उन्नीसवीं शताब्दी में मार्क्सवाद का प्रभाव यूरोपीय विचारकों तथा आंदोलनों पर स्पष्ट था, परन्तु भारत में साम्राज्यवादी नीतियों के कारण इसका अधिक प्रभाव नहीं हो सका था। बीसवीं शताब्दी में कुछ फुटकर लेखों — जैसे वीर हरदयाल का ‘मॉर्डन रिव्यु’ में लेख — तथा अन्य कथा कहानियों में या फिर भारत से बाहर जाने वाले राजनैतिक नेताओं की गतिविधियों में भी उसी झलक मिलती थी। मगर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मार्क्सवाद और साम्यवाद का प्रभाव रुसी क्रांति और प्रथम विश्व युद्ध के बाद से ही स्पष्ट तौर पर दिखाई देता है। इसी प्रभाव के अंतर्गत भारत के ट्रेड-यूनियन, किसान आंदोलन, छात्र और नौजवान संघ, महिला, बुद्धूजीवी तथा कई और छोटे-बड़े संघों ने नई दिशा ली और कांग्रेस ने भी जनांदोलन का सहारा लिया।
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कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के कारण
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1920 में मुख्य रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों और भारतीय सामंती वर्ग द्वारा श्रमिकों और किसानों के शोषण के जवाब में की गई थी। भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना के कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
साम्राज्यवाद विरोधी: भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की प्रतिक्रिया के रूप में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई थी। पार्टी साम्राज्यवाद-विरोधी में विश्वास करती थी और भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए काम करती थी।
वर्ग संघर्षः पार्टी ने मजदूरों और पूंजीपतियों, किसानों और जमींदारों के बीच वर्ग संघर्ष को मान्यता दी। इसका उद्देश्य शासक वर्गों को उखाड़ फेंकने के लिए मजदूर वर्ग और किसानों को संगठित करना और लामबंद करना था।
सामाजिक न्याय: कम्युनिस्ट पार्टी सामाजिक न्याय में विश्वास करती थी और इसका उद्देश्य भारतीय समाज से गरीबी, असमानता और उत्पीड़न को मिटाना था। पार्टी ने दलितों, आदिवासियों और महिलाओं जैसे समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के उत्थान की दिशा में काम किया।
कृषि सुधार: पार्टी का उद्देश्य कृषि सुधार करना था, जो जमींदारों से किसानों को भूमि का पुनर्वितरण करेगा। इसका उद्देश्य गरीबी को कम करना, उत्पादकता में वृद्धि करना और ग्रामीण जनता को सशक्त बनाना था।
राष्ट्रवाद: कम्युनिस्ट पार्टी एक राष्ट्रवादी एजेंडे में विश्वास करती थी, जो राजनीतिक स्वतंत्रता की उपलब्धि तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता तक भी फैली हुई थी। पार्टी का उद्देश्य एक नए भारत का निर्माण करना था जो शोषण और उत्पीड़न से मुक्त हो।
कुल मिलाकर, भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना उस समय भारत में प्रचलित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों की प्रतिक्रिया थी, और इसका मुख्य उद्देश्य मजदूर वर्ग और किसानों को सशक्त बनाना और एक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत समाज बनाना था।
कांग्रेस के बारे में मार्क्सवादी नेताओं को सोच
मार्क्सवादी नेताओं को विश्वास था कि कांग्रेस केवल उभरते हुए पूंजीपति वर्ग का ही प्रतिनिधित्व कर सकती है और इसी तरह वह स्वतंत्रता संग्राम ने समझौतावादी नीति अपनाती है। इन्होने महसूस किया कि शोषित वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए साम्यवादी पार्टी की स्थापना आवश्यक है।
कब हुई कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना
भारत के तमाम शेषित वर्ग की अगुआई करने के लक्ष्य से 1925 में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई। इसने भारत की स्वतंत्रता और मजदूरों, किसानों तथा अन्य शोषित वर्गों के हितों की रक्षा के लिए कई जुझारू संघर्ष किया और उन्हें नई दिशा प्रदान की। इस पार्टी ने उन्हें सचेत किया कि राजनैतिक शोषण से मुक्ति के साथ-साथ उन्हें आर्थिक व सामाजिक शोषण से भी मुक्ति पाने का प्रयास करना चाहिए। इसने यह भी आह्वान किया कि—
“राजनीतिक स्वतंत्रता एक साधन है और आर्थिक स्वतंत्रता एक लक्ष्य है।”
भारत में सबसे पहले स्वतंत्रता की मांग कम्युनिस्ट पार्टी ने की।
कम्युनिस्ट पार्टी ने सबसे पहले सम्पूर्ण स्वाधीनता की मांग की और इस पार्टी के सदस्यों ने मुक्ति आंदोलन में एक महत्वपूर्ण प्रभावशाली भूमिका निभाई। इसने मार्क्स द्वारा किये गए इतिहास के भौतिकवादी विश्लेषण को लोगों तक पहुँचाने का प्रयत्न किया। इसने जनसाधारण तक इस शाश्वत सच्चाई को पहुँचाने के लिए शोषित वर्ग के बीच यह प्रचार किया कि एक समाजवादी व्यवस्था में ही उनके वर्ग को शोषण से मुक्ति मिल सकती है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उसने समाजवाद के वैज्ञानिक विश्लेषण को अपना आधार बनाया और शोषित वर्गों में वर्ग चेतना उत्पन्न करने का प्रयास किया।
कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास 1920 के दशक की शुरुआत से शुरू होता है जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) का गठन किया गया था। पार्टी की स्थापना ताशकंद, सोवियत संघ में भारतीय प्रवासियों के एक समूह द्वारा की गई थी, जिसमें एम.एन. रॉय, एस.ए. डांगे, और शापुरजी सकलतवाला।
1920 और 1930 के दशक के दौरान, CPI सक्रिय रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल थी, श्रमिकों के अधिकारों और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों की वकालत की। पार्टी ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों के आयोजन में शामिल थी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उदारवादी नीतियों की भी आलोचना करती थी।
1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, CPI एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल बन गया, और इसके सदस्य सत्ता के विभिन्न पदों के लिए चुने गए। हालाँकि, पार्टी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिसमें 1970 के दशक के मध्य में आपातकालीन अवधि के दौरान उस पर लगाए गए प्रतिबंध और आंतरिक गुटबाजी शामिल थी।
1980 के दशक में, CPI ने पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार बनाने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPI-M) सहित अन्य प्रगतिशील पार्टियों के साथ गठबंधन किया। सीपीआई-एम के नेतृत्व वाली सरकार ने कई प्रगतिशील नीतियों और सुधारों को लागू करते हुए तीन दशकों से अधिक समय तक राज्य पर शासन किया।
हाल के वर्षों में, सीपीआई सामाजिक न्याय और हाशिए के समुदायों के लिए बेहतर अधिकारों की मांग के लिए विरोध और आंदोलनों के आयोजन में शामिल रही है। पार्टी वर्तमान सरकार की आर्थिक नीतियों की भी आलोचना करती रही है और उसने कृषि सुधारों और श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा की वकालत की है।
कुल मिलाकर, भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का एक लंबा और घटनापूर्ण इतिहास रहा है, जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन, राजनीति और सामाजिक न्याय आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, पार्टी भारत के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
भारत उभरती वर्ग संघर्ष चेतना
वर्ग संघर्ष और वर्ग-चेतना के विचार रूस की क्रांति के बाद भारत में बहुत तेजी से फैलने लगे। अक्टूबर 1917 में लेनिन के नेतृत्व में हुई समाजवादी क्रांति ने पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया। इस क्रंति के द्वारा रूस में न केवल तानाशाही का अंत हुआ बल्कि एक नई सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था की स्थापना की गई। इस क्रांति ने न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण एशिया में समाजवादी विचारों व जनांदोलनों को जन्म दिया। देश-विदेश के क्रन्तिकारी सोवियत संघ को अपना मित्र समझने लगे। उनके लिए मॉस्को एक नया तीर्थस्थल बन गया और वे सोवियत सरकार सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश करने लगे।
प्रथम विश्व युद्ध का भारत पर राजनैतिक प्रभाव
प्रथम विश्व युद्ध के शुरू होते ही, सारे देश में ब्रिटिश शासकों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह किये गए और देश को स्वाधीन कराने के लिए बहुत से क्रांतिकारी विदेश चले गए। ये क्रन्तिकारी लम्बी सजा या फांसी से बचने के लिए विदेश नहीं गए थे अपितु ये योजनावबद्ध तरिके से अपने संगठनों द्वारा विदेश भेजे गए थे। उनका काम वहां पर ऐसे केन्दों को स्थापित करना था जो भारत की राषट्रीय स्वाधीनता के उद्देश्य को प्राप्त करने सहायक सिद्ध हों, और भारत को विदेशियों के चंगुल से मुक्त किया जा सके। साथ ही ये केंद्र आजादी की लड़ाई में विदेशी सरकारों से सहायता प्राप्त करना चाहते थे।
ये केंद्र पश्चिमी यूरोप, अमेरिका, मध्य-पूर्वी और दक्षिणी-पूर्वी एशिया में स्थापित किये गए। जर्मनी में इन क्रांतिकारियों ने ‘बर्लिन कमिटी’ की स्थापना की। बाद में इस कमेटी का नाम ‘भारतीय स्वतंत्रता कमेटी’ रखा गया। इस कमेटी के नेताओं में वी. चट्टोपाध्याय और डॉ. भूपेन्द्र नाथ दत्त – ने बोल्शेविकों और लेनिन के साथ सम्पर्क स्थापित करने का भरसक प्रयास भी किया।
किन्तु जब नवम्बर 1918 में जर्मनी में हुई क्रांति के फलस्वरूप जर्मनी ने जनतन्त्रात्मक पद्धति अपना ली, तब यह कमेटी भंग होने के बाद इसके बहुत से सदस्यों ने भारत की सधीनता प्राप्ति के लिए सोवियत संघ की मदद चाही। इनमें से कुछ सदस्य रूस की अक्टूबर क्रांति से प्रभावित होकर कम्युनिस्ट हो गए और उन्होंने ताशकंद में 1920 में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।
कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव विशेष रूप से राजनीति, सामाजिक न्याय और श्रमिक आंदोलनों के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रहा है। पार्टी का भारत में एक लंबा इतिहास रहा है, जिसकी स्थापना 1920 में हुई थी, और तब से यह विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में शामिल रही है। यहाँ कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ कम्युनिस्ट पार्टी का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है:
राजनीति: कम्युनिस्ट पार्टी भारतीय राजनीति में एक प्रमुख शक्ति रही है, जिसके सदस्य राज्य सरकारों और राष्ट्रीय संसद सहित सत्ता के विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं। पार्टी चुनाव लड़ने के लिए अन्य प्रगतिशील पार्टियों के साथ गठबंधन बनाने में भी सहायक रही है।
श्रमिक आंदोलन: कम्युनिस्ट पार्टी भारत में श्रमिक आंदोलनों में सबसे आगे रही है, श्रमिकों के अधिकारों और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों की वकालत करती रही है। पार्टी श्रमिकों के लिए बेहतर वेतन और लाभ की मांग को लेकर हड़ताल और विरोध प्रदर्शन आयोजित करने में भी शामिल रही है।
सामाजिक न्याय: कम्युनिस्ट पार्टी सामाजिक असमानताओं और भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय रूप से शामिल रही है। पार्टी ने दलितों, आदिवासियों और महिलाओं जैसे हाशिए पर पड़े समुदायों के अधिकारों की वकालत की है।
कृषि सुधार: कम्युनिस्ट पार्टी कृषि सुधारों की प्रबल समर्थक रही है, जिसका लक्ष्य जमींदारों से किसानों को भूमि का पुनर्वितरण करना है। बेहतर काम करने की स्थिति और उच्च मजदूरी की मांग के लिए पार्टी किसान आंदोलनों के आयोजन में भी शामिल रही है।
बौद्धिक और सांस्कृतिक आंदोलन: कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत के बौद्धिक और सांस्कृतिक आंदोलनों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसके कई सदस्य प्रमुख लेखक, कलाकार और फिल्म निर्माता हैं। पार्टी साहित्य, कला और संस्कृति में प्रगतिशील और समाजवादी विचारों को बढ़ावा देने में शामिल रही है।
कुल मिलाकर, भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का भारतीय समाज के विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलुओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। जबकि पार्टी ने वर्षों से चुनौतियों और असफलताओं का सामना किया है, भारतीय राजनीति और समाज पर इसके प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर आधारित है, जो कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स द्वारा विकसित एक राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांत है। पार्टी की विचारधारा का उद्देश्य भारत में एक समाजवादी समाज बनाना है, जहां उत्पादन के साधनों का स्वामित्व और नियंत्रण श्रमिक वर्ग के पास हो।
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी एक वर्गहीन समाज की स्थापना में विश्वास करती है जहाँ किसी भी प्रकार का शोषण या दमन न हो। पार्टी मजदूर वर्ग को क्रांति की प्रेरक शक्ति के रूप में देखती है और श्रमिकों के अधिकारों और बेहतर कामकाजी परिस्थितियों की वकालत करती है।
पार्टी की विचारधारा भी सामाजिक न्याय और गरीबी और असमानता के उन्मूलन पर केंद्रित है। पार्टी दलितों, आदिवासियों और महिलाओं जैसे वंचित समुदायों के अधिकारों की वकालत करती है और उनके उत्थान और सशक्तिकरण की दिशा में काम करती है।
कृषि सुधार कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, क्योंकि पार्टी का मानना है कि सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए भूमि का पुनर्वितरण आवश्यक है। पार्टी का उद्देश्य जमींदारों से किसानों को भूमि का पुनर्वितरण करने के लिए भूमि सुधारों को लागू करना है।
संक्षेप में, भारत की कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा मार्क्सवाद-लेनिनवाद पर आधारित है, जिसमें एक समाजवादी समाज बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है जहाँ श्रमिक वर्ग उत्पादन के साधनों को नियंत्रित करता है, सामाजिक न्याय प्राप्त होता है, और असमानता को कम करने और हाशिए पर अधिकार करने के लिए भूमि सुधारों को लागू किया जाता है। समुदायों।