मुग़ल काल को भारत में अंतिम मुसलमान शासन कहा जा सकता हैं। मुग़लों के बाद भारत पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। मुग़लों की शासन व्यवस्था के बहुत से अंगों को अंग्रेजों ने भी अपनाया। भूमिकर व्यवस्था से लेकर न्याय और मुद्रा व्यवस्था की भी काफी समय तक व्यवस्था को अपनाया गया। इस लेख में हम मुग़लकालीन मुद्रा व्यवस्था की चर्चा करेंगे।
मुग़लकालीन मुद्रा और टकसाल व्यवस्था
तुगलक शासक मुहम्मद तुगलक के समय से भारतीय मुद्रा की दशा अत्यंत दयनीय थी। मुग़ल वंश के प्रारम्भिक शासकों बाबर और हुमायूँ ने भी मुद्रा और टकसाल के संबंध में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया।
शेरशाह सूरी द्वारा मुद्रा और टकसाल के संबंध में सुधार
हुमायूँ को मुग़ल सत्ता से बेदखल करने वाले शेरशाह ने अपनी पूर्ण शक्ति के साथ 175-178 ग्रेन का रुपया और तांबे का दाम चलाया। वह मुद्रा के सुधार का कार्य अपने उत्तरवर्ती मुग़ल सम्राट अकबर के लिए छोड़ गया।
अकबर द्वारा मुद्रा और टकसाल व्यवस्था में सुधार
मुग़लकालीन मुद्रा और टकसाल व्यवस्था के क्रम में अकबर ने 1577 में शिराज के ख्वाजा अब्दुल समद को दिल्ली के शाही टकसाल का अधिकारी नियुक्त किया। उसने प्रांतीय टकसालों को महत्वपूर्ण शाही अफसरों के अधीन किया।
बंगाल की टकसाल का प्रमुख राजा टोडरमल को बनाया गया तथा चार अन्य अधिकारियों को लाहौर, जौनपुर, अहमदाबाद और पटना की टकसालों का प्रमुख नियुक्त किया गया।
टकसाल के प्रमुख कर्मचारियों का विवरण
अबुल फज़ल का कहना है कि दिल्ली टकसाल के स्थायी कर्मचारियों में एक दरोगा, सैरफ़ी या असेसर, एक अमीन, मुशरिफ या दिन का हिसाब लिखने वाला मुंशीं, टकसाल के लिए सोना, चांदी और तांबा खरीदने वाला व्यापारी, खजांची, तौला, सीसा तथा तांबा गलाने वाले होते थे।
किस धातु के सिक्के चलाये
अकबर ने सोने, ताम्बे और चांदी के सिक्के निकाले। उसने विभिन्न मूल्य और भारों के सोने के 26 सिक्के चलाये। शंशाह 10 तोले से कुछ अधिक भारी था। कम मूल्य के भी सोने के सिक्के केवल चार टकसालों अर्थात दिल्ली, बंगाल, अहमदाबाद और काबुल में ढाले गए।
मुग़लकालीन सिक्के
चांदी का प्रमुख सिक्का, रुपया 172-1/2 ग्रेन का था। 1577 में जलाली, वर्गाकार चांदी का सिक्का चलाया गया। ताम्बे का प्रमुख सिक्का ‘दाम’ था। इसे ‘पैसा’ भी कहते थे।इसका भार 323 .5 ग्रेन या लगभग 21 ग्राम था। यह सिक्का अमीरों और गरीबों दोनों में ही लोकप्रिय था। 10 ‘दाम’ 172-1/2 ग्रेन के रूपये के बराबर होते थे।
सिक्के ढालने में काम आने वाले सोने और चांदी का आयात किया जाता था। टेरी बताता है कि मुग़ल ऐसे विदेशी लोगों को पसंद करते थे जो सोना लाएं और यहाँ से सामान खरीद कर ले जाएँ। देश से चांदी बाहर ले जाना दंडनीय अपराध था। ईस्ट इंडिया कम्पनी आरम्भ से ही भारत में सोना भेजती थी। 1601 में भारत भेजे गए सोने का मूल्य 22,000 पौंड था। 1616 में यह 52000 पौंड था। 1697 और 1702 के बीच में 8 लाख पौंड का सोना भारत भेजा गया। 1881 में अकेले बंगाल में 3,20,000 पौंड का सोना भेजा गया। ताम्बा राजपूताने की खानों से निकाला जाता था। बहुत बड़ी मात्रा में ताम्बे का भी आयात किया जाता था।
निष्कर्ष
इस प्रकार मुग़ल शासन काल में सिक्के और टकसाल के विषय में काफी तरक्की हुयी। काफी समय तक अंग्रेजों ने भी मुग़लकालीन मुद्रा प्रणाली का अनुशरण किया।
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