मगध का प्राचीन इतिहास: राजनीतिक व्यवस्था, प्रमुख राजवंश और शासक

मगध का प्राचीन इतिहास: राजनीतिक व्यवस्था, प्रमुख राजवंश और शासक

Share This Post With Friends

Last updated on April 29th, 2023 at 05:22 pm

वैदिक आर्यों ने भारत में जिस संस्कृति को जन्म दिया उसका स्वरूप कबीलाई था। समय के साथ कृषि का विकास हुआ और आर्थिक महत्व बढ़ता गया। हमें भलीभांति ज्ञात है कि वैदिक काल में गायों को लूटने के लिए अनेक बार कबीले आपस में लड़े। धीरे-धीरे कबीले जन में बदलते गए और अब गायों का स्थान भूमि ने ले लिया। जनों का स्थान महाजनपदों ने ले लिया और इन्ही महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली जनपद के रूप ‘मगध’ का उदय हुआ। ‘प्राचीन भारत का प्रथम साम्राज्य ‘मगध’ का इतिहास history of magadh in hindi’ इस ब्लॉग के माध्यम से हम भारत के प्रथम साम्राज्य मगध के विषय में ऐतिहासिक तथ्यों के आधार आधार पर अध्ययन करेंगें। इस ब्लॉग को प्राचीन भारत की विभिन्न पुस्तकों से ठोस सामग्री चुनकर तैयार किया गया है जिससे पाठकों तक विश्वसनीय जानकारी पहुंचे।  

मगध का प्राचीन इतिहास: राजनीतिक व्यवस्था, प्रमुख राजवंश और शासक

मगध का प्राचीन इतिहास

मगध का प्रारंभिक इतिहास रहस्य में डूबा हुआ है, लेकिन बौद्ध और जैन परंपराओं के अनुसार, 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व में हर्यक वंश के उदय से पहले इस पर कई प्रसिद्ध राजाओं का शासन था। मगध के पहले ऐतिहासिक राजा बिंबिसार थे, जिन्होंने लगभग 543 ईसा पूर्व से 492 ईसा पूर्व तक शासन किया था। उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र अजातशत्रु था, जिसने पड़ोसी राज्यों पर विजय प्राप्त करके राज्य का विस्तार किया।

मगध सम्राट अशोक (268 ईसा पूर्व-232 ईसा पूर्व) के शासनकाल के दौरान अपने चरम पर पहुंच गया, जो बौद्ध धर्म के संरक्षक थे और पूरे भारत और उसके बाहर धर्म के प्रसार का श्रेय दिया जाता है। अशोक के अधीन, मगध शिक्षा और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र बन गया, और उसके शासनकाल को अक्सर भारतीय इतिहास में एक स्वर्ण युग माना जाता है।

अशोक की मृत्यु के बाद, मगध पर शासन करने वाले मौर्य वंश का पतन हो गया और 187 ईसा पूर्व में शुंग वंश द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। शुंग वंश के बाद कण्व वंश और उसके बाद गुप्त वंश आया, जिसने चौथी से छठी शताब्दी सीई तक शासन किया।

मगध ने भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दो प्रमुख धर्मों, बौद्ध धर्म और जैन धर्म का जन्मस्थान था। यह नालंदा जैसे महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों का स्थान भी था, जिसने दुनिया भर के विद्वानों को आकर्षित किया।

मगध वर्तमान में किस राज्य में है 

अगर हम वर्तमान समय की बात करें तो भारत के बिहार राज्य के अंतर्गत आने वाले पटना तथा गया जिलों की भूमि प्राचीन मगध राज्य के भू-भाग थे। 

मगध के उत्कर्ष के क्या कारण थे 

कबीलाई संस्कृति के बाद जब जनों नेअपने अपने साम्राज्यों के विकास और विस्तार के लिए आपस में युद्ध शुरू किये तब नए साम्राज्यों का उदय हुआ,  नवीन साम्राज्यों में मगध सबसे शक्तिशाली साम्राज्य बनकर उभरा।प्राचीन ब्राह्मण और  ग्रंथों से इस बात की पुष्टि होती है कि आर्य लोग भारत में पश्चिम से लेकर पूर्व तक फैले थे। मध्यदेश के अंतर्गत आने वाले अधिकांश जनपदों पर आर्य जाति के लोगों का शासन था। इसके विपरीत पूर्व के राज्यों पर आर्यों से भिन्न लोगों की जनसख्या अधिक थी मगर उनपर शासन मुट्ठीभर आर्य लोगों का था। 

मगध चरों और से प्राकृतिक रूप से सुरक्षित था। निकटवर्ती जंगलों में पाए जाने पीला हाथियों को पालतू बना गज सेना का निर्माण किया और पर्याप्त बल एकत्र किया। इसके अतिरिक्त मगध के आस-पास पायी जाने वाली लोहे की खानों से प्राप्त लोहे से मजबूत अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया और नए-नए उद्योग धंधे भी शुरू हो गए। गंगा नदी के पास होने के कारण व्यापारिक सुविधाएं बढ़ीं और आर्थिक दृष्टि से मगध का महत्व अत्यधिक बढ़ गया। 

मगध का प्रथम शासक कौन था | प्रथम राजवंश हर्यक वंश

मगध पर शासन करने वाले प्रथम राजवंश के विषय में पुराणों तथा बौद्ध ग्रंथों में परस्पर विरोधी मत प्रस्तुत किये गए हैं। परन्तु गहनता से अध्ययन करने के पश्चात अधिकांध विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि मगध पर शासन करने वाला प्रथम राजवंश हर्यक वंश था और इसका प्रथम प्रतापी शासक बिम्बिसार था।

मगध साम्राज्य का विस्तार 

बिम्बिसार 15 वर्ष की आयु ( 544 ईसा पूर्व ) में मगध के सिंहासन पर बैठा। बिम्बिसार एक शक्तिशाली और महत्वकांक्षी शासक था। प्रारम्भ में उसने मित्रता और वैवाहिक सम्न्धों द्वारा अपने साम्राज्य की सीमाओं को सुरक्षित किया। 

*बिम्बिसार ने प्रथम विवाह लिच्छवि गणराज्य के शासक चेटक की पुत्री चलना ( छलना ) के साथ किया। 

* दूसरा वैवाहिक संबंध बिम्बिसार ने कौशल राज्य के नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला से किया तथा 

* तृतीय विवाह बिम्बिसार ने मद्र देश की राजकुमारी क्षेमा से किया। 

* जीवक बिम्बिसार का राजवैद्य था

मगध साम्राज्य का प्रथम शिकार कौन-सा राजा बना 

वैवाहिक संबंधों तथा मित्रता के द्वारा अपनी आंतरिक स्थिति मजबूत करने के पश्चात् बिम्बिसार ने आक्रमणकारी नीति अपनाई। उसके इस नीति का प्रथम शिकार अंग प्रदेश का शासक ब्रह्मदत्त हुआ। अंग राज्य पर अधिकार करके बिम्बिसार ने अजातशत्रु को वहां का उपराजा (वायसराय ) नियुक्त कर दिया। 

बुद्धघोष ने बिम्बिसार के साम्राज्य की विशालता का वर्ण कुछ इस प्रकार किया है 

  •  बिम्बिसार के साम्राज्य में अस्सी हज़ार गांव थे और उसके साम्राज्य का सीमाविस्तार 300 लीग ( 900 मील ) था।”
  •  बिम्बिसार ने राजगृह नामक नए नगर की स्थापना की। 
  •  बिम्बिसार महात्मा बुद्ध का समकालीन था और सम्भवतः मित्र भी था। 
  •  बिम्बिसार जैन तीर्थकर महावीर स्वामी का रिश्तेदार भी था। 
  •  बिम्बिसार बौद्ध धर्मी था।
  • जैन साहित्य में बिम्बिसार को श्रेणिक कहा गया है।

बिम्बिसार की मृत्यु कैसे हुई 

बिम्बिसार ने लम्बे समय तक ( 52 वर्ष ) तक शासन किया परन्तु उसकी मृत्यु अत्यंत दुःखद स्थिति में हुई।  जैन तथा बौद्ध ग्रन्थ बिम्बिसार की मृत्यु के संबंध में बताते हैं कि “उसके पुत्र अजातशत्रु ने उसे बंदी बनाकर कारगर में डाल दिया जहाँ उसे भीषण यातनाएं देकर उसकी हत्या कर दी गई।  बिम्बिसार की मृत्यु 492 ईसा पूर्व में हुई।  

अजातशत्रु मगध का शासक कब बना 

 अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था और एक पितृहन्ता ( पिता का हत्यारा ) था। अजातशत्रु को ‘कुणिक’ नाम से भी जाना जाता है।  वह 492 ईसा पूर्व में शासक बना। 

* प्रसेनजीत कोसल का शासक था जिसने अपनी पुत्री वाजिरा का विवाह अजातशत्रु से किया। 

* मगध तथा बज्जि संघ के बीच संघर्ष का कारण गंगा नदी के ऊपर नियंत्रण को लेकर हुआ। 

बज्जि संघ को हारने के लिए अजातशत्रु ने महात्मा बुद्ध से विमर्श किया था जिसमें बुद्ध ने उसे सलाह दी थी कि बज्जि संघ का विनाश भेद से ही किया जा सकता है।अतः अजातशत्रु ने बज्जि संघ में फूट डालकर  लिच्छवियों को पराजित किया। 

* भास के अनुसार अजातशत्रु की पुत्री पद्मावती का विवाह वत्सराजउदयन से हुआ। 

* भरहुत स्तूप की एक वेदिका के ऊपर ” अजातशत्रु भगवतो वन्दते ” अर्थात ‘अजातशत्रु भगवान बुद्ध की वंदना करता है’ लिखा हुआ है। 

* अजातशत्रु के शासन के आठवें वर्ष में महत्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ। 

* अजातशत्रु बौद्ध धर्म का अनुयायी था। 

* अजातशत्रु ने प्रथम बौद्ध संगीति ( राजगढ़ की सप्तपर्णी गुफा ) का आयोजन किया। 

* प्रथम बौद्ध संगीति में बुद्ध की शिक्षाओं को दो भागों सुत्तपिटक तथा विनयपिटक में बनता गया। 

* 32 वर्ष शासन करने पश्चात् अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उद्यान की। 

पाटलिपुत्र मगध की राजधानी कब बनी 

 अजातशत्रु की हत्या कर उसका पुत्र उदयन या उदयभद्र 460 ईसा पूर्व में मगध का शासक बना। बौद्ध ग्रन्थ उसे पितृहन्ता कहते हैं। 

* उदयन ने शासक बनने के बाद गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की। 

* उद्यान ने पाटलिपुत्र को मगध की नई राजधानी बनाया। 

* उद्यन जैन धर्म का मतानुयायी था। 

* उद्यन की हत्या अवन्ति नरेश द्वारा भेजे गए एक हत्यारे ने की। 

* उदयन के तीन पुत्र थे – अनिरुद्ध , मुण्डक और नागदशक। 

इस प्रकार मगध के प्रथम राजवंश ‘हर्यक’ का अंत शैशुनाग वंश द्वारा किया गया। हर्यक वंश का अंत 412 ईसा पूर्व में हुआ। 

शैशुनाग वंश ( 412-344 ईसा पूर्व )

 शिशुनाग नाग वंश की शाखा से संबंधित था। महवंश टीका के अनुसार वह लिच्छवि राजा की एक वैश्या पत्नी से उत्पन्न पुत्र था। पुराण उसे क्षत्रिय बताते हैं।

* शिशुनाग ने गिरिब्रज को अपनी राजधानी बनाया तथा दूसरी राजधानी वैशाली को बनाया। 

* शिशुनाग ने 394 ईसा पूर्व तक शासन किया। 

कालाशोक कौन था 

 कालाशोक शिशुनाग का पुत्र था और उसकी मृत्यु में पश्चात् मगध का शासक बना। 

* पुराण कालाशोक को ‘काकवर्ण’ कहते हैं। 

* कालाशोक ने पाटलिपुत्र को पुनः मगध की राजधानी बना दिया। 

* कालाशोक के शासन काल में वैशाली में द्वितीय  संगीति का आयोजन हुआ। 

* द्व्तीय बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया – स्थविर तथा महासांघिक। 

* महापदमनंद नामक एक व्यक्ति ने जो जाति से नाई था ने कालाशोक की छुरा घोंपकर हत्या कर दी। 

* नन्दिवर्धन शिशुनाग वंश का अंतिम राजा था। 

नन्द वंश 344-324-23 ईसा पूर्व 

एक निम्नवर्ग से संबंधित व्यक्ति महापदमनंद ने शिशुनाग वंश का अंत कर  वंश की नींव रखी। महाबोधिवंश में उसे उग्रसेन भी कहा गया है। 

* जैन ग्रन्थ (परिशिष्टपर्वन ) में महापद्मनंद को नाई पिता की वैश्या पत्नी से उत्पन्न बताते हैं। 

* पुराणों में उसे शूद्र कहा गया है। 

*  महापद्मनंद को दूसरा परशुराम का अवतार कहा गया है क्योंकि उसने क्षत्रियों का नाश किया था। 

* महापद्मनंद ने एक़राट की उपाधि ग्रहण की। 

धननंद महापद्मनंद के बाद अंतिम नन्द शासक बना वह भी काफी शक्तिशाली था लेकिन वह बहुत लालची और घमंडी था। धनानंद ने उस समय के प्रतिष्ठित ब्राह्मण चाणक्य को अपमानित किया था जिसके कारण चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर नन्द वंश का अंत कर दिया। 

* व्याकरणाचार्य पाणिनि महापद्मनंद के मित्र थे। 

* नन्द शासक जैन धर्म के अनुयायी थे। 

निष्कर्ष 

इस प्रकार मगध भारत का प्रथम शक्तिशाली साम्राज्य बना जिस पर हर्यक कुल से लेकर गुप्त काल तक के शासकों ने शासन किया। मगध अपनी आर्थिक समृद्धि और राजनीतिक शक्ति के कारण शताब्दियों तक भारत का केंद्र बिंदु रहा।

 हमारे अन्य महत्वपूर्ण लेख अवश्य पढ़ें

मगध का प्रारम्भिक इतिहास: हर्यक वंश, शिशुनाग वंश, नन्द वंश और प्रमुख शासक 

महात्मा बुद्ध: जीवनी, जन्मस्थान वास्तविक नाम, गृहत्याग, प्रथम उपदेश, शिक्षाएं, मृत्यु और सिद्धांत |

प्राचीन भारत में आने वाले विदेशी यात्री – प्रमुख चीनी यात्रियों के संदर्भ में

प्राचीन भारत के इतिहास को जानने के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए |


Share This Post With Friends

Leave a Comment

error: Content is protected !!

Discover more from 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading