जैसा कि हमें ज्ञात है, 1919 का सुधार अधिनियम भारत में उत्तरदायी शासन की स्थापना की दिशा में कोई कारगर क़दम नहीं था। भारत के राष्ट्रवादियों में घोर असंतोष व्याप्त था और 1925 में असहयोग आंदोलन स्थगित करने के बाद भी स्वराज-प्राप्ति के लिए ब्रिटिश सरकार पर निरंन्तर दबाव डला जा रहा था। 1925 में एक प्रस्ताव पास करके केंद्रीय विधानमंडल ने प्रांतों में स्वायत्तता और उत्तरदायी सरकार की माँग की थी किन्तु ब्रिटिश सरकार ने तत्काल इस तरह की मांग को अनसुना कर दिया।
साइमन कमीशन 1927
साइमन कमीशन भारत में संवैधानिक स्थिति की जांच करने और सुधार के लिए सिफारिशें करने के लिए 1927 में नियुक्त एक ब्रिटिश संसदीय आयोग था। आयोग का नाम सर जॉन साइमन के नाम पर रखा गया था, जिन्हें इसके अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।
भारत में संवैधानिक सुधार की मांग के जवाब में आयोग का गठन किया गया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, उस समय भारत में मुख्य राजनीतिक दल, ने भारतीय संवैधानिक सुधार पर चर्चा करने के लिए एक गोलमेज सम्मेलन का आह्वान किया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस मामले को देखने के लिए साइमन कमीशन नियुक्त किया।
साइमन कमीशन पूरी तरह से ब्रिटिश राजनेताओं से बना था और इसमें किसी भी भारतीय प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया था। इसके कारण भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा विरोध और बहिष्कार किया गया और आयोग की सिफारिशों को अंततः भारतीय नेताओं द्वारा खारिज कर दिया गया।
साइमन कमीशन की प्रमुख सिफारिशों में से एक भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग मतदाताओं का निर्माण था, जिसे अल्पसंख्यक समूहों के लिए प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के तरीके के रूप में देखा गया था। हालाँकि, इस सिफारिश का भारतीय राजनीतिक नेताओं ने कड़ा विरोध किया, जिन्होंने तर्क दिया कि यह सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देगा और भारत के विभिन्न समुदायों को एक दूसरे से अलग कर देगा।
इंग्लैंड में लेबर पार्टी की सरकार और भारतीयों की उम्मीदें
इंग्लैंड में 1924 में लेबर पार्टी को चुनावों में विजय मिली, जिसके बाद भारतीयों को आशा की किरण दिखने लगी थी क्योंकि लेबर पार्टी भारत में स्वशासन के पक्ष में थी परन्तु सत्ता में आने के पश्चात् उसका रवैया भी पुरानी नीति का अनुशरण करने का ही बना रहा।
साइमन कमीशन का गठन क्यों किया गया
भारत के लिए भविष्य के संविधान की रूपरेखा तैयार करने के लिए शाही आयोग के गठन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इस बीच परिस्थिति बदल रही थी। नए चुनावों के बाद इग्लैंड में अनुदार दल की सत्ता में बापसी हो चुकी थी।
वाइसराय रीडिंग स्वराजियों को उलझन में डालने के लिए निर्धारित समय से दो साल पूर्व ही एक शाही आयोग की नियुक्ति के पक्ष में थे। भारत सचिव विचार भी कुछ ऐसे ही थे। आगामी चुनाव में लेबर पार्टी की विजय लगभग निश्चित-सी थी और भारत-सचिव यह नहीं चाहते थे कि शाही आयोग की नियुक्ति का श्रेय लेबर पार्टी की प्राप्त हो।
साइमन कमीशन की नियुक्ति ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में की थी। … साइमन कमीशन की घोषणा 8 नवम्बर, 1927 ई. को की गई।
साइमन कमीशन को वर्तमान सरकारी व्यवस्था, शिक्षा का प्रसार और प्रतिनिधि संस्थाओं के अध्ययन के बाद रिपोर्ट देनी थी कि भारत में उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना कहाँ तक लाजिमी होगा। भारत में शिक्षा का प्रसार और देशी रियसतों तथा ब्रिटिश भारत के बीच संबंधों की जाँच करने के लिए दो अलग-अलग समितियां भी बनाई गईं थीं।
नए वाइसराय लार्ड इरविन भारतीय राष्ट्रवादियों की बढ़ती हुई आकंक्षाओं के प्रति सजग थे और उन्होंने 1926 में आयोग की नियुक्ति का समर्थन किया था। साथ ही उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि आयोग का कोई भी सदस्य भारतीय न हो।
साइमन कमीशन की नियुक्ति कब की गई?
अंततः ब्रिटिश मंत्रिमंडल ने सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक सात-सदस्य आयोग की नियुक्ति की घोषणा 8 नवम्बर 1927 में की गई। इस आयोग में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया।
साइमन कमीशन का कौनसा एक सदस्य लेबर पार्टी से था
साइमन कमीशन 1927 के सदस्य
साइमन कमीशन 1927 में भारत में संवैधानिक स्थिति की समीक्षा करने और भविष्य के सुधारों के लिए सिफारिशें करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त एक समूह था। आयोग के सदस्य सभी ब्रिटिश थे और इसमें कोई भी भारतीय शामिल नहीं था, जिसने भारत में व्यापक विरोध और बहिष्कार को जन्म दिया।
साइमन कमीशन के सदस्य थे:
- सर जॉन साइमन (अध्यक्ष)
- क्लेमेंट एटली
- वर्नोन हार्टशोर्न
- एडवर्ड कैडोगन
- हैरी लेवी-लॉसन
- जॉर्ज लेन-फॉक्स
- डोनाल्ड हॉवर्ड
- Sir Muhammad Shafi
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सर मुहम्मद शफी आयोग के एकमात्र भारतीय सदस्य थे, लेकिन उन्हें पूरे भारत के प्रतिनिधि के बजाय मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
इस प्रकार इन सात सदस्यों में एक सदस्य और अध्यक्ष ‘सर जॉन साइमन’ लिबरल पार्टी से संबंधित था।
- कमीशन के 2 सदस्य लेबर पार्टी से संबंधित थे
- कमीशन के 4 सदस्य कंजरवेटिव पार्टी से संबंधित थे।
इस प्रकार साइमन कमीशन में सभी सदस्य ब्रिटिश गोर अंग्रेज थे तथा इस कमीशन में एक भी भारतीय भारतीय को स्थान देना आवश्यक नहीं समझा गया था। इसलिए भारत में इसे ‘White Commission’ कहकर इसका जबरदस्त विरोध एवं बहिष्कार किया।
भारतीय नेताओं और जनता ने इस कमीशन का वहिष्कार क्यों किया ?
इस प्रकार इस आयोग के सभी सदस्य अंग्रेज थे ( इसलिए इसे ‘White Commission’ भी कहा जाता है ) जिसका भारतीयों द्वारा विरोध किया गया।
इस जान-बूझकर किये गए अपमान से अभी भारतीय आहत हुए ( और बर्केनहेड के इस ताने ने जले पर नमक का काम किया कि भारतीय किसी भी व्यवहारिक राजनीतिक योजना पर एकमत होने में अक्षम हैं ) .
साइमन आयोग की सिफारिशें
साइमन आयोग ने 1930 में अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें निम्नलिखित सुझाब दिए गए —-
1- प्रांतीय क्षेत्र में विधि तथा व्यवस्था सहित सभी क्षेत्रों में उत्तरदायी सरकार का गठन किया जाये।
2- केंद्र में उत्तरदायी सरकार के गठन का अभी समय नहीं आया।
3- केंद्रीय विधान मंडल को पुनर्गठित किया जाये जिसमें एक इकाई की भावना को छोड़कर संघीय भावना हो और उसके सदस्य परोक्ष पद्धति से प्रांतीय विधान मंडलों द्वारा चुने जाएँ।
कांग्रेस द्वारा साइमन कमीशन के वहिष्कार का निर्णय
कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन दिसम्बर 1927 में साइमन कमीशन के वहिष्कार का निर्णय लिया गया। कांग्रेस के निर्णय के बाद कमीशन के वहिष्कार का पुरे देश में निर्णय लिया गया।
साइमन कमीशन भारत कब पहुंचा ?
साइमन कमीशन 3 फरवरी 1928 को बम्बई पहुंचा। बम्बई में पूर्ण हड़ताल से कमीशन का स्वागत हुआ। ‘साइमन वापस जाओ ‘ के नारे लगाए गए। कमीशन के दिल्ली पहुँचने पर उसका स्वागत काले झंडों और साइमन गो बैक के नारों से किया गया।
भारतीयों की प्रतिक्रिया-लाला लाजपतराय पर लाठी चार्ज
साइमन कमीशन जब लाहौर पहुंचा तो लाला लाजपराय, भगत सिंह और नौजवान सभा के नेतृत्व में विशाल जनसमूह ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किया। पुलिस ने इस जुलूस पर लाठी-चार्ज कर दिया। इस लाठी चार्ज में पंजाब के मशहूर क्रन्तिकारी नेता लाला लाजपतराय घायल हो गए और एक महीने बाद उनकी मृत्यु हो गई।
इस प्रकार सम्पूर्ण देश में साइमन कमीशन का वहिष्कार किया गया। इसके साथ ही किसान-मजदूर पार्टी, लिबरल फेडरेशन, मुस्लिम लीग और हिन्दू महासभा ने भी कमीशन का वहिष्कार किया। यद्यपि मुस्लिग के अंदर 1928 में फूट पड़ गई। परन्तु जिन्ना ने कमीशन वहिष्कार पर कांग्रेस का साथ दिया।
परन्तु कांग्रेस की उपेक्षा के बाद मुहम्मद अली जिन्ना ने दिसंबर 1928 में कलकत्ता में अंतिम सर्वदलीय सम्मलेन में एकता का हताशापूर्ण प्रयास किया। उन्होंने सिंध को तुरंत अलग करने, अवशिष्ट शक्तियां प्रांतों को देने, केंद्रीय धारा-सभा में एक-तिहाई सीटें मुसलमानों को देने, और वयस्क मताधिकार की व्यवस्था होने तक पंजाब और बंगाल में सीटें आरक्षित करने की प्रार्थना की। अंत में उन्होंने अपना भाषण समाप्त करते हुए एकता के लिए भवावेशपूर्ण अपील करते हुए कहा।
निष्कर्ष —
इस प्रकार साइमन कमीशन की सभी सिफारिशों को कांग्रेस सहित सभी दलों ने अस्वीकार कर दिया। कमीशन के विरुद्ध जान-आक्रोश का कारण यह था कि देश के सभी वर्गों में यह भावना व्याप्त थी कि भारत का भावी संविधान भारतवासियों को ही बनाना चाहिए, और चूँकि अंग्रेजों की उपेक्षा नहीं की जा सकती थी, इसलिए शासकों को यह संविधान भारतीयों की सलाह से और उनकी देख-रेख में बनना चाहिए।
लेकिन साइमन कमीशन में एक भी भारतीय का न होना इस बात का द्योतक था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों को स्वशासन के लायक नहीं समझती थी। अतएव एक ओर जहाँ साइमन कमीशन के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन चल रहा था, दूसरी ओर कोंग्रेसजनों के के प्रयत्न से भारत के लिए एक नया संविधान बनाने के उद्देश्य से, देश की विभिन्न विचारधाराओं के नेताओं का एक सर्वदलीय सम्मलेन 1928 में हुआ।
लगभग तीन महीनों के विचार-विमर्श के बाद मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया जिसे भारत के लिए भावी संविधान की रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस समिति ने अपना मसविदा जुलाई 1928 में प्रकाशित किया। इतिहास में यह नेहरू रिपोर्ट के नाम से मशहूर है।
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