मगध का प्रारम्भिक इतिहास: हर्यक वंश, शिशुनाग वंश, नन्द वंश और प्रमुख शासक 

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मगध का इतिहास बहुत पुराना है, जो लगभग 6,000 ईसा पूर्व तक जाता है। इसके प्रारंभिक इतिहास में मगध एक संगठित राजनीतिक संप्रदाय था, जो गंगा नदी के आसपास स्थित था। बुद्ध धर्म की उत्पत्ति भी मगध में हुई थी। बुद्ध काल में मगध को हम एक शक्तिशाली राजतंत्र के रूप में संगठित पाते हैं कालांतर में मगध का उत्तरोत्तर विकास हुआ और एक प्रकार से मगध का इतिहास संपूर्ण भारतवर्ष का इतिहास बन गया। मगध का गौरव बिंबिसार से लेकर गुप्त राजाओं तक समानांतर बना रहा। मगध अनेक राज्यों के उत्थान और पतन की गाथा अपने गर्भ में समेटे हुए हैं। 

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मगध का प्रारम्भिक इतिहास
 

मगध का प्रारम्भिक इतिहास

आधुनिक बिहार के गया और पटना जिलों का लगभग संपूर्ण क्षेत्र मगध था।यह( उत्तर में )गंगा, (पश्चिम में ) सोन, ( दक्षिण में) विंध्या पर्वत मालाओं और ( पूर्व में) चंपा के मध्य अवस्थित था । इसकी प्राचीनतम राजधानी गिरिव्रज(पर्वतों से घिरा नगर) और प्राचीन राजगृह थी। महावग्ग में इसे ‘मगधों का गिरिभाज’ कहा गया है , ताकि इसकी पहचान कैकेय के गिरिव्रज से पृथक रूप में की जा सके।

महाभारत में इसे गिरिव्रज , राजगृह ,बृहदृथपुर और मगधपुर कहा गया है, और बताया गया है कि पाँच ओर से पहाड़ियों से घिरे होने के कारण लगभग अभेद्य नगर था। रामायण में से वासुमती नाम से पुकारा गया है। हुएन-साँग  इसे कुशाग्रपुर कहता है । जबकि बुद्धघोष ने इसका सातवां नाम बिम्बिसारपुरी बताया है। प्राथमिक दृष्टि से देखें तो राजगृह की बाहरी प्राचीरें, भारत में उत्तर हड़प्पा कालीन  किलाबंदी के सबसे प्राचीन प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।

प्रथम राजवंशहर्यक वंश ( 544  से 412 ईसा पूर्व )

  • पुराणों तथा बौद्ध गंथों से हमें मगध पर शासन करने वाले राजवंशों के विषय में जानकारी मिलती है यद्पि इसमें बहुत से मत भिन्न हैं
  • पुराणों के अनुसार मगध पर सर्वप्रथम बृहद्रथ वंश का शासन था इसी वंश का राजा जरासंघ था जिसने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया था।  तत्पश्चात वहां प्रद्योत वंश का शासन स्थापित हुआ।  प्रद्योत वंश का अंत करके शिशुनाग ने अपने वंश की स्थापना की ।
  • शिशुनाग वंश के बाद नंद वंश ने शासन किया। गंथों से हमें मगध पर शासन करने वाले राजवंशों के विषय में जानकारी मिलती है यद्पि इसमें बहुत से मत भिन्न हैं।
  • बौद्ध ग्रंथ तथा लेखक बृहद्रथ वंश का कोई उल्लेख नहीं करते । प्रद्योत तथा उसके वंश को अवंती से संबंधित करते हैं, बिंबिसार तथा उसके उत्तराधिकारियों को शिशुनाग का पूर्वागामी बताते हैं और अंत में नंदों को रखते हैं ।
  • शिशुनाग का पुत्र कालाशोक अथवा काकवर्ण जिसके समय में वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति हुई थी। वैशाली को सर्वप्रथम आजातशत्रु ने जीतकर मगध में मिलाया था ।इससे स्पष्ट है कि कलाशोक अजातशत्रु के बाद राजा बना था।
  • पुराणों के अनुसार पाटलिपुत्र की स्थापना अजातशत्रु के पुत्र उदयिन ने की थी।

अतः हम कह सकते हैं कि पुराणों भ्रमवश ही शिशुनागा को मगध का प्रथम शासक बताया गया है। मगध का प्रथम राजवंश हर्यक राजवंश ही था और इसका प्रथम शासक बिंबिसार था।

1-बिम्बिसार (544-492)-   

बिंबिसार ही वह प्रथम शासक था जिसने मगध को एक विशाल साम्राज्य के रूप में स्थापित किया था। वह हर्यक वंश से संबंधित था। हर्यक कुल के लोग नाग वंश के उपशाखा से थे।

  • डी०आर० भंडारकर अपने मत में बताते हैं कि बिंबिसार अपने जीवन के प्रारम्भ  में  सम्भवतः लिच्छिवियों का सेनापति था, क्योंकि उस समय मगध पर लिच्छवियों का शासन था ।
  • बिम्बिसार का पिता राजगृह का शासक था दीपवंश  का नाम ‘बोधिस’ बताता है।
  •  मत्स्य पुराण में उसका नाम क्षेत्रौजस दिया गया है। 

अतः यह इस बात का सूचक है कि  बिंबिसार का पिता स्वयं राजा था। ऐसी स्थिति में बिंबिसार लिच्छवियों का सेनापति होने का प्रश्न ही नहीं उठता। एक अन्य नाम हमें जैन साहित्य से मिलता है -‘श्रेणीक’ संभवत यह उसको उपनाम था ।

  • बिंबिसार ने लिच्छवि गणराज्य के शासक चेटक की पुत्री चेलना (छलना) के साथ विवाह कर मगध की उत्तरी सीमा को सुरक्षित किया।
  • बिंबिसार ने दूसरा विवाह कौशल नरेश प्रसेनजीत की बहन महाकौशला के साथ किया। इस विवाह के फलस्वरुप उसका न केवल कौशल नरेश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुआ बाल्कि दहेज में उसे कशी परनत अथवा उसके कुछ ग्राम प्राप्त हुए जिनकी वार्षिक आय एक लाख थी।
  • मद्र देश (कुरु के पास ) की कन्या के साथ बिंबिसार ने तीसरा विवाह किया।  उसकी इस पत्नी का नाम क्षेमा था।
  • शाकल ( मद्र) की राजकुमारी खेमा या क्षेमा को बिंबिसार की मुख्य पटरानी कहा जाता है ।
  • महावग्ग – ग्रन्थ बिंबिसार की पांच सौ रानियों के विषय में बताता है ।
  • अवंती के राजा प्रद्योत के साथ भी बिंबिसार ने मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए। जब एक बार प्रद्योत पांडु रोग से ग्रसित था तो बिंबिसार ने अपने राजवैद्य जीवक को उनकी चिकित्सा के लिए भेजा।
  • बिंबिसार ने अंग(चम्पा) के ऊपर आक्रमण करके वहां के शासक ब्रह्म दत्त को मृत्युदंड दिया ,तथा वहां अपने पुत्र अजातशत्रु को उपराजा (वायसराय)नियुक्त किया ।
  • बुद्धघोष के अनुसार बिंबिसार के साम्राज्य में 80000 गांव थे तथा उसका विस्तार 300 लीग (लगभग 900 मील) था।
  •  बिम्बिसार महात्मा बुद्ध का मित्र एवं संरक्षक था।
  • विनयपिटक से ज्ञात होता है कि बुद्ध से मिलने के पश्चात उसने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया तथा बेलूबन नामक उद्यान बुद्घ तथा संघ के निमित्त प्रदान कर दिया।

ऐतिहासिक ग्रंथों से पता चलता है कि बिंबिसार ने लगभग 52 वर्षों तक शासन किया।  बौद्ध तथा  जैन  बिम्बिसार की मृत्यु के विषय में बताते हैं कि उसका अंत अत्यंत दुखद हुआ।  अजातशत्रु ने उसे बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया जहां भीषण यातनाओं द्वारा उसे मार डाला गया। बिम्बिसार की मत्यु 492 ईसा पूर्व के लगभग हुई।

अजातशत्रु / कुणिक -(492-460)-

  •  अजातशत्रु, बिंबिसार की मृत्यु के पश्चात मगध का शासक बना
  •  अजातशत्रु का विवाह बाजीरा से हुआ जो कशी के नरेश प्रसेनजीत की पुत्री थी।

अजातशत्रु के समय में मगध तथा वाज्जि संघ के बीच संघर्ष गंगा नदी के ऊपर नियंत्रण स्थापित करने के लिए हुआ था, क्योंकि यह नदी पूर्वी भारत में व्यापार के प्रमुख माध्यम थी।

  • भास के अनुसार अजातशत्रु की कन्या पद्मावती का विवाह वत्सराज उदयन के साथ हुआ था ।
  • भरहुत स्तूप की एक बेदीका के ऊपर अजातशत्रु भगवान बुद्ध की वंदना करता है (अजातशत्रु भगवतो बन्दते)  उत्कीर्ण मिला है जो उसके बौद्ध होने का पुरातात्विक प्रमाण है।
  • अजातशत्रु के शासन के 8 में वर्ष में  महात्मा बुद्ध को महापरिनिर्वाण प्राप्त हुआ था।
  • महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात उनके अवशेषों पर उसने राजगृह में एक स्तूप का निर्माण करवाया था।
  • महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तत्काल बाद अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया गया था।
  • प्रथम बौद्ध संगति में बुद्ध की शिक्षाओं को दो पिटकों- सुत्तपिटक तथा विनयपिटक में विभाजित किया गया।
  • अजातशत्रु ने लगभग 32  (460 ईसा पूर्व तक) वर्ष शासन किया । उदायिन ने उसकी हत्या की।

उउदायिन-(460-444)- 

अजातशत्रु के बाद उसका पुत्र उदायिन अथवा उदयभद्र मगध का राजा हुआ। जैन ग्रंथों में उसकी माता का नाम पद्मावती मिलता है बौद्ध ग्रंथों में उसे पितृहंता कहा गया है।

👉 उदायिन को पाटलिपुत्र नगर की स्थापना का श्रेय जाता है।

👉 उदयन जैन धर्म का मातानुयाई था।

👉 उदायिन की हत्या अवंती नरेश द्वारा कराई गई।

👉 उदायिन के उत्तराधिकारीयों ने लगभग 412 ईसा पूर्व तक शासन किया। 

 शिशुनाग/शैशुनाग वंश (412-344 ईसा पूर्व)-

👉 शिशुनाग- शिशुनाग भी नागवंश से ही संबंधित था। महावंश टीका में उसे एक लिच्छवी राजा की वेश्या पत्नी से उत्पन्न बताया गया है ।

👉 पुराण उसे क्षत्रिय बताते हैं।

 👉 शिशुनाग नागदशक का प्रधान सेनापति था। इस प्रकार नागदशक हर्यक वंश का अंतिम शासक था।

 कालाशोक ( काकवर्ण)

👉 शिशुनाग ने लगभग 412 ईसा पूर्व से लेकर 394 ईसा पूर्व तक शासन किया।

👉 कालाशोक मगध का अगला शासक बना।

👉 पुराणों में कालाअशोक को काकवर्ण कहा गया है।

👉 कलाशोक के शासनकाल में वैशाली में बौद्ध धर्म के द्वितीय संगीति का आयोजन हुआ। इसमें बौद्ध संघ में विभेद उत्पन्न हो गया तथा वह स्पष्टतः दो संप्रदायों में बट गया- स्थविर तथा महासांधिक।

👉 परंपरागत नियमों में आस्था रखने वाले लोग इस स्थविर कहलाए ,तथा जिन लोगों ने बुद्ध संघ में कुछ नए नियमों को समाविष्ट कर लिया बे महासांधिक कहलाए। इन्हीं दोनों संप्रदायों से बाद में चलकर क्रमशः हीनयान और महायान की उत्पत्ति हुई ।

👉 बाणभट्ट के हर्षचरित से  पता चलता है कि काकवर्ण की राजधानी के समीप घूमते हुए किसी व्यक्ति ने गले में छुरा भोंककर हत्या कर दी ( काकवर्ण: शैशुनागी, नगरोपकण्ठे निचकृते निस्त्रिशेन -हर्षचरित)। यह राजहंता कोई दूसरा नहीं अपितु नंद वंश का पहला राजा महापदमनंद ही था। कालाशोक ने संभवत 366 ईसा पूर्व तक राज्य किया। 

 इस वंश का अन्य 344 ईसा पूर्व के लगभग हो गया। 

  नंद वंश-( 344-से-324-23 ईसा पूर्व )

👉 एक निम्न वर्ण से संबंधित व्यक्ति ( महापद्मनंद ) ने शिशुनाग वंश का अंत  कर दिया । 

👉 पुराण उसे महापदम कहते हैं।

👉 महाबोधिवंश उसे उग्रसेन कहता है।

👉 भारतीय तथा विदेशी दोनों ही साक्ष्य नंद्रों की शद्र अथवा निम्न जातियों उत्पत्ति का स्पष्ट संकेत करते हैं।

👉  महापदमनंद के विषय  में पुराणों में वर्णन है कि वह शिशु एक शूद्रा स्त्री ( शुद्रागर्भोद्भव) के गर्भ से उत्पन्न हुआ था, जो शिशुनाग वंश के अंतिम राजा की पत्नी थी।

👉 विष्णु पुराण में कहा गया है कि महानंदी की शूद्रा  से उत्पन्न महापदम अत्यंत लोभी  तथा बलवान एवं दूसरे परशुराम के समान सभी क्षात्रिर्यों  का विनाश करने वाला होगा।

👉 परिशिष्टपर्वन के अनुसार वह नापित ( नाई ) पिता और वेश्या माता का पुत्र था।

👉 आवश्यक सूत्र उसे नापितदास (नाई का दास) कहता है।

👉 महापदमनन्द उस समय के सभी प्रमुख राजवंशों को पराजित किया और  ‘एकराट’ की उपाधि ग्रहण की।

👉 धनानंद इस वंश का अंतिम शासक था जो सिकंदर का समकालीन था। उसे यूनानी लेखकों ने अग्रमिज ( उग्रसेन का पुत्र) कहा है यूनानी लेखकों के अनुसार उसके पास असीम सेना तथा अतुल संपत्ति थी कार्टियस के अनुसार उसके पास 20,000 अश्वारोही ,200000 पैदल ,2000 रथ, तथा तीन हजार हाथी थे जेनोफोन उसे बहुत धनाढ्य व्यक्ति कहता है।

👉 नंद वंश का अंत मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य के द्वारा हुआ।


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