लाला हरदयाल और ग़दर पार्टी | ग़दर आंदोलन | कामा गाटा मारू की घटना

लाला हरदयाल और ग़दर पार्टी | ग़दर आंदोलन | कामा गाटा मारू की घटना

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Last updated on April 20th, 2023 at 07:18 pm

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भारत के प्रत्येक क्षेत्र और प्रान्त के क्रांतिकारियों में अपनी-अपनी भूमिका को अंजाम दिया। ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे ‘लाला हरदयाल’ . लाला  हरदयाल पंजाब के एक महान क्रन्तिकारी तथा बुद्धिजीवी थे। गदर आंदोलन में मुख्य भूमिका में वही थे। 

 

लाला हरदयाल का परिचय

लाला हरदयाल एक भारतीय क्रांतिकारी, लेखक और विचारक थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 14 अक्टूबर 1884 को दिल्ली, भारत में हुआ था और उन्होंने सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त की थी।

लाला हरदयाल स्वामी विवेकानंद के विचारों से गहरे प्रभावित थे और भारतीय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पुनरुत्थानवाद के प्रबल समर्थक थे। वह ग़दर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, एक क्रांतिकारी संगठन जो 1913 में संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से बनाया गया था।

संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने समय के दौरान, लाला हरदयाल ने “द हिंदू रेवोल्यूशन” और “स्वामी श्रद्धानंद: हिज़ लाइफ एंड कॉजेज” सहित कई प्रभावशाली रचनाएँ प्रकाशित कीं। उन्होंने एक साप्ताहिक समाचार पत्र “हिंदुस्तान गदर” की भी स्थापना की, जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में भारतीय प्रवासियों द्वारा व्यापक रूप से पढ़ा जाता था।

लाला हरदयाल की क्रांतिकारी गतिविधियों ने उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों के ध्यान में लाया और उन्हें गिरफ्तारी से बचने के लिए यूरोप भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने यूरोप से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए काम करना जारी रखा और 1915 में बर्लिन भारतीय स्वतंत्रता समिति के आयोजन में शामिल हुए।

कई बाधाओं और असफलताओं का सामना करने के बावजूद, लाला हरदयाल जीवन भर भारतीय स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध रहे। 4 मार्च 1939 को संयुक्त राज्य अमेरिका के फिलाडेल्फिया में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष और उपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ाई के प्रतीक के रूप में जीवित है।

ग़दर पार्टी का गठन

गदर पार्टी का गठन 1 नवम्बर 1913 को संयुक्त राज्य अमेरिका के सान फ्रांसिस्को नगर में लाला हरदयाल द्वारा किया गया था। इस दल के गठन में उनके साथ रामचंद्र और बरकतुल्ला ने भी साथ दिया। इस दल ने ‘ग़दर’ नाम की एक साप्ताहिक पत्रिका भी चलाई जोकि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की स्मृति में शुरू की गई थी। ‘गदर ने अपने प्रथम अंक में इस प्रकार अपने उद्देश्यों को स्पष्ट किया —

        “हमारा नाम क्या है ? ग़दर अथवा विद्रोह ! हमारा काम क्या है ? विद्रोह।  यह विद्रोह कहाँ होगा ? भारत में”

लाला हरदयाल पर अमेरिका द्वारा मुकदमा

ग़दर दल ने इस महत्वपूर्ण तत्व को सामने लाने का प्रयत्न किया किया कि गुलाम होने के कारण विदेशों में भारतीयों को सम्मान नहीं मिलता। ब्रिटिश सरकार के कहने पर अमेरिकी प्रशासन ने लाला हरदयाल के ऊपर मुकदमा कर दिया, जिसके कारण उन्हें अमेरिका से भागना पड़ा।

लाला हरदयाल द्वारा जर्मनी से ग़दर आंदोलन का संचालन

प्रथम विश्व युद्ध के प्रारंभिक दौर में लाला हरदयाल और उनके साथी जर्मनी चले गए। जर्मनी पहुंचकर उन्होंने बर्लिन में भारतीय स्वतंत्रता समिति ( Indian Independence Committee  ) का गठन किया। वे विदेश में रहने वाले भारतीयों को भी स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़कर उनका सहयोग प्राप्त करना चाहते थे। वे चाहते थे कि इन भारतियों को भारतीय स्वतंत्रता के प्रयत्न करने चाहिए जैसे—

ऐसे स्वयंसेवक तैयार करना जो भारत में आकर क्रांतिकारियों को विस्फोटक सामग्री मुहैया करना ताकि अंग्रेजों  हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया जा सके ।

  • भारतीय क्रांतिकारियों को विस्फोटक सामग्री भेजना।
  • यदि सम्भव हो तो भारत पर सैनिक आक्रमण करना।

कामा गाटा मारू की घटना

पंजाब में प्रसिद्ध ‘कामा गाटा मारु’ कांड ने एक विस्फोटक स्थिति उत्पन्न कर दी। इस घटना के पीछे कारण यह था “एक बाबा गुर दत्तसिंह ने एक जापानी जलपोत कामा गाटा मारु को किराये पर लेकर 351 पंजाबी सिक्खों तथा 21 मुसलमानों को कनाडा के वेनकुवर नगर ले जाने का प्रयत्न किया। इस लोगों का उद्देश्य यह था कि वे वहां जाकर एक स्वतंत्र जीवन का रसास्वादन करके भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेंगे।

केनेडा सरकार ने इन यात्रियों को बंदरगाह में उतरने की अनुमति नहीं थी। जहाज 27 सितम्बर 1914 को बापस कलकत्ता (अब कोलकाता )लौट आया। बाबा गुरदत्त सिंह को गिरफ्तार करने का प्रयत्न किया गया परन्तु वे भाग निकलने में कामयाब रहे। शेष यात्रियों को एक विशेष गाड़ी में बैठकर बापस पंजाब लाया गया। इन असंतुष्ट लोगों ने लुधियाना, जालंधर, तथा अमृतसर में कई स्ताहनों पर राजनैतिक डाके डाले।

अंग्रेजी सरकार द्वारा क्रन्तिकारी आंदोलन को दबाने के प्रयत्न

अंग्रेजी सरकार ने स्थिति से निपटने के  लिए 1907 में एक अधिनियम ( prevention of seditious meeting act ) द्वारा राजद्रोही सभाओं को रोकने का प्रयत्न किया। इसके अतिरिक्त 1908 में विस्फोट पदार्थ अधिनियम ( explosive substances  ) तथा 1908 में ही भारतीय फौजदारी कानून अधिनियम तथा एक समाचार पत्र ( अपराधों के लिए प्रोत्साहन ) अधिनियम, 1910 का समाचार पत्र अधिनियम तथा सबसे घिनौना 1915 का भारतीय सुरक्षा नियम ( डिफेन्स ऑफ़ इंडिया रूल ) बना दिया।

प्रथम विश्व युद्ध समय भारत में क्रन्तिकारी गतिविधियों में कुछ विराम आया, जब सरकार ने भारत रक्षा अधिनियमों के अधीन पकड़े राजनैतिक बंदी रिहा कर दिए। दूसरे भारत सरकार अधिनियम 1919 द्वारा दिए गए सुधार लागू किये और एक अनुरंजन का वातावरण बना गया था। इसके अतिरिक्त उस समय महात्मा गाँधी एक राष्ट्रीय नेता के रूप में भारत में उभर कर सामने आये। गाँधी अहिंसा में विश्वास करते थे और उन्होंने उसी अहिंसात्मक तरीके से भारत को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया था। इन सभी कारणों से देश में क्रन्तिकारी गतिविधियों में कुछ धीमापन आ गया।


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