क्या पुष्यमित्र शुंग बौद्धों का शत्रु था? Pushyamitra Shunga an enemy of Buddhists

Share This Post With Friends

अंतिम मौर्य नरेश ब्रहद्रथ के मुख्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने ब्रहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की नींव रखी। उसके जीवन के विषय में ठोस जानकरी अभाव है। दिव्यावदान ग्रन्थ से जानकरी मिलती है कि उसके पिता का नाम पुष्यधर्म था। Pushyamitra Shunga -पुष्यमित्र ने अपने जीवन का प्रारम्भ एक सैनिक के रूप में प्रारम्भ किया। एक दिन सेना का निरीक्षण कर रहे ब्रहद्रथ की उसने धोखे से हत्या कर दी। पुराणों में और बाणभट्ट के हर्षचरित में इस घटना का वृतान्त मिलता है। शासक बनने के बाद उसने ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान का बीड़ा उठाया और इसी क्रम में उसने तमाम बौद्ध भिक्षुओं का क़त्ल कराया। क्या वास्तव में पुष्यमित्र बौद्धों का शत्रु था? आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Group Join Now
क्या पुष्यमित्र शुंग बौद्धों का शत्रु था?  Pushyamitra Shunga an enemy of Buddhists

Pushyamitra Shungaपुष्यमित्र शुंग की धार्मिक नीति

पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था और बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान तथा तिब्बती इतिहासकार तारानाथ के साक्ष्यों से से पता चलता है कि पुष्यमित्र शुंग बौद्धों का घोर शत्रु था। उसने स्तूपों और विहारों का विनाश किया। दिव्यावदान से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र ने लोगों से सम्राट अशोक की लोकप्रियता का कारण पूछा। उसे ज्ञात हुआ कि अशोक ने 84000 स्तूपों का निर्माण कार्य था जिससे वह जन-जन में लोकप्रिय हो गया। अतः पुष्यमित्र ने 84000 स्तूपों को नष्ट करने का निर्णय लिया

बौद्ध धर्म को समाप्त करने की प्रतिज्ञा की

अपने ब्राह्मण पुरोहित की सलाह पर पुष्यमित्र ने महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को नष्ट करने की प्रतिज्ञा ली। उसने पाटलिपुत्र स्थित कुक्कुटाराम के महाविहार को नष्ट करने की कोशिश की, मगर एक तेज आसमानी गर्जना से भयभीत होकर बापस लौट आया। इसके बाद एक चतुरंगिणी सेना की सहायता से उनसे मार्ग में पड़ने वाले स्तूपों को नष्ट करता हुआ और विहारों को जलाता हुआ तथा बौद्ध भिक्षुओं को नष्ट करता हुआ शाकल पहुँच गया।

बौद्ध भिक्षु का सिर लाने वालो को ईनाम देने की घोषणा की

पुष्यमित्र शुंग ने शकल में घोषणा की कि जो भी व्यक्ति मुझे एक बौद्ध भिक्षु का सिर लेकर देगा मैं उसे बदले में 100 दीनारें दूंगा। तारानाथ भी इस प्रकरण की पुष्टि करते हैं। क्षेमेन्द्र की रचना ‘अवदानकल्पलता’ में भी पुष्यमित्र को बौद्ध धर्म का विनाशक बताया गया है।

बौद्ध ग्रंथों में झूठी जानकारी!

यहाँ कुछ इतिहासकार इस बात को प्रस्तुत करते हैं कि बौद्ध लेखकों ने तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया है और गैर – बौद्धों के अपकार्यों का काल्पनिक विवरण प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति पायी जाती है। पहले भी देखा गया है कि किस प्रकार अशोक के पूर्व बुद्धकालीन जीवन के विषय में भी ये ग्रन्थ निरर्थक वृतांत प्रस्तुत करते हैं। अतः यह अधिक विश्वसनीय नहीं हैं।

साँची और भरहुत की कलाकृतियों की मूल्याङ्कन

शुंगों के समय के साँची तथा भरहुत से प्राप्त कलाकृतियों के आधार पर पुष्यमित्र के बौद्ध-द्रोही होने का मत पूरी तरह खंडित हो जाता है। भरहुत की एक वेष्टनी पर ‘सुगनरजे…….’ (शुंग राज्यकाल का )खुदा हुआ है। यह शुंगों की धार्मिक सहिषुणता का परिचायक है। इस काल में साँची तथा भरहुत के स्तूप सुरक्षित भी रहे और राजकीय सहायता भी प्राप्त करते रहे। इसके प्रतियुत्तर में कुछ विद्वानों ने यह तर्क रखा है कि साँची तथा भरहुत की कलाकृतियों का निर्माण पुष्यमित्र के उत्तराधिकारियों द्वारा कराया गया था। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि पुष्यमित्र धार्मिक सहिष्णु था। इलाहबाद विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष जी० आर० शर्मा ने बताया है कि कौशाम्बी स्थित घोषिताराम विहार विनाश के तथा आगजनी के चिन्ह प्राप्त होते हैं।

इसके प्रतियुत्तर में सुप्रसिद्ध कलाविद हेवेल का मनना है कि साँची तथा भरहुत के तोरणों का निर्माण एक लम्बी अवधि की निर्माण प्रक्रिया जो 100 से अधिक वर्षों में पूर्ण हुआ होगा अतः पुष्यमित्र को इन निर्माणों से अलग नहीं किया जा सकता। ऐसा लगता है कि अंतिम बौद्ध सम्राट की हत्या के कारण बौद्ध लोग पुष्यमित्र से नफरत करने लगे थे। सम्भवतः बौद्धों ने कुछ विद्रोह किये होंगे जिनके दमन के लिए पुष्यमित्र ने ईनाम की घोषणा की होगी। अतः विद्रोहियों का दमन एक शासक का कर्तव्य है। अतः सिर्फ इसीलिए पुष्यमित्र को बौद्ध विनाशक कहना सही नहीं। बौद्धों और यवनों के संयुक्त विद्रोह के कारण कठोर कार्यवाही करनी पड़ी। दिव्यावदान के कुछ प्रसंगों में पुष्यमित्र द्वारा बौद्ध मंत्रियों की नियुक्ति की पुष्टि होती है।

निष्कर्ष

इस प्रकार पुष्यमित्र के बौद्ध विनाशक होने को लेकर कोई एकराय नहीं दिखाई देती। जहाँ बौद्ध साहित्य में उसे बौद्धों का संहारक बताया है तो संस्कृत ग्रन्थ इस पर मौन हैं। सम्भवतः पुष्यमित्र ने ब्राह्मण धर्म को प्रसिद्धि दिलाने के उद्देश्य से बौद्ध धर्म की अवनति के प्रयास किये हों।

यह भी पढ़िए –

१ – अशोक का धम्म: अशोक का धम्म (धर्म) क्या है, अशोक के धम्म के सिद्धांत, विशेषताएं, मान्याएँ, आर्दश 

२ – कलिंग युद्ध और सम्राट अशोक का धर्म परिवर्तन, बौद्ध धर्म का प्रचार

३ – मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण | क्या अशोक मौर्य साम्राज्य के पतन के लिए जिम्मेदार था

४ – सोलह महाजनपद: प्राचीन भारत के सोलह महाजनपदों और उनकी राजधानियाँ का वर्णन कीजिए


Share This Post With Friends

Leave a Comment

Discover more from 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading