तैमूर के भारत पर आक्रमण को भारतीय इतिहास में एक प्रमुख घटना के रूप में याद किया जाता है, क्योंकि इसने क्षेत्र की राजनीति, समाज और संस्कृति पर स्थायी प्रभाव छोड़ा। उसके आक्रमणों के कारण हुई तबाही और तबाही के कारण उनके सैन्य अभियानों और विजयों को अक्सर इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में देखा जाता है।
तैमूर लंग का भारत पर आक्रमण
तैमूर के आक्रमण की क्रूर प्रकृति के बावजूद, उसने भारत में एक लंबे समय तक चलने वाला साम्राज्य स्थापित नहीं किया, और उसका शासन इस क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम समय तक चला। हालाँकि, उनके आक्रमण का भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, क्योंकि इससे दिल्ली सल्तनत का पतन हुआ, जो एक मुस्लिम साम्राज्य था जिसने उत्तरी भारत पर शासन किया, और क्षेत्रीय राज्यों के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।
नाम | तैमूरलंग |
जन्म | 6 अप्रैल 1336 |
जन्म स्थान | शहर-ए-सब्ज़, उज्बेकिस्तान |
पिता का नाम | तुर्गई बरलास |
माता | तकिना खातून |
भारत पर आक्रमण | 1398 |
भारत पर आक्रमण का उद्देश्य | धन की लूट और इस्लाम का प्रसार करना था। |
मृत्यु: | 19 फरवरी 1404 ओटारार, कजाकिस्तान |
समाधि | गुर-ए-अमीर, समरकंद, उज्बेकिस्तान |
घराना | तैमूर, मुगल |
भारत पर आक्रमण करने वाले तैमूर का परिचय
तैमूर, जिसे तैमूरलंग के नाम से भी जाना जाता है, 14वीं शताब्दी का मध्य एशियाई विजेता था, जो भारत सहित पूरे एशिया में अपने सैन्य अभियानों और आक्रमणों के लिए बदनाम है। 1336 में उज़्बेकिस्तान में पैदा हुआ, तैमूर एक कुशल सैन्य कमांडर के रूप में प्रमुखता से बढ़ा और एक साम्राज्य का निर्माण किया जिसे तैमूरी साम्राज्य के रूप में जाना जाता है। वह चंगेज खान का वंशज था और खुद को मंगोल विरासत का उत्तराधिकारी मानता था।
तैमूर ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाए, और 14 वीं शताब्दी के अंत में भारत पर उसके आक्रमण को उसके प्रमुख सैन्य अभियानों में से एक माना जाता है। 1398 में, तैमूर ने एक विशाल सेना का नेतृत्व किया और भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण किया, विशेष रूप से अब उत्तरी भारत के रूप में जाना जाने वाला क्षेत्र, जिसमें वर्तमान पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश शामिल हैं।
भारत पर तैमूर का आक्रमण क्रूर था और इसके परिणामस्वरूप व्यापक विनाश और विनाश हुआ। उसने उस समय के सबसे धनी और सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से एक, दिल्ली सहित कई शहरों को नष्ट कर दिया। दिल्ली की बोरी नरसंहार और लूटपाट के लिए बदनाम है, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोगों की मौत हुई और अपार धन की लूट हुई।
तैमुर लंग के पिता का नाम
उसके पिता का नाम तुर्गे था,जो तुर्कों की एक उच्च जाति बरलास की गुरकन शाखा का सरदार था। 35 वर्ष की आयु में वह चुगताई तुर्कों का का प्रधान बन गया। उसने फारस व उसके अन्य पड़ोसी देशों के विरुद्ध युद्ध किए। वह फारस तथा उसके अधीन प्रदेशों पर अपना नियंत्रण रखने में सफल रहा। भारत पर आक्रमण करने से पूर्व उसने मेसोपोटामिया ( वर्तमान इराक ) व अफगानिस्तान पर विजय प्राप्त कर उन पर अपना आधिपत्य कर रक्खा था।
Also Read- जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर: फरगना का असफल भारत में कैसे सफल हुआ और मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की
तैमूर का भारत पर आक्रमण का क्या उद्देश्य था?
तैमूर के भारत पर आक्रमण के उद्देश्य
तैमूर के भारत पर आक्रमण, जो 14वीं शताब्दी के अंत में हुआ था, के कई उद्देश्य थे। तैमूर, जिसे तामेरलेन के नाम से भी जाना जाता है, एक तुर्क-मंगोल विजेता था जिसने मध्य एशिया और मध्य पूर्व में एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया था। भारत पर उनका आक्रमण विजय और विस्तार के उनके बड़े अभियान का हिस्सा था, और भारत पर आक्रमण करने के उनके उद्देश्य इस प्रकार थे:
धन और लूट: तैमूर ने भारतीय उपमहाद्वीप की अपार संपत्ति हासिल करने की कोशिश की, जो कीमती धातुओं, रत्नों और मूल्यवान वस्तुओं सहित अपने धन के लिए प्रसिद्ध था। तैमूर के आक्रमण के लिए लूटपाट और लूटपाट महत्वपूर्ण प्रेरणा थी, क्योंकि उसने भारत की संपत्ति के साथ खुद को और अपनी सेना को समृद्ध करने की मांग की थी।
अपने साम्राज्य का विस्तार- तैमूर का उद्देश्य अपने साम्राज्य का विस्तार करना और भारतीय उपमहाद्वीप में अपना प्रभुत्व स्थापित करना था। उसने भारत के क्षेत्रों और राज्यों को अपने बढ़ते हुए साम्राज्य में मिलाने की कोशिश की, जैसा कि उसने मध्य एशिया और मध्य पूर्व के अन्य हिस्सों में किया था।
राजनीतिक और सैन्य प्रतिष्ठा: तैमूर ने भारत पर विजय प्राप्त करके अपनी राजनीतिक और सैन्य प्रतिष्ठा बढ़ाने की कोशिश की, जो एक ऐसा क्षेत्र था जो अपनी संपत्ति, संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता था। भारतीय शासकों को पराजित और अधीन करके, तैमूर ने एक शक्तिशाली विजेता के रूप में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने और क्षेत्र पर अपना अधिकार स्थापित करने का लक्ष्य रखा।
धार्मिक प्रेरणाएँ: तैमूर एक कट्टर मुसलमान था, और उसने भारत पर अपने आक्रमण को इस्लाम फैलाने और क्षेत्र में इस्लामी शासन स्थापित करने के अवसर के रूप में देखा। उन्होंने गैर-मुस्लिमों को इस्लाम में परिवर्तित करने और भारत में सुन्नी इस्लाम का एक शुद्धतावादी रूप स्थापित करने के लिए एक जिहाद, एक पवित्र युद्ध पर होने का दावा किया।
प्रतिशोध: तैमूर ने दावा किया कि भारत पर उसका आक्रमण भारतीय शासकों द्वारा इस क्षेत्र में मुस्लिम समुदायों के कथित दुर्व्यवहार के प्रतिशोध में था। उन्होंने अपने आक्रमण के औचित्य के रूप में मुसलमानों के उत्पीड़न और मस्जिदों के विनाश के उदाहरणों का हवाला दिया और इन कथित गलतियों का बदला लेने की मांग की।
सामरिक विचार: भारत पर आक्रमण करने में तैमूर के रणनीतिक विचार भी हो सकते हैं, क्योंकि यह महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक महत्व का क्षेत्र था। भारत अपने रणनीतिक व्यापार मार्गों, संसाधनों और मूल्यवान बंदरगाहों के लिए जाना जाता था, और तैमूर ने इन सामरिक संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल करने की मांग की हो सकती है।
कुल मिलाकर, भारत पर तैमूर का आक्रमण धन और लूट की खोज, उसके साम्राज्य का विस्तार, राजनीतिक और सैन्य प्रतिष्ठा, धार्मिक प्रेरणा, प्रतिशोध और रणनीतिक विचारों सहित कारकों के संयोजन से प्रेरित था।
तैमूर के भारत आक्रमण के पीछे क्या उद्देश्य था, इस विषय में ज्ञान प्राप्त करने के काफी प्रयत्न किए गए हैं, किंतु ऐसा पता चलता है कि भारत पर आक्रमण करने में तैमूर के कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं थे। वह एक महान सैनिक, अक्रांता व जोखिम उठाने वाला पुरुष था और उसकी राज्यों को जीतने की महत्वकांक्षा थी।
अतः वह एक साम्राज्यवादी शासक था। हो सकता है कि उसने अधिक प्रदेश जीतने के विचार से भारत पर आक्रमण किया हो। इसके अतिरिक्त भारत में सोने, चांदी, मोती व जवाहरात आदि ने उसे आकर्षित किया, परंतु जफरनामा व मलफूजात-ए-तैमूरी में यह कहा गया है कि उसके अभियान का मुख्य अध्याय विजय या लूट नहीं वरन् काफिरों का संहार था।
यह बताया जाता है कि तैमूर ने योद्धाओं और उलेमाओं के परामर्श के वास्ते एक परिषद बुलाई। शाहरुख ने उसे भारत के विशाल क्षेत्र व उन लाभों के विषय में बताया जो विजय के उपरांत उसको प्राप्त हो सकते थे। राजकुमार मुहम्मद ने भारत के स्रोतों और उसकी कीमती धातुओं, मोतियों, व हीरों की ओर संकेत किया। उसने इस विषय के धार्मिक पहलू पर भी संकेत किया।
कुछ कुलीन सरदारों ने भारत में बस जाने के बुरे परिणामों से सचेत किया। यह सब सुनकर तैमूर ने ( यह कहा जाता है ) यह कहा “हिंदुस्तान पर आक्रमण करने में मेरा उद्देश्य विधर्मियों के विरुद्ध अभियान करना है, जिससे मुहम्मद के आदेश के अनुसार हम इस देश के निवासियों को सच्चे दीन का अनुयायी बना सकें और जिससे हम उनके मंदिरों एवं मूर्तियों को नष्ट कर दें तथा खुदा की नजरों में ‘गाजी’ एवं ‘मुजाहिद’ बन जायं।” उलेमाओं ने उसके विचारों का समर्थन किया। अतः यह बात स्पष्ट है कि तैमूर ने भारत पर आक्रमण धर्मांधता के कारण किया और वह भारत में इस्लाम का प्रचार करना चाहता था।
भारत की ओर प्रस्थान करने से पहले तैमूर ने अपने पौत्र ( जहांगीर के पुत्र ) पीर मुहम्मद को प्राथमिक कार्य के लिए भेजा। पीर मुहम्मद ने सिंध पार किया और उच पर कब्जा कर लिया। तत्पश्चात वह मुल्तान की ओर बढ़ा जिसे 6 महीने के लंबे घेरे के बाद जीत लिया गया। पीर मुहम्मद ने दीपालपुर में पाकपटन के सारे क्षेत्र पर अधिकार करके सतलुज पार किया और अपने दादा तैमूर की प्रतीक्षा करने लगा।
Also Read- मुहम्मद शाह रंगीला: कितना रंगीला था, जीवनी और इतिहास
तैमूर का भारत कब आया
अप्रैल 1398 में तैमूर ने समरकंद छोड़ दिया। भारत की ओर प्रस्थान करते समय उसे उसके काफिरस्तान के अभियान, सड़क पर दुर्गों के निर्माण तथा विशाल साम्राज्य के कार्य के कारण कुछ देर हो गई। 15 अगस्त 1398 को उसने काबुल छोड़ा और 24 सितंबर 1398 को सिन्ध पार किया। दो दिनों में वह झेलम पहुंच गया। स्थानीय शासक, शहाबुद्दीन मुबारक ने तैमूर का विरोध किया, परंतु वह पराजित हुआ। मुबारकशाह व उसकी सारी सेना झेलम नदी में मारी गई।
तैमूर ने झेलम व रावी को पार किया और 13 अक्टूबर 1398 को तुलम्बा के सामने घेरा डाल दिया। उसने नगर को नष्ट ना करने की सहमति दी यदि उसे निश्चित धन दे दिया जावे, किंतु उसके होते हुए भी उसने हत्याकांड का आदेश दे दिया। तैमूर को जशरथ से निपटना पड़ा जो लाहौर का शासक बन बैठा था।
सतलुज नदी के किनारे जशरथ का दुर्ग छीन लिया गया और वह भाग निकला। 25 अक्टूबर 1398 को तैमूर सतलुज के उत्तरी किनारे पहुंचा। 26 अक्टूबर को पीर मुहम्मद उससे आ मिला। भारत पर अन्य अभियानों में तैमूर की सेना के दक्षिण पक्ष का नेतृत्व पीर मुहम्मद के पास रहा।
पाकपट्टन तथा दीपालपुर के नगरों ने पीर मुहम्मद का विरोध करके तैमूर के क्रोध को प्रज्वलित कर दिया। पाकपट्टन नगर के निवासियों को लूट लिया गया, दास बना लिया गया व उनका संहार कर दिया गया। उस नगर में पीर मुहम्मद की सेना की टुकड़ी की हत्या का प्रतिकार लेने के लिए दीपालपुर के 500 निवासियों की हत्या कर दी गई। एक भट्टी राजपूत राय दूल चंद भटनेर का राजा था। उसने कठोर विरोध किया परंतु अंत में 9 नवंबर 1398 को उसने आत्मसमर्पण कर दिया।
भटनेर पर पड़ने वाली छतिपूर्ति व उसके उगाहे जाने ने जनता के विरोध को उत्पन्न किया और एक हत्याकांड के बाद नगर में आग लगा दी गई और उसे नष्ट कर दिया गया। “जिससे कोई यह न कह सके कि उसके आस-पास तक कोई जीवित मनुष्य सांस न ले रहा था।”
तैमूर का दिल्ली में प्रवेश
13 नवंबर 1398 ईसवी को तैमूर ने भटनेर छोड़ दिया और उन लोगों की हत्या की जो भाग निकले थे, सिरसा व फतेहाबाद से निकलते हुए तैमूर अहरवान पहुंचा और उसे लूट लिया तथा उसमें आग लगा दी गई। तोहना में लगभग 2000 जाटों की हत्या कर दी गयी। 29 नवंबर को सारी सेना कैथल में एकत्र हुई और पानीपत की ओर प्रस्थान कर गयी। 7 दिसंबर 1398 को सेना का दायां भाग यमुना को छोड़ता हुआ दिल्ली पहुंचा। 9 दिसंबर को सेना ने नदी पार की 10 दिसंबर को तैमूर ने लोनी पर अधिकार कर लिया और उसकी हिंदू प्रजा का संहार किया गया।
नासिरूद्दीन महमूदशाह और मल्लू इकबाल ने नगर की दीवारों के भीतर सेना एकत्रित की। 12 दिसंबर को मल्लू इकबाल ने तैमूर की सेना के पृष्ठ भाग पर आक्रमण किया। पृष्ठ भाग की रक्षा के लिए दो टुकड़ियों भेजी गईं, मल्लू हार गया और उसे दिल्ली की ओर पीछे खदेड़ दिया गया। उसके आक्रमण का एकमात्र फल भयानक हत्याकांड था।
पृष्ठ भाग पर मल्लू द्वारा आक्रमण के समय लगभग एक लाख हिंदू कैदी थे जिन्हें तैमूर ने पकड़ रखा था और उन्होंने आक्रमण के समय प्रसन्नता प्रदर्शित की थी। तैमूर ने भाव देख लिया था और उसने सबकी हत्या का आदेश दे दिया। तैमूर को इस बात का डर था कि कहीं युद्ध के दिन ये लोग “अपना घेरा तोड़कर डेरे न लूट लें और शत्रु से जा मिलें।”
Also Read– अकबर महान (Akbar the great in Hindi) » मुगलकालीन इतिहास »
ज्योतिषियों की चेतावनीयों के होते हुए भी और सेना के संदेहों पर ध्यान न देते हुए तैमूर ने 15 दिसंबर 1398 को यमुना पार की और 17 दिसंबर को प्रातः काल आक्रमण के लिए अपनी सेना तैयार कर ली। मल्लू इकबाल व महमूदशाह ने भी अपनी सेनाओं को दिल्ली के बाहर निकाल लिया।
भारतीय सेना में 10,000 घुड़सवार, 40,000 प्यादे और 120 हाथी थे, जिन पर दांतों से कवच चढ़ा हुआ था, विषैली करौलियाँ थीं और जिनकी पीठ पर मजबूत लकड़ी के ढांचे चढ़े हुए थे, जिन पर से भाले तथा चकती फेंकने का कलादार धनुष व आग पकड़ने वाली वस्तुओं के फेंकने का प्रबन्ध था। आक्रमणकारी सेना ने अपनी आक्रमण करने वाली रेखा के पास एक खाई युदवाई और छप्पर की टट्टीयाँ लगवा दीं जिनके पीछे भैंसे बांध दिए गए जिससे हाथियों का आक्रमण रोका जा सके।
तैमूर ने अपनी सेना का दायां भाग पीर मुहम्मद व अमीर यादगार बरलास के नेतृत्व में रखा, वाम पक्ष को सुल्तान हुसेन, शहजादा खालिद और अमीर जहाँ के आदेशाधीन रखा तथा स्वयं केंद्रीय भाग का नेतृत्व किया। दोनों सेनाओं का दिल्ली के बाहर मुकाबला हुआ और घमासान युद्ध छिड़ गया।
तैमूर के सेनापतियों ने हमला शुरू किया जिन्होंने अपने को अग्रिम पंक्ति से अलग कर दिया और दायें भाग की ओर आगे जाने से रुक कर शत्रु की अग्रिम पंक्ति के पीछे आ गए, उन पर टूट पड़े और “उनको ऐसे तितर-बितर कर दिया जैसे भूखे शेर भेड़ों के झुंड को तितर-बितर कर देते हैं , और एक ही हमले में 600 सिपाहियों को मार दिया। पीर मुहम्मद ने शत्रु के वाम पक्ष को तोड़ दिया और उसे युद्ध क्षेत्र से भागने पर विवश कर दिया।”
सुल्तान महमूदशाह तथा मल्लू इकबाल ने केंद्रीय भाग पर आक्रमण किया। उन्होंने बड़े साहस के साथ संग्राम किया। “कमजोर कीड़े भयानक वायु से नहीं लड़ सकते और न कमजोर मृग भयानक बाघ से, अतः वे भागने पर विवश हो गये।” महमूदशाह व मल्लू इकबाल रणक्षेत्र से भाग गए और दिल्ली की चहारदीवारी पर तैमूर ने अपनी ध्वजा फहराई।
सैयदों , काजियों, शेखों व नगर के उलेमाओं ने तैमूर का स्वागत किया और उनकी सेवाओं व प्रार्थनाओं का उत्तर देते हुए उसने दिल्ली की प्रजा को जमा कर दिया, परंतु सैनिकों की उच्छ्र’खलता , क्षमा न किए जाने वाले अन्य नगरों के निवासियों के निर्दयतापूर्वक पकड़े जाने और जुर्माने के लगाए जाने ने गड़बड़ पैदा कर दी।
फल यह हुआ कि सेनाएँ निर्वासित कर दी गईं और कई दिनों तक रक्तपात चलता रहा। बहुत संख्या में लोग पकड़ लिए गए और उन्हें दास बना लिया गया। तैमूर द्वारा साम्राज्य के विभिन्न भागों में कारीगरों को भेजा गया। सारी पुरानी दिल्ली और जहांपनाह के तीनों नगरों का तैमूर ने संहार कर दिया जो उन 15 दिनों तक अधिकार जमाए रहा।
जफरनामा का लेखक दिल्ली की लूट का इस प्रकार वर्णन करता है: ” लेकिन उस शुक्रवार की रात को नगर में लगभग 15000 आदमी थे, जो शाम से लेकर सुबह तक लूटपाट तथा मकान जलाने में लगे रहे। अनेक स्थानों पर विधर्मी ‘गहरों’ ने मुकाबला किया। प्रातः काल जो सैनिक थे बाहर थे, वे स्वयं को न रोक सके और नगर में घुस गए तथा उत्पात मचाने लगे। उस रविवार के दिन, महीने की 17 तारीख को, इस सारे नगर को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया और जहांपना तथा सीरी में अनेक प्रासाद नष्ट किए गए।
18 तारीख को भी इसी प्रकार लूट जारी रही। प्रत्येक सैनिक को 20 से अधिक आदमी दास के रूप में प्राप्त हुए और बहुत से तो नगर से 50 से 100 तक पुरुषों, स्त्रियों तथा बच्चों को दास बना कर लाए। लूट की दूसरी वस्तुएँ अपार थीं। सब प्रकार के रत्नाभरण, लाल, हीरे, विभिन्न प्रकार के पदार्थ एवं वस्त्र, सोने चांदी के पात्र, अलाई टंकों के रूप में धन-राशियां तथा अन्य मुद्राएं अगणित संख्या में प्राप्त हुई। बन्दी बनाई गई स्त्रियों में अधिकांश कमर में सोने या चांदी की पेटियां तथा पैरों में बहुमूल्य छल्ले पहने हुए थीं। औषधियों, सुगंधित पदार्थों तथा ऐसी ही वस्तुओं पर तो किसी ने ध्यान ही नहीं दिया।
महीने की 19 तारीख को पुरानी दिल्ली की ओर ध्यान दिया गया क्योंकि अनेक विधर्मी हिंदू वहां भाग गए थे और वहां उन्होंने बड़ी मस्जिद में शरण ले ली थी, जहां उन्होंने आत्मरक्षा की तैयारी की थी। अमीरशाह मलिक तथा अली सुल्तान तबाची 500 विश्वसनीय आदमियों को लेकर उनके विरुद्ध चल पड़े और अपनी तलवारें खींच कर उन पर टूट पड़े और उनको नरक में भेज दिया।
हिंदुओं के मुण्डों से ऊंचे-ऊंचे टीले बना दिए गए और उनके मुण्ड मांसाहारी पशु-पक्षियों का आहार बन गए। इसी दिन पुरानी दिल्ली लूटी गई। जो नगर निवासी जीवित बचे रहे उनको बंदी बनाया गया। अनेक दिनों तक लगातार ये बन्दी नगर के बाहर लाए जाते रहे और प्रत्येक ‘तुमान’ अथवा ‘कुशन’ के अमीर ने इनके एक-एक दल को अपने अधिकार में ले लिया।
नगर के कई हजार कारीगर एवं शिल्पी लाए गए और तैमूर की आज्ञा से कुछ को उन राजकुमारों, अमीरों तथा आगाओं में बांटा गया, जिन्होंने विजय में योगदान दिया था और कुछ को उनके लिए अलग रखा गया जो अन्य भागों में शाही अधिकार बनाए हुए थे। तैमूर ने अपनी राजधानी समरकंद में एक मस्जिदे-ए-जामी बनाने की योजना बनाई थी और अब उसने आज्ञा दी कि सब संगतराश उस पवित्र कार्य के लिए रखे जावें।”
दिल्ली से तैमूर मेरठ की ओर बढ़ा जिसकी रक्षा इलियास अफगान, उसका पुत्र, मौलाना अहमद थानेसरी और सफी वीरता से कर रहे थे। तैमूर ने दुर्ग को भूमि पर गिरवा दिया, लोगों की हत्या करा दी और उनकी सारी संपत्ति लूट ली। यह आदेश दिया गया कि समस्त मीनारें व दीवारें जमीन पर गिरा दी जायें और हिन्दुओं के मकानों में आग लगा दी जाए।
तैमूर गंगा की ओर चला वहाँ एक संग्राम के बाद, जहां उसने हिंदुओं से भरी 48 नावों को लूट लिया व उनको नष्ट कर दिया, उसने नदी पार की और मुबारक खाँ के अधीन 10,000 अश्वारोहियों और पैदल सेना को परास्त किया। उसने हरिद्वार के आस-पास दो हिन्दू सेनाओं को पकड़ लिया व उन्हें लूट लिया। वहां से वह कांगड़ा की ओर चला और भेड़ों की भांति हिंदुओं को मौत के घाट उतारा गया। 16 जनवरी 1399 को उसने कांगड़ा पर अपना अधिकार कर लिया।
तत्पश्चात वह जम्मू की ओर गया जहां का शासक परास्त होने के बाद बन्दी बना लिया गया। “आशाओं, भय व धमकियों के साथ उसे इस्लाम के ग्रहण करने के प्रलोभन दिखाए। उसने मत स्वीकार कर लिया और गाय का मांस खा लिया , जो उसके सहधर्मियों में एक निन्द्यकार्य है। इससे उसको बहुत सम्मान प्राप्त हुआ और उसे सम्राट के संरक्षण में ले लिया गया।” ठीक जम्मू के राजा की पराजय के बाद कश्मीर के सिकंदरशाह ने उसकी अधीनता स्वीकार करते हुए अपना सन्देश भेजा।
एक अभियान लाहौर भेजा गया। नगर पर कब्जा कर लिया गया। शेखा खोखर को तैमूर के सामने लाया गया जिसने उसे मृत्युदंड दिया। 6 मार्च 1399 को तैमूर ने सेना के अधिकारियों व राजकुमारों को उनके प्रांतों में भेजने से पहले विदाई देने के विचार से एक दरबार किया। उस अवसर पर उसने खिजर खाँ को मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर की सरकार का शासक नियुक्त कर दिया।
कुछ इतिहासकारों का मत है कि तैमूर ने उसको दिल्ली का वायसराय नियुक्त किया। 19 मार्च 1399 को तैमूर ने सिन्ध पार किया, दो दिनों के बाद उसने बन्नू छोड़ दिया और कुछ समय के बाद समरकन्द पहुंच गया। उसने अपने एक आक्रमण में भारत पर इतनी मुसीबत ढाई जितनी कोई भी अन्य पूर्ववर्ती अपने आक्रमण में न ढा सका।
तैमूर के भारत पर आक्रमण का प्रभाव
1–तैमूर के लौटने के पश्चात सारा भारत अवर्णनीय अशांति, अव्यवस्था में बदल गया। दिल्ली लगभग निर्जन व नष्ट-भ्रष्ट हो गई। वह अनाथ हो गई। जो कुछ भी निवासी बचे, उन्हें अकाल व महामारी का सामना करना पड़ा। चूँकि आक्रमणकारी सेना ने फसलों तथा अनाज के ढेरों को अपार क्षति पहुंचाई थी, इसलिए स्वाभाविक रूप से दुर्भिक्ष आ गया।
हजारों मनुष्यों के हत्याकांड के कारण वायु तथा जल दूषित हो जाने के कारण महामारी फैल गई। संहार इतना भारी हो गया कि “नगर बुरी तरह से निर्जन हो गया और जो बच गए थे वो काल का ग्रास बन गए। पूरे दो महीने तक एक चिड़िया तक ने दिल्ली में अपना पर नहीं हिलाया।
2–तुगलक साम्राज्य लगभग मृतप्राय हो गया। ख्वाजा जहाँ जौनपुर का एक स्वतंत्र शासक था। बंगाल बहुत पहले ही स्वतंत्र हो चुका था। गुजरात में मुजफ्फर शाह किसी को स्वामी नहीं मानता था। मालवा में दिलावर खाँ ने लगभग राजसी शक्तियां धारण कर रखी थी। पंजाब व ऊपरी सिंध का शासन खिज्रखां तैमूर के वायसराय की भांति कर रहा था। समाना गालिब खाँ के पास था। कालपी और महोबा मुहम्मद खाँ के अधीन स्वतंत्र रियासतें बन चुकी थीं।
इस समय मल्लू इकबाल बरन में था। कुछ समय के लिए नुसरतशाह दिल्ली का स्वामी बन बैठा परंतु मल्लू ने उसे उस स्थान से खदेड़ दिया और उसे मेवात में शरण लेने पर विवश कर दिया जहां कुछ ही समय बाद उसकी मृत्यु हो गई। यह अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि तैमूर के आक्रमण ने उस जगमगाते हुए तुगलक वंश का अंत कर दिया जिसके बाद 1414 में सैयद वंश को स्थान प्राप्त हुआ।
3–तैमूर ने भारत की समृद्धि को नष्ट कर दिया। दिल्ली , भटनेर, दीपालपुर, मेरठ व हरद्वार में कला के बड़े प्रासादों को नष्ट कर दिया गया। लूटमार , आगजनी आदि ने भारत को उसकी महान् सम्पत्ति से वंचित कर दिया।
4– तैमूर के आक्रमण ने हिंदुओं व मुसलमानों के बीच खाई को अधिक चौड़ा कर दिया। हिंदुओं पर उनके अत्याचारों के कारण मुसलमान लोग हिंदुओं को अपनी ओर ना कर सके क्योंकि हिंदू लोग उन्हें म्लेच्छ समझने लगे। तैमूर द्वारा हिंदुओं के हत्याकांड तथा उनके नरमुंडो से मीनारों के बनाए जाने ने कटुता को और भी बढ़ा दिया। तैमूर के आक्रमण ने हिंदुओं और मुसलमानों को एक दूसरे के निकट लाने वाली बात को और भी अधिक असंभव बना दिया।
5– तैमूर के आक्रमण का यह प्रभाव पड़ा कि भारतीय कला को केंद्रीय एशिया तक पहुंचने का अवसर मिला। तैमूर अपने साथ बहुत से शिल्पकार व कारीगर समरकंद ले गया जहां उन्हें मस्जिद व अन्य प्रासाद बनाने के लिए रखा गया।
6– तैमूर के आक्रमण का एक अन्य प्रभाव यह हुआ कि उसने मुगल विजय का मार्ग खोल दिया। बाबर तैमूर की नस्ल का था और उसने अपनी इसी नस्ल के कारण दिल्ली के सिंहासन पर दावा दिखाया। तैमूर की पंजाब व दिल्ली की विजय में बाबर ने अपनी भारतीय विजय की नैतिक व कानूनी तर्क सिद्धि पाई।
Conclusion
इस प्रकार भारत पर तैमूर के आक्रमण का अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ा। जहां तुगलक वंश लगभग मृतप्राय हो गया और उसके पश्चात 1414 में सैयद वंश का उदय हुआ। हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच एक गहरी खाई पैदा हो गई, क्योंकि तैमूर ने हिंदुओं के साथ अत्यंत बर्बरता दिखाई। जहां उनकी बेरहमी से हत्या की गयी, उसके साथ ही उनके धार्मिक स्थलों को भी तोड़ डाला गया। तैमूर ने भारत पर इतने गहरे घाव किए जिसके निशान वर्षों तक ना मिट सके।