आधुनिक भारतीय इतिहास में जयपुर की महारानी गायत्री देवी का नाम अत्यंत आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। गायत्री देवी वो राजकुमारी थीं जिसने शादी के बाद अपने राज्य की बागडोर संभाली। जब राजनीति में प्रवेश किया तो किया देश के लिए अहम् योगदान दिया। राजकुमारी से महारानी बनी और अंत में वह राजमाता कहलाई।
आजीवन चर्चा में रहने वाली महारानी गायत्री देवी के 5 किस्से, इंदिरा गाँधी से रंजिश की ये थी बजह
आजीवन चर्चा में रहने वाली महारानी गायत्री देवी के 5 किस्से, इंदिरा गाँधी से रंजिश की ये थी बजह
गायत्री देवी जयपुर के महाराजा सवाई मान सिंह II की तीसरी पत्नी थीं। यह कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से किसी भी मामले में कम नहीं थीं। इंदिरा गाँधी के साथ उनका विवाद हमेशा बना रहा। 29 जुलाई को महारानी गायत्री देवी की पुण्यतिथि थी। तो आइये जानते हैं कुछ ऐसे किस्से जो महारानी गायत्री देवी के जीवन से जुड़े हैं….
महरानी गायत्री देवी का जीवन परिचय
गायत्री देवी का जन्म 23 मई 1919 को लन्दन, इंग्लैंड में हुआ था। उसके पिता का नाम राजकुमार जितेन्द्र नारायण था, वह बंगाल में कूचबिहार के युवराज के छोटे भाई थे। गायत्री के पिता बाद में राजा बने। गायत्री देवी की माता का नाम राजकुमारी इंदिरा राजे था जो बड़ौदा रियासत के महाराज सयाजीराव की बेटी थीं। राजा जितेंद्र नारायण की मृत्य के पश्चात् इंदिरा राजे ने ही गायत्री और अन्य चार संतानों की जिम्मेदारी उठाई।
गायत्री देवी की शिक्षा
विदेश में शिक्षा के लिए जाने से पहले गायत्री देवी ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के शांतिनिकेतन में शिक्षा प्राप्त की। गायत्री देवी बचपन से ही बेहद आकर्षक और खूबसूरत थी। इंदिरा गाँधी भी गायत्री देवी के ही साथ पढ़ती थीं। ऐसे में जाहिर तौर पर दोनों एकदूसरे को बहुत अच्छी तरह जानती थीं और यहीं से दोनों के बीच रंजिश शुरू हुई। स्पष्टवादी मुखर पत्रकार खुशवंत सिंह ने लिखा था कि इंदिरा गाँधी, स्कूल में गायत्री देवी के प्रभाव और खूबसूरती से जलती थी। इसके बाद यह जलन एक दुश्मनी (राजनीतिक) में बदल गई।
गायत्री देवी का वैवाहिक जीवन
गायत्री देवी जब मात्र 12 साल की थीं तब उन्हें जयपुर के राजा मानसिंह बहादुर से प्यार हो गया। जबकि मानसिंह पहले ही विवाहित थी और वह दो शादियां कर चुके थे। लेकिन गायत्री को उनकी तीसरी पत्नी बनने में कोई आपत्ति नहीं थी। मानसिंह उम्र में उनसे नौ साल बड़े थे। गायत्री जब 16 वर्ष की हुई तब मानसिंह सामने शादी का प्रस्ताव रखा जिसे गायत्री देवी ने ख़ुशी से स्वीकार कर लिया।
गायत्री देवी का राजनीतिक सफर
गायत्री देवी को पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कांग्रेस पार्टी में आने का प्रस्ताव दिया था, मगर उन्होंने इसे ठुकरा दिया। 1962 में गायत्री देवी ने कांग्रेस के खिलाफ स्वतंत्र रूप से इलेक्शन लड़ा। चुनाव में गायत्री देवी को रिकॉर्ड तोड़ मत प्राप्त हुए। उन्होंने को 2,46,516 में से 1,92,909 वोट प्राप्त किये। इस प्रचंड जीत के रिकॉर्ड को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। खुशवंत सिंह ने लिखा है कि इंदिरा गाँधी को संसद में गायत्री देवी की उपस्थिति असहज कर देती थी। इंदिरा गाँधी ने उन्हें ‘सीसे की गुड़िया’ (glass doll) तक कह दिया था।
इंदिरा गाँधी और गायत्री देवी के बीच रंजिश
इंदिरा गाँधी द्वारा लगाई गई इमर्जेन्सी के दौर में जब विपक्ष के तमाम नेताओं को मीसा एक्ट के तहत गिरफ्तार करके जेल में ठूंसा जा रहा था तब गायत्री देवी मुंबई के एक अस्पताल में अपना इलाज करा रही थीं जिसके कारण वह गिरफ़्तारी से बच गयीं थी। लेकिन देवी इलाज कराकर दिल्ली लौटी उनके आवास पर इनकम टैक्स का छापा पड़ गया। गायत्री देवी को कंज़र्वेशन ऑफ़ फॉरेन एक्सचेंज एंड प्रिवेंशन ऑफ़ स्मगलिंग एक्टिविटीज़ एक्ट के तहत दोषी ठहराकर जेल में डाल दिया गया। उन्होंने 6 माह जेल में काटे जहाँ उन्हें मुंह का अल्सर हो गया था और इलाज की अनुमति देने में 3 हफ्ते लगा दिए गए।
गायत्री देवी ने अपनी किताब ‘ए प्रिंसेस रेमेम्बेर्स: मेमोयर्स ऑफ़ दी जयपुर’ में लिखा है कि जेल में रहने के दौरान उनके साथ घृणित अमानवीय वयवहार किया गया था, मगर वे इससे टूटी नहीं। जेल में वह दूसरे कैदियों के बच्चों को पढ़ाती थीं। 6 महीने जेल में बिताने के के बाद उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया। इस तरह इंदिरा गाँधी और गायत्री देवी में रंजिश आजीवन चलती रही। बाद में गायत्री देवी ने राजनीती से सन्यास ले लिया।