लार्ड कार्नवालिस को भारत में पिट्स इंडिया एक्ट के अंतर्गत रेखांकित शांति स्थापना तथा शासन व्यवस्था के पुनर्गठन हेतु गवर्नर-जनरल नियुक्त कर भेजा गया। वह कुलीन वृत्ति का उच्च वंशीय व्यक्ति था। उसे भारत में एक संतोषजनक भूमि प्रणाली स्थापित करने, तथा एक ईमानदार कार्यसक्षम न्याय व्यवस्था के साथ-साथ शासन व्यवस्था का भी पुर्नगठन करना था। ‘लार्ड कॉर्नवलिस के प्रशासकीय सुधार- Lord Cornwallis And His Administrative Reforms in Hindi’ आज इस ब्लॉग में हम लार्ड कार्नवालिस के सुधारों के विषय में विस्तार से जानेंगे।
लार्ड कार्नवालिस
लार्ड कार्नवालिस कौन था, वह भारत कब आया?
लॉर्ड कॉर्नवालिस, जिनका पूरा नाम चार्ल्स कॉर्नवॉलिस था, एक ब्रिटिश सैन्य और राजनीतिक अधिकारी थे, जिन्होंने 18वीं शताब्दी के अंत में भारत के गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया। उनका जन्म 31 दिसंबर, 1738 को लंदन, इंग्लैंड में हुआ था और उनकी मृत्यु 5 अक्टूबर, 1805 को गाजीपुर, भारत में हुई थी।
लॉर्ड कार्नवालिस पहली बार 1786 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के नए गवर्नर-जनरल के रूप में भारत आए। उन्होंने 1786 से 1793 तक और 1805 से 1805 में अपनी मृत्यु तक, भारत के गवर्नर-जनरल के रूप में दो पदों पर कार्य किया। अपने कार्यकाल के दौरान, लॉर्ड कार्नवालिस ने कॉर्नवॉलिस कोड या स्थायी बंदोबस्त सहित विभिन्न प्रशासनिक और न्यायिक सुधारों को लागू किया, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक व्यवस्था को स्थिर करना था।
लॉर्ड कार्नवालिस अपने सैन्य करियर के लिए भी प्रसिद्ध हैं, विशेष रूप से अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध के दौरान एक ब्रिटिश कमांडर के रूप में उनकी भूमिका के लिए, जहां उन्होंने 1781 में यॉर्कटाउन की घेराबंदी में आत्मसमर्पण कर दिया था। उन्हें अक्सर ब्रिटिश औपनिवेशिक इतिहास में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है। भारत और 18वीं शताब्दी के अंत में भारत में ब्रिटिश शासन में उनका योगदान।
लॉर्ड डलहौजी के सुधार और उनकी विलय नीति हिंदी में
- लार्ड कार्नवालिस के न्यायिक सुधार – भारत में न्यायिक सेवाओं का जन्मदाता
- लार्ड कार्नवालिस ने पहला कार्य यह किया कि जिले की समस्त शक्ति कलेक्टर के हाथों में सौंप दी।
- जिले में तैनात कार्यवाह कलेक्टरों ( collectors in-charge ) को 1787 से दीवानी अदालतों के दीवानी न्यायाधीश भी नियुक्त कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्हें फौजदारी शक्तियां और सीमित मामलों में फौजदारी न्याय करने की भी शक्ति प्रदान की गयी।
1790 और 1792 में फौजदारी अदालतों में फेबदल करते हुए भारतीय न्यायाधीश वाली जिला फौजदारी अदालतों को समाप्त कर उनके स्थान पर 4 भ्रमण करने वाली अदालतें गठित कर दीं। 3 बंगाल के लिए और एक बिहार के लिए। इन अदालतों में कार्य यूरोपीय अध्यक्ष , काजी और मुफ़्ती की सहायता से करता था। ये न्यायलय जिलों में भ्रमण करके नगर दण्डनायकों द्वारा निर्देशित फौजदारी मामलों का निर्णय करते थे।
इसी प्रकार मुर्शिदाबाद की सदर निजामत अदालत के स्थान पर एक ऐसा ही न्यायलय कलकत्ता में स्थापित कर दिया गया। इस न्यायलय में गवर्नर-जनरल तथा उसकी परिषद् के सदस्य सम्मिलित थे। तथा जिसकी सहायता के लिए मुख्य काजी तथा मुख्य मुफ़्ती होते थे।