थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना कब और कहाँ हुई

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 भारतीय संस्कृति और सभ्यता से प्रभावित होकर कुछ पश्चिमी विद्वानों ने थियोसोफिकल सोसाइटी के स्थापना की थी।  1875 में रूस की  (Madam H.P. Blavatsky 1813-91) हेलेना ब्लावात्स्की जर्मन और रुसी रक्त की महिला थीं द्वारा अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में इस सोसायटी की स्थापना की। इसके पश्चात् कर्नल एम.एस. ओलकॉट भी उनके साथ मिल गए।  यह मूल रूप से कबला (यहूदी गूढ़ रहस्यवाद), ज्ञानवाद (गूढ़ मुक्ति ज्ञान), और पश्चिमी भोगवाद के रूपों से प्रेरित था। जब 1879 में ब्लावात्स्की भारत गए, तो उनके सिद्धांतों ने जल्दी ही एक भारतीय चरित्र धारण कर लिया, और 1882 में मद्रास के समीप अड्यार में अपने मुख्यालय स्थापित किया जहां से उन्होंने और उनके अनुयायियों ने भारत के कई शहरों में शाखाएँ स्थापित कीं। 

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थियोसोफिकल सोसाइटी की स्थापना कब और कहाँ हुई
एनी बेसेन्ट – फोटो क्रेडिट फेसबुक

थियोसोफिकल सोसाइटी

इस समाज के अनुयायी ईश्वरीय ज्ञान, आत्मिक हर्षोन्माद (spiritual ecstasy) और अंतर्ज्ञान (intution) के माध्यम से प्राप्त करने का प्रयत्न किया। ये लोग पुनर्जन्म तथा कर्म में विश्वास करते हैं और सांख्य तथा उपनिषदों के दर्शन द्वारा प्रेरणा प्राप्त करते थे। इनका विश्वास आध्यात्मिक भ्रातृभाव में था। यह आंदोलन भी हिन्दू पुनर्जागरण का अंग बन गया। 

एनी बेसेन्ट का थियोसोफिकल सोसाइटी में प्रवेश

अपने संस्थापक और अन्य नेताओं के खिलाफ लगाए गए धोखाधड़ी के गंभीर आरोपों से बचने के बाद, समाज एक सुधारवादी अंग्रेज महिला एनी बेसेंट के नेतृत्व में समृद्ध हुआ। 1907 में कर्नल ओलकॉट की मृत्यु के बाद मिसिज़ एनी बेसेन्ट (1847-1933) इस सोसायटी  की अध्यक्षा बनीं और फिर यह आंदोलन काफी लोकप्रिय हो गया ।

अपने जीवन के आरम्भिक दिनों में मिसिज़ बेसेन्ट का ईसाई धर्म से विश्वास उठ गया था। उन्होंने पाने पति से तलाक ले लिया था जो कि एक पादरी थे और फिर 1882 में थियोसोफिकल सोसाइटी के संपर्क में आईं। उनके कार्यकाल के दौरान यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थापित कई थियोसोफिकल लॉज ने पश्चिम को हिंदू धर्म के सिद्धांतों से परिचित कराने में मदद की। 

1889 में थियोसोफिकल सोसाइटी में औपचारिक रूप से शामिल होकर एनी बेसेन्ट ने 1891 में वे मैडम ब्लावट्स्की की मृत्यु पर भारत आयीं। वह भारतीय संस्कृति और विचारों से भलीभांति परिचित थीं। उनके भागवत गीता के अनुवाद से उनके वेदांत में विश्वास का पता चलता है। जहाँ मैडम ब्लावट्स्की का मुख्य जोर अलौकिकवाद पर था, आध्यात्मिकता पर नहीं।

जबकि मिसिज बेसेंट को मन और प्रकृति से जोड़ने वाला एक सेतु मिल गया। शनैः शनैः वह हिन्दू धर्म में समाती चली गयीं। उन्होंने भारतीय भोजन, वस्त्र, त्यौहार और सामाजिक शिष्टाचार भी अपना लिया।मिसिज बेसेंट के नेतृत्व में थियोसोफिकल सोसाइटी हिन्दू पुनर्जागरण का आंदोलन बन गयी। 

मिसिज एनीबेसेन्ट ने 1898 में बनारस उत्तर प्रदेश में सेंट्रल हिन्दू कॉलेज की नींव रखी। जहाँ हिन्दू धर्म और पाश्चात्य वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन होता था। आगे चलकर यहीबनारस हिन्दू विश्वविद्यालय बन गया। उन्होंने आयरलैंड की होम रूल लीग की तर्ज पर भारतीय स्वराज्य लीग बनाई। 

इस प्रकार थियोसोफिकल सोसाइटी ने शिक्षित हिन्दुओं और भिन्न-भिन्न मतानुयायियों के लिए एक संयक्त हर ( denominator) बना दिया

एनी बेसेन्ट का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान 

वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुईं। 1916 में, उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की, जिसने भारतीयों द्वारा स्व-शासन की वकालत की। वह 1917 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। वह उस पद को संभालने वाली पहली महिला थीं। उन्होंने एक समाचार पत्र ‘न्यू इंडिया’ और  ‘द कामनवील’ शुरू किया, जिसमें ब्रिटिश शासन की आलोचना की गई और उन्हें देशद्रोह के आरोप में जेल भेज दिया गया। भारतीय राष्ट्रीय परिदृश्य पर गांधीजी के आगमन के बाद महात्मा गांधी और एनी बेसेंट के बीच मतभेद पैदा हो गए। धीरे-धीरे वह सक्रिय राजनीति से हट गईं।

20 सितंबर, 1933 को अड्यार (मद्रास) में एनी बेसेंट की मृत्यु हो गई। उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अस्थियां बनारस में गंगा में विसर्जित कर दी गईं।


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