चिपको आंदोलन: इतिहास और महत्व तथा वास्तविकता

1974 में, वन विभाग ने 1970 की भीषण अलकनंदा बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित जोशीमठ प्रखंड के रेनी गांव के पास पेंग मुरेंडा जंगल में पेड़ों को काटने के लिए चिह्नित किया। ऋषिकेश। लेकिन रेनी की महिलाओं ने 26 मार्च, 1974 को ठेकेदार के मजदूरों को बाहर निकाल दिया। चिपको के लिए यह एक महत्वपूर्ण … Read more

सुंदरलाल बहुगुणा का जीवन और विरासत और भारत में चिपको आंदोलन

21 मई, 2021 को, सुंदरलाल बहुगुणा का 94 वर्ष की आयु में COVID-19 से निधन हो गया था । भले ही उनके निधन ने अमेरिका अथवा  विश्व के अन्य किसी भी प्रमुख आउटलेट में खबर नहीं बनाई। लेकिन भारत में इसे व्यापक कवरेज मिला। सुंदरलाल बहुगुणा का जीवन बहुगुणा भारत में चिपको आंदोलन के सबसे … Read more

गौरा देवी: चिपको आंदोलन की जननी

“जंगल हमारी मां के घर की तरह है, हम इसकी रक्षा करेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए। अगर जंगलों को काट दिया गया तो बाढ़ से हमारा सब कुछ बदल जाएगा”, चमोली उत्तराखंड की एक सामान्य मगर हिम्मती महिला ने हथियार के रूप में वनों को बचाने के लिए अपनी बुलंद आवाज उठाई। उत्तराखंड में … Read more

औपनिवेशीकरण का उत्तरखंड की जनजातियों पर प्रभाव-एक ऐतिहासिक विश्लेक्षण | Impact of Colonization on the Tribes of Uttarakhand – A Historical Analysis in hindi

तृतीय विश्व की अनेक परंपरागत संस्कृतियां वर्तमान वैश्वीकरण व औद्योगिकीकरण के दबाव में अपना दम तोड़ रही हैं। इस बढ़ते नगरीकरण के दौर में जनजातीय अथवा आदिवासी संस्कृतियां एक नैसर्गिक एवं स्वस्थ पर्यावरण को आज भी जीवित बनाए रखने के कारणों से समग्र विश्व की संपूर्ण धरोहर हैं। आदिकाल से ही इन मानव समुदायों ने … Read more

वीर दास की जीवनी, तथ्य और जीवन की कहानी और विवाद

‘मैं दो भारत से आया हूं’ ये वो वायरल वीडियो के शब्द हैं जिन्होंने कॉमेडियन और एक्टर वीर दास को मुश्किल में डाल दिया है। इस विवाद विवाद के बाद कॉमेडियन वीर दास पर दिल्ली और कई जगह पुलिस शिकायत दर्ज की गयी है। कॉमेडियन वीर दास पर  दिल्ली के तिलक मार्ग थाने में बुधवार … Read more

ब्रिटिशकालीन उत्तराखंड: कुली बेगार प्रथा – Kuli Begar Prtha Kya Thee

ब्रिटिशकालीन उत्तराखंड-इस प्रथा के अन्तर्गत एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव के लिये जाते समय कुलियों के सिर/पीठ पर भंगी का झाडू, पॉट, कमोड, गोमांस, मुर्गी के अंडे मेमसाहब, बच्चे, कुत्ते, शराब, डाक, पियानों, बंदूक, टेंट, दाइयाँ आदि को रखा और उतारा जाता था। वहीं दूसरी और विभिन्न पडावों में सैनिकों सैलानियों या उनके दलों को … Read more

उत्तराखण्ड में औपनिवेशिक प्रशासन: वन प्रबन्ध सम्बन्धी नीतियां

वर्तमान राज्य उत्तराखण्ड जिस भौगोलिक क्षेत्र पर विस्तृत है उस इलाके में ब्रिटिश शासन का इतिहास उन्नीसवीं सदी के दूसरे दशक से लेकर भारत की आजादी तक का है। ज्ञात है कि उत्तराखण्ड में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का आगमन 1815 में हुआ। इससे पूर्व यहाँ नेपाली गोरखों का शासन था। यह भी माना जाता है कि गोरखा शासकों द्वारा इस इलाके के लोगों पर किये गये अत्याचारों को देखकर ही अंग्रेजों का ध्यान इस ओर गया। यद्यपि अंग्रेजों और नेपाली गोरखाओं के बीच लड़े गये गोरखायुद्ध के अन्य कारण भी थे।

उत्तराखण्ड में औपनिवेशिक प्रशासन 

सगौली की सन्धि 4 अप्रैल 1816

अल्मोड़ा में 27 अप्रैल, 1815 को गोरखा प्रतिनिधि बमशाह और लेफ्टिनेंट कर्नल गार्डनर के बीच हुई एक सन्धि के बाद नेपाली शासक ने इस क्षेत्र से हट जाने को स्वीकारा और इस क्षेत्र क्षेत्र पर ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अधिकार हो गया। अंग्रेजों का इस क्षेत्र  पर पूर्ण अधिकार 04 अप्रैल, 1816 को सुगौली की सन्धि के बाद इस पूरे क्षेत्र पर हो गया और नेपाल की सीमा काली नदी घोषित हुई।

अंग्रेजों ने पूरे इलाके को अपने शासन में न रख अप्रैल 1815 में ही गढ़वाल के पूर्वी हिस्से कुमायूं के क्षेत्र पर अपना अधिकार रखा और पश्चिमी हिस्सा सुदर्शन शाह जो गोरखों के शासन से पहले गढ़वाल के राजा थे को सौंप दिया जो अलकनन्दा और मंदाकिनी नदियों के पश्चिम में पड़ता था।

इस प्रकार गढ़वाल दो हिस्सों में बंट गया, पूर्वी हिस्सा जो कुमायूं के साथ ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गया ‘‘ब्रिटिश गढ़वाल’’ कहलाया और पश्चिमी हिस्सा राजा सुदर्शनशाह के शासन में इसकी राजधानी टिहरी के नाम पर टिहरी गढ़वाल कहलाने लगा। टिहरी को राजा सुदर्शन द्वारा नयी राजधानी बनाया गया था क्योंकि पुरानी राजधानी श्री नगर अब ब्रिटिश गढ़वाल में आती थी।

ब्रिटिश गढ़वाल को बाद में 1840 में यहाँ पौड़ी में असिस्टेंट कमिश्नर की नियुक्ति के बाद इस क्षेत्र को पौढ़ी गढ़वाल भी कहा जाने लगा, जबकि इससे पहलेयह नैनीताल स्थित कुमायूं कमिशनरी के अन्तर्गत आता था।

दूसरी ओर कुमायूं क्षेत्र के पुराने शासक चंद राजा को यह अधिकार नहीं मिला और यह ब्रिटिश भारत का हिस्सा बन गया और ब्रिटिश चीफ कमीशनशिप के अन्तर्गत शासित लगा। जिसकी राजधानी (कमिश्नरी) नैनीताल में स्थित थी। भारत की आजादी तक टिहरी रजवाड़ा और ब्रिटिश शासन के अधीन रहा यह क्षेत्र आजादी के बाद उत्तर प्रदेश राज्य में मिला दिया गया।

उत्तराखंड में दो प्रकार की शासन व्यवस्था 

इस प्रकार अंग्रेजी शासन की स्थापना के बाद सन् 1815 से 1949 तक उत्तराखण्ड दो भिन्न प्रकार की राजनीतिक व्यवस्थाओं, टिहरी रियासत की राजशाही व शेष उत्तराखण्ड की ब्रिटिश शासन व्यवस्था के अधीन संचालित होने लगा। परन्तु मूल रूप से सम्पूर्ण उत्तराखण्ड सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से एक समान था। स्पष्ट था कि अंग्रेजों के आगमन के पश्चात प्रथम बार दो भिन्न-भिन्न प्रकार की शासन पद्धतियों के अन्तर्गत उत्तराखण्ड का जनमानस शासित होने लगा।

इस प्रकार टिहरी रियासत और कुमायूं डिवीजन में विशेष रूप से प्रशासन के तौर-तरीकों में मूलभूत परिवर्तन आ गया था। कुमायूं कमिश्नरी की ब्रिटिश सरकार और जनता, जातीयता और भाषायी दृष्टिकोण से एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न थे। उत्तराखण्ड में एक ओर टिहरी रियासत में शताब्दियों पूर्व से चली आ रही परम्परागत राजशाही थी तो दूसरी ओर अंग्रेजो की औपनिवेशिक सरकार का अधिकारों से परिपूर्ण अधिकारी तंत्र था। 

Read more