गयासुद्दीन तुगलक: तुग़लक़ वंश का संस्थापक, इतिहास और उपलब्धियां 

गयासुद्दीन तुगलक: तुग़लक़ वंश का संस्थापक, इतिहास और उपलब्धियां 

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गयासुद्दीन तुगलक एक भारतीय शासक थे जो 14वीं सदी में दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठे थे। उनकी शासनकालीन वर्ष 1325 ई0 से 1351 ई0 तक रही थी। वे तुगलक खानदान के गुलामी के बाद दिल्ली के सल्तनती शासक बने थे और उनके शासनकाल में वे दक्खिनी भारत में शक्तिशाली थे।

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गयासुद्दीन तुगलक: तुग़लक़ वंश का संस्थापक, इतिहास और उपलब्धियां 

गयासुद्दीन तुगलक

तुगलक खानदान का शासक होने के बाद, उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सत्ता को स्थापित किया और दक्षिण भारतीय राज्यों को अपने अधीन किया। उनकी सत्ता के दौरान वे अलौकिक और कठिन निर्णय लेते थे जो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उनकी शासन प्रणाली को विवादास्पद और कठिन माना गया है।

तुगलक शासनकाल में कृषि और व्यापार को बढ़ावा दिया गया था, जो आर्थिक विकास को समर्थन करता था। उन्होंने अदालती न्याय प्रणाली को सुधारा, कला और संस्कृति की समर्थन किया और धर्म निर्णयों में नेतृत्व किया। उनके शासनकाल में बारहवीं शताब्दी के विद्वान, साहित्यकार और विचारक अमीर खुसरो भी उनके दरबार में समर्थन करते थे।

हालांकि, गयासुद्दीन तुगलक के शासनकाल में उनकी नीतियों पर विपरीत मतभेद थे। उनकी कड़ी नीतियां, उच्च कर और कड़ा शासन को लेकर विरोध प्राप्त कर गई थीं। वे समाज में न्याय और समावेशीकरण के लिए प्रयास करते रहे, लेकिन उनकी तंगी और सख्त शासन प्रक्रिया ने उनकी प्रशंसा नहीं प्राप्त की।

तुगलक के शासनकाल में अर्थव्यवस्था पर संकट आया था, जो भूमिहीन और गरीब वर्गों को प्रभावित करता था। उनकी कड़ी कर नीतियां ने कृषि, व्यापार और वाणिज्य को प्रभावित किया और जनता को आर्थिक तंगी में डाल दिया। इसके परिणामस्वरूप लोगों की विरोधी आंदोलन और विद्रोह हुए जो उनकी सत्ता को कमजोर कर दिया।

गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु 1351 ई0 में हुई और उनके बेटे जूना खान ने उनकी जगह ली।

नाम गयासुद्दीन तुग़लक़
पूरा नाम गयासुद्दीन गाजी मलिक
जन्म 26 फरवरी, 1284 ईस्वी
जन्मस्थान
संस्थापक तुगलक़ वंश
पिता करौना तुगलक ऐक तुर्क गुलाम
पत्नी
बच्चे पुत्र मुहम्मद बिन तुगलक़
मृत्यु फरवरी 1325
मृत्यु स्थान कड़ा, मानिकपुर, भारत
शासनावधि 8 सितम्बर 1321 – फरवरी 1325
राज्याभिषेक 8 सितम्बर 1321
पूर्ववर्ती खुसरो खान
उत्तरवर्ती मुहम्मद बिन तुगलक़
समाधि दिल्ली, भारत
घराना तुगलक़ वंश

तुगलक वंश का संस्थापक कौन था

गुलाम वंश के अंतिम सुल्तान नासिरुद्दीन खुसरो शाह (1320 ईसवी) का जिस व्यक्ति ने अंत किया उस व्यक्ति का नाम गाजी मलिक था, जो पंजाब का प्रांताध्यक्ष होने के साथ-साथ अभियानों का अध्यक्ष भी था। वह उन सब का नेता बन गया जो खुसरो शाह के विरोधी थे। परंतु समाना, मुल्तान व स्वीस्तान के प्रांताध्यक्षों को अपनी ओर करने के प्रयास में वह सफल रहा।
एन-उल-मुल्क मुल्तानी ने गाजी मलिक का साथ देने से इंकार कर दिया। गाजी मलिक ने षड्यंत्र रचने शुरू कर दिए और इस प्रकार उसने बहुत से लोगों को अपनी ओर कर लिया। उसका पुत्र फखरुद्दीन मोहम्मद जोना जिसे खुसरो शाह ने गृह का स्वामी ( Master Of The House) नियुक्त किया था,  दिल्ली से भाग निकला और दीपालपुर में अपने पिता गाजी मलिक से जा मिला। इतनी तैयारियां करने के बाद गाजी मलिक दिल्ली की ओर बढ़ा समाना के प्रांताध्यक्ष ने उसका विरोध किया परंतु इसमें उसे पराजय हुई।
सिरसा में हिसाम उद्दीन ने भी गाजी मलिक का विरोध किया। परंतु उसे भी हार खानी पड़ी। जब गाजी मलिक दिल्ली के निकट पहुंचा तो खुसरो शाह उसके साथ संग्राम करने हेतु स्वयं बाहर आया, परंतु दुर्भाग्यवश एन-उल-मुल्क मुल्तानी ने संग्राम से अपनी सेनाएं वापस कर ली। परिणामस्वरूप खुसरो शाह पराजित हुआ और 5 सितंबर 1320 को उसकी हत्या कर दी गई। भारत में 30 वर्ष के शासन के बाद खलजी वंश का अंत हो गया।
 

गयासुद्दीन तुगलक का परिचय (1320-1325 )- 

गयासुद्दीन तुगलक या गाजी मलिक तुगलक वंश का संस्थापक था। यह वंश करौना तुर्क के नाम से प्रसिद्ध था। क्योंकि गयासुद्दीन तुगलक का पिता करौना तुर्क था। इब्न बतूता हमें बताता है कि उसने शेख रुकनुद्दीन मुल्तानी से यह सुना था कि सुल्तान तुगलक उन करौना तुर्कों की नस्ल में से था जो सिन्ध व तुर्किस्तान के बीच पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते थे।

करौना तुर्कों के विषय में बताते हुए मार्कोपोलो हमें यह सूचित करता है कि उन्हें यह नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि वे भारतीय माताओं और आक्रमणकारी पिताओं के पुत्र थे। ने इलियाज (Nay Elias ) , मिर्जा हैदर की तारीख-ए-रशीदी के अनुवादक ने करौना लोगों की उत्पत्ति के विषय में जांच की और यह निष्कर्ष निकाला कि करौना मध्य एशिया के मंगोलों में से थे और उन्होंने आदि काल में फ़ारस के मंगोल आक्रमणों में मुख्य भूमिका निभाई थी। भारत के मुस्लिम इतिहासकार करौना लोगों के विषय में कुछ भी नहीं लिखते।

गाजी मलिक सुल्तान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी के राज्यकाल में उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत का शक्तिशाली गवर्नर ( वार्डन ऑफ दी मार्च ) नियुक्त हुआ था। इस कठिन कार्य को उसने बड़ी योग्यता से निभाया था तथा मंगोलों के विरुद्ध सीमावर्ती क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान की थी। समकालीन स्रोतों में गाजी मलिक की मंगोलों के विरुद्ध उपलब्धियों का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार उसने मंगोलों के विरुद्ध 29 बार विजय प्राप्त की थी।

अमीर खुसरो ऐसी अट्ठारह तथा जियाउद्दीन बरनी बीस विजयों का वर्णन करते हैं। हो सकता है कि इन विजयों में कुछ केवल नाम मात्र की रही हों किंतु या सत्य है कि मंगोलों के निरंतर बढ़ते हुए आक्रमणों के कारण उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत को एक ऐसे गवर्नर के अधीन रखना जरूरी था जो योग्य होने के साथ-साथ शक्तिशाली सेनापति भी हो। ऐसे गवर्नर प्रायः सुल्तान की दुर्बलता अथवा उसके विरुद्ध विद्रोह का लाभ उठाते थे, तथा शक्तिशाली होने के कारण ऐसे अवसर की खोज में रहते थे जिससे वे स्वयं सुलतान बन सकें। इस दृष्टि से गाजी मलिक जैसे योग्य सेनापति का उत्थान भी एक ज्वलंत उदाहरण है।

गयासुद्दीन तुगलक का उत्कर्ष-  

गाजी मलिक अथवा गयासुद्दीन तुगलक एक साधारण परिवार का व्यक्ति था। उसकी माता पंजाब की एक जाट महिला थी और उसका पिता बलबन का  तुर्की दास था। “अपने ऐसे जन्म के कारण गाजी मलिक के चरित्र में दो जातियों के मुख्य गुणों-हिंदुओं की विनम्रता व कोमलता तथा तुर्कों का पुरुषार्थ व उत्साह का मिश्रण हुआ।”

अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के समय गाजी मलिक राज्य के अधिक शक्तिशाली कुलीन व्यक्तियों में से एक था। मुबारक शाह के शासनकाल में भी उसकी शक्ति पहले जैसी रही। यद्यपि खुसरो शाह ने उसे अनुरंजीत करने का प्रयत्न किया। परंतु गाजी मलिक पर उसका कोई प्रभाव न पड़ा अपने पुत्र जूनाखाँ की सहायता से उसने खुसरो शाह पर आक्रमण करके उसे पराजित किया और उसका वध कर दिया।

यह कहा जाता है कि दिल्ली में विजेता के रूप में प्रवेश करने के बाद गाजी मलिक ने यह पूछताछ करवाई कि  अलादीन खिलजी का ऐसा कोई उत्तराधिकारी है जिसे वह दिल्ली की गद्दी पर बिठा सके। यह कहना कठिन है कि यह पूछताछ कहाँ तक सत्य थी और कहां तक यह आडंबर था। फिर भी ,गयासुद्दीन तुगलक 8 सितंबर 1320 को गद्दी पर बैठा। दिल्ली का वह प्रथम सुल्तान था जिसने ‘गाजी’ या ‘काफिरों‘ का घातक की उपाधि धारण की।

गृह नीति

गद्दी पर बैठने के पश्चात गयासुद्दीन ने उन सबको उनकी भूमियां वापस कर दीं जिन्हें अलाउद्दीन खलजी ने छीन लिया था।

निजामुद्दीन औलिया से विवाद- गयासुद्दीन तुगलक ने उस कोष की क्षतिपूर्ति करने की चेष्टा की जिसे खुसरो शाह ने अपव्यय के साथ बिगाड़ा था या जो उसके पतन के बाद अशांति के समय लूट लिया गया था। इस कार्य में वह बहुत अधिक सफल भी हुआ बहुत से शेखों ने वह धन उसे लौटा दिया जो उन्होंने खुसरो शाह से बहुत बड़ी मात्रा में प्राप्त किया था।परंतु शेख निजामुद्दीन औलिया ने जिसने पांच लाख टंके प्राप्त किए थे, इस आधार पर धन लौटाने से इंकार कर दिया कि उसने वह सब धन दान कर दिया है।

गाजी मलिक को यह बात रुचिकर  प्रतीत हुई । परंतु वह शेख को उसकी  लोकप्रियता के कारण कोई दंड नहीं दे सका। उसने शेख की इस आधार पर निंदा करने का प्रयत्न किया कि “वह प्रफुल्लतापूर्ण रागों व दरवेशों के नृत्यों में तल्लीन रहता है और इस ढंग की भक्ति को संस्थापित धर्म के कट्टर सुन्नी लोग गैर कानूनी समझते थे। परंतु उसे अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त न हो सकी, क्योंकि 53 धर्म-विद्वान जिसने उसने परामर्श किया शेख के कार्य में कोई दोष नहीं पा सके।

⚫ भ्रष्टाचार एवं गवन रोकने के लिए गाजी मलिक ने अपने अधिकारियों को अच्छा वेतन दिया और केवल उनकी पदोन्नति स्वीकार की जिन्होंने अपनी निष्ठा और योग्यता का प्रमाण दिया।

 गयासुद्दीन तुगलक की आर्थिक नीति

⚫   उसने भूमि कर एकत्र करने के लिए बोली दिलवानी (System of Farming of Tax ) बंद कर दी।

⚫  अमीर और मलिक अपने प्रांतों की मालगुजारी का 1/15 से अधिक भाग नहीं ले सकते थे कारकुनों व मुतसर्रिफ़ों को 5 से 10 प्रति हजार से अधिक लेने की अनुमति नहीं दी।

⚫  गयासुद्दीन ने आज्ञा दी कि दीवान-ए-विजारत किसी इकता (Ikata ) की मालगुजारी 1 वर्ष में 1/10 या 1/11 से अधिक ना बढ़ाएं।

⚫  भूमि को नापने की प्रथा बंद कर दी गई। क्योंकि इसका पालन संतोषजनक नहीं था और यह आदेश दिया गया कि भूमिकर उगाने वाले स्वयं कर निर्धारित करें।

⚫  गाजी मलिक ने कृषि के अधीन अधिक भूमि को लाने के भी उपाय किए उसका विचार यह था कि भूमि कर बढ़ाने का सबसे अच्छा कृषि में सुधार करना है , उसकी नीति का यह फल हुआ कि बहुत सी बेकार भूमि में कृषि होने लगी।

⚫  खेतों की सिंचाई के लिए नहरें खोदी गईं। उद्यान भी लगाए गए। कृषकों को लुटेरों से बचाने के लिए दुर्गों का भी निर्माण किया गया।

⚫  अलाउद्दीन द्वारा चलाई गई चेहरा व दाग व्यवस्था जारी रखी गई।

⚫  डाक व्यवस्था में गाजी मलिक ने बहुत सुधार किये। डाक हरकारों व घड़सवारों द्वारा ले जाई जाती थी। जिन्हें मिल के 2/3 भागों तथा 7 या 8 मील की दूरी पर सारे राज्य में यथा क्रम रखा जाता था। समाचार 1 दिन में 100 मील की गति से चलते थे।

⚫  अमीर खुसरो गयासुद्दीन तुगलक का राज्य कवि था और उसे राज्य से 1000 टंके के प्रति माह पेंशन मिलती थी।

 अमीर खुसरो ने अमीर खुसरो ने गयासुद्दीन तुगलक की प्रशंसा करते हुए लिखा है “कि उसने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जो बुद्धिमत्ता से युक्त नहीं हो। उसके विषय में यह कहा जा सकता है कि वह राजमुकुट के नीचे शतशः आचार्यों की योग्यता के समान मस्तिष्क रखता था।”

⚫ 1321 ईस्वी में अपने पुत्र जूना खां के नेतृत्व में गयासुद्दीन तुगलक ने वारंगल के प्रताप रुद्रदेव द्वितीय को दबाने के लिए अभियान भेजा,जो असफल रहा था। वारंगल के ही विरुद्ध अभियान 1323  में भेजा गया और इस बार आक्रमणकारियों ने प्रताप रूद्रदेव द्वितीय को परिवार सहित बंदी बना लिया और राजा को दिल्ली भेज दिया।

वारंगल का काकतीय साम्राज्य जिसे गाजी मलिक ने अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया था, बहुत से जिलों में बांट दिया गया और विभिन्न तुर्की सरदारों के अधिकारियों को सौंप दिया गया। वारंगल नगर का नाम बदलकर सुल्तानपुर कर दिया गया

गयासुद्दीन गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु

जब गाजी मलिक बंगाल में था, उसे अपने पुत्र जूनाखां के कृत्तयों के विषय में समाचार मिला। अपने लिए एक शक्तिशाली दल बनाने के विचार से जूनाखाँ  अपने अनुचरों की संख्या बढ़ा रहा था। वह शेख निजामुद्दीन औलिया, जिसके साथ उसके पिता के संबंध अच्छे ना थे का चेला बन गया। कहा जाता कि शेख ने भविष्यवाणी की थी कि राजकुमार जूना का बहुत शीघ्र दिल्ली का सुल्तान बनेगा। अन्य ज्योतिषियों ने भी ऐसा ही बताया था कि गाजी मलिक दिल्ली नहीं पहुंचेगा।

गाजी मलिक से शीघ्रता के साथ बंगाल से दिल्ली लौटने के लिए चला। राजकुमार जूनाखाँ अफगानपुर, दिल्ली से लगभग 6 मील की दूरी पर एक गांव में एक लकड़ी का भवन अपने पिता का स्वागत करने के लिए बनवाया। भवन इस प्रकार से  बनाया गया कि वह एक विशेष स्थान पर हाथियों के स्पर्श के साथ गिर पड़े।

गाजी मलिक का पंडाल के नीचे स्वागत किया गया। भोजन के बाद अपने पिता गाजी मलिक से बंगाल से लाए गए हाथी देखने की प्रार्थना की। गाजी मालिक के स्वीकार करने पर उसके सामने हाथियों का प्रदर्शन किया गया। जैसे ही हाथी भवन के उस भाग के संपर्क में आए जो गिर जाने के उद्देश्य से ही बनाया गया था, सारा पंडाल गिर पड़़ा। गाजी मलिक अपने पुत्र राजकुमार महमूद के साथ कुचला गया।(मार्च 1325)

इब्नबतूता जो 1333 ईस्वी में भारत वर्ष आया था बताता है कि भवन का निर्माण अहमद अयाज ने करवाया जिसे सुल्तान बनने पर जूना खाने मुख्यमंत्री बनाया था।

तुगलकाबाद गयासुद्दीन तुगलक की राजधानी थी। तुगलकाबाद की स्थापना मोहम्मद तुगलक ने की थी।

⚫  गयासुद्दीन तुगलक संगीत का घोर विरोधी था।

⚫  गयासुद्दीन कट्टर सुन्नी मुसलमान था।

गयासुद्दीन तुगलक का मकबरा तुगलकाबाद किले के ठीक सामने है। इसे गयासुद्दीन ने स्वयं अपने लिए 1321 ईसवी में बनवाया था। लाल बलुआ पत्थर व सफेद संगमरमर का बना हुआ यह मकबरा जो पुल से जुड़ा हुआ है और दुर्ग की विशाल दीवार है अब भी शेष हैं।

 निष्कर्ष 

इस प्रकार गयासुद्दीन तुगलक ने अपने शासनकाल में बहुत से सुधार कार्यों को आगे बढ़ाया।  उसने सिंचाई व्यवस्था से लेकर कृषि के विकास  में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

गयासुद्दीन तुगलक का मूल्यांकन

गयासुद्दीन तुगलक भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण राजा थे, जो दिल्ली सल्तनत के तीसरे सुल्तान (1325-1351) थे। उनकी प्रशासनिक योग्यता, राजनैतिक नीतियों, सामर्थ्य और विचारशीलता के बारे में विचार विभिन्न हैं और उनका मूल्यांकन विपरीत रूप से होता है।

तुगलक के शासनकाल में, वे अपनी सत्ता को मजबूत रखने के लिए कठोर और क्रूर थे। वे अधिकांश गैर-मुसलमानों के प्रति नेतृत्व और धर्मान्तरण की नीतियों को अपनाते थे, जिससे लोगों के बीच आपसी विश्वासघात और आप्राधिक्य हुआ। वे अधिकांश हिंदू राजाओं को नीचा दिखाते थे और उनकी सत्ता को स्थायी रूप से हरजाने की कोई छूट नहीं देते थे।

हालांकि, तुगलक राज्य के दौरान धार्मिक और सांस्कृतिक सुख-शांति के लिए कुछ प्रयास भी किए गए थे, जैसे बाजार में मंदिर और मदरसा की निर्मिति को प्रोत्साहित करना और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा करना। वे अपने दौर के दौरान विज्ञान, शिक्षा और कला के क्षेत्र में भी उपहार देने वाले थे।

तुगलक की सरकार ने आर्थिक और सामाजिक नीतियों में भी कुछ प्रगति की, जैसे खुशहाली की बढ़ोतरी, स्थानीय व्यापार को समर्थन करने वाली नीतियां, और बंदरगाहों की बढ़ोतरी के लिए नई योजनाएँ। तुगलक के शासनकाल में विदेशी सम्पर्क भी बढ़ा था और वे बाहरी राज्यों के साथ व्यापार, विद्या और सांस्कृतिक आपसी आपूर्ति को प्रोत्साहित करते थे।

हालांकि, तुगलक के शासनकाल में आर्थिक विपरीतताएं और विद्रोहों की समस्या भी थी। उनकी स्थानीय प्रशासनिक नीतियां और कर व्यवस्था में कठिनाई थी जिसने लोगों के बीच असंतोष और विरोध पैदा किया। उनकी शासन पद्धति और नीतियां भी कुछ समय तक उनकी सत्ता को नुकसान पहुंचा, जो बाद में उनके शासनकाल के अंत तक दिल्ली सल्तनत के अधिकांश भागों की पतन की वजह बनी।

तुगलक स्वयं को राष्ट्र निर्माता और एक शक्तिशाली शासक के रूप में दिखा सकते हैं, जिन्होंने अपने शासनकाल में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन और प्रगति किए। उनकी आर्थिक और सामाजिक नीतियां, बाहरी सम्पर्क और कला-संस्कृति के प्रोत्साहन के लिए प्रशंसनीय हैं।

हालांकि, उनकी शासन पद्धति और नीतियों में कुछ कमियां थीं, जैसे स्थानीय प्रशासन की कठिनाई और विरोध के प्रकार। उनके शासनकाल के अंत तक दिल्ली सल्तनत के अधिकांश भागों की पतन की शुरुआत हुई थी


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