मौलिक अधिकार - 𝓗𝓲𝓼𝓽𝓸𝓻𝔂 𝓘𝓷 𝓗𝓲𝓷𝓭𝓲

मौलिक अधिकार हिंदी में | Fundamental Rights In Hindi

Fundamental Rights -मौलिक अधिकार बुनियादी मानवाधिकारों के एक समूह को संदर्भित करते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए उनकी जाति, लिंग, धर्म, राष्ट्रीयता या किसी अन्य विशेषता की परवाह किए बिना निहित हैं। ये अधिकार किसी व्यक्ति के विकास और भलाई के लिए आवश्यक माने जाते हैं और कानून द्वारा संरक्षित हैं।

मौलिक अधिकार हिंदी में | Fundamental Rights In Hindi

Fundamental Rights-मौलिक अधिकार हिंदी में

मौलिक अधिकार अक्सर किसी देश के संविधान में निहित होते हैं, और उनमें आम तौर पर जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता और व्यक्ति की सुरक्षा, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, काम करने का अधिकार और शिक्षा का अधिकार, वोट देने का अधिकार और सरकार में भाग लेने का अधिकार शामिल होता है। कानून के तहत समान सुरक्षा का अधिकार।

मौलिक अधिकारों की अवधारणा समय के साथ विकसित हुई है, और अब इसे व्यापक रूप से लोकतांत्रिक समाजों की आधारशिला के रूप में मान्यता प्राप्त है। न्यायसंगत और समतामूलक समाज सुनिश्चित करने के लिए मौलिक अधिकारों का संरक्षण और संवर्धन आवश्यक है जहां सभी को गरिमा और सम्मान के साथ जीने का अवसर मिले।

भारत जैसे विशाल एवं विविधतापूर्ण देश में जहाँ सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक रूप से नागरिकों में पर्याप्त विभेद हैं, उस देश में मूल अधिकारों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। भारत में नागरिक अधिकारों का प्रारम्भ ब्रिटिशकालीन भारत में ही प्रारम्भ हुआ। भारत की आज़ादी के बाद भारत के संविधान में नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए मूल अधिकारों की व्यवस्था की गयी।

मूल अधिकार वह अधिकार होते हैं जो संविधान अपने नागरिकों को प्रदान करता है, उन्हें प्रायः प्राकृतिक अधिकार अथवा मूल अधिकार की संज्ञा दी जाती है। मूल अधिकारों का उद्देश्य सरकार अथवा राज्यों को मनमानी करने से रोकना है और नागरिकों को सर्वांगीण विकास के अवसर प्रदान करना है। ये अधिकार न्यायलय द्वारा बाध्य किये जा सकते हैं और कोई भी नागरिक सर्वोच्च न्यायालय में ऐसा करने के लिए जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय उन सभी कानूनों को जो इन अधिकारों का उल्लंघन करते हैं अथवा अपमानित करते हैं उन्हें अवैध घोषित कर सकता है। परन्तु मूल अधिकार पूर्णतया असीमित (Absolute) नहीं हैं। सरकार आवश्यकता पड़ने पर उन्हें सीमित कर सकती है। संविधान के 42वें संसोधन विधेयक ने संसद द्वारा इन मूल  को सीमित करने का अधिकार स्वीकार कर लिया गया।

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