दादा भाई नौरोजी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता और समाज सुधारक थे, जिन्हें व्यापक रूप से भारत का ग्रैंड ओल्ड मैन माना जाता है। उनका जन्म 4 सितंबर, 1825 को बॉम्बे (अब मुंबई), भारत में हुआ था और उनकी मृत्यु 30 जून, 1917 को बॉम्बे में हुई थी।
दादा भाई नौरोजी
नौरोजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख व्यक्ति थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह ब्रिटिश संसद के लिए चुने जाने वाले पहले भारतीय थे और उन्होंने तीन कार्यकालों के लिए संसद सदस्य (सांसद) के रूप में कार्य किया। उन्होंने 1886, 1893 और 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया।
नौरोजी भारतीय स्वशासन के कट्टर समर्थक थे और उन्होंने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास किया। उन्हें “धन की निकासी” सिद्धांत की अपनी अवधारणा के लिए जाना जाता है, जिसने भारत से ब्रिटेन को संसाधनों और धन के निर्यात के माध्यम से अंग्रेजों द्वारा भारत के शोषण पर प्रकाश डाला। उन्होंने तर्क दिया कि भारत की गरीबी ब्रिटिश उपनिवेशवाद और देश से संसाधनों की निकासी का परिणाम थी।
नौरोजी एक समाज सुधारक भी थे और उन्होंने शिक्षा, स्वच्छता और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में भारतीयों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम किया। उन्होंने 1885 में इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ब्रिटेन में भारतीय समुदाय के हितों को बढ़ावा देना और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में जागरूकता बढ़ाना था।
आज, नौरोजी को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में से एक और भारतीय स्व-शासन की लड़ाई में अग्रणी के रूप में याद किया जाता है। उनकी विरासत जीवित है, और वे भारतीयों की पीढ़ियों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करना जारी रखते हैं।
भारत के वयोवृद्ध नेता (Grand Old Man of India) के नाम से प्रसिद्ध दादा भाई नौरोजी जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में तब अग्रणी भूमिका निभाई जब भारतीयों में राजनीतिक चेतना का बिजोत्पन्न भी नहीं हुआ था। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत से ले जाए जाने वाले धन के विषय में पहली बार अपनी पुस्तक में लिखा। आज इस ब्लॉक के माध्यम से हम भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी दादा भाई नौरोजी के विषय में जानेंगे।
कौन थे दादा भाई नौरोज़ी-
दादा भाई नौरोजी का जन्म महाराष्ट्र के एक ग्राम खड़क में हुआ था, उनका परिवार पारसी था जो पुरोहित के कार्य में लगे हुए थे । उनका परिवार अत्यंत निर्धन था । उन्होंने निर्धनता का जीवन जीते हुए भी उच्च शिक्षा प्राप्त की और एलफिंस्टन कॉलेज में अपनी शिक्षा को पूरा किया। जब वह वहां शिक्षा प्राप्त कर रहे थे तब एक अंग्रेजी के प्राध्यापक ने उनको “भारत की आशा” की संज्ञा दी थी । अपनी शिक्षा पूर्ण कर उन्होंने उसी कॉलेज में गणित तथा प्राकृतिक दर्शन के सहायक प्राध्यापक के रूप में अपना शिक्षक जीवन आरंभ किया । परंतु 1855 में उन्होंने शिक्षण कार्य से त्यागपत्र दे दिया और एक पारसी व्यापार संस्था में साझेदार के रूप में लंदन के लिए रवाना हो गए।
1862 में उन्होंने कामास नाम की इस व्यापार संस्था को त्याग दिया और अपना स्वयं का व्यापार आरंभ कर दिया। परंतु उसमें उन्हें सफलता नहीं मिली, परिणाम स्वरूप 1869 ईस्वी में वे पुनः मुंबई वापस आ गए और 1873 ईस्वी में बड़ौदा रियासत के दीवान का पद पर कार्य करने लगे। परंतु यहां भी उनका मन नहीं लगा अतः दुखी हो कर शीघ्र ही उन्होंने यह पद छोड़ दिया । कुछ समय पश्चात वे मुंबई ( तब बम्बई ) नगर निगम में निर्वाचित हो गए और फिर नगर परिषद में ।
दादा भाई नौरोज़ी ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले प्रथम भारतीय-
1892 ईस्वी में वह पहले भारतीय तथा एशियाई थे जो उदारवादी दल ( Liberal party ) की ओर से फिनसबरी ( Finsbury ) से ब्रिटिश संसद के सदस्य के रूप में चुने गए । दादा भाई कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में- इसके अतिरिक्त वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1886 , 1893 और 1906 ईस्वी में अध्यक्ष भी चुने गए।
दादा भाई का सामाजिक और राजनीतिक जीवन-
अपने जीवन के प्रारंभिक काल से ही दादा भाई सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे । उन्होंने मुंबई में ज्ञान प्रसारक मंडली का गठन किया और एक महिला हाई स्कूल स्थापित किया ।
1852 ईस्वी में स्थापित हुई मुंबई की पहली राजनीतिक संस्था “बम्बई एसोसिएशन”(Bombay Association) के गठन का श्रेय भी दादा भाई को जाता है । उन्होंने लंदन में रहते हुए अंग्रेजों को भारतीय समस्याओं से अवगत कराने का प्रयत्न किया और इसके लिए “लंदन इंडियन एसोसिएशन”(London Indian Association) और फिर ईस्ट इंडिया एसोसिएशन इत्यादि संस्थाएं स्थापित कीं। इन सभी प्रयत्नों के कारण वे अपने देश के लिए एक विशेष महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभर कर सामने आए ।
दादा भाई के राजनीतिक विचार-
राजनीतिक विचारों से दादा भाई उदारवादी पूर्ण राज भक्त थे । उनका मानना था कि भारत में अंग्रेजी राज्य भारतीयों के लिए लाभदायक है और इससे बहुत लाभ हुए हैं। वह इस साहचर्य (association) के सदा बने रहने के पक्ष में थे। कांग्रेस अपनी युवा अवस्था को प्राप्त हुई और इसने स्वराज्य की मांग की यद्यपि यह श्रेय बाल गंगाधर तिलक को था जब प्रथम बार उन्होंने कहा “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा”।
परंतु कांग्रेस के मंच से इसकी पहली बार मांग करने का श्रेय दादा भाई नौरोजी को ही जाता है, (1906 ) यद्यपि इसका अर्थ केवल इंग्लैंड के शेष उपनिवेशों में तात्कालिक स्वशासन ही ही था। उन्होंने यह मांग केवल न्याय के रूप में ही की थी।
दादा भाई ने अंग्रेजी राज्य की शोषणपूर्ण नीतियों का खुलासा किया और कहा कि यह राज्य (ब्रिटिश राज्य) भारत को दिन प्रतिदिन लूटने में लगा है , जिसके कारण भारत की दशा अत्यंत हीन होती जा रही है । उन्होंने भारत की गरीबी और अंग्रेजी लूट का अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक “इंडियन पॉवर्टी एंड अन ब्रिटिश रूल इन इंडिया”(Indian Poverty and Un-British Rule in India 1901 )में उल्लेख किया। उन्होंने तथ्यों के साथ अपने दावे को सिद्ध किया ।
इंडियन पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया 1901
“भारतीय गरीबी और भारत में गैर-ब्रिटिश नियम” 1901 में एक भारतीय बौद्धिक और राजनीतिक नेता दादाभाई नौरोजी द्वारा लिखी गई एक पुस्तक है। यह पुस्तक ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत भारत में आर्थिक स्थितियों का विश्लेषण है और तर्क देती है कि भारत में गरीबी ब्रिटिश नीतियों और शोषण का प्रत्यक्ष परिणाम था।
नौरोजी का मुख्य तर्क यह है कि ब्रिटिश नीतियों को भारत की कीमत पर ब्रिटेन को लाभ पहुंचाने के लिए डिजाइन किया गया था और यही भारत में गरीबी का मूल कारण था। उन्होंने तर्क दिया कि अंग्रेजों ने भारत की संपत्ति को खत्म कर दिया, जिससे देश गरीब हो गया और ब्रिटिश सहायता पर निर्भर हो गया। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों के आने से पहले भारत दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक था और इसकी गरीबी ब्रिटिश शासन का प्रत्यक्ष परिणाम थी।
नौरोजी की पुस्तक का भारतीय राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित करने में मदद मिली। उनके विचारों ने महात्मा गांधी जैसे अन्य भारतीय राष्ट्रवादियों को प्रभावित किया और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के लिए आंदोलन को आकार देने में मदद की।
कुल मिलाकर, नौरोजी की पुस्तक ब्रिटिश उपनिवेशवाद और भारत पर उसके प्रभाव की एक सशक्त आलोचना थी। यह भारतीय राजनीतिक और आर्थिक चिंतन का एक महत्वपूर्ण कार्य बना हुआ है और आज भी इसका अध्ययन और बहस जारी है।
दादाभाई नौरोजी ने 1905 ईसवी में एक पत्र के माध्यम से जे. टी. सन्डरलैंड को लिखा था कि “भारत की स्थिति निश्चय ही अत्यंत दयनीय है यह निरंतर लूटा जा रहा है प्राचीन काल में भी लुटेरे आते थे परंतु लूटने के पश्चात वे वापस चले जाते थे और कुछ ही वर्षों में भारत पुनः अपनी हानि की क्षतिपूर्ति कर लेता था, परंतु अब तो वह निरंतर अधिक से अधिक निर्धन होता जा रहा है। उसे इस लूट से दम लेने का अवकाश ही नहीं मिलता।
जी. वाई. चिंतामणि ने एक बार दादा भाई नौरोजी के विषय में कुछ इस प्रकार उल्लेख किया था “भारत के सार्वजनिक जीवन को अनेक बुद्धिमान और नि:स्वार्थ नेताओं ने सुशोभित किया है परंतु हमारे युग में कोई भी दादा भाई नौरोजी जैसा नहीं था।” दूसरी ओर गोखले ने उनके विषय में कहा था “यदि मनुष्य में कहीं देवता है तो वह दादा भाई नौरोजी ही है।” दादा भाई निश्चय ही अभूतपूर्व व्यक्ति थे वे भारत के ग्लैडस्टन( Gladstone) थे ।
इस प्रकार इस प्रकार इस संक्षिप्त लेख के माध्यम से हमने भारत के वयोवृद्ध नेता और स्वतंत्रता सेनानी दादाभाई नौरोजी की उपलब्धियों के विषय में जाना । उन्होंने किस प्रकार भारत को अंग्रेजों के निरंतर लूटने के प्रयासों को उजगार किया और विश्व का ध्यान भारत की ओर खींचा। यद्यपि वे अंग्रेजी राज्य के समर्थक थे परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि वे भारत में सदा के लिए अंग्रेजी राज्य चाहते थे वह सिर्फ चाहते थे कि भारतीय और अंग्रेज मिलकर भारत को एक महान देश बनाएं और अंत में अंग्रेज इस देश को स्वतंत्र कर चले जाएं ।