कानपुर षड्यंत्र मुकदमा 1924: भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण घटना| Kanpur Conspiracy Case, 1924

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1924 का कानपुर षडयंत्र केस भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण परीक्षण था। यह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के खिलाफ ब्रिटिश सरकार द्वारा दायर एक साजिश का मामला था, जिन पर ब्रिटिश राज के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की योजना बनाने का आरोप लगाया गया था।

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कानपुर षड्यंत्र मुकदमा 1924: भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण घटना

कानपुर षड्यंत्र मुकदमा

मामले के आरोपियों में एम.एन. रॉय, मोहम्मद एन. अहमद, श्रीपद अमृत डांगे, यू.सी.सी. चंदर, गुलाम हुसैन, राम चरण लाल शर्मा, और सिंगारवेलु चेट्टियार। उन्हें कानपुर में गिरफ्तार किया गया और भारतीय दंड संहिता की धारा 121ए के तहत आरोप लगाया गया, जो सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने के अपराध से संबंधित है।

मुकदमे के दौरान, अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि अभियुक्तों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रची थी और अपनी योजनाओं को पूरा करने के लिए सोवियत संघ के साथ संबंध भी स्थापित किए थे। यह मुकदमा कई महीनों तक चला और भारतीय जनता के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इसे करीब से देखा।

अंत में, अभियुक्तों को दोषी पाया गया और उन्हें लंबी जेल की सजा सुनाई गई। इस मामले का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, क्योंकि इसने भारतीय राष्ट्रवादियों के बीच ब्रिटिश शासन से बढ़ते मोहभंग को उजागर किया और भारत में वामपंथी आंदोलन को गति दी।

कानपुर षड्यंत्र मुक़दमा क्या है?

यह मुकदमा ‘कानपुर षड्यंत्रम मुकदमें’ के नाम से प्रसिद्ध है। ब्रिटिश सरकार ने 21 फरवरी 1924 को एम. एन. राय, मुज़फ्फर अहमद, श्रीपाद अमृत डांगे, उस्मानी, गुलाम हुसैन, रामचरण लाल शर्मा और सिंगारावेल चेट्टियार पर कानपुर मुकदमा चलाया। भारत की औपनिवेशिक सरकार ने इन लोगों पर यह आरोप लगाया कि ये लोग एक षड्यंत्र रच रहे हैं जिसका उद्देश्य भारत में क्रान्तिकारी संगठन को स्थापित करना है और भारत से सम्राट ( ब्रिटिश सम्राट ) की प्रभुसत्ता को समाप्त करना है।

जब यह मुकदमा चला तो सिर्फ चार व्यक्ति, नलिन गुप्त, उस्मानी, डाँगे और मुज़फ्फर अहमद अदालत में पेश किये गए। एम. एन. राय व शर्मा भारत में नहीं थे, हुसैन सरकारी गवाह बन गए और सिंगारावेलू चेट्टियार पर उनकी बीमारी की बजह से मुकदमा नहीं चलाया गया।

कानपुर षड्यंत्र मुकदमें में सजा कब सुनाई गई ?

कानपुर षड्यंत्र मुकदमें का फैसला 20 मई 1924 को सुनाया गया और चारों अभियुक्तों को चार-चार साल की कड़ी कैद की सजा सुनाई गई।

   कानपुर षड्यंत्र मुकदमें का प्रभाव

इस मुकदमें के द्वारा ब्रिटिश सरकार ने कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के प्रयास को रोककर और कम्युनिस्ट नेताओं को जेल की चारदीवारी में  बंद करके लोगों के दिलों में यह भय पैदा करने की कोशिश की कि यदि भविष्य में वे ऐसा करेंगे तो ब्रिटिश सरकार उन्हें कड़ा दंड देने से नहीं चुकेगी।

 कानपुर षड्यंत्र मुकदमें में सुनाई गई सजा का परिणाम ब्रिटिश सरकार की उम्मीदों के विपरीत हुआ। ब्रिटिश सरकार कम्युनिस्टों के बढ़ते प्रभाव को रोकने में एकदम विफल साबित हुई।  ब्रिटिश सरकार ने अपनी गुप्त रिपोर्टों में यह स्वीकार किया कि मुकदमें के बाद लोग कम्युनिस्टों की उन बातों को खुले आम सुना रहे हैं जिन्हें कम्युनिस्ट अब तक गुप्त रूप से लोगों तक पहुंचाते थे। मुकदमें के दौरान यह भी कहा गया कि कम्युनिज़्म में विश्वास रखना कोई अपराध नहीं।

निष्कर्ष

अंत में, 1924 का कानपुर षड़यंत्र केस ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस मामले में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के कई प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी और मुकदमा शामिल था, जिन पर भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

अभियुक्तों के खिलाफ ठोस सबूत की कमी के बावजूद, उन्हें दोषी ठहराया गया और कारावास की अलग-अलग शर्तों की सजा सुनाई गई। हालाँकि, मुकदमे और प्रतिवादियों के अन्यायपूर्ण व्यवहार के खिलाफ जन आक्रोश ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए समर्थन को बढ़ावा देने में मदद की और भारतीय राष्ट्रवाद के कारण को आगे बढ़ाया।

कानपुर षडयंत्र केस ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली क्रूर रणनीति को भी उजागर किया, जिसमें गुप्त पुलिस का उपयोग, यातना और मनमाना हिरासत शामिल है।

कुल मिलाकर, कानपुर षडयंत्र केस भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय बना हुआ है और भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा स्वतंत्रता की खोज में किए गए बलिदानों की याद दिलाता है।


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