा क्षेमेन्द्र कृत ‘बृहत्कथामंजरी’ दोनों ही चन्द्रगुप्त की शूद्र उत्पत्ति बात करते हैं इन दोनों ग्रंथों में में एक विवरण मिलता है जिसके अनुसार नंदराज की अचानक मृत्यु हो गयी तथा इंद्रदत्त नामक व्यक्ति तोग के बल पर उसकी आत्मा में प्रवेश कर गया तथा राजा बन बैठा तत्पश्चात वह योगनंद नाम से जाना जाने लगा। उसने नंदराज की पत्नी से विवाह कर लिया। जिससे उसे हिरण्यगुप्त नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। किन्तु वास्तविक नन्द राजा ( पूर्वनन्द ) को पहले से ही एक पुत्र था जिसका नाम चन्द्रगुप्त था।
योगनंद अपने तथा अपने पुत्र हिरण्यगुप्त के मार्ग में बाधक समझता था। जिसके कारण वैमनस्य हो गया। वास्तविक नन्द राजा के मंत्री शकटार ने चन्द्रगुप्त का साथ दिया । चाणक्य नामक चतुर ब्राह्मण को अपनी ओर शामिल कर लिया और फिर उसकी सहायता से शकटार ने योगनंद तथा हिरण्यगुप्त का वध कर दिया तथा राज्य के असली उत्तराधिकारी चन्द्रगुप्त को सिंहासन पर बैठाया। इस प्रकार इन दोनों ग्रंथों में चन्द्रगुप्त को नंदराज का पुत्र बताकर उसकी शूद्र उत्पत्ति का मत व्यक्त किया गया है।
उपरोक्त तथ्यों और प्रसंगों को अधिकांश भारतीय इतिहासकार मिथ्या और काल्पनिक बताते हुए निम्नलिखित तर्क देकर मौर्यों की शूद्र उत्पत्ति को ख़ारिज करते हैं —