अशोक के अभिलेख Ashok Ke Abhilekh

अशोक के अभिलेख- ऐतिहासिक महत्व और विशेषताएं | Ashoka’s inscriptions in Hindi

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Last updated on February 5th, 2024 at 03:57 pm

आज के वर्तमान युग में में प्रचार और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए बहुत से संसाधन उपलब्ध हैं। लेकिन प्राचीन काल में प्रचार के संसाधन नगण्य थे। मौर्य वंश के तीसरे शासक सम्राट अशोक ने अपने धम्म के प्रचार और राजाज्ञाओं को जनता तक पहुँचाने के लिए पत्थर और शिलाओं पर अभिलेर्खों के माध्यम से जनता तक अपनी राज्ञाओं और निर्देशों को खुदवाया। आज इस लेख में हम सम्राट अशोक के अभिलेखों का अध्ययन करेंगे।

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अशोक के अभिलेख- ऐतिहासिक महत्व और विशेषताएं | Ashoka's inscriptions in Hindi

विषय सूची

अशोक के अभिलेख Ashok Ke Abhilekh

मौर्य सम्राट अशोक के विषय में सम्पूर्ण समूर्ण जानकारी उसके अभिलेखों से मिलती है। यह मान्यता है कि , अशोक को  अभिलेखों की प्रेरणा डेरियस (ईरान के शासक ) से मिली थी।  अशोक के 40 से भी अधिक अभिलेख भारत के बिभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं।

ब्राह्मी , खरोष्ठी और आरमेइक-ग्रीक लिपियों में लिखे गए हैं। अशोक के ये शिलालेख हमें अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रसार हेतु किये गए उन प्रयासों का पता चलता है जिनमें अशोक ने बौद्ध धर्म को भूमध्य सागर तक से लेकर मिस्र तक बुद्ध धर्म को पहुँचाया। अतः यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मौर्य कालीन राजनैतिक संबंध मिस्र और यूनान से जुड़े हुए थे।

  • इन शिलालेखों में बौद्ध धर्म की बारीकियों पर कम सामन्य मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं।
  • पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मागधी में ब्राह्मी लिपि के प्रयोग  लिखे गए थे।
  • पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेख खरोष्ठी लिपि में हैं।
  • एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गयी है, जबकि एक अन्य शिलालेख में यूनानी और आरमेइक भाषा में द्वभाषीय आदेश दर्ज है।
  • इन शिलालेखों में सम्राट स्वयं को “प्रियदर्शी” ( प्रकृत में  “पियदस्सी”) और देवानाम्प्रिय ( अर्थात डिवॉन को प्रिय , प्राकृत में “देवनंपिय”) की उपाधि से सम्बोधित किया है।

'अशोक के अभिलेख Ashok ke abhilekh'
अशोक स्तम्भ

 सम्राट अशोक का इतिहास हमें मुख्यतः उसके अभिलेखों से ही ज्ञात होता है। उसके अभी तक 40 से भी अधिक अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं, जो देश के एक कोने से दूसरे कोने तक विस्तृत हैं। जहां एक ओर  यह अभिलेख उसके साम्राज्य कीसीमा के निर्धारण में हमारी सहायता करते हैं। वहीं दूसरी ओर इनसे उसके धर्मएवं प्रशासन सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती हैं।

इन अभिलेखों का इतना अधिक महत्व है कि डी०आर० भंडारकर जैसे चोटी के विद्वान ने केवल अभिलेखों के आधार पर ही अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयास किया है। कहा जा सकता है कि यदि यह अभिलेख प्राप्त नहीं होते तो अशोक जैसे महान सम्राट के विषय में हमारा ज्ञान सर्वथा अपूर्ण ही रहता।

अशोक के अभिलेखों को सर्वप्रथम किसने पढ़ा

 अशोक के अभिलेख भारत के प्राचीनतम सर्वाधिक सुरक्षित एवं सुनिश्चित तिथियुक्त आलेख हैं।

1837 ईस्वी में जेम्स प्रिंसेप ने इन अभिलेखों की ब्राह्मी लिपि का गूढ़वाचन करके इनके रहस्य को उद्घाटित किया।  

परंतु उस समय एक भ्रांति भी उत्पन्न हो गई जब उन्होंने लेखों केदेवानांपियाकी पहचान सिंगल (श्रीलंका) के राजा तिस्स से कर डाली। कालांतर में यह तथ्य प्रकाश में आया कि सिंहली अनुश्रुतियों–दीपवंश तथा महावंश में यह उपाधि अशोक के लिए प्रयुक्त की गई है।

अंततः 1915 ईस्वी में मास्की से प्राप्त लेख में अशोक नाम भी पढ़ लिया गया। शहनाज गढ़ी एवं मानसेहरा (पाकिस्तान) के अभिलेख खरोष्ठी लिपि में उत्कीर्ण हैं।  तक्षशिला एवं लघमान (काबुल) के समीप अफगानिस्तान अभिलेख आरमेइक एवं ग्रीक में उत्कीर्ण हैं।  इसके अतिरिक्त अशोक के समस्त शिलालेख ,लघुस्तम्भ लेख एवं  लघु लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं। अशोक का इतिहास भी हमें इन अभिलेखों होता है 

अशोक के अभिलेखों में वर्णित विषय 

सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म स्वीकार का वर्णन 

अशोक अपने शिलालेखों में इस बात का वर्णन करता है कि कलिंग को 261 ईसा पूर्व में विजयी  करने के पश्चात् उसने पश्चाताप किया जिसके फलस्वरूप उसने बौद्ध धर्म ग्रहण किया:
देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी ने अपने राज्याभिषेक के आठ वर्ष बाद कलिंग को पराजित किया। डेढ़ लाख लोगों को निर्वासित किया, एक लाख लोग मरे गए और अन्य कारणों से और बहुत मारे गए। कलिंगों को अपने अधीन करके देवोँ के प्रिय को बौद्ध धर्म की ओर आकर्षण हुआ , धर्म और धर्म शिक्षा से प्रेम हुआ।  अब देवों के प्रिय को कलिंगों को परास्त करने का गहरा पछतावा है। (शिलालेख संख्या 13)
बौद्ध धर्म स्वीकार करने  के बाद सम्राट अशोक ने धार्मिक यात्राओं का शुभारम्भ किया। जिन-जिन स्थानों पर अशोक ने धार्मिक यात्राएं की वहां पर बौद्ध धर्म से संबंधित आदर्शों और अपनी राजाज्ञाओं को शिलालेखों के माध्यम से जनता तक पहुँचाया, जिससे लोगों को अशोक और बौद्ध धर्म के विषय में विस्तार से जानकारी मिली।
अपने राज्याभिषेक के बीस वर्ष बाद देवों के प्रिय सम्राट प्रियदर्शी इस स्थान ( लुम्बिनी ) पर आये और पूजा की क्योंकि यहाँ शाक्यमुनि बुद्ध पैदा हुए थे। लुम्बिनी की यात्रा दौरान सम्राट अशोक ने एक पाषाण मूर्ति और एक स्तम्भ लेख की स्थापना कराई, क्योंकि यह भगवान बुद्ध के जन्म से जुड़ा स्थान है जिसका नाम लुम्बिनी है। लुंबनी के गांव को लगान में छूट दी गयी और फसल का केवल आठवां हिस्सा कर के रूप में देना पड़ा। ( छोटा स्तम्भ, शिलालेख संख्या 1)

सम्राट अशोक द्वारा भारत के बाहर बौद्ध धर्म के प्रचार का वर्णन
सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के के प्रचार एवं प्रसार हेतु अपने धार्मिक दूत भारत के साथ-साथ भूमध्यसागर तक भेजे। सम्राट अशोक के शिलालेखों में और स्तम्भलेखों में यूनान से लेकर उत्तरी अफ्रीका तक के समकालीन शासकों के वास्तविक नाम अंकित मिलते हैं जिससे सिद्ध होता है मौर्य शासक विषेशकर सम्राट अशोक विदेश नीति में निपुण था और वह राजनैतिक गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए था।
अब धर्म की जीत को ही देवों-के-प्रिय सबसे उत्तम जीत मानते मानते हैं। और यही यहाँ सीमाओं पर जीती गयी है, छह सौ योजन दूर भी, जहाँ यूनानी राजा एण्टियोकस (अम्तियोकस) का शासन है और उस से आगे जहाँ चार टॉलेमी (तुरमाये), अम्तिकिनी (अन्तिगोनस), माका (मागस) और अलिकसुदारो (एलेक्ज़ेंडर) नामक राजा शासन करते हैं और उसी तरह दक्षिण में चोल, पाण्ड्य, और ताम्रपर्णी (श्रीलंका) तक।(शिलालेख संख्या 13)
हर योजन सात मील होता है इसलिए छः सौ योजन का अर्थ लगभग चार हज़ार मील है जो इस समय के लगभग समान है, जो भारत के केंद्र से लगभग यूनान के केंद्र की दूरी है। जिन शासकों का यहाँ वर्णन है वह इस प्रकार है —
अम्तियोको का तारतम्यसीरिया के अन्तियोकस second से जोड़ा गया है (antiochus second  जिसका शासनकाल 261-246 ईसापूर्व तक माना गया है )
तुरमाये नामक नाम के शासक का तारतम्य मिस्र के टॉलेमी द्व्तीय फिलाडेल्फस ( Ptolemy II Philadelphos, शासनकाल 278-247 ईसापूर्व) के साथ जोड़ा गया है।
अम्तिकिनी मासेदोन (यूनान) के अन्तिगोनस सेकंड गोनातस ( Antigonus II Gona tas शासनकाल 278-250 ईसापूर्व)
एक अन्य शासक माका सएरीनका तारतम्य (लीबिया) के मागस (Magas of Cyrene शासनकाल 276-250 ईसापूर्व के साथ जोड़ा गया है 
 इसी प्रकार यूनान और अल्बानिया के बीच का एक क्षेत्र के शासक अलिकसुदारो इपायरस का तारतम्य अलेक्सेंडर द्वितीय (Alexander II शासनकाल 272-258 ईसापूर्व)के साथ जोड़ा गया है  

अशोक के अभिलेखों का विभाजन तीन वर्गों में किया जा सकता है 

1-शिलालेख, 2- स्तम्भलेख और 3- गुहालेख 

शिलालेख 

शिलालेख चौदह विभिन्न लेखों का एक समूह है। ये चौदह शिलालेख आठ भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं —–
क्रम संख्या  अभिलेख प्राप्ति का स्थान
1 शहबाजगढ़ी वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर जिले में स्थित
2 मानसेहरा हजारा जिले में स्थित
3 कालसी
उत्तराखंड के देहरादून जिले में स्थित
4 गिरनार गुजरात राज्य के काठीयाबाड़ में जूनागढ़ के समीप स्थित गिरनार की पहाड़ी
5 धौली उड़ीसा राज्य केपुरी जिले में स्थित एक गांव
6 जौगढ़ उड़ीसा राज्य के गंजाम जिले में स्थित
6 एर्रागुड़ी आंध्र प्रदेश राज्य के कर्नूल जिले में स्थित
8 सोपारा महाराष्ट्र जिले के थाना जिले में स्थित
धौली तथा जौगढ़ के शिलालेखों पर ग्यारहवें, बारहवें तथा तेरहवें शिलालेख उत्कीर्ण नहीं किये गए हैं। उनके स्थान दो अन्य लेख खुदे पाए जाते हैं उन्हें पृथक कलिंग-प्रज्ञापन ( separate kalinga Edicts )कहा गया है . इनमें अन्य बातों के अलाबा कलिंग राज्य के प्रति सम्राट अशोक की शासन नीति के विषय में बताया गया है। वह कलिंग के नगर ‘व्यवहारिक़ों’ को न्याय के मामले में उदार तथा निष्पक्ष होने का आदेश देता है। 

लघु शिलालेख 

इनलघु शिलालेखों को चौदह शिलालेखों के मुख्य वर्ग में सम्मलित नहीं किया किया जाता है और इसी कारण इन्हें लघु शिलालेख कहा जाता है।ये विभिन्न स्थानों से प्राप्त हुए हैं जिनका विवरण इस प्रकार है —

क्रम संख्या अभिलेख प्राप्ति का स्थान
1 रूपनाथ मध्यप्रदेश राज्य के जबलपुर जिले में
2 गुर्जर मध्यप्रदेश राज्य के दतिया जिले में
3 सहसाराम बिहार राज्य में स्थित
4 भब्रू ( वैराट ) राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित
5 मास्की कर्नाटक के रायपुर जिले में स्थित
6 ब्रह्मगिरि कर्नाटक के चित्तलदुर्ग जिले में स्थित
7 सिद्धपुर ब्रह्मगिरि के एक मील पश्चिम में स्थित
8 जटिंगरामेश्वर ब्रह्मगिरि के तीन मील उत्तर-पश्चिम में स्थित
9 एर्रागुडी आंध्र प्रदेश के कर्नुल जिले में स्थित
10 गोविमठ कर्नाटक के मैसूर के कोपबल नामक स्थान के समीप स्थित
11 पालकिगुंडु गोविमठ से चार मील की दुरी पर स्थित
12 राजुल मंडगिरि आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में स्थित
13 अहरिरा उत्तर प्रदेश राज्य के मिर्जापुर जिले  स्थित
सारो मारो ( शहडोल मध्य प्रदेश ), पंनगुडरिया ( सिहोर मध्य प्रदेश ) तथा नेत्तूर नामक स्थानों से लघु शिलालेख की दो अन्य प्रतियां प्राप्त हुई हैं। एक अन्य लेख उडेगोलम ( बेलाड़ी कर्नाटक ) से मिला है। के० डी० बाजपेयी को पनगुडरिया ( सिहोर मध्य प्रदेश ) से अशोक का एक लघु शिलालेख मिला है।
जनवरी 1989 में कर्नाटक के गुलबर्गा जिले में स्थित सन्नाती नामक स्थान से अशोक-कालीन शिलालेख प्राप्त किया है। 
* मास्की, गुजर्रा, नेत्तूर तथा उडेगोलम के लेखों में अशोक का व्यक्तिगत नाम ( अशोक ) भी मिलता है।
 

उत्तरी शिलालेख

  •  दो उत्तरी शिलालेखों में तक्षशिला से (पाकिस्तान) भग्न दशा में प्राप्त यह शिलालेख आरमाइक भाषा में है।
  • दूसरा शिलालेख अफगानिस्तान में कंधार नगर के समीप मिला है जो यूनानी (ग्रीक)और आरमाइक दो भाषाओं में है। चूंकि इस प्रदेश में यूनानी भाषा बोलने वाले लोग रहते थे अतः इसे यूनानी एवं स्थानीय आरमाइक भाषा में उत्कीर्ण कराया गया।
  • तीसरा उत्तरी शिलालेख लभगान ( जलालाबाद के निकट अफगानिस्तान ) से प्राप्त हुआ है जो आरमाइक भाषा में है। इस शिलालेख में भी देवानाम्प्रिय के धर्म संबंधी प्रयासों का उल्लेख है।
  • चौथा उत्तरी शिलालेख 1963 में स्ट्रॉसबुर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी के प्रोफ़ेसर श्लुम्बर्गर को प्राप्त हुआ था। इस शिलालेख की भाषा साहित्यिक यूनानी है। लिपि अत्यंत सुंदर है।
Ashoka Pillar  उत्तरी शिलालेख
अशोक स्तम्भ

स्तम्भ लेख (Piller-Edicts )

इन स्तंभ लेखों की संख्या सात है जो छः भिन्न-भिन्न स्थानों में पाषाण-स्तंभों पर उत्कीर्ण कराए गए थे। यह इस प्रकार हैं——-

 दिल्ली टोपरा स्तंभ लेख

       यह प्रारंभ में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर (खिज्राराबाद) जिले में गड़ा था। मध्यकाल में वह तुगलक शासक फिरोशाह द्वारा अपनी नवीन राजधानी फिरोजशाह कोटला ( दिल्ली) लाया गया। इस स्तम्भ लेख पर सम्राट अशोक के सातों अभिलेख उत्कीर्ण है, जबकि अन्य  स्तंभों पर केवल छः लेख ही उत्कीर्ण पाए जाते हैं।

 दिल्ली -Meerut Column Article

 मेरठ स्तंभ लेख- यह स्तंभ लेख मेरठ में था तथा बाद में फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली में लाया गया। कहा जाता है कि मुग़ल सम्राट फर्रूखसियर के शासन दौरान (1713-19) बारूदखाने में रखे विस्फोटक में विस्फोट होने के कारण यह स्तंभ खंडित हो गया और बाद में 1867 में इसे पुनर्स्थापित किया गया।                  

प्रयाग इलाहाबाद स्तंभ लेख- Prayag Allahabad Pillar Articles-

यह स्तंभ लेख पहले कौशांबी मैं था तथा बाद में अकबर द्वारा लाकर इलाहाबाद के किले में रखवाया गया। सम्राट अशोक द्वारा उत्कीर्ण इस स्तंभ लेख में कौशांबी के महामात्र के नाम से आदेश के रूप में हैं। इसमें यह चेतावनी दी गई है कि यदि कोई भिक्षु या भिक्षुणी संघ को भंग करने का प्रयास करेगा तो उसे श्वेत वस्त्र पहनाकर संघ से बाहर निकाल दिया जाएगा।

इसी स्थान पर अशोक का दूसरा अभिलेख भी उत्कीर्ण है जिसमें सम्राट अशोक की द्वितीय पत्नी देवी या रानी कारूवाकी ( चरुवाकि अथवा कालुवाकी ) जिसे राजकुमार तीवर की माता कहा गया है, द्वारा बौद्ध संघ कोप्रदत्त दान का उल्लेख हैयही कारण है कि इसे इसे रानी अभिलेख ( या Queen Edict ) कहा जाता है।

 इसी स्तंभ पर परवर्ती काल में दो अन्य अभिलेख उत्कीर्ण कराए गए। पहलाअभिलेख गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति है जिसकीरचना कवि हरिषेण ने की थी और जिस में समुद्रगुप्त की विजयों का विस्तृतउल्लेख है। इसी स्तम्भ पर दूसरा अभिलेख जहांगीर द्वारा उत्कीर्ण कराया गया।

रमपुरवा स्तंभ लेख- Rampurwa Column Article-

 बिहार के चंपारण जिले में बेतिया के उत्तर में रामपुरवा नामक स्थान से यह स्तंभ प्राप्त हुआ है। इसके शीर्ष पर सिंह की मूर्ति को सिल्पित किया गया था, परंतु यह अब उपलब्ध नहीं है। इस स्तम्भ पर भी पूर्वोक्त 6 अभिलेखों को उत्कीर्ण किया गया है।

लौरिया अरराज का स्तंभ लेख Lauria Arraj column article –

यह स्तम्भ लेख वर्तमान उत्तरी बिहार के चंपारण जिले के लौरिया अरराज नामक ग्राम में इस स्तम्भ की स्थापना की गई, जिस पर दिल्ली-टोपरा वाले छ: स्तम्भ लेखों उत्कीर्ण कराया गया।

लौरिया नंदनगढ़ का स्तंभ लेख – Lauria Nandangarh Pillar Articles –

यह स्तंभ लेख भी बिहार के चंपारण जिले में है। इस स्तंभ का शीर्ष कमलाकार है जिसके ऊपर उत्तर की ओर मुख किए हुए सिंह की मूर्ति उत्कीर्ण है और शीर्ष के नीचे उपकण्ठ पर राजहंसों की पंक्तियों को मोती चुगते दिखाया गया है। इस स्तंभ पर भी दिल्ली-टोपरा वाले छ: अभिलेख उत्कीर्ण हैं.

इसी प्रकार तीन अन्य महत्वपूर्ण लघु स्तंभ लेख- सारनाथ, सांची तथा कौशांबी सेप्राप्त हुए हैं सारनाथ के स्तंभ लेख में भी अशोक द्वारा चेतावनी स्वरुप बौद्ध संघ में फूट डालने वालेभिक्षु या भिक्षुणियों के लिए दंड की व्यवस्था की गई है। इलाहाबाद स्तंभ लेखपर उत्कीर्ण रानी अभिलेखको भी लघु स्तम्भ लेखों की श्रेणी में गिना जाताहै। 

सम्राट अशोक की राजकीय राजाज्ञाएं जिन तीन पाषाण स्तम्भों पर उत्कीर्ण हैं उन्हें सामन्यतः लघु स्तम्भ लेख(Minor Pillar Edicts) कहा जाता है यह निम्नलिखित स्थानों से मिलते हैं-

सांची- रायसेन जिला मध्य प्रदेश।

सारनाथ- वाराणसी उत्तर प्रदेश।

कौशांबी- इलाहाबाद के समीप उत्तर प्रदेश।

रुम्मिनदेई- नेपाल की तराई में स्थित।

निग्लीवा ( निगाली सागर)- यह भी नेपाल की तराई में स्थित है।

 सांची सारनाथ– Sanchi Sarnath –

कौशांबी के लघु स्तंभ लेख में अशोक अपने महामात्रों को संघ-भेद रोकने काआदेश देता है। कौशांबी तथा प्रयाग के स्तम्भों में अशोक की रानी कारूवाकीद्वारा दान दिए जाने का उल्लेख है। इसे रानी का अभिलेख भी कहा गया हैरूम्मिनदेई स्तंभ में अशोक द्वारा इस स्थान की धर्म यात्रा पर जाने काविवरण है, तथा निग्लीवा के लघु स्तम्भ लेख में कनक मुनि के स्तूप के संवर्द्धन के विषय का वर्णन है।

ashok ke abhilekh
अशोक स्तम्भ लेख

 

 प्रथम कलिंग शिलालेख –  First Kalinga inscription –

सम्राट अशोक का प्रथम कलिंग शिलालेख को नवविजित कलिंग प्रदेश में धौली ( यह स्थान भुवनेश्वर से 8 किलोमीटर दक्षिण में स्थित उड़ीसा ) और जौगड़ यह दो शिलालेख 14 वृहद् शिलालेखों की श्रंखला का अनुपूरक हैं इन शिलालेखों में अशोक की पैतृक राजतंत्र की अवधारणा का वर्णन है। इन पृथक शिलालेखों की प्रमुख विशेषता यह है कि इनमें शासन संचालन के उन मानवोचित सिद्धांतों का भी चित्रण मिलता है जिनके आधार पर नवविजित कलिंग प्रांत पर प्रशासन किया जाना था।

 भाब्रू शिलालेख-  Bhabru inscription-

यह एक शिलाखंड पर उत्कीर्ण है जो कि अब कोलकाता में है। इसे वैराट की एक पहाड़ी की चोटी से हटाकर यहां लाया गया था। इससे बौद्ध धर्म के प्रति अशोक की श्रद्धा प्रकट होती है।

गुहा लेख ( Cave Inscription )

दक्षिणीबिहार के गया जिले में स्थित बाराबर नामक पहाड़ी की तीन गुफाओं की दीवारोंपर अशोक के लेख उत्कीर्ण पाए गए हैं। इनमें अशोक द्वारा आजीवक संप्रदाय केसाधुओं के निवास के लिए गुहा-दान में दिए जाने का विवरण सुरक्षित है। अशोकके समय में बाराबर पहाड़ी का नाम खलतिक पहाड़ी था। समीपवर्ती नागार्जुनीगुफा में अशोक के पौत्र दशरथ के तीन गुहा लेख हैं । यह सभी अभिलेख प्राकृतभाषा में तथा ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।

खरोष्ठी लिपि Kharoshthi script- यह लिपि दाएं से बाएं लिखी जाने वाली शीघ्र लिपि है। अशोक के शिलालेखों में केवल शाहबाजगढ़ी और मानसेहरा स्थित अभिलेख इस लिपि में लिखित हैं।

ब्राह्मी लिपि Brahmi script यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती थी। अशोक के अन्य सभी अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे हुए मिलते हैं।

तक्षशिला तथा कंधार से प्राप्त दो उत्तरी अभिलेख यूनानी एवं आरमाइक लिपियों में अभिलिखित हैं पूर्वोक्त इन अभिलेखों के अतिरिक्त अशोक के अभिलेखों की भाषा प्राकृत है। परन्तु विभिन्न अभिलेखों की प्राकृत भाषा में क्षेत्रीय अन्तर स्पष्टतः दिखाई देता है।

सम्राट अशोक के अभिलेखों का महत्व

सम्राट अशोक के शिलालेख, जिन्हें अशोकन शिलालेख के रूप में भी जाना जाता है, महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के हैं। 268 से 232 ईसा पूर्व तक प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य पर शासन करने वाले सम्राट अशोक को भारतीय इतिहास के सबसे महान शासकों में से एक माना जाता है। उनके शिलालेखों को महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अभिलेखों के रूप में व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में रॉक शिलालेखों, स्तंभ शिलालेखों और गुफा शिलालेखों जैसे विभिन्न माध्यमों पर संरक्षित किया गया है।

अशोक के शिलालेखों का महत्व कई प्रमुख क्षेत्रों में निहित है:

अशोक का धम्म: अशोक के शिलालेख मुख्य रूप से उसके धम्म के संदेश को व्यक्त करते हैं, जिसे अक्सर धार्मिकता, कर्तव्य या नैतिक कानून के रूप में अनुवादित किया जाता है। अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया और उसके शिलालेख नैतिक मूल्यों, सहिष्णुता, अहिंसा और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देते हैं। ये शिलालेख अशोक के दर्शन और एक शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

राजनीतिक और प्रशासनिक नीतियां: अशोक के अभिलेख उसकी राजनीतिक और प्रशासनिक नीतियों पर भी प्रकाश डालते हैं। वे उसके शासन के सिद्धांतों, कानूनों और विनियमों के साथ-साथ अपने लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के उसके प्रयासों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। अशोक के शिलालेखों से उसकी प्रजा के कल्याण के लिए उसकी चिंताओं का पता चलता है, जिसमें गरीबों, बुजुर्गों, महिलाओं और जानवरों के लिए प्रावधान शामिल हैं।

बौद्ध धर्म का प्रसार -अशोक के अभिलेखों ने बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कई शिलालेख महत्वपूर्ण बौद्ध स्थलों से जुड़े स्थानों पर पाए जाते हैं, जो बौद्ध धर्म के प्रचार और बौद्ध मठवासी समुदाय का समर्थन करने के उनके प्रयासों का संकेत देते हैं। अशोक के शिलालेखों में बौद्ध धर्म के प्रसार के उद्देश्य से भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों और उससे आगे मिशन भेजने का भी उल्लेख है।

ऐतिहासिक दस्तावेज – अशोक के शिलालेख महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज हैं जो अपने समय के सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संदर्भ के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं। उन्हें मौर्य साम्राज्य और उसके शासन के साथ-साथ उस समय की धार्मिक और दार्शनिक मान्यताओं के बारे में जानकारी के प्रामाणिक और विश्वसनीय स्रोत माना जाता है।

भाषाई और शास्त्रीय महत्व: अशोक के शिलालेख विभिन्न ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों में लिखे गए हैं, जो उनके समय में भारत में उपयोग की जाने वाली प्राचीन लिपियाँ हैं। ये शिलालेख प्राचीन भारतीय लिपियों और भाषाओं के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये प्राकृत भाषा के लिखित रूप के मूल्यवान उदाहरण प्रदान करते हैं, जो प्राचीन भारत में व्यापक रूप से उपयोग की जाती थी।

इस प्रकार, सम्राट अशोक के शिलालेखों का बहुत महत्व है क्योंकि वे उनके दर्शन, शासन और बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के प्रयासों के साथ-साथ मूल्यवान ऐतिहासिक और भाषाई जानकारी प्रदान करते हैं। उन्हें एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक विरासत माना जाता है और इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और धर्म में रुचि रखने वाले विद्वानों द्वारा व्यापक रूप से अध्ययन किया जाता है।

निष्कर्ष 

इस प्रकार अशोक के शिलालेख मौर्य साम्राज्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। ये शिलालेख मौर्य शासकों की धार्मिक, सामाजिक, और राजनैतिक परिस्थितियों को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करते हैं। बौद्ध धर्म के प्रसार में अशोक के शिलालेखों  महत्वपूर्ण स्थान है।  इन शिलालेखों में जनसामान्य की भाषा का प्रयोग किया गया ताकि जनसामान्य को भलीभांति समझाया जा सके।

FAQ

प्रश्न: सम्राट अशोक कौन थे?

A: सम्राट अशोक एक प्रसिद्ध भारतीय शासक थे जिन्होंने 268 से 232 ईसा पूर्व मौर्य साम्राज्य के दौरान शासन किया था।

प्रश्न: सम्राट अशोक के शिलालेख क्या हैं?

ए: सम्राट अशोक के शिलालेख शिलालेख या संदेश हैं जो उनके साम्राज्य में स्तंभों, चट्टानों और गुफा की दीवारों पर खुदे हुए थे, जो उनकी शिक्षाओं और नीतियों का प्रसार करते थे।

प्रश्न: सम्राट अशोक ने कितने शिलालेख बनवाए थे?

ए: सम्राट अशोक ने भारतीय उपमहाद्वीप में 30 से 40 स्थानों के अनुमान के साथ कई शिलालेख बनाए।

प्रश्न: सम्राट अशोक के शिलालेखों में क्या है?

ए: सम्राट अशोक के शिलालेखों में धम्म (धार्मिकता), धार्मिक सहिष्णुता, अहिंसा, सामाजिक कल्याण और नैतिक मूल्यों की नीतियां शामिल हैं, जो लोगों को सद्भावपूर्वक रहने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।

प्रश्न: सम्राट अशोक के शिलालेख किन भाषाओं में लिखे गए थे?

उत्तर: सम्राट अशोक के शिलालेख विभिन्न प्राचीन भारतीय भाषाओं जैसे ब्राह्मी, प्राकृत और ग्रीक में लिखे गए थे।

प्रश्न: सम्राट अशोक के अभिलेखों का क्या महत्व है?

उत्तर: सम्राट अशोक के शिलालेख महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे प्राचीन भारत के सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक पहलुओं में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं और नैतिक शासन को बढ़ावा देने और नैतिक मूल्यों को फैलाने के उनके प्रयासों को दर्शाते हैं।

प्रश्न: सम्राट अशोक के शिलालेख आज कहाँ पाए जाते हैं?

ए: सम्राट अशोक के शिलालेख आधुनिक भारत, नेपाल, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं।

प्रश्न: सम्राट अशोक के अभिलेखों को कैसे पढ़ा गया?

A: सम्राट अशोक के शिलालेखों को प्राकृत और ग्रीक जैसी अन्य भाषाओं में पाए जाने वाले शिलालेखों की मदद से प्राचीन भारत में इस्तेमाल की जाने वाली ब्राह्मी लिपि का उपयोग करके पढ़ा गया था।

प्रश्न: सम्राट अशोक के अभिलेखों की खोज कब हुई थी?

ए: सम्राट अशोक के शिलालेख पहली बार 19 वीं शताब्दी में भारत में औपनिवेशिक काल के दौरान जेम्स प्रिंसेप और अलेक्जेंडर कनिंघम जैसे ब्रिटिश पुरातत्वविदों द्वारा खोजे गए थे।

प्रश्न: सम्राट अशोक के शिलालेखों की विरासत क्या है?

ए: सम्राट अशोक के शिलालेखों ने शांति, सहिष्णुता और नैतिकता के आदर्शों को बढ़ावा देने, भारतीय इतिहास और संस्कृति पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा है, और आज भी लोगों द्वारा सम्मानित किया जाता है।


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