अधिकांश विद्वानों की मन्यता थी कि सल्तनतकाल (1206-1526 ) में साहित्यिक रूप से शून्य रहा है। डॉ० कुरेशी ने इस मत को प्रचलित किया कि दिल्ली सल्तनत एक सांस्कृतिक राज्य था। ये दोनों विचार प्रतिकूलता की चरम व्याख्या हैं और यथार्थ इन दोनों के मध्य मालूम होता है। यह सत्य है की तुर्की-अफगानी मूलतः एक लड़ाकू प्रवृत्ति के थे, किन्तु यह भी वास्तविकता है कि वे इस्लामी संस्कृति के प्रेमी भी थे। वे उलेमाओं को आश्रय प्रदान करते थे और उन पर बहुत सा धन व्यय करते थे।
सल्तनतकाल में साहित्य का विकास
सिंध में अरबों की विजय का साहित्य पर प्रभाव
प्रथम बार अरबों ने भारत में सिंध पर विजय प्राप्त की तो भारत के कुछ महत्वपूर्ण संस्कृत साहित्य की रचनाओं ( जैसे ब्रह्मगुप्त का ब्रह्म सिद्धांत और खण्ड खंडवाक ) का भारतीय हिन्दू विद्वानों की मदद से अरबी भाषा में अनुवाद किया गया। अलबेरुनी जो महमूद गजनबी भारत आया था एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान था।
नगरकोट की विजय के पश्चात् फिरोज तुगलक के हाथों में एक संस्कृत की हस्तलिप आई जिसका उसने फ़ारसी भाषा में अनुवाद कार्य और उसका नाम “दलायल-ए-फिरोजशाही” रखा।
अमीर खुसरो
अमीर खुसरो का नाम भारतीय कवियों में बड़े आदर के साथ लिया जाता है। अमिर खुसरो का जन्म 1253 ईस्वी में पटियाला में हुआ था। उसका पिता तुर्की से भारत में एक शरणार्थी के रूप में आया था। राजकुमार महमूद खां ( बलबन का पुत्र ) के समय में अमीर खुसरो ने राजकीय कवि का पद ग्रहण किया।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में उसने निजामुद्दीन औलिया की शिष्यता ग्रहण कर ली और वैरागी जीवन व्यतीत किया। उसने बहुत सी रचनाओं का सृजन किया। यह कहा जाता है कि उसने ४ लाख पद लिखे थे। वह प्रथम मुस्लिम कवि था जिसने हिंदी शब्दों का प्रयोग किया और जिसने भारतीय काव्य-परम्परा को अपनाया। उसकी महत्वपूर्ण रचनाओं में तुग़लक़नामा, खजियान-उल-फतूह और तारीख-ए-अलाई महत्पूर्ण हैं।
अमीर हसन देहलवी
अमीर हसन देहलवी भी एक प्रसिद्ध मुस्लिम कवि हुआ। उसे संगीतमय और सबसे अधिक रोचक माना जाता है। वह मुहम्मद तुगलक के दरबार का सदस्य था। उसने एक दीवान लिखा व निजामुद्दीन औलिया के संस्मरणों की रचना की।
बदरुद्दीन
बदरुद्दीन या बदरे छाछ ताशकंद का निवासी था। वह भी मुहम्मद तुग़लक़ के दरबार का सदस्य था। उसने मुहम्मद तुग़लक़ की प्रशंसा में कविताएं लिखीं। उसका कार्य कठिन और कल्पनाओं पर आधारित है।
मिन्हाज-उस-सिराज तबकात-ए-नासिरी का लेखक था तथा उसकी शैली संछिप्त है और साहस से भरी है।
तारीख-ए-फीरोजशाही की रचना ‘जियाउद्दीन बरनी द्वारा की गई। इस पुस्तक को लिखते समय उसने बहुत गर्व का अनुभव किया और इसे सब प्रकार के उपयोगी ज्ञान का भण्डार बना दिया। मुहम्मद तुग़लक़ और फीरोज तुग़लक़ दोनों ने जियाउद्दीन बरनी को संरक्षण प्रदान किया।
शम्स-ए-सिराज अफीफ ने बरनी की तारीख-ए-फीरोजशाही का निर्माण जारी रखा। बरनी की अपेक्षा उसने अपनी व्याख्या में अधिक विधिपूर्णता व चेतना का प्रयोग किया है, किन्तु उसकी रचना में एक ही विषय को कई स्थानों पर दुहराया गया है। इसमें अपने स्वामी के लिए प्रशंसा की अधिकता है।
ऐन-उल-मुल्क मुल्तानी ने अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद तुग़लक़ व फीरोज तुग़लक़ के समय में बड़े महत्वपूर्ण पद हासिल किये। वह बहुत योग्य, चतुर व होनहार व्यक्ति था। उसकी प्रसिद्ध रचनाओं में ऐन-उल-मुल्की और मुंशात-ए-माहरु, जिसे इन्शा-ए-माहरु भी कहते हैं। उस समय की सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक दशा के विषय में उसकी पुस्तकों में बहुत महत्वपूर्ण और सार्थक सामग्री मिलती है।
गुलाम याहिया बिन अहमद तारीख-ए-मुबारक़शाही का लेखक है। यह पुस्तक उस समय के लिए महत्वपूर्ण है जिसमें लेखक जीवित था। कई दशाओं में, यह मिन्हाज-उस-सिराज, जियाउद्दीन बरनी व शम्स-ए-सिराज अफीफ में सुधर की पूर्ति करती है।
- हसामी जो फुतूह-उस-सलातीन का लेखक है। इस पुस्तक में 300 वर्षों से अधिक का भारतीय इतिहास मिलता है।
- हसन निजामी ने ताज-उल-मासिर की रचना की।
प्रांतीय शासकों के अधीन साहित्यिक विकास
मुख्य सल्तनतकालीन शासकों के अतिरिक्त प्रांतीय शासकों के अधीन भी कुछ साहित्य रचना हुई। जौनपुर ज्ञान का प्रसिद्ध केंद्र था। इब्राहिम के दरबार में बहुत से विद्वानों को आश्रय प्राप्त हुआ। काजी शाहबुद्दीन दौलताबादी ने हवाश-ए-कुफ़िया इरशद तथा बाद-उल-बयान की रचना की। मौलाना शेख इलाहबाद ने हिदाया की रचना की। अन्य प्रसिद्ध लेखकों में मुगीस हसनवी, जहीर देहलवी, मौलाना हैं नशकी, मौलाना अली अहमद निशानी और नुरुल हक़ आते हैं।
सल्तनतकाल में हिन्दू साहित्य का विकास
सल्तनतकाल में हिन्दू साहित्य का भी विकास हुआ। यह कहना कि इस समय हिन्दुओं का मानसिक स्तर निम्न स्तर पर पहुँच गया था, और इसने कोई महत्वपूर्ण साहित्य सृजन नहीं किया, एकदम भ्रामक और गलत है। सत्य यह है कि इस काल में हिन्दुओं द्वारा अत्यंत महत्पूर्ण साहित्यिक रचनाओं का सृजन हुआ—–
- रामानुज ने ब्रह्मसूत्रों पर अपनी संहिता लिखी जिसमें उसने अपनी भक्ति का मत स्पष्ट किया।
- पर्थशारथि मिश्र ने शास्त्र दीपिका की रचना की।
- देव सूरी तर्कशास्त्र का प्रमुख विद्वान था।
- जयदेव की गीत गोविन्द संगीतमय कविता का एक उत्तम उदाहरण है।जयदेव की रचनाओं में सुंदरता, मधुरता व उत्साह की प्रचुरता भरी हुई है।
डॉ० कीथ ने प्रशंसा करते हुए लिखा है ” रीति एवं पद-विन्यास पर पूरा अधिकार है और सबसे अधिक महत्व की बात तो यह है कि छन्दों में ही निपुण नहीं है, अपितु उसने भावों के साथ पद-ध्वनि सुन्दर सांमजस्य किया है कि उसकी रचना को अनुवाद में उपस्थित करने के पर्यटन पूर्णतया सफल नहीं हो पाते।”
- इस समय बहुत से नाटकों की भी रचना हुई —-
- हरकेली नाटक और ललित विग्रहराज नाटक भी बारहवीं शताब्दी में लिखे गये।
- जयदेव ने -प्रसन्न राघव
- जयसिंह सूरी ने – हम्मीर मदमर्दन
- रवि वम्र्मन ने – प्रद्यू म्नोभ्युदय
- विद्यानाथ ने – प्रताप रूद्र कल्याण
- वामन भट्ट बाण ने – पार्वती परिणय
- गंगाधर ने – गंगादास प्रताप विलास
- रूपगोस्वामी ने – ललित माधव
- “जीव गोस्वामी एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान थे जिन्होंने संस्कृत भाषा में लगभग पच्चीस पुस्तकों की रचना की है। “
- विज्ञानेश्वर ने – मिताक्षरा( याज्ञवल्क्य पर एक संहिता- )
- जीमूतवाहन ने – दायभाग ( बंटबारे और उत्तराधिकार नियम- बंगाल में प्रचलित रही )
- “भास्कराचार्य नक्षत्र विद्या प्रोत्साहन दिया”
- कश्मीर के इतिहास से संबंधित प्रमुख पुस्तक ‘राजतंगिणी की रचना कल्हण ने की।
- वेदों पर सायण ने अपनी प्रसिद्ध संहिता प्रस्तुत की।
- नागचंद्र जिसे अभिनव पम्पा भी कहा जाता है ने ‘पम्पा रामायण की रचना की।
इसी प्रकार देशी या स्थानीय भाषा के साहित्य के रूप में चंद बरदाई ने पृथ्वीराज रासो की रचना की। इस पुस्तक में 69 अध्याय और 1 लाख पद हैं। इसमें पृथ्वीराज विजयों व जीवन का उल्लेख है। पद्मावती या संयोगिता का उसने यह वर्णन किया है —–
“प्रेम के राजा के उपहारों से सुशोभित होकर, मोतियों से सुनहरे थाल भरकर, एक दीपक जलाकर उसने उसकी आरती की; अपना विश्वास साथ लेकर धैर्य के साथ वह आगे बढ़ती है जैसे रुक्मणि मुरारी से मिलने के लिए बढ़ी थी।”
- जगनक ने – आल्हखण्ड की रचना की। इस पुस्तक में परमाल व महोवा के दो वीर योद्धाओं की वीरता व प्रेम का वर्णन किया गया है।
- शांङ्धर ने –– हम्मीर रासो व हम्मीर काव्य की रचना की। इस पुस्तक में रणथम्भौर के राजा हम्मीर के वैभव का वर्णन किया गया है।
अमीर खुसरो जो वास्तव में एक फ़ारसी भाषा का कवि था, किन्तु उसे हिंदी कविता से भी बहुत प्रेम था। अपनी कविता ‘आशिका’ में उसने हिंदी भाषा की उपयोगिता पर प्रकाश डाला है। अमीर खुसरो का मानना था कि हिंदी भाषा फ़ारसी भाषा से घटिया नहीं है। उसने अरबी के व्याकरण की तुलना हिंदी व्याकरण से की है। उसकी रचनाओं में हिंदी के शब्द मिलते हैं जैसे – प्रधान, सुन्दर, कामिनी इत्यादि।
भक्ति आंदोलन के नेताओं ने साहित्य को बढ़ावा दिया। नामदेव ने मराठी में लिखा लेकिन उसके कुछ गीत ग्रंथ साहिब में पाए जाते हैं।
रामानंद ने भी कुछ भजन लिखे हैं। साखी व रमैणी में कबीर कुछ उपदेश मिलते हैं। हिंदी साहित्य में कबीर का बहुत योगदान है। गुरु नानक ने भी कुछ भजनों की रचना की जिनमें हिंदी और पंजाबी का मिश्रण पाया जाता है। हिंदी में मीराबाई के गीत बहुत मशहूर हैं।
- गुजरात के प्रसिद्ध कवि नरसी मेहता हुए जिन्होनें रोचक भजनों की रचना की।
- कृत्तिवास ने रामायण का संस्कृत से बंगला भाषा में अनुवाद किया।
- महाभारत का भी बंगला में अनुवाद किया गया।
कृषणदेवराय ने स्वयं एक कविता की रचना की जिसका नाम ‘अमुक्तमाल्यदा’ था। अलसानी पेड्डन उसका दरबारी कवि था। वह मौलिक विशेषताओं का लेखक था और उसकी प्रसिद्ध रचना ‘स्वरोचिष मानुचरित्र’ है।
निष्कर्ष
इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि सल्तनत काल सिर्फ सांस्कृतिक उन्नति का काल नहीं था वल्कि यह काल साहित्य की उन्नति का काल भी था। इस काल फ़ारसी के साथ-साथ भारतीय भाषाओँ -हिंदी,संस्कृत,तमिल पंजाबी और बंगाली तथा क्षेत्रीय भाषाओँ में भी साहित्य की रचना हुई। अतः सल्तनतकाल को साहित्य के हिसाब से शून्यकाल कहना सही नहीं है।